पीएम मोदी ने वरिष्ठ नौकरशाहों को बनाया ‘प्रचारक’, ‘रथ’ पर सवार होकर केंद्र सरकार की उपलब्धियों का करेंगे प्रचार

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नई दिल्ली। मोदी सरकार अपनी नौ साल की उपलब्धियों को जनता से साझा करने के लिए देश भर में ‘यात्रा’ आयोजित करने का ऐलान किया है। इस यात्रा में वरिष्ठ नौकरशाहों को भी शामिल किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इस आशय का एक पत्र भी जारी किया है। पत्र जारी होने के बाद से राजनीति का पारा गर्म हो गया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी को एक पत्र लिखकर इस कदम पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि यह “सरकारी मशीनरी का घोर दुरुपयोग है।”

उन्होंने रक्षा मंत्रालय के एक पुराने आदेश पर भी आपत्ति जताई, जिसमें वार्षिक छुट्टी पर गए सैनिकों को सरकारी योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए समय बिताने का निर्देश दिया गया था, जिससे उन्हें “सैनिक-राजदूत” बना दिया गया।

उन्होंने पत्र में कहा, “सिविल सेवकों और सैनिकों दोनों ही मामलों में, यह आवश्यक है कि सरकारी मशीनरी को राजनीति से दूर रखा जाए, खासकर चुनाव से पहले के महीनों में।”

उन्होंने पत्र में आदेश को तत्काल वापस लेने की मांग किया और कहा कि जिससे “देश के लोकतंत्र और संविधान की रक्षा हो सके।”

खड़गे का पत्र कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा के एक्स पर पोस्ट किए जाने के बाद आया है। पवन खेड़ा ने विभिन्न केंद्रीय सेवाओं से संबंधित संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव रैंक के अधिकारियों को रथप्रभारी ‘रथप्रभारी’ (विशेष अधिकारी) के रूप में तैनात किए जाने का वित्त मंत्रालय का 18 अक्टूबर का एक आदेश एक्स पर साझा किया था। जिसमें यात्रा को देश के 765 जिलों में 2.69 लाख ग्राम पंचायतों में यात्रा पहुंचनी है।   

आदेश में कृषि सचिव के 14 अक्टूबर के आंतरिक आदेश का उल्लेख किया गया है। जिसमें देश भर में प्रस्तावित ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ के माध्यम से मोदी सरकार की पिछले नौ वर्षों की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने या जश्न मनाने के संबंध में 20 नवंबर से 25 जनवरी तक ग्राम पंचायत स्तर पर सूचना देने, जागरूकता और यात्रा का विस्तार करने का आदेश है।

खड़गे ने इसे “बड़े सार्वजनिक महत्व का मामला बताया जो न केवल भारतीय पार्टियों के लिए बल्कि बड़े पैमाने पर लोगों के लिए भी चिंता का विषय है।”

कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने पत्र में लिखा है कि “यह केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 का स्पष्ट उल्लंघन है, जो निर्देश देता है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेगा। हालांकि सरकारी अधिकारियों के लिए सूचना प्रसारित करना स्वीकार्य है, लेकिन उन्हें “जश्न मनाने” और उपलब्धियों का “प्रदर्शन” करने के लिए मजबूर करना उन्हें सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक कार्यकर्ताओं में बदल देता है। तथ्य यह है कि केवल पिछले 9 वर्षों की “उपलब्धियों” पर विचार किया जा रहा है, इस तथ्य को उजागर करता है कि यह पांच राज्यों के चुनावों और 2024 के आम चुनावों के लिए एक राजनीतिक आदेश है।”  

उन्होंने कहा, “अगर विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को वर्तमान सरकार की मार्केटिंग गतिविधि के लिए प्रतिनियुक्त किया जा रहा है, तो हमारे देश का शासन अगले छह महीनों के लिए ठप हो जाएगा।”

रक्षा मंत्रालय के पहले 9 अक्टूबर के आदेश के बारे में उन्होंने कहा, “सेना प्रशिक्षण कमान, जिसे हमारे जवानों को देश की रक्षा के लिए तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, सरकारी योजनाओं को बढ़ावा देने के तरीके पर स्क्रिप्ट और प्रशिक्षण मैनुअल तैयार करने में व्यस्त है।”

उन्होंने कहा कि “लोकतंत्र में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सशस्त्र बलों को राजनीति से दूर रखा जाए। हर जवान की निष्ठा देश और संविधान के प्रति है। हमारे सैनिकों को सरकारी योजनाओं का विपणन एजेंट बनने के लिए मजबूर करना सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण की दिशा में एक खतरनाक कदम है।”  

इसके अलावा, उन्होंने कहा कि “हमारे देश के लिए कई महीनों या वर्षों की कठिन सेवा के बाद, हमारे जवान अपनी वार्षिक छुट्टी पर, अपने परिवारों के साथ समय बिताने और निरंतर सेवा के लिए ऊर्जा बहाल करने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता के पात्र हैं। उनकी छुट्टियों का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अपहरण नहीं किया जाना चाहिए।”

सरकार पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग और सीबीआई पहले से ही “भाजपा के चुनाव विभाग के रूप में कार्य कर रहे हैं, ऊपर उल्लिखित आदेशों ने पूरी सरकारी मशीनरी को ऐसे काम पर लगा दिया है जैसे कि वे सत्तारूढ़ दल के एजेंट हों।”

उन्होंने कहा कि “सभी एजेंसियां, संस्थान, हथियार, शाखाएं और विभाग अब आधिकारिक तौर पर ‘प्रचारक’ हैं…हमारे लोकतंत्र और हमारे संविधान की रक्षा के मद्देनजर, यह जरूरी है कि…आदेश तुरंत वापस लिए जाएं।”

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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