छात्रों के 18 राज्यों के 52 विश्वविद्यालयों में किए गए रेफरेंडम में मोदी सरकार शिक्षा और रोजगार के मोर्चे पर फेल

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले देश के कई छात्र संगठनों ने सोमवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस कॉफ्रेंस में कहा कि मोदी सरकार छात्रों, युवाओं, महिलाओं, दलित, अल्पसंख्यक और गरीब वर्ग को शिक्षा और रोजगार से दूर करने की साजिश रच रही है। छात्र संगठनों में मोदी सरकार के 10 वर्षीय शासन पर 10 आरोप लगाते हुए एक चार्जशीट पेश किया है। यह चार्जशीट देश के 18 राज्यों में 52 विश्वविद्यालयों और 4 कॉलेजों के 1 लाख छात्र-छात्राओं से शिक्षा और रोजगार से जुड़े तीन सवालों पर सर्वे के बाद पेश किया गया है।

सर्वेक्षण में शामिल 1 लाख छात्र-छात्राओं में से लगभग 92 प्रतिशत छात्र-छात्राओं ने कहा कि पिछले दस वर्षों में शिक्षा महंगी हुई है, जिससे गरीब और कमजोर तबके के छात्र उच्च शिक्षा से दूर हुए है। रोजगार के अवसर कम हुए है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में संघ-भाजपा से जुड़े लोगों को नौकरी दिया गया। पाठ्यक्रमों में बदलाव करके उसे आरएसएस की विचारधारा के अनुरूप किया जा रहा है। जो किसी भी प्रगतिशील और लोकतांत्रिक समाज के लिए नुकसानदेह है।

प्रेस कॉफ्रेंस में ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा), ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ), ऑल इंडिया सूफी बोर्ड (एआईएसबी), सीआरजेडी (आरजेडी पार्टी का छात्र संघ), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) छात्र विंग, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई), प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स यूनियन (पीएसयू), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई), युवा हल्ला बोल, समाजवादी छात्र सभा, रिवोल्यूशनरी यूथ एसोसिएशन (आरवाईए) के कार्यकर्ता मौजूद थे।

छात्र संगठनों ने मोदी सरकार पर 10 आरोप लगाए हैं। जिसमें सबसे प्रमुख आरोप फीस बढ़ोतरी, रोजगार के अवसर में कटौती और शिक्षा के भगवाकरण की है। सर्वे के मुताबिक उस्मानिया विश्वविद्यालय में 1000 प्रतिशत, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 400 प्रतिशत और दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी कोर्स की फीस में 1800 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। दूसरी तरफ सरकारी विश्वविद्यालयों में भी अधिकांश कोर्सों को सेल्फ फाइनेंस करके फीस बढ़ाया जा रहा है, और आरक्षण के नियमों को धता बताया जा रहा है।

आइसा के महासचिव प्रसेनजीत कुमार ने कहा कि “फीस बढ़ा कर उच्च शिक्षा को एक वर्ग तक सीमित किया जा रहा है। शिक्षा का बजट कम कर दिया गया है। नई शिक्षा नीति 2020 और यूजीसी के माध्यम से उच्च शिक्षा को बर्बाद किया जा रहा है। उच्च शिक्षा वित्तीय प्रबंधन Higher Education Financing Agency (HEFA) के माध्यम से अब विश्वविद्यालयों को बजट नहीं बल्कि कर्ज दिया जा रहा है। एक आकड़ें के मुताबिक दिल्ली विश्वविद्यालय को 983 करोड़, जेएनयू को 450 करोड़ आईआईटी दिल्ली को 580 करोड़ और बीएचयू को 356 करोड़ देकर कर्ज आधारित शिक्षा व्यवस्था को लागू करने की कोशिश हो रही है। अब विश्वविद्यालय हेफा से लोन लेंगे और फीस के नाम पर छात्रों से वसूलेंगे।”

मोदी सरकार पर दूसरा आरोप नौकरियों में कटौती करने का है। नए पदों को सृजित करने की कौन कहे पहले से मौजूद पदों पर भी भर्ती नहीं हो रही है। तीसरा आरोप, CUET के माध्यम से सीटों को कम किया जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के 2022 के प्रवेश में 25 प्रतिशत छात्रों ने प्रवेश नहीं लिया। 37.5 प्रतिशत महिला छात्रों ने प्रवेश नहीं लिया। इसी तरह दलित छात्र भी प्रवेश से वंचित रहे। चौथा, नई शिक्षा नीति के तहत डिग्री से खिलवाड़, पांचवा- सोच, चिंतन और विचारधारा पर हमला, छठा आरोप- अल्पसंख्यकों की छात्रवृत्ति में कटौती, सातवां- राजनीतिक आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है।

छात्र संगठनों का आठवां आरोप बहुत ही गंभीर है। सर्वे में छात्राओं ने कहा कि देश भर के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में छात्राओं की सुरक्षा से खिलवाड़ किया जा रहा है। कैंपसों में छात्राएं अपने को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं। नौवां आरोप सामाजिक न्याय को नजरंदाज करना है। आरक्षण के नियमों को तोड़ना-मरोड़ना है। दसवां आरोप एकैडमिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला करने का है।

छात्र नेताओं ने कहा कि कैंपसों में सोचने विचारने की जो मुक्त परंपरा थी उस पर अंकुश लगाया जा रहा है, सरकार की अपेक्षा है कि हर कोई एक तरह से ही सोचे। कैंपस में अलग राय रखने वालों के ऊपर हमला किया जा रहा है। छात्र संगठनों ने इससे निपटने के लिए लोकसभा चुनाव 2024 में संघ-भाजपा को हराने की अपील की है।

छात्र नेता नताशा ने कहा कि देश के हर परिसर में एक खास विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है। संघ-भाजपा से असहमत लोगों को जेल तक की हवा खानी पड़ रही है।

दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (एसएयू) आंदोलन की अपूर्वा ने कहा कि कॉलेज सिर्फ पढ़ने का ही नहीं बल्कि सीखने और लड़ने का भी स्थान है। लेकिन अब किसी भी परिसर में सेमिनार कर पाना भी मुश्किल है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने कहा कि “दिल्ली विश्वविद्यालय से एक हजार एडहॉक शिक्षक निकाल दिए गए। वे संघ-भाजपा की विचारधारा के नहीं थे लेकिन योग्य शिक्षक थे। अब शिक्षकों की नियुक्ति में योग्यता नहीं विचार देखा जा रहा है।”

ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) ने कहा कि 7 से 9 फरवरी, 2024 तक यंग इंडिया रेफरेंडम का आयोजन किया, जिसमें 2024 के आम चुनावों का एजेंडा क्या होना चाहिए, यह तय करने के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों ने भाग लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के लगभग 91 प्रतिशत छात्रों, जामिया मिलिया इस्लामिया (जेएमआई) के 90 प्रतिशत और डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली (एयूडी) के 79% छात्रों ने वार्षिक शुल्क वृद्धि की प्रवृत्ति के खिलाफ मतदान किया।

आइसा के महासचिव प्रसेनजीत कुमार ने कहा कि “जनमत संग्रह एक बड़ी सफलता थी क्योंकि इसे देश भर के 60 से अधिक विश्वविद्यालयों में एक लाख वोट मिले थे। हम जल्द ही इस मामले पर एक छात्र युवा लामबंदी करने की योजना बना रहे हैं।”

छात्र संगठनों ने कहा कि यंग इंडिया ने इस साल का चुनावी एजेंडा तय कर दिया है। यंग इंडिया ने ‘हिंदू राष्ट्र’ के निर्माण के नारे को खारिज कर दिया है और शिक्षा और रोजगार पर एक निश्चित और शानदार जनादेश दिया है।

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