Andhra Assembly Election 2024

दक्षिणापथ विशेष-3: आंध्र प्रदेश में होगा बेहद कांटे का चुनावी मुकाबला

(प्रिय पाठकगण, 2024 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जनचौक ने अपने हिंदी भाषी पाठकों के लिए दक्षिणी राज्यों के चुनावी परिदृश्य को गहराई से समझने के लिए दक्षिण भारत के राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर गहरी निगाह रखने वाले बी. सिवरामन (पूर्व संपादक- लिबरेशन एवं डेक्कन हेराल्ड में स्तंभकार है।) के लेखों को प्रकाशित करेगा। इस बार आंध्रप्रदेश पर। एक-एक कर सभी दक्षिणी राज्यों के घटनाक्रम का राज्यवार विश्लेषण किया जायेगा। कर्नाटक एवं तमिलनाडु पर जनचौक ने पहले ही एक-एक लेख जारी किया था।)

जिन चार राज्यों के विधानसभा चुनाव इस बार लोकसभा चुनावों के साथ होने जा रहे हैं, उनमें ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के साथ-साथ आंध्र प्रदेश भी शामिल है। 

आंध्र प्रदेश में इस बार उलटफेर की सूरत बनती दिख रही है, जिसमें मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी का राजनीतिक भविष्य खतरे में जाता दिख रहा है। 2019 विधानसभा चुनावों में राज्य की कुल 175 विधानसभा सीटों में से 151 सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज करने वाली वाईएसआरसीपी क्या इस बार किसी तरह अपने दम पर बहुमत हासिल कर सत्ता में अपनी वापसी कर सकती है, यह एक बड़ा सवालिया निशान बना हुआ है। इसी प्रकार 2019 में राज्य की 25 में से 22 लोकसभा सीटों पर जीत के बावजूद 2024 में चुनाव परिणामों में व्यापक बदलाव होने की उम्मीद की जा रही है। ओपिनियन पोल अभी से वाइएसआरसीपी को मात्र 10 जबकि टीडीपी-बीजेपी गठबंधन के पक्ष में 15 सीट जाने का पूर्वानुमान बता रहे हैं।  

वाईएसआर कांग्रेस की इतने बड़े पैमाने पर गिरावट की वजह क्या है?
पहली नजर में इसे मात्र चुनावी गणित से जोड़कर देखने की गलती की जा रही है, क्योंकि यदि टीडीपी, भाजपा और जन सेना नाम की नई गठबंधन साझीदार के वोटों को जोड़ देते हैं, तो क्या इनका संयुक्त योग वाईएसआरसीपी के खिलाफ एकजुट होकर भी चुनावी पटखनी देने की क्षमता रखता है? नहीं, इससे यह संभव नहीं है। 
2019 विधान सभा चुनावों में वाईएसआरसीपी का वोट प्रतिशत टीडीपी के 39.17%, जन सेना के 5.53% और भाजपा के 0.84% के मुकाबले 49.95% था। 
2019 लोकसभा चुनावों में भी इस वोट प्रतिशत में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला। वाईएसआरसीपी को लोकसभा में कुल 49.15% वोट हासिल हुए थे, जबकि टीडीपी 39.59%, जन सेना 5.79% और भाजपा के खाते में मात्र 0.96% वोट आये थे। 
इन आंकड़ों को देखते हुए साफ़ नजर आता है कि सिर्फ चुनावी जोड़तोड़ के अलावा भी इस चुनाव में कोई न कोई चुनावी केमिस्ट्री बन रही है, जिसे जानना आवश्यक है।
वाईएसआरसीपी सरकार के इस तीव्र पतन के पीछे पिछले पांच वर्षों की मजबूत सत्ता-विरोधी लहर काम कर रही है।
सत्तारूढ़ दल के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर असंतोष पनपने की वजह क्या है, जिसके चलते 2019 के उसके वोट प्रतिशत में 5% से भी अधिक गिरावट देखने को मिल रही है?

जगन की लोकलुभावन नीतियों की सीमा

जगन मोहन रेड्डी को लीक से हटकर नई लोकलुभावन नीतियों को लागू करने के लिए जाना जाता है। उनके शासनकाल में राज्य सरकार ने लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई का अधिकांश खर्च स्वंय वहन किया और विदेशों में उनकी शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा को काफी हद तक सब्सिडी प्रदान करने का काम किया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन सहित अन्य वस्तुओं को आम लोगों के घरों तक पहुंचाने का काम भी किया गया। विधवाओं, वृधावस्था पेंशन और विकलांगों को मिलने वाले पेंशन के दायरे विस्तारित ही नहीं किया बल्कि पेंशन राशि को 1,500 से बढ़ाकर 2,250 रूपये तक कर दिया गया। पेंशन की राशि अब सीधे लाभार्थियों के बैंक अकाउंट में जमा हो जाती है, और नौकरशाही का कोई हस्तक्षेप नहीं रह गया है। राज्य में करीब 1 करोड़ महिलाओं को स्वंय सहायता समूहों के साथ जोड़ा गया है, जिसके चलते उन्हें माइक्रो-क्रेडिट (लघु कर्ज) का लाभ प्राप्त हो रहा है। इन सभी वजहों से आंध्र प्रदेश में महिलाओं के बीच में जगन का मजबूत समर्थक आधार खड़ा हो चुका है।   
इसके अलावा जगन ने राज्य सरकारी कर्मचारियों की पेंशन राशि को भी ओपीएस स्कीम के समकक्ष लाकर एक अन्य लोकप्रिय मांग को पूरा कर दिया है। ठेके पर काम करने वाले श्रमिकों की सेवाओं का भी नियमितीकरण किया जा चुका है। जगन के शासनकाल के तहत लोकलुभावनवाद नई बुलंदियों को छू रहा है, जिसके चलते सरकार की किसी न किसी योजना से करीब 8 करोड़ लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
इतने बड़े पैमाने पर लोकलुभावनवादी नीतियों को लागू करने के बावजूद जगन आखिरकार क्यों विफल साबित हो रहे हैं? इतने बड़े पैमाने पर जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के बाद भी वाईएसआरसीपी का वोट बैंक मजबूत क्यों नहीं हो पा रहा?
नायडू के खिलाफ जगन का व्यक्तिगत प्रतिशोध आम लोगों को रास नहीं आ रहा  
इसे संयोग ही कहना चाहिए कि जगन की लोकलुभावनवादी ब्रांड के पीछे एक निरंकुश लोकलुभावनवाद भी काम कर रही है। नायडू के प्रति जगन की शत्रुता ने बेहद निजी दुश्मनी का आकार ग्रहण कर लिया था। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के द्वारा अतीत में नायडू के एपी स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन में कथित 371 करोड़ रूपये गबन मामले में आरोपी होने का मामला विचाराधीन था, जिसमें कोर्ट ने नायडू की अपील को स्वीकार कर लिया था, लेकिन उसके बावजूद जगन ने नायडू को गिरफ्तार करा लिया। जब उच्च न्यायालय ने नायडू को इस मामले में जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी किया तो उनके खिलाफ कुछ और नये मामले ठोंक दिए गये। इससे भी बुरा यह हुआ कि जगन ने राज्य मशीनरी का दुरूपयोग कर अगस्त 2023 में चितूर में टीडीपी की रैली पर बर्बर पुलिस लाठीचार्ज करा दिया। 2019 में सत्ता में आने के बाद से ही वाईएसआरसीपी पार्टी के कार्यकर्ताओं और पुलिस प्रशासन के द्वारा टीडीपी के विरोध प्रदर्शनों पर बर्बर दमन का सिलसिला एक रोजमर्रा की बात हो चुकी है। 
दमन की सारी हदें पार हो चुकी थीं। सिर्फ टीडीपी समर्थक ही नहीं बल्कि इसका शिकार प्रदर्शनकारी किसानों और विद्युत् कर्मियों तक को होना पड़ा है। जगन के राज में आंध्र प्रदेश वस्तुतः एक पुलिस स्टेट में तब्दील हो चुका है। अपनी निजी दुश्मनी में जगन ने न सिर्फ नायडू को अपने निशाने पर रखा बल्कि उनके बेटे नारा लोकेश तक को नहीं बक्शा। नायडू को 53 दिनों तक जेल की सींखचों के पीछे रहने के लिए मजबूर होना पड़ा, और यदि सर्वोच्च न्यायालय ने फाइबर-नेट जैसे नए केस के खिलाफ अपना फैसला नहीं सुनाया होता तो बहुत संभव था कि उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता। आंध्र प्रदेश की जनता ने नायडू के खिलाफ जगन की इस निजी बदले की कार्रवाई को अस्वीकार कर दिया है। इसी प्रकार तटीय आंध्र के लोग जगन के समूचे राज्य के कामकाज में रायलसीमा गैंगस्टर्स वाली बदला लेने वाली संस्कृति को विस्तारित करने के खिलाफ हैं। इस प्रकार कह सकते हैं कि जगन की जनकल्याणकारी नीतियों के प्रभाव को उनकी निरंकुशतावादी नीति ने काफी हद तक असरहीन बना दिया है।  
इसके अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि पिछले पांच वर्षों में जो भी महत्वपूर्ण सामाजिक पुनर्संयोजन आकार ग्रहण किये हैं, वे सभी चंद्रबाबू नायडू के पक्ष में जाते हैं। 

जगन के खिलाफ बदलता सामाजिक समीकरण 

आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग की जनसंख्या कुल आबादी के 20% हिस्से के बराबर है, जबकि अनुसूचित जनजाति 5% आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। अन्य प्रमुख जातियों में कापू 21%, कम्मा 5% और रेड्डी 8% हैं। तीनों उच्च जातियों में गिने जाते हैं जबकि उनके बीच के तूर्पा कापू और मुन्नुर कापू वर्गों को ओबीसी में वर्गीकृत किया गया है।   
टीडीपी को कम्माओं की पार्टी के तौर पर जाना जाता है। हालांकि संख्या के लिहाज से कापू और रेड्डी की तुलना में कम्मा की संख्या कम है, लेकिन आर्थिक दृष्टि से उन्हें बेहद शक्तिशाली माना जाता है, और उनमें से कई लोग धनी किसान और व्यवसायी हैं। तेलगु समाज के बीच उन्हें नव-पूंजीवादी वर्ग के प्रमुख हिस्से के तौर पर देखा जाता है। मुख्य रूप से ये बड़ी संख्या में उपजाऊ कृष्णा घाटी से सम्बद्ध कृष्णा, गुंटूर, प्रकासम और नेल्लोर जिलों में बसे हुए हैं। 
कापू भी एक मजबूत कृषक समुदाय है, जो मुख्यतया समान रूप से उपजाऊ गोदावरी घाटी के ईस्ट और गोदावरी जिलों में आबाद हैं। इसके अलावा उनकी बसाहट अन्य उत्तरी तटीय आंध्र के जिलों में भी देखी जा सकती है। सिने कलाकार से राजनीतिज्ञ बन चुके पवन कल्याण असल में लोकप्रिय तेलगु हीरो चिरंजीवी के भाई हैं, जो कापू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। 2014 में इन्होने पहली बार जन सेना पार्टी के झंडे तले कापू समुदाय की अलग पहचान कायम करने के लिए उन्हें संगठित करना शुरू किया था। 
2019 में जन सेना को विधान सभा चुनाव में 5.53% और लोकसभा चुनाव में 5.79% वोट हासिल हुए थे। तेलगु देशम पार्टी के साथ जन सेना की नजदीकियां तभी से बढ़ने लगी थीं, जब चंद्रबाबु नायडू के खिलाफ जगन हमलावर थे। उन्होंने 2020 में ही टीडीपी के साथ अपना औपचारिक गठबंधन कर लिया था, और मार्च 2024 में दोनों दल भाजपा के साथ सफलतापूर्वक गठबंधन में शामिल हो गये।  
तीनों दलों के बीच लोकसभा की सीटों को लेकर जो समझौता हुआ है, उसमें टीडीपी 17 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है, जबकि भाजपा 6 और जन कल्याण सेना 2 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाने जा रही है। विधानसभा चुनाव में टीडीपी 144 सीट तो जन सेना 21 और भाजपा मात्र 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।  
राज्य में ओबीसी समुदाय आबादी के करीब 35% हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है। प्रमुख ओबीसी जातियों में गोल्ला (जो पारंपरिक तौर पर भेड़ पालन करते थे, लेकिन अब प्रमुखतया खेतिहर समुदाय है) और सेट्टी बालिजा (इनमें से मुख्य उप-समूह का गौड़ का पारंपरिक व्यवसाय ताड़ी चुआने से सम्बद्ध था, लेकिन कई अन्य सेट्टी बालिजा अब बिजनेस में हैं और कई अन्य खेती-किसानी करते हैं)। गोल्ला और सेट्टी बालिजा दोनों समुदाय पारंपरिक तौर पर टीडीपी के पीछे गोलबंद होते रहे हैं, और गोल्ला समाज के धाकड़ व्यक्ति, यानामाला रामकृष्णडू को चंद्रबाबू सरकार में वित्त मंत्री पद दिया गया था। इसके अलावा, कई नामचीन सेट्टी बालिजा नेता भी टीडीपी के पीछे लामबंद हैं। 
तेलगु देशम के झंडे तले कापू-कम्मा-ओबीसी गठजोड़ के चलते टीडीपी के पास एक मजबूत सामाजिक गठबंधन का आधार तैयार है।
वहीं रेड्डी एक उच्च जाति होने के साथ-साथ मुख्यतया जमींदार तबका है, और ज्यादातर लोग जगन रेड्डी के पीछे लामबंद हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश रायलसीमा क्षेत्र के जिलों में केंद्रित होने के साथ तटीय जिलों में बिखरे पड़े हैं। 
जबकि अधिकांश दलित जो कुछ समय पहले तक वाईएसआरसीपी के पीछे लामबंद थे, अब विभाजित हैं। भारी महंगाई की मार और गोदावरी-कृष्णा के दहाने पर स्थित जिलों के सिवाय, खेती से जुड़े कामकाज में आई किल्लत ने उनमें से अधिकांश को वाईएसआरसीपी से अलगाव की स्थिति में ला दिया है। जगन का मूल आधार क्षेत्र रायलसीमा में होने की वजह से तटीय जिलों के समुदायों में उनका समर्थन आधार अभी भी कमजोर बना हुआ है।   
नया गठबंधन 
भाजपा का आंध्र प्रदेश में कोई स्वतंत्र जनाधार नहीं है। यही कारण है कि 2019 में उसे चुनावों में 1% से भी कम वोट हासिल हुए थे। लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की हैसियत का फायदा उठाते हुए इसने क्षेत्रीय दलों की पीठ पर सवारी कर फसल काटने का फैसला लिया है। जगन ने जिस प्रकार से चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ आक्रामकता दिखाई उससे घबराकर उन्हें मजबूर होकर भाजपा की गोद में बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके चलते टीडीपी ने भाजपा के पक्ष में 6 सीटें कुर्बान कर दी हैं, हालांकि 2019 में उसे स्वंय 3 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वास्तव में देखें तो भाजपा ने लंबे अर्से तक वाईएसआरसीपी और टीडीपी दोनों से समान दूरी बनाए रखी थी, ताकि दोनों खेमों में यह भ्रम बना रहे कि अंत में भाजपा उनके साथ ही खेमेबंदी करने वाली है।  
इसी वजह से जगन ने कभी भी केंद्र के खिलाफ सक्रिय विपक्ष की नीति नहीं अपनाई और न ही अन्य भाजपा-विरोधी शक्तियों से कभी हाथ मिलाया। उदाहारण के लिए, वे भाजपा के खिलाफ बाजी पलट सकते थे यदि उन्होंने विशाखापट्टनम स्टील प्लांट के निजीकरण की जमकर मुखालिफत की होती। जगन ने सावधानीपूर्वक इस मुद्दे की अनदेखी की और जीएसटी में राज्य की हिस्सेदारी और अन्य केंद्रीय मदों के वितरण जैसे कई अन्य मुद्दों पर अपनी चुप्पी साधे रखी। भाजपा के प्रति इस नरमी ने उनकी विपक्षी भूमिका को भोथरा कर दिया था, और आज जब भाजपा ने उनके साथ दगाबाजी कर दी है तो उन्हें अचानक से कुछ सूझ नहीं रहा है। आज जब जगन के उपर विपक्ष की भूमिका अदा करने का कार्यभार है, तो वे धुर भाजपा विरोधी भूमिका में अचानक से खुद को तब्दील कर पाने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं।     
भाजपा ने जब देखा कि जगन का राजनीतिक ग्राफ गिर रहा है, उसके बाद ही उसने लंबे समय के बाद 2024 में टीडीपी के साथ गठबंधन बनाने का फैसला लिया। वहीं दूसरी तरफ, जगन के पास अपने ही घर में पूर्ण स्वीकार्यता नहीं है। उनकी छोटी बहन, करिश्माई वाईएस शर्मिला ने तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का दामन थाम लिया था, और अब उन्हें आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद सौंप दिया गया है।  
आंध्र प्रदेश विभाजन के बाद से कांग्रेस को राज्य में जिस पैमाने पर अलगाव का सामना करना पड़ा है। आज के दिन विभाजन का मुद्दा प्रमुख चुनावी मुद्दा नहीं रह गया है, इसके बावजूद कांग्रेस अपने आधार क्षेत्र को वापिस हासिल करने में विफल साबित हुई है। हालांकि वाईएस शर्मिला के चुनावी मैदान में उतरने से जगन के राजनीतिक अस्तित्व पर कुछ असर होना स्वाभाविक है। इसके अलावा जगन के लिए भी अन्य विपक्षी दलों की तरह अपनी खुद की बहन के खिलाफ मुहंतोड़ जवाबी हमले की अपनी चिरपरिचित स्टाइल को अपनाना संभव नहीं होने जा रहा है।    
भले ही भाजपा और टीडीपी के एक साथ आने में दोनों का हित सधता है, लेकिन अभी तक वे एक भी नए कार्यक्रम के साथ सामने नहीं आ सके हैं, जो आंध्र के आम लोगों की आशा एवं आकांक्षाओं को निर्णायक तौर पर अपने पक्ष में कर सके।  
 कुछ विवादास्पद मुद्दों पर जगन के गलत फैसले से नुकसान की आशंका 
आंध्र प्रदेश के लिए नई राजधानी वाला मुद्दा जगन को सबसे अधिक परेशान करने वाला मुद्दा है। सबसे पहले जगन ने अमरावती को राज्य की नई राजधानी बनाने की घोषणा की और इसके लिए किसानों से बड़ी मात्रा में जमीनें हथिया ली गईं। जिन किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया था, उन्हें मुआवजे के तौर पर मामूली रकम प्राप्त हुई थी। इसकी वजह से वे जगन से नाराज थे, लेकिन उनका गुस्सा तब और बढ़ गया जब उन्होंने देखा कि जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित नहीं की गई थी, उनके भाव तेजी से बढ़े हैं। इसके बाद अचानक से जगन ने घोषणा कर दी कि अमरावती अकेली राजधानी नहीं होगी, इसके बजाय राज्य की तीन राजधानियां- अमरावती, कुरनूल और विशाखापट्टनम होंगी। 
वैसे देखा जाये तो आम लोगों तक प्रशासन की पहुंच बनाने के लिहाज से यह फैसला बुरा नहीं था, लेकिन शासन करने की दृष्टि से यह अराजकता को प्रतिबिंबित करने वाला फैसला साबित हुआ, न सिर्फ नौकरशाही बल्कि प्रबुद्ध वर्ग के लोगों के बीच भी इस फैसले की जमकर आलोचना हुई। नतीजे में अमरावती में जमीनों की कीमतें धड़ाम हो गईं, जिसके चलते जिन किसानों की जमीनें अभी तक अधिग्रहित नहीं की जा सकीं थी, वे भी नाराज हो गये। बाद में जगन का ध्यान विशाखापट्टनम को मुख्य राजधानी बनाने पर केंद्रित हो गया, जिसकी वजह से वहां की जमीनों के दाम आसमान छूने लगीं। नतीजा यह हुआ कि अर्ध-शहरी कृषकों को भी अपनी भूमि से हाथ धोना पड़ा। इस बीच विजयवाड़ा-गुंटूर-तेनाली शहर के लोगों में भी गुस्सा पनपा क्योंकि उनके क्षेत्र को राजधानी के लायक नहीं समझा गया। जबकि विपक्ष जगन को आधुनिक युग के तुगलक़ के तौर पर चित्रित करने में कामयाब रही।  
इसी के साथ, एक घटना और हुई। जिस दौरान दिल्ली की सीमाओं पर अखिल भारतीय स्तर के किसानों का विरोध प्रदर्शन अपने चरम पर था, उसी दौरान आंध्र प्रदेश में भी इसकी अनुगूंज देखने को मिली। इसने ऊंचे दरों पर एमएसपी की मांग का स्वरुप ग्रहण कर लिया था। कृष्णा नदी तट क्षेत्र के धान उत्पादक किसानों ने तो “फसल न बोने” की घोषणा तक कर दी। वहीं गन्ना किसान केंद्रीय एमएसपी के ऊपर राज्य सरकार के द्वारा ज्यादा बोनस की घोषणा न करने से नाराज थे। तम्बाखू उत्पादक किसान भी आईटीसी के एकाधिकार की वजह से उचित दाम न दिए जाने से विरोधस्वरूप धरना प्रदर्शन करने को मजबूर हो उठे थे।    
दूसरे शब्दों में कहें तो, जगन मोहन रेड्डी जिस चंद्रबाबू नायडू की शहरी पक्षपात वाली छवि के खिलाफ किसानों के गुस्से पर सवारी गांठकर सत्ता में आये थे, आज वे उसी किसानों की नाराजगी का शिकार होने के लिए अभिशप्त हैं। विडंबना देखिये, जगन के भी शहर के पक्ष में झुके होने के बावजूद शहरी मतदाताओं के बीच में जगन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर ग्रामीण क्षेत्रों से कहीं अधिक है।   

शहरी नाराजगी 

इसकी मुख्य वजह मध्य-वर्ग से दूरी है। जगन ने अपना ध्यान जहां पूरी तरह से शिक्षा, विशेषकर लड़कियों के बीच में शिक्षा को बढ़ावा देने पर केंद्रित किया हुआ था, वे शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार का प्रबंध कर पाने में विफल रहे। औद्योगिक विकास भी मुख्यतया विशाखापट्टनम तक सीमित रह गया और उस शहर में पलायन की रफ्तार ने वस्तुतः एक शहरी संकट को जन्म दे दिया। किराया आसमान छूने लगा जिसके साथ-साथ आवासीय संकट भी गहराने लगा। रियल एस्टेट माफिया जिसे सत्ताधारी दल का संरक्षण प्राप्त था, के कारण जमीन हड़प ने संकट को और घनीभूत कर दिया।    
कभी 110 थिएटर होने पर नाज करने वाले विजयवाड़ा में आज 111 झुग्गी बस्तियां देखी जा सकती हैं। शहर की एक चौथाई आबादी आज इन्हीं झुग्गियों में रहने को मजबूर है। बेरोजगारी अपने चरम पर है और जिंदा रहने के लिए अपनी जड़ों से उजड़ने और पारिवारिक रिश्तों में दरार पैदा होने के बावजूद पलायन ही एकमात्र उम्मीद है। 
शहरों तक में प्रमुख शहर निगम आज साफ़ पीने के पानी की आपूर्ति को सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि शहरी क्षेत्र का निरंतर विस्तार अब कृष्णा और गोदावरी के तट तक देखा जा सकता है। आंध्र प्रदेश के शहरों में खुले नाले स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं और अभी तक ज्यादातर शहरों में भूमिगत सीवर की व्यवस्था चालू नहीं हो सकी है। 
शहरी यातायात की व्यवस्था चरमरा चुकी है और ढंग की सड़क तक मौजूद नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम काफी मंथर गति से चल रहा है और सड़कों के रखरखाव का काम खस्ताहाल है। यहां तक कि समुद्र तट के 100 किमी आंतरिक हिस्से तक में यथोचित सड़क निर्माण का काम नहीं किया गया है। आदिवासी घरों और दलित बस्तियों तक में हालात बेहद खस्ताहाल हैं। 
लोकलुभावन को जब विकास की जिद्दी चुनौतियों से रूबरू होना पड़ता है, तब उसकी राजनीतिक हदें स्पष्ट होने लगती हैं। जगन का लोकलुभावनवादी ब्रांड भी इसका अपवाद नहीं है।
उदाहरण के लिए, जगन ने किसानों की बेटियों के लिए विदेशों में जाकर पढ़ने पर मदद तो प्रदान कर दी, लेकिन वे उसे घर पर रहकर परीक्षा की तैयारी के लिए बिजली की आपूर्ति कर पाने में असमर्थ हैं। राज्य में बिजली की मांग 30 करोड़ यूनिट को पार कर चुकी है, लेकिन जगन सरकार 25 करोड़ यूनिट की आपूर्ति को भी सुनिश्चित कर पाने में जूझ रही है। पॉवर कट से ग्रामीण क्षेत्र सबसे बुरी तरह से प्रभावित हैं। 
हालिया इतिहास से स्पष्ट नजर आता है कि आंध्र का मतदाताओं में धीरज लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि भले ही जगन किसी तरह अपनी सत्ता बचा पाने में कामयाब हो जायें, किंतु समान रूप से मजबूत प्रतिद्वंदियों के बीच इस बार का चुनावी संग्राम बेहद तीखा होने जा रहा है।

(बी.सिवरामन स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। [email protected] पर उनसे संपर्क किया जा सकता है।)

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