इस साल भी अल-नीनो का असर गर्मी और बारिश पर बना रहेगा

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पिछले पखवाड़े में मौसम विभाग पर काम करने वाली कई निजी कंपनियों ने खबर चलाया कि अब अल-नीनो का असर खत्म हो रहा है और अब अलनीना का दौर शुरू होगा। जिस समय यह खबर आई थी, उसके चंद दिनों बाद ही संयुक्त अरब अमीरात और इसके पड़ोसी देशों में भारी बारिश की खबरें आईं। यहां एक दिन में ही साल भर में होने वाली बारिश हो गई।

यह घटना ऐतिहासिक और अप्रत्याशित थी। इस बारिश को लेकर अब भी कई अटकलें लगाई जा रही हैं। विशेषज्ञों का एक बड़ा हिस्सा कृत्रिम बारिश के प्रयासों के कंधे पर डाल दिया जबकि कुछ विशेषज्ञ इसे वहां से गुजरने वाले एक चक्रवाती तूफान पर ध्यान देने का आग्रह करते रहे। रेगिस्तान में हुई इस बारिश ने वहां काफी तबाही का मंजर खड़ा किया। निश्चित ही, मौसम ने बढ़ते तामपान में एक अप्रत्याशित रूख का प्रदर्शन किया, जो दुनिया के कई हिस्सों में दिख रहा है।

जिस समय भारत में मानसून के सामान्य होने और गर्मी की अवधि के लंबा होने का अनुमान पेश किया जा रहा था उसी समय उत्तर भारत का मौसम सुहावना हो रहा था जबकि मध्य और दक्षिण भारत लू की चपेट में आने लगा था। अप्रैल के अंतिम हफ्तों में कश्मीर, हिमांचल और उत्तराखंड के ऊपरी हिस्सों में बारिश और बर्फबारी देखने को मिल रही थी।

पश्चिमी विक्षोभ से उठने वाली हवाएं पहाड़ों से उतरते हुए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में तापमान सामान्य से कम बनाने में लगी हुई थीं। हालांकि इन मौदानी इलाकों में इस समय में जितनी बारिश हो जाती है उससे 50 प्रतिशत कम हुई।

वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और नीचे ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में लू की लहर चल रही थी। भारत के मौसम विभाग ने इन इलाकों में अप्रैल के मध्य से शुरू हुए लू की लहर को लेकर चेतावनी जारी किया है कि इसमें मई तक कोई सुधार होने की गुंजाइश नहीं है, यह सामान्य से ऊपर रहेगा। मौसम विभाग ने मई के महीने से ही उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के इलाकों में भी सामान्य से अधिक तापमान होने का अनुमान पेश किया है।

भारत में मौसम में हो रहे इस अप्रत्याशित बदलावों में एक बड़ा कारण अल-नीनो का प्रभाव माना जाता है। विषुवतरेखा पर स्थिर प्रशांत महासागर की सतह के असामान्य तौर पर गर्म होने होने से गर्म हवाओं का चलना और वाष्पीकरण की असामान्य अवस्था असामान्य बारिश और गर्मी दोनों को ही बढ़ाने में योगदान करती है। साथ ही, इससे चक्रवाती तुफानों के बनने और समुद्री हवाओं की सामान्य गति भी प्रभावित होती है।

मसलन, यदि पश्चिमी विक्षोभ से हवाओं का दबाव बढ़ता है तब मानसून के उत्तर की ओर बढ़ने की गति मंद पड़ेगी। इससे सूखा और बाढ़ दोनों की स्थितियां पैदा होंगी। इसी तरह बंगाल की खाड़ी से उठने वाली हवाओं का दबाव भी प्रभावित होता है और समुद्र की हलचलों में तेजी आने लगती है।

इसका सीधा असर दक्षिण और मध्य एशियाई देशों पर पड़ता है। अल-नीनो जुलाई 2023 में प्रभाव में आ गया था और 2024 में इसका व्यापक असर देखने को मिला। आस्ट्रेलिया से लेकर पाकिस्तान में बारिश और तुफान का मंजर को देखा जा सकता है। भारत में गुजरे साल में तुफान और बारिश की तबाही और सूखे के असर को देखा जा सकता है।

इसी दौरान साउथ एशियन क्लाइमेट आउटलुक फोरम ने अपने 28वें अध्ययन को पेश करते हुए बतायाः ‘कुछ उत्तरी, पूर्वी और उत्तपूर्व के हिस्सों को छोड़कर पूरे दक्षिण एशिया में जून से सितम्बर के दौरान सामान्य से अधिक बारिश की संभावना है।’ इसके दो हफ्ते पहले भारतीय मौसम विभाग ने औसतन सामान्य बारिश की संभावना के साथ साथ यह भी बताया था कि कहीं यह सामान्य से अधिक और कहीं सामान्य से कम बारिश हो सकती है। यह अनुमान दक्षिण एशिया के अन्य देशों के संदर्भ में भी था।

यदि हम पिछले साल के मौसम से तुलना करें, तब मौसम विभाग ने औसत के आधार बारिश में आई कमी का अधिक चिंताजनक नहीं बताया था। लेकिन यदि हम राज्यवार देखें, तब हिमांचल में बारिश के शुरूआती दिनों में भारी बारिश देखी गई जो बाद में सामान्य से कम हो गई। यही स्थिति पंजाब और हरियाणा की भी रही। जबकि झारखंड, बिहार का दक्षिणी हिस्सा, ओडिशा, कनार्टक, तमिलनाडु और केरल तक में सूखे की स्थिति बन गई थी और इन इलाकों में काफी देर में बारिश हुई।

बहरहाल, मौसम विभाग अलनीनो का एक सामान्य सा प्रभाव देख रहे हैं और अनुमान लगा रहे हैं कि यह जल्द ही अलनीना की अवस्थिति में आ जाएगा। हम सिर्फ उम्मीद ही कर सकते हैं। लेकिन, दुनिया के स्तर पर गर्मी का प्रभाव देखने का मिल रहा है।

यूरोप से लेकर दक्षिण अमेरीका के घने जंगलों तक झुलसा देने वाली गर्मी और उससे पैदा होने वाली आग, रेगिस्तान में सामान्य अधिक बारिश और तुफान और दक्षिण एशिया में असामान्य बारिश, गर्मी और ठंड के उदाहरण सामने हैं, और इससे इतना तो पता ही चल रहा है जिस धरती पर हम रहे हैं, जिसकी परिस्थितिकी में हमारा पर्यावरण बना है जिसमें हम जिंदगी जीते हैं, वह बदल रहा है। निश्चित ही इसका सीधा असर हमारी जिंदगी, परिस्थिति और पर्यावरण पर पड़ रहा है। इसे गंभीरता से लेना जरूरी है। 

(अंजनी कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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