एनसीआरबी आंकड़े: भाजपा शासन में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ क्यों बढ़ रहे अपराध?

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नई दिल्ली। आजादी के बाद बहुजन समाज के लोगों को संविधान में उच्च जातियों की तरह समान अधिकार दिए गए हैं, लेकिन उनके खिलाफ अपराध लगातार बढ़ते ही रहे हैं। 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद बहुजनों- विशेष रूप से दलित और आदिवासियों- के खिलाफ अपराधों में बहुत तेज वृद्धि हुई है। क्या इसका कारण यह है कि संघ परिवार के हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा में बहुजन समाज के लोगों का कोई स्थान नहीं है?

अभी हाल में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि “राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2013 के बाद से दलितों के खिलाफ अपराध 46.11 प्रतिशत और आदिवासियों के खिलाफ 48.15 प्रतिशत बढ़ गए हैं।” खड़गे ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर दलितों और आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों के बारे में एक ग्राफ साझा किया और टिप्पणी की, कि “दलितों और आदिवासियों पर लगातार हो रहा उत्पीड़न भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाखंड को उजागर करता है।”

खड़गे ने कहा कि, “दलितों और आदिवासियों का लगातार उत्पीड़न भाजपा-आरएसएस के ‘सबका साथ’ के पाखंड को उजागर करता है।” कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि “राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ये केवल आंकड़े मात्र नहीं हैं। यह एससी-एसटी समाज के जीवन को असुरक्षित बनाने का भाजपाई काला चिट्ठा है। खड़गे ने यह भी कहा कि “अन्याय, अत्याचार और दमन- पिछले एक दशक से भाजपा द्वारा समाज को बांटने के षड्यंत्रकारी एजेंडे का हिस्सा है।”

एनसीआरबी के आंकड़ों में कहा गया है, कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों के खिलाफ अपराधों और अत्याचारों में तेज वृद्धि हुई है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में 2022 में एससी-एसटी के खिलाफ मामलों में तो और वृद्धि देखी गई। पिछले कुछ वर्षों में लगातार एससी और एसटी समुदायों के खिलाफ अपराध और अत्याचार की सबसे अधिक घटनाओं के साथ मध्य प्रदेश और राजस्थान को शीर्ष पांच राज्यों में स्थान दिया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, कि ऐसे अपराधों के ऊंचे स्तर वाले अन्य राज्यों में बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पंजाब शामिल हैं। एनसीआरबी की सालाना क्राइम रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के लिए कुल 57,582 और एसटी समुदाय के खिलाफ अपराध के लिए कुल 10,064 केस दर्ज किए गए, जो 2021 की तुलना में क्रमशः 13.1% और 14.3% अधिक है।

वास्तव में ये आंकड़े आधिकारिक हैं, जिनकी विभिन्न थानों में रिपोर्ट दर्ज़ होती है। दलित और आदिवासियों के उत्पीड़न के‌ कई गुना मामले ऐसे हैं, जिनकी थाने में रिपोर्ट तक दर्ज़ नहीं की जाती, क्योंकि कानून लागू करने वाली एजेंसियां खुद ही इन अपराधों में लिप्त पाई जाती हैं। ये आंकड़े यह भी बतलाते हैं, कि संघ परिवार के तथाकथित ‘हिन्दूराष्ट्र’ में दलित-आदिवासियों तथा अन्य बहुजन समाज के लोगों की क्या स्थिति होगी?

इस संबंध में बात करने पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष राम बरन पटेल ने कहा कि, “भाजपा शासन में गांवों में भी दलित-पिछड़े लोगों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं तथा थानों में इनकी रिपोर्ट तक दर्ज़ नहीं की जाती है।”

सामाजिक आंदोलनों से जुड़े यूट्यूब चैनल चलाने वाले मनोज सिंह कहते हैं कि, “भाजपा के शासनकाल में गांवों-शहरों, हर जगह बहुजन समाज के लोगों पर अत्याचारों में बढ़ोतरी देखी गई है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने इन वर्गों पर अत्याचार करने के लिए नौकरशाही को खुली छूट दे दी है।”

पासमांदा मुस्लिम संगठन से जुड़े इमामुद्दीन अंसारी कहते हैं, “यद्यपि भाजपा पासमांदा मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ने की बात करती है, लेकिन इनके ऊपर उत्तर प्रदेश में राजकीय दमन बहुत ज़्यादा बढ़ गया है।”

भोपाल में आदिवासियों के बीच काम करने वाले एक स्वयंसेवी संगठन में कार्यरत जावेद अनीस बताते हैं, “भाजपा के शासनकाल में मध्य प्रदेश में आदिवासियों के खिलाफ अपराध बहुत तेजी से बढ़े हैं, विशेष रूप से उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा करने की‌ घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में उनकी रिपोर्ट तक दर्ज़ नहीं की जाती तथा उनकी आवाज़ उठाने वाले लोगों को भू-माफिया द्वारा डराया-धमकाया जाता है।”

(स्वदेश कुमार सिन्हा की रिपोर्ट।)

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