Saturday, April 27, 2024

चुनाव आयुक्त चुनने में अब शामिल नहीं होंगे सीजेआई, संसद से पारित हुआ बिल, कोर्ट में चुनौती की तैयारी

मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों व उनकी सेवा शर्तों को रेगुलेट करने वाला बिल गुरुवार को लोकसभा से भी पारित हो गया। इससे पहले यह बिल 12 दिसंबर को राज्यसभा से पारित हो गया था। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब यह कानून बन जाएगा। नए कानून के लागू होने के बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चुनाव आयुक्तों की चयन समिति का हिस्सा नहीं होंगे। यह कानून चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) अधिनियम, 1991 की जगह लेगा।

प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण ने X पर ट्वीट किया है कि संसद ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर विधेयक पारित किया; सीजेआई को चयन पैनल से हटाया गया। पूरी तरह से असंवैधानिक और सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के खिलाफ चुनौती दी जाएगी।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के चीफ जस्टिस की एक समिति की तरफ द्वारा किया जाएगा। नए कानून के अनुसार, चुनाव आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति की ओर से एक सेलेक्शन कमेटी की सिफारिश पर की जाएगी। कमेटी में अब प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री की तरफ से नामित एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे।

कानूम मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 को सदन में चर्चा एवं पारित करने के लिए रखा था।

केंद्रीय मंत्री मेघवाल ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि संविधान निर्माताओं ने निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के संबंध में कानून बनाने की बात कही थी। कानून मंत्री ने लोकसभा में कहा कि 1991 में एक कानून बना, लेकिन उसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति का उल्लेख नहीं था।

मेघवाल के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक संसद इस संबंध में कानून नहीं बनाएगी, तब तक उसके फैसले के अनुरूप नियुक्ति की व्यवस्था जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि इसी संदर्भ में सरकार यह कानून बनाने जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्यसभा इस विधेयक को पारित कर चुकी है।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त और चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति की ओर से एक चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाएगा। नए कानून के अनुसार एक सरकारी संशोधन के तहत ‘सर्च कमेटी’ की अध्यक्षता अब कैबिनेट सचिव की जगह कानून मंत्री करेंगे जिसमें दो सचिव सदस्य होंगे।

विधेयक में एक नया उपबंध जोड़ा गया है जिसके तहत सीईसी और निर्वाचन आयुक्तों को ड्यूटी करते समय कोई आदेश पारित करने पर अदालत में किसी तरह की कार्रवाई से संरक्षण प्राप्त होगा।

अब मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 साल या 65 वर्ष की आयु तक रहेगा। वहीं एक सरकारी संशोधन के तहत मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन सुप्रीम कोर्ट के जज के समान होगा।

उल्लेखनीय है कि 11 दिसंबर को सरकार ने विधेयक में कुछ संशोधनों का प्रस्ताव किया था। मूल विधेयक में कहा गया था कि खोज समिति में कैबिनेट सचिव और दो सदस्य शामिल होंगे जो भारत सरकार के सचिव के पद से नीचे के नहीं होंगे। प्रस्तावित संशोधन में ‘कैबिनेट सचिव’ के स्थान पर ‘कानून और न्याय मंत्री’ शब्द का प्रयोग किया गया है।

इसके साथ ही यह भी सुझाव दिया है कि सीईसी को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाने जैसी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, इसमें कहा गया है कि सीईसी की सिफारिश के बिना ईसी को कार्यालय से नहीं हटाया जा सकता है।

इसके अलावा, विधेयक में एक नया प्रस्तावित खंड 15 ए कहता है कि कोई भी अदालत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सिविल या आपराधिक कार्यवाही पर विचार नहीं कर सकती है, जो अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में उनके द्वारा किए गए, या बोले गए किसी भी कार्य, चीज या शब्द के लिए सीईसी या ईसी है या था।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा था कि बिल भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकता है। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा था कि यदि विधेयक कानून बन जाता है तो मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में अंतिम फैसला कार्यपालिका का होगा, जिससे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव प्रभावित होंगे।

उन्होंने कहा था,”अगर आप मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को इस तरह नियुक्त कराने जा रहे हैं तो स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कोरी कल्पना बन जाएंगे।”

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में कार्यपालिका के अत्यधिक हस्तक्षेप के बारे में चिंताओं का जवाब देते हुए, अर्जुन राम मेघवाल ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 50 में निहित शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का हवाला दिया और कहा कि सीईसी और ईसी का मूल्यांकन एक कार्यकारी कार्य था।

नए बिल को लेकर विपक्ष लगातार सरकार की आलोचना कर रहा है। सरकार का कहना है कि नए कानून से चुनाव आयोग सरकार की कठपुतली बन जाएगा। विपक्ष ने इस विधेयक को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया था। 

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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