Tuesday, March 19, 2024

हिंदी पट्टी में अपराध और राजनीति के नेक्सस की उपज है विकास दुबे

कल रात दबिश डालने गयी पुलिस टीम पर हमला करके 8 पुलिसवालों की हत्या करने का आरोपी विकास दुबे आज अचानक से नहीं पैदा हो गया। वो पिछले दो दशकों से हत्याओं पर हत्याएं करवाता रहा और सत्ताधारी दलों का चहेता बना रहा। राजनीति उसे लगातार बचाती रही और वो पाला बदल-बदलकर सत्ता को फायदा पहुंचाता रहा। एक नज़र हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के प्रोफाइल पर- होश संभालते ही आयाराम-गयाराम की दुनिया में कदम रख दिया। दो दर्जन युवकों के सथ अपना खुद का गैंग बना, लूट, डकैती मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगा।

लॉ कॉलेज चलाता था अपराधी
ये भी क्या विडंबना है कि एक अपराधी ने विधि विद्यालय खोला था। इसके अलावा वो स्कूल और ईंट के भट्टे भी चलाता था। जमीनों पर अवैध कब्जा, रंगदारी वसूली और दूसरे कई तरीकों से उसने अकूत धन संपदा बटोरी थी। वर्ष 2002-07 में मायावती शासन के दौरान उसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में चलता था। इस दौरान इसने जमीनों पर अवैध कब्जे के साथ अन्य गैर कानूनी तरीके से संपत्ति बनाई।

खौफ़ यूं कि दर्जन भर गांवों में निर्विरोध चुने जाते थे ग्राम प्रधान
उसके खौफ़ का आलम ये था कि कानपुर नगर से लेकर देहात तक में वो जो कहता था लोग वही करते थे। कांशीराम नवादा, डिब्बा नेवादा, कंजती, देवकली भीठी समेत दस गांवों में विकास के ही इशारे पर प्रधान चुने जाते रहे हैं। इन गांवों में कई बार प्रधान निर्विरोध निर्वाचित हुए। वहीं उसके अपने गांव बिकरू में पिछले 15 वर्ष से निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना जाता रहा है। दहशत के चलते विकास ने 15 वर्ष से जिला पंचायत सदस्य पद पर कब्जा कर रखा है। पहले विकास खुद जिला पंचायत सदस्य रहा, फिर चचेरे भाई अनुराग दुबे को बनवाया और मौजूदा समय में विकास की पत्नी ऋचा घिमऊ से जिला पंचायत सदस्य है।

अपराध की दुनिया से राजनीति की दुनिया में रखा कदम
पंचायत, निकाय, विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव के वक्त राजनेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना इसका पेशा बन गया। आस पास के एक दर्जन गांवों में उसकी तूती बोलती थी। वो जिस प्रत्याशी को सपोर्ट कर दे इन 10 गांवों के लोग आंख मूंदकर उसे वोट दे आते थे। यही कारण है कि सभी पार्टियों के नेता चुनाव के समय में उसके संपर्क में रहते थे। स्थानीय लोगों में अपने आतंकवादी प्रभाव के चलते उसके संबंध सपा, बसपा, भाजपा के बड़े नेताओं से हो गए।

1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी हरिकिशन श्रीवास्तव को जिताने के लिए उसने खुद को मैदान में झोंक दिया था। उसी समय भाजपा प्रत्याशी संतोष शुक्ला ने उससे दुश्मनी मोल ले ली। और फिर साल 2001 में इसने भाजपा सरकार के दर्जा प्राप्त मंत्री को थाने के अंदर घुसकर गोलियों से भून डाला था। हाई प्रोफाइल मर्डर के बाद शिवली के डॉन ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और कुछ माह के बाद जमानत पर बाहर आ गया। इसके बाद इसने राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में प्रवेश किया और जेल में रहते हुए नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी जीता।

अपने एनकाउंटर की भनक लगते ही मंत्री संतोष शुक्ला की थाने में हत्या की
साल 1996 के विधानसभा चुनाव के दौरान चौबेपुर विधानसभा सीट से बसपा के हरिकिशन श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ। विकास दुबे ने हरिकिशन श्रीवास्तव को जिताने का फरमान जारी कर दिया। इस दौरान संतोष शुक्ला और विकास के बीच कहासुनी हुई। चुनाव बसपा के हरिकिशन श्रीवास्तव जीत गए। विकास और इसके गुर्गे जश्न मना रहे थे। इसी दौरान हारे हुए संतोष शुक्ला वहां से गुजर रहे थे। अपराधी विकास दुबे ने उनकी कार को रोक कर गाली-गलौज शुरू कर दी। दोनों तरफ से जमकर हाथा-पाई हुई।

इस वारदात की संतोष शुक्ला ने विकास दुबे के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज़ करवाई। इसके बाद ही विकास ने भाजपा नेता संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली। पांच साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही और इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान भी गई। साल 2001 में जब यूपी में भाजपा सरकार बनी तो संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त मंत्री बनाया गया। इसी के बाद से विकास दुबे की उल्टी गिनती शुरू हो गई। उसी वक्त विकास दुबे बसपा के साथ ही भाजपा नेताओं के संपर्क में आया। भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं रहे।

ताजा-ताजा मंत्री बने संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर अपराधी विकास दुबे का एनकाउंटर कराने का प्लान बनाया। जिसकी भनक विकास को लगी तो वो संतोष को मारने के लिए अपने गुर्गों के साथ निकल पड़ा। साल 2001 में जब भाजपा नेता संतोष शुक्ला एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथा आ धमका और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी। वो जान बचाने के लिए शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास पीछा करते हुए वहां भी आ धमका और जान बचाने के लिए लॉकअप में छिपे बैठे संतोष को बाहर लाकर मौत के घाट उतार दिया था। थाने में घुसकर एक मंत्री की दिनदहाड़े हत्या करने का दुस्साहस यूं ही नहीं था। ज़रूर पुलिस प्रशासन और थाने के पुलिसकर्मी उसके प्रभाव में थे। तभी उसे अपने एनकाउंटर के प्लान बनने की भनक भी लगी थी।

संतोष शुक्ला हत्याकांड के बाद भाजपा नेताओं ने अपनी कार में बचाकर करवाया था सरेंडर
पत्रिका के लिए साल 2017 में एक स्टोरी में पत्रकार नितिन श्रीवास्तव के मुताबिक – भाजपा की राजनाथ सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ला की थाने में हत्या के बाद पुलिस विकास दुबे के पीछे पड़ गई। कई महीनों तक वो फरार रहा और तब सरकार ने इसके सिर पर पचास हजार का ईनाम घोषित कर दिया। पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर के चलते ये अपने खास भाजपा नेताओं की शरण में गया। जहां उन्होंने अपनी कार में बैठाकर इसे लखनऊ कोर्ट में सरेंडर करवाया। कुछ माह जेल में रहने के बाद इसकी जमानत हो गई और बाहर आते ही फिर इसने अपना आतंक शुरू कर दिया। संतोष शुक्ला केस में इसके खिलाफ जितने गवाह थे वो डर के चलते मुकर गए और कोर्ट ने इसे बरी कर दिया।

हत्या के 50 केस दर्ज होने के बावजूद राजनीतिक पार्टियों के नेता एनकांउटर से बचाते रहे
विकास दुबे का आपराधिक कारोबार प्रदेश में कानपुर देहात से लेकर इलाहाबाद व गोरखपुर तक फैला है। वह कारोबारी तथा व्यापारी से जबरन वसूली के लिए कुख्यात है। विकास दुबे ने अपराध और राजनीति की दुनिया में कम समय में ही हलचल पैदा कर दी थी। हत्या और हत्या के प्रयास के ही 50 मामले उसके नाम पर दर्ज थे। पुलिस ने कई बार विकास दुबे के एनकांउटर की योजना बनाई थी, लेकिन राजनीतिक पार्टियों के दबाव में पुलिस एनकांउटर करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। विकास दुबे पर जिले के एक पूर्व सांसद का भी संरक्षण प्राप्त था।

वर्ष 2000 में कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक व रिटायर्ड प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडेय हत्याकांड में इसको सजा हुई थी बाद में वह जमानत पर बाहर आ गया था। इसके अलावा कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में वर्ष 2000 में रामबाबू यादव हत्या के मामले में विकास की जेल के भीतर रहकर साजिश रचने का आरोप लगा था। वर्ष 2004 में केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या में भी विकास के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। उसके ऊपर कानपुर के शिवली थाना क्षेत्र में ही 2000 में रामबाबू यादव हत्याकांड में जेल के भीतर रह कर साजिश रचने का आरोप है। इसके अलावा 2004 में हुई केवल व्यावसायी दिनेश दुबे की हत्या में भी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे आरोपी है। विकास दुबे ने जेल के अंदर से ही साल 2018 में अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला करवाया उसकी हत्या करावाया था। हत्या के बाद अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराया था।

दो बार हुआ था गिरफ्तार
वर्ष 2013 में विकास को कानपुर पुलिस ने पकड़ा था, तब उस पर 50 हजार का इनाम था। साल 2017 में इनामी बदमाश विकास दुबे को एसटीएम ने लखनऊ से गिरफ्तार करके स्प्रिंग फील्ड रायफल, 15 कारतूस व मोबाइल फोन बरामद किए थे लेकिन इसके एक साल बाद ही वो फिर जमानत पर बाहर आ गया। इसके अलावा मंत्री संतोष शुक्ला हत्याकांड में उसने एक बार सरेंडर भी किया था और उस पर गवाहों को मारने धमकाने के आरोप भी लगे थे। कोर्ट में गवाहों के अपने बयान से मुकर जाने के बाद वो सजा से बच गया था।

साल 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की आहट मिलते ही इसने पैर बाहर निकाले और इसी के बाद इसकी गिरफ्तारी का आदेश आ गया। दरअसल विकास दुबे वर्तमान में भाजपा के साथ ही जुड़ा था, लेकिन इसी दल के एक विधायक से इसकी नहीं पट रही थी। विकास बिल्हौर, चौबेपुर, शिवराजपुर में अपने लोगों को टिकट दिलाने के लिए लगा था। इसी के बाद भाजपा के एक खेमे ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से कर दी। इसी के बाद विकास दुबे की गिरफ्तारी का फरमान जारी हुआ।

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles