अधिकांश महिलाओं के लिए हर दिन एक अवैतनिक श्रम दिवस क्यों है?

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प्रति वर्ष 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस श्रमिकों और श्रमिक वर्ग के संघर्षों और समाज में योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। ताकि सभी को “सामाजिक न्याय और उचित कार्य” मिल सके। लेकिन महिलाओं के लिए यह सामाजिक न्याय कहां है? उनमें से अधिकांश के लिए, हर दिन एक अवैतनिक श्रम दिवस है।

अनुमानतः दुनिया का 75% से अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य, महिलाओं द्वारा किया जाता है। अवैतनिक देखभाल कार्य का तात्पर्य एक घर के सदस्यों के लिए प्रदान की जाने वाली सभी अवैतनिक सेवाओं से है, जिसमें नियमित गृहकार्य, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों और अन्य घरेलू सदस्यों की देखभाल आदि शामिल है।

अवैतनिक देखभाल कार्यों में लैंगिक असमानताएं विश्व स्तर पर देखी जाती हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं शारीरिक रूप से कठिन और भावनात्मक रूप से थका देने वाले अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम – जैसे खाना बनाना, सफाई करना, बच्चों का पालन-पोषण करना, परिवार के सदस्यों की देखभाल करना आदि – में दो से दस गुना अधिक घंटे खर्च करती हैं।

“जो ज़मीन जोतता है, वही ज़मीन का मालिक होता है” का सिद्धांत अधिकांश महिला किसानों के लिए सच्चाई से बहुत दूर है।

दक्षिण एशिया के कई कृषि प्रधान देशों में ग्रामीण महिलाओं का दैनिक जीवन खेती के इर्द-गिर्द घूमता है। वे खेत-संबंधी मेहनत वाला सारा काम करती हैं – जैसे ज़मीन जोतना, बीज बोना, खरपतवार निकालना, फसल काटना, उसका भंडारण करना। लेकिन एक बार जब यह एक ‘उत्पाद’ बन जाता है, तो उसका नियंत्रण महिला के हाथ में न होकर पुरुष के हाथ में हो जाता है। उपज को बेच कर जो पैसा मिलता है उस पर पुरुष का हक़ होता है, महिला का नहीं। कड़ी मेहनत करने के बावजूद उनके नाम पर कोई संपत्ति नहीं होती – न तो जमीन और न ही घर।

महिलाओं द्वारा किए गए अदृश्य कार्यों का मूल्य 10.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है

ऑक्सफैम द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, “महिलाओं द्वारा किया जा रहे इस अदृश्य कार्य का वास्तविक आर्थिक मूल्य” 10.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। दूसरे शब्दों में, यदि दुनिया भर में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की सभी महिलाओं को उनके अवैतनिक श्रम के हर घंटे के लिए न्यूनतम वेतन भी मिले, तो वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में सालाना लगभग 10.8 ट्रिलियन डॉलर का योगदान करेंगी।

परंतु फिर भी, चाहे वह ग्रामीण हों या शहरी महिलाएं, उनकी इन कठिन और अवैतनिक गतिविधियों को अक्सर उस दैनिक कार्य के रूप में देखा जाता है जो उन्हें एक महिला-बेटी, पत्नी, या मां होने के चलते करना ही है। गहरी जड़ें जमा चुके पितृसत्तात्मक समाजों ने हमेशा घरों में काम करने वाली महिलाओं की उपेक्षा की है और घर पर उनके महत्वपूर्ण, फिर भी अवैतनिक और अदृश्य, श्रम को हल्के में लिया है।

भारत में किया गया एक अध्ययन इस तथ्य की पुष्टि करता है कि महिलाओं के समय का एक बड़ा हिस्सा घरेलू जिम्मेदारियों को पूरा करने में व्यतीत होता है, भले ही वे घर के बाहर भी नौकरी कर रही हों। नौकरीपेशा महिलाओं के लिए, इसका अर्थ है कि उन्हें प्रायः दो शिफ्ट में ड्यूटी करनी पड़ती है। इसमें उस भावनात्मक श्रम को भी जोड़ें जो परिवारों को एक साथ रखने और महिलाओं को क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए, इसकी पितृसत्तात्मक व्यवस्थाओं को सहने में खर्च होता है।

हाल ही में, एक भारतीय राजनेता ने अपने एक चुनावी भाषण में इस बात का जिक्र किया कि कैसे महिलाएं अवैतनिक मजदूर बनी रहती हैं क्योंकि वे असंख्य घरेलू काम करती हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए कभी नगद भुगतान नहीं मिलता है।

हमारे पुरुष प्रधान समाज ने घरों में काम करने वाली महिलाओं को हमेशा नजरअंदाज किया है और उन्हें हल्के में लिया है। महिलाओं के अवैतनिक घरेलू श्रम को मान्यता देने, तथा उसे पुनर्वितरित और पुरस्कृत करने के लिए हमें इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार-विमर्श करने के लिए अधिक पुरुषों (हमारे नेताओं सहित) की आवश्यकता है।

लैंगिक असमानता का मूल कारण पितृसत्ता है, जिसके चलते अनेक हानिकारक सामाजिक और लैंगिक मानदंडों को मान्यता प्राप्त है और जो गलत तरीके से लैंगिक असमानता को और उचित ठहराते हैं।

महिलाओं से नम्र, आज्ञाकारी, और एक ‘अच्छी’ मां और पत्नी’ बनने की अपेक्षा की जाती है। जबकि पुरुषों से अपेक्षा की जाती है कि वे साहसी, आक्रामक, और शक्तिशाली बनें और बच्चों के पालन-पोषण या गृहकार्य जैसी तथाकथित ‘स्त्रीयोचित’ गतिविधियों में शामिल न हों।

महिलाओं की ‘गृहिणी’ और ‘मातृत्व’ की भूमिका को पूज्यनीय बना देना, जहां एक ओर उन पर अवैतनिक घरेलू और अन्य देखभाल कार्यों का अधिकांश बोझ डालने की सामाजिक मंजूरी देता है, वहीं दूसरी ओर पुरुषों को बच्चों के पालन-पोषण और घरेलू कामों से मुक्ति देता है। लैंगिक असमानता अवैतनिक देखभाल कार्य को बढ़ावा देती है और महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा के लिए भी ज़िम्मेदार है।

महिलाओं की शिक्षा और कैरियर पीछे छूट जाता है जबकि पुरुषों को अपनी शिक्षा और कैरियर को प्राथमिकता देने और घरेलू काम और बच्चे के पालन-पोषण से बचने का सामाजिक लाइसेंस मिल जाता है। इसके अलावा, धन संबंधी मामलों और संपत्ति/भूमि अधिकारों पर कोई नियंत्रण न होने से महिलाएं अधिक असुरक्षित हो जाती हैं, जबकि पुरुष उन पर अधिकार और नियंत्रण हासिल कर लेते हैं।

पितृसत्तात्मक अथवा पुरुष प्रधान समाज एक अन्यायपूर्ण समाज है, जिसमें यह मान लिया गया है कि परिवार संबंधी कुछ कार्य – जैसे घरेलू रख रखाव, खाना बनाना, और बच्चों की देखभाल – केवल महिलाओं द्वारा ही किए जाने हैं। श्रम के इस लैंगिक विभाजन के कारण महिलाओं के पास वेतन वाले काम में संलग्न होने के लिए बहुत कम समय बचता है, जिससे वे और अधिक अदृश्य हो जाती हैं। तथा शिक्षा, कार्यबल भागीदारी के साथ-साथ अवकाश गतिविधियों के समान अवसरों से भी वंचित हो जाती हैं।

श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी कम क्यों?

संयुक्त राष्ट्र की एक नीति दस्तावेज के अनुसार अवैतनिक देखभाल कार्य का लिंग आधारित विभाजन महिलाओं के भुगतान वाले रोजगार की मात्रा और गुणवत्ता निर्धारित करता है और महिलाओं के श्रम बल से बाहर होने के मुख्य कारणों में से एक है। एशिया और पैसिफ़िक क्षेत्र में, अवैतनिक घरेलू जिम्मेदारियों के चलते कामकाजी उम्र की लगभग 40 करोड़ महिलाएं श्रम बल से बाहर रहती हैं।

अपर्याप्त आय और पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता महिलाओं पर की जाने वाली घरेलू हिंसा को भी बढ़ावा देती है। जब केवल पुरुष ही आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण रखता है, तब उसकी व्यय संबंधी निर्णय लेने की अधिक संभावना होती है, और वह स्वयं को परिवार की महिलाओं पर नियंत्रण रखने और हावी होने का हकदार मानता है।

उच्च पद पर नौकरी के लिए आवेदन करने वाली महिलाओं से अक्सर पूछा जाता है कि ‘क्या उनकी शादी की कोई योजना है?’, या ‘क्या उनके बच्चे हैं?’ और ‘वे ऑफिस और बच्चों की देखभाल/घर का काम कैसे संभालेंगी’?।

क्या कभी किसी पुरुष अभ्यर्थी से ये सवाल पूछे जाते हैं?

नियोक्ता भी जानते है कि एक महिला कर्मचारी अपनी दोहरी ज़िम्मेदारी (ऑफिस के काम के साथ-साथ घरेलू काम का प्रबंधन) के कारण अपने कार्यालय संबंधी कार्यों को अच्छी तरह से प्रबंधित करने में सक्षम नहीं हो पाएगी। वे जानते हैं वर्तमान रूढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था के मानदंडों के चलते पुरुष कर्मचारियों के घरेलू पारिवारिक कार्यों में भाग लेने की संभावना न के बराबर है।

अब समय आ गया है कि हम अलग ढंग से सोचें और महिला शोषण पर रोक लगाएं, चाहे वे शहरों में रहती हों या गांवों में; चाहे वे वेतनभोगी श्रम शक्ति का हिस्सा हों या अवैतनिक और अदृश्य घरेलू काम करने में व्यस्त हों। महिलाओं को एक कम करने वाली मशीन मानने के बजाय उनके साथ, इंसानियत का व्यवहार किया जाना चाहिए। इस मजदूर दिवस पर, आइए हम उनका अभिवादन करें और उनके अदृश्य और अवैतनिक ग्रह कार्य को मान्यता दें – केवल शब्दों द्वारा ही नहीं वरन् प्रत्यक्ष रूप से अपनी सोच और व्यवहार में बदलाव लाकर। किसी भी सभ्य समाज में घर के अंदर किए जाने वाले परिवार संबंधी कार्यों में पुरुषों की भी बराबरी की भागीदारी होना आवश्यक है।

(शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटीज़न न्यूज़ सर्विस) की संपादक हैं)

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