इंदौर। पिछली सदी के महान गायक और नागरिक अधिकारों के योद्धा पॉल रॉबसन की 125वीं जयंती के मौके पर भारतीय ‘जन नाट्य सघ’ (इप्टा) की इंदौर इकाई ने 12 अप्रैल 2023 को ‘इंदौर स्कूल ऑफ़ सोशल वर्क’ के विद्यार्थियों के बीच पॉल रॉब्सन पर केन्द्रित कार्यक्रम की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम में पॉल रॉब्सन का परिचय देने के लिए रवि शंकर ने अली सरदार जाफ़री की पॉल रॉब्सन पर लिखी कविता का पाठ किया जिसमें पॉल रॉब्सन की शख़्सियत का बेहद ख़ूबसूरत बयान किया गया था। “अपने नग़मे पे कोई नाज़ तुझे हो कि न हो, नग़मा इस बात पे नाज़ां है कि वो है फन तेरा” जैसी पंक्तियों से सरदार जाफ़री ने महानायक पॉल रॉब्सन के लिए ये नज़्म कही थी।
इप्टा से जुड़े उजान बैनर्जी ने बताया कि पॉल के पिता एक ग़ुलाम थे और ग़ुलामी की प्रथा की वजह से अजन्मा बच्चा भी ग़ुलाम ही बनता था। पॉल के पिता ने ग़ुलामी में रहने से इंकार कर दिया था और वे लड़े और पास्टर भी बन गए थे। अपने पिता से पॉल ने आज़ादी की प्रेरणा हासिल की थी जो बाद में उनके नस्लभेद और रंगभेद विरोधी संघर्ष की बुनियाद बना। पॉल में अनेक किस्म की प्रतिभाएं थीं। वे फुटबॉल के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। रटगर्स यूनिवर्सिटी में उन्हें वजीफ़ा मिला और वे वहां पढ़ने पहुंचे।
उन्होंने पाया कि पूरे विश्वविद्यालय में वे अकेले ही अश्वेत थे। वे फुटबॉल खिलाड़ी थे लेकिन उन्हें गोरे विद्यार्थी खेलने नहीं देते थे, उन्हें गालियां देते थे, उन्हें मारते-पीटते थे। एक बार तो उनका कंधा भी टूट गया। उन्होंने सोचा कि वे फुटबॉल खेलने का ख़्याल छोड़ ही दें लेकिन फिर उन्हें अपने पिता की कही बात याद आती थी और वे फिर अडिग चट्टान जैसे अड़ जाते थे। उनके पिता ने उनसे कहा था कि वे समूची नीग्रो समुदाय के प्रतिनिधि हैं। इसलिए उन्हें अपने स्वाभिमान को बचाते हुए अपने आपको साबित करना है। जो उन्होंने किया भी। वे अमेरिका की राष्ट्र्रीय फुटबॉल लीग के खिलाड़ी बने जिन्हें लोग फुटबॉल का सुपरमैन कहते थे।

पॉल रॉब्सन के विद्यार्थी जीवन के बाद की घटनाओं पर रोशनी डाली अथर्व शिंत्रे ने। उन्होंने बताया कि ‘कोलम्बिया लॉ स्कूल’ से वकालत की पढ़ाई करने के बाद पॉल काफ़ी वर्षों के लिए ब्रिटेन में थिएटर करते रहे और उनकी एक्टिंग को भी उतनी ही शोहरत मिली जितनी उनके खेल को मिली थी। पॉल का राजनीति से साबका ब्रिटेन में रहते हुए ही 1930 के दशक की महामंदी से परेशान बेरोज़गार मज़दूरों के विरोध प्रदर्शनों और 1936 में ‘स्पेनिश सिविल वॉर’ में तानाशाह के ख़िलाफ़ रिपब्लिकन्स को अपना समर्थन देने से हुई थी।
उसके बाद तो वे अफ़्रीकी मामलों की परिषद् से भी जुड़ गए। दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो जाने पर वे अमेरिका लौट आये और विश्वयुद्ध में हिटलर के ख़िलाफ़ अमेरिका का समर्थन भी किया, लेकिन अश्वेत लोगों के नागरिक अधिकारों के संघर्ष और सोवियत संघ की नीतियों की प्रशंसा करने के कारण उन्हें एफबीआई का कोपभाजन बनना पड़ा। उन पर कम्युनिस्ट होने का इलज़ाम लगाकर उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया और उनके देश के बाहर जाने-आने पर रोक लगा दी गई।
सारी दुनिया में पॉल रॉब्सन पर हुई इस कार्रवाई का विरोध किया गया। विश्व के महान कवियों ने पॉल रॉब्सन पर कविताएं लिखीं और उन पर लगे प्रतिबन्ध हटाने की मांग की गई। आख़िरकार आठ साल के बाद 1958 में पॉल को उनका पासपोर्ट वापस मिल सका। उस दौरान चिली के महान कवि ‘पाब्लो नेरुदा’ और तुर्की के क्रांतिकारी कवि ‘नाज़िम हिकमत’ ने पॉल रॉबसन के लिए जो कविताएं लिखीं उनका पाठ और गायन भी किया गया।
नाज़िम हिकमत के गीत “वो हमारे गीत क्यों रोकना चाहते हैं, नीग्रो भाई हमारे पॉल रॉब्सन” को शर्मिष्ठा घोष के निर्देशन में विनीत तिवारी, उजान, अथर्व, युवराज शर्मा, लक्ष्य जैन, निशा ढोले और कत्यूषा ने गाया। इस गीत का बांग्ला अनुवाद किया था हेमांगो बिस्वास ने और संगीतबद्ध किया था कमल सरकार ने। “पॉल रॉबसन के लिए एक गीत” शीर्षक से पाब्लो नेरुदा की कविता का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया विनीत तिवारी ने और उसका पाठ सारिका श्रीवास्तव ने किया।
जया मेहता ने पॉल रॉबसन के नाटकों और फ़िल्मों में उनकी विशिष्ट शैली को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि “वूडू”, “ऑथेलो” और “एम्परर जोंस” जैसे नाटकों में काम करने से पॉल रॉबसन प्रतिष्ठा बहुत बढ़ी। इन नाटकों में पहली बार कोई मुख्य किरदार अश्वेत बनाया गया था। पॉल ने ऑथेलो की एक अलग ही व्याख्या की जो बहुत सराही गयी। उनकी पहली फिल्म “बॉडी और सोल” (1925) को भी बहुत प्रशंसा मिली।

जया मेहता ने साथ ही पॉल रॉब्सन के विश्व शांति कायम करने के प्रयासों पर भी रोशनी डाली। पॉल ने ‘पेरिस शांति सम्मेलन’ को सम्बोधित किया और ‘वर्ल्ड पीस काउंसिल’ की मीटिंग को भी। पॉल रॉब्सन ने केवल अमेरिकी अश्वेतों के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी दमितों-शोषितों के लिए संघर्ष किया। दक्षिण अफ्रीका में नस्लभेद की नीतियों के ख़िलाफ़ उनके काम को उनके मरने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने रेखांकित किया।
विनीत तिवारी ने बताया कि जब 1958 में पॉल रॉब्सन 60 वर्ष के हुए तो दुनिया के 50 देशों में उनका जन्मदिन मनाया जिसमें रूस, चीन, भारत आदि शामिल थे। पॉल रॉब्सन की ख्याति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब एक अमेरिकी पहली दफ़ा भारत आया और गांधी से मिला तो गांधी ने उससे पहला सवाल ही यह पूछा कि पॉल रॉब्सन कैसे हैं।
कार्यक्रम के अंत में इप्टा के गायन समूह ने पॉल रॉब्सन के विश्व प्रसिद्ध गीत “ओल्ड मैन रिवर- मिसिसिपी” से प्रभावित और लगभग उसी धुन पर असमिया संगीतकार और गायक भूपेन हज़ारिका के प्रसिद्द गीत “ओ गंगा, बहती हो क्यों?” को प्रभावशाली प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम की शुरुआत में इप्टा का स्वागत किया संस्थान के उप-प्राचार्य डॉ. राजेंद्र कुमार शर्मा ने। विद्यार्थियों को इप्टा के गौरवशाली इतिहास का संक्षिप्त परिचय दिया इंदौर इप्टा के संयोजक प्रमोद बागड़ी ने। इस पूरे कार्यक्रम में कलाकारों को उनकी भूमिका देने का काम नाट्य निर्देशिका और वरिष्ठ अर्थशास्त्री जया मेहता ने किया।
कार्यक्रम के अंत में इंदौर स्कूल ऑफ़ सोशल वर्क की प्रभारी प्राचार्या डॉ. सुधा जैन ने विद्यार्थियों को पॉल रॉब्सन के बारे में इतनी रोचक तरह से जानकारी देने के लिए इप्टा के सभी सदस्यों का आभार माना और विद्यार्थियों को पॉल रॉब्सन के बारे में और अधिक पढ़ने और उनसे प्रेरणा लेने के लिए कहा।
इस अवसर पर विद्यार्थियों के साथ ही डॉ. रितेश महाडिक, डॉ. मीनाक्षी कार, शैला शिंत्रे, आदि भी मौजूद थे। कार्यक्रम का संयोजन किया था बिहान संवाद के संपादक रविशंकर ने।
(इंदौर से विनीत तिवारी की रिपोर्ट।)
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