ग्राउंड रिपोर्ट: त्रिपुरा में बीजेपी को वोट नहीं देने की सजा, तालाबों में डाला जहर और रबर बागानों में लगाई आग

Estimated read time 1 min read

अगरतला। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद हुई हिंसा में कितने लोगों की गृहस्थी उजड़ गई। हिंसक भीड़ ने घरों को आग के हवाले कर दिया तो तालाबों में जहर डालकर मछलियों को भी मार डाला। वे इतने पर ही नहीं रुके रबर के बागों को भी जला दिया गया।

रबर के बागों को इसलिए नुकसान पहुंचाया गया कि जिससे विरोधी आर्थिक रूप से टूट जाएं। रबर का उद्योग त्रिपुरा के प्रमुख उद्योगों में से एक है। इस राज्य के विभिन्न इलाकों में रबर के बाग हैं। इसलिए रबर के बाग को आग में झोंकना लोगों को आर्थिक रुप से कमजोरी की तरफ धकेलने जैसा है।

त्रिपुरा के खोवाई जिले में रबर के बागों को जला दिया गया था। इस जिले में छह विधानसभा सीटें हैं। जिसमें से कल्याणपुर-प्रमोदनगर विधानसभा में रबर के बाग को जला दिया गया है। इस विधानसभा में सीधी लड़ाई भाजपा और तिपरामोथा के बीच थी। जिसमें भाजपा की जीत हुई। भाजपा के सिटिंग विधायक पिनाकी चौधरी ने तिपरामोथा के मनिहार देबवर्मा को बड़े अंतर से हराया है।

इस हार जीत के चक्कर में कल्याणपुर के रबर के बाग मालिकों को अच्छा खासा नुकसान उठाना पड़ा है। जनचौक की टीम ने उन लोगों से बात की है।

शक्तिमान देब वर्मन के पास तीन हेक्टेयर जमीन पर रबर के पेड़ लगे हैं। इनकी संख्या लगभग दो हजार के आस पास है। वह कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियों के झगड़े के बीच हम जैसे वोट देने वाले आम नागरिक पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं। वोट किसी भी पार्टी को दो, नुकसान हमारा ही होना है।

शक्तिमान के दो हजार पेड़ों में से पांच सौ पेड़ जल गए हैं। बाकी जो बचे हैं वह इसलिए बच गए हैं क्योंकि वो थोड़ी दूरी पर हैं। वह कहते हैं कि मेरी जमीन कई हिस्सों में बंटी है। जिसके कारण कुछ पेड़ बच गए।

वह कहते हैं कि इतने पेड़ जल गए हैं कि इसके नुकसान का आकलन करना थोड़ा मुश्किल है। हमारे लिए तो यही रोजी-रोटी है। यहां दूसरा कोई काम नहीं है। यहां दो पार्टियों के झगड़े में हमलोगों का नुकसान हुआ है।

कल्याणपुर विधानसभा के जिस रबर के बाग में आग लगी थी। उसके चार मालिक है। जहां उनकी जमीन एक दूसरे से सटी हुई है। यहां पर नुकसान उठाने वालों में टिपरा मोथा और भाजपा दोनों के समर्थक हैं लेकिन इनमें से कोई भी खुलकर किसी पार्टी के बारे में बात करने को तैयार नहीं था।

मिंटू देब वर्मन के पास भी लगभग 1000 पेड़ थे। वह बताते हैं कि सारे तो नहीं जले हैं, लेकिन अधिकरतर जल गए हैं। मिंटू के अनुसार यह सारी घटना तीन मार्च की भोर में हुई है। वह कहते हैं कि मेरे अनुमान से यह आग रात के 12 बजे से लेकर भोर के चार बजे के बीच लगाई गई है। चूंकि बाग हमारे घर से दूर है इसलिए हमें पता नहीं चला।

वह बताते हैं कि सुबह पांच बजे जब मैं रबर काटने आया तो देखा कि यहां आग लगी हुई थी। जिसमें अधिकतर पेड़ जल गए हैं। उन्होंने बताया कि एक पेड़ छह साल में रबर देना शुरू कर देता है। अगर पेड़ का ऊपरी हिस्सा जला होगा तो फिर भी रबर मिलने की संभावना है। यदि जड़ जल गई तो दोबारा पेड़ उग नहीं पाएगा। इस हिसाब से देखा जाए तो हमारा काफी नुकसान हुआ है।

शक्तिमान बताते हैं कि रबर के काम के कारण ही हमलोग यहां रह रहे हैं। अगर यह काम न हो तो यहां क्यों रहेंगे। लेकिन इस हिंसा ने हमारा हौसला तोड़ दिया है।

जब हमने इनसे एफआईआर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि फिलहाल थाने में इसकी शिकायत की गई है। बाकी अभी तक तो कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। न ही विधायक हमसे मिलने आए हैं। भविष्य में आएंगे कि नहीं, यह नहीं कहा जा सकता है।

तुषार देब वर्मन भी इन्हीं बागों के मालिक में से एक हैं। इनके पास लगभग 500 पेड़ थे। जिसमें से अब सिर्फ 250 ही बच पाए हैं।

हमने उनसे पूछा कि पहले भी ऐसा कभी हुआ था? इसका एक स्वर में लोगों ने जवाब देते हुए कहा कि पहले कभी नहीं हुआ था। पहली बार देखा है कि लोगों के घरों को जला दिया गया है, हमारे रबर के बाग को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। हमने पहले कभी नहीं सोचा था कि ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे।

हमने उनसे पूछा कि क्या आप अब रात में अपने बाग की रखवाली करते हैं? इस पर मिंटू ने कहा कि अब तो सब जल गया है। अब हमारा क्या ही नुकसान करेंगे। अब जो किस्मत में लिखा है उसे कौन मिटा सकता है।

(जनचौक की संवाददाता पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author