जातीय जनगणना पर संघ और हिन्दू राष्ट्र पर पीएम मोदी के सुर क्यों बदल रहे हैं?

क्या बिहार में नीतीश सरकार द्वारा कराये गए जातीय सर्वे से संघ को अब डर लगने लगा है। कल तक जो संघ और बीजेपी के नेता जातीय गणना के खिलाफ बयान दर्ज करा रहे थे अब उनके सुर बदलने लगे हैं। क्या माना जाए कि बिहार की नीतीश सरकार ने बीजेपी और संघ की राजनीति पर बड़ा हमला किया है और अब संघ और बीजेपी को लगने लगा है कि देश का जो माहौल है उसमें जातीय गणना का विरोध करना उनकी अगली राजनीति के लिए घातक हो सकता है।

संघ को यह भी डर सताने लगा है कि संभव है कि पांच राज्यों के चुनाव में विपक्ष के जातीय गणना वाले खेल का ज्यादा असर नहीं पड़ा और जनता ने उसके समर्थन में वोट डाला और जिताया भी। तीन राज्यों में उसकी बहुमत वाली सरकार भी बनी लेकिन यह सब आगे भी होता रहे, यह संभव नहीं है। संघ को यह भी लगने लगा है कि जिस तरह से भारत में जातियों की राजनीति हिलोरें मार रही हैं अगर लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा बन गया तो बीजेपी की चुनावी राजनीति पर बड़ा असर पड़ेगा और ऐसा हुआ तो आगे का खेल खतरनाक हो सकता है।

ऐसे में संघ अब इस कोशिश में लगा है कि जातीय जनगणना को देश भर में लागू कराया जाए ताकि आगे की राजनीति बीजेपी के पक्ष में दौड़े। संघ को राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर यह समझ बन रही है कि भले ही देश भर के लोग राममंदिर के उद्घाटन का समर्थन करें, लोग अयोध्या भी दौड़े-दौड़े आएं और संभव है कि इससे बीजेपी के वोट बैंक में कुछ इजाफा भी हो जाए लेकिन जातीय खेल को भारतीय समाज में रोका नहीं जा सकता है। जातीय उभार और जाति के नाम पर दौड़ती राजनीति को कोई रोक भी नहीं सकता।

संघ को यह भी लगने लगा है कि पिछले एक दशक में धार्मिक राजनीति का लाभ जितना बीजेपी को मिलना था वह मिल चुका है लेकिन अभी भी जातीय राजनीति धार्मिक राजनीति पर भारी है। ऐसे में जातीय जनगणना से भागने की कोशिश बीजेपी को गर्त की तरफ भी ले जा सकती है।

इंडिया गठबंधन की अगली रणनीति क्या होगी, कितनी सफल होगी और कितनी एकता बनी रहेगी यह भविष्य की बात है लेकिन जिस जातीय जनगणना की बात इंडिया गठबंधन के लोग आगे बढ़ाते जा रहे हैं, देर-सवेर उसका असर देश के भीतर होना है। और जनता की समझ में ये बात आ गई तो बीजेपी का खेल ख़राब ही नहीं समाप्त भी हो सकता है। ऐसे में संघ ने अब अपने सुर को बदलना शुरू कर दिया है।

संघ के लोग अब खुले मंच से इस बात की दस्तक दे रहे हैं कि जातीय जनगणना को इंकार नहीं किया जा सकता और यह समाज के लिए जरूरी भी है क्योंकि इसके बाद विकास की बातें शुरू हो सकती हैं। संघ ने कहा है कि जातीय जनगणना का उपयोग समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए हो और यह करते समय सभी पक्ष सुनिश्चित करें कि किसी भी कारण से सामाजिक समरसता और एकात्मकता खंडित ना हो।

संघ के प्रचार प्रमुख हैं सुनील आंबेकर। उन्होंने जातीय जनगणना को लेकर संघ की स्थिति को साफ़ किया है। अपने बयान में आंबेकर ने कहा है कि संघ किसी भी प्रकार के भेदभाव और विषमता से मुक्त समरसता और सामाजिक न्याय पर आधारित हिन्दू समाज के लक्ष्य को लेकर सतत कार्यरत है। 

आंबेकर आगे कहते हैं कि “यह सत्य है कि विभिन्न ऐतिहासिक कारणों से समाज के अनेक घटक आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ गए हैं। उनके विकास, उत्थान और सशक्तिकरण की दृष्टि से विभिन्न सरकारें समय-समय पर अनेक योजनाएं और प्रावधान करती हैं, जिनका संघ पूर्ण समर्थन करता है।”

आंबेकर ने आगे कहा, “पिछले कुछ समय से जाति आधारित जनगणना की चर्चा पुनः प्रारंभ हुई है। हमारा यह मत है कि इसका उपयोग समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए हो और यह करते समय सभी पक्ष यह सुनिश्चित करें कि किसी भी कारण से सामाजिक समरसता एवं एकात्मकता खंडित ना हो।”

अब जानकार मान रहे हैं कि जब बीजेपी की मातृ संस्था ही इस तरह की बात कह रही है तो बीजेपी आखिर जातीय जनगणना का विरोध कैसे कर सकती है। अब इसकी संभावना है कि मोदी की सरकार अगले कुछ महीनों के भीतर जातीय जनगणना को लेकर कोई साफ़ बात कर सकेगी।

बीजेपी को भी लगने लगा है कि जातीय जनगणना को दरकिनार करके आगे की राजनीति संभव नहीं है। अगर उसे अगले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करनी है तो हठ को छोड़कर जातीय जनगणना को आगे बढ़ाना ही होगा। और ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य की राजनीति बीजेपी के लिए संकट से भरी हो सकती है।

लेकिन मामला केवल जातीय जनगणना तक का नहीं है। बात इससे आगे की भी है। अब पीएम मोदी के भी सुर बदले हैं। हिन्दू राष्ट्र से लेकर अल्पसंख्यक समाज के बारे में बीजेपी और संघ की जो सोच रही है उस पर भी संघ और बीजेपी ने फिर से सोचना शुरू किया है।

अभी हाल में ही प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अखबार फाइनेंशियल टाइम्स में जो कुछ भी कहा है वह इस बात की तरफ ही इशारा करता है कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी अपनी सोच और समझ को बदलने को तैयार है। बीजेपी किसी भी सूरत में इस चुनाव को जीतने की कोशिश में है और अगर यह जीत कुछ त्याग कर भी संभव हो तो इसमें हर्ज ही क्या है?

फाइनेंशियल टाइम्स को दिए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने यहां तक कहा कि “जो लोग भारत के लोकतंत्र और संविधान पर सवाल खड़ा कर रहे हैं वे जमीनी हकीकत से कटे हुए हैं और इस तरह की सभी बातें निरर्थक हैं। संविधान में बदलाव की किसी भी बात का कोई मतलब नहीं है।” प्रधानमंत्री से सवाल किया गया था कि क्या भारत से लोकतंत्र ख़त्म हो रहा है जैसा कि विपक्ष का आरोप है?

ऐसे में अब इस बात की भी चर्चा होने लगी है कि बीजेपी के नेता जब हमेशा हिन्दू राष्ट्र की बात किया करते थे तो आगे क्या करेंगे? बीजेपी के नेता संविधान बदलने की बात भी करते रहे हैं ताकि देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाए। इस बात की आशंका भी की जाती रही है कि मोदी सरकार संविधान से सेक्युलर शब्द को भी हटाने की कोशिश कर रही है। लेकिन अब जब पीएम मोदी इस तरह के बयान दे रहे हैं तो जाहिर है कि देश और समाज के मूड को देखते हुए यह सब कहा जा रहा है।

हो सकता है कि पीएम मोदी के इस बयान के पीछे राजनीति छुपी हो। वे चाहते हों कि चुनाव होने तक संघ और बीजेपी की तमाम विवादित एजेंडे को दबा कर रखा जाए। अगर चुनाव जीत गए तो आगे का खेल जारी होगा और चुनाव हार गए तो बदनामी से भी बच जायेंगे। लेकिन एक बात जरूर है कि जिस तरह से संघ और बीजेपी की राजनीति बदलती दिख रही है वह संदेह तो पैदा कर ही रही है।

(अखिलेश अखिल पत्रकार हैं।)

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