मिर्ज़ापुर। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ‘बापू’ के सत्याग्रह का मार्ग हर कमजोर और लाचार का अब तक बहुत ही मजबूत हथियार रहा। सरकारों की अकूत ताकत के समक्ष वह (कमजोर और लाचार) इसी बूते डट कर खड़ा होता था।
पुलिस इस हथियार के समक्ष लाचार होती थी। उच्चाधिकारी मान मनौवल कर सत्याग्रही का प्रकरण निबटाते थे, लेकिन कालांतर में ऐसा लगता है कि सरकार और उसके मुलाजिम ख़ासकर पुलिस इस व्यवस्था को पुरी तरह से चांदी के बूटों तले रौंदने पर आमादा है।
उसे न तो लोकतांत्रिक व्यवस्था और कायदे कानून का भय है और ना ही विधि व्यवस्थाओं का, उसे (पुलिस) सिर्फ अपनी भाषा शैली और अपनी थोपी व्यवस्था पर चलना है।
गुरुवार, 5 दिसंबर 2024 को उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के कैंडल मार्च को जिस ढंग से रोकने का कार्य वहां की पुलिस ने किया है वह लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कुठाराघात ही कहा जाएगा।
कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष एवं पूर्व विधायक भगौती प्रसाद चौधरी कहते हैं, “24 नवंबर को संभल में हुई घटना में पांच लोगों के मारे जाने की अप्रत्याशित घटना थी या जानबूझ कर कराई गई थी। मस्जिद-मंदिर खोदने के नाम पर यह लोग भाईचारे को गोली मार रहे हैं।

प्रदेश में भाईचारा को समाप्त किया जा रहा है, प्रदेश में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का हनन किया जा रहा है। रोजी-रोटी और रोजगार तो सरकार दे नहीं पा रही है, अराजकता को बढ़ावा दे रही है यह सरकार।”
शांतिपूर्ण ढंग से जुटे कांग्रेसियों पर पुलिस का अराजकता भरा आचरण
दरअसल, 5 दिसंबर 2024 को संभल कांड के विरोध में तथा कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को संभल जाने से रोके जाने के विरोध में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रदेश नेतृत्व के आह्वान पर पूरे प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा कैंडल मार्च निकाला जा रहा था।
इसी क्रम में मिर्ज़ापुर कांग्रेस कमेटी के आह्वान पर घंटाघर मैदान में कैंडल मार्च निकालने के लिए जुटे कांग्रेस नेताओं को पुलिस ने न केवल रोक दिया, बल्कि उन्हें धक्के देकर कोतवाली उठा ले गई। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही हड़कंप मचा हुआ है।

हालांकि पुलिस के अधिकारी जहां साफ तौर पर सफाई देते हुए नज़र आए हैं तो वहीं कांग्रेसी नेताओं ने इसे लोकतन्त्र का हनन करार देते हुए इसे पुलिस की गुंडागर्दी बताया है।
गुरुवार को देर शाम कांग्रेस पार्टी के दर्जनों कार्यकर्ता उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष एवं पूर्व विधायक भगौती प्रसाद चौधरी तथा नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भगवान दत्त पाठक उर्फ राजन पाठक के नेतृत्व में मिर्ज़ापुर नगर के घंटाघर मैदान में कैंडल मार्च निकालने के लिए एकत्रित हुए थे।
जहां क्षेत्राधिकारी के नेतृत्व में पहुंची पुलिस का सम्भल की घटना को लेकर कैंडिल मार्च निकाल रहे कांग्रेसियों से झड़प हो जाती है। इस दौरान जमकर कहासुनी और धक्का-मुक्की का दौर चलता है। आरोप है कि सीओ सीटी ने धक्के देकर कांग्रेसी नेताओं को घण्टाघर से हटाया, जिसका वीडियो भी वायरल हो रहा है।

वीडियो में क्षेत्राधिकारी सीटी विवेक चावला “चल हट-हट…” साफ कहते हुए सुनाई दे रहें हैं। क्षेत्राधिकारी सीटी का यह बर्ताव कांग्रेस नेताओं के लिए असहनीय होता है, जिसका वह प्रतिकार करते हुए क्षेत्राधिकारी को जब लोकतांत्रिक विधि व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए उनके बोले गए शब्दों पर आपत्ति करते हैं तो सीओ सीटी अपने आपे से बाहर हो जाते हैं, फिर जो होता है वह देखते ही बनता है।
नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भगवान दत्त उर्फ राजन पाठक बताते हैं कि हम लोग घंटाघर मैदान में लालबहादुर शास्त्री की प्रतिमा के समीप संवैधानिक तरीके से बैठे हुए थे, जहां पुलिस क्षेत्राधिकारी सीटी का दुर्व्यवहार अशोभनीय और निंदनीय रहा है, उनके इस कृत्य के खिलाफ हम चुप बैठने वाले नहीं हैं।”

चंद मुट्ठी भर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से भला पुलिस को क्या भय
शांतिपूर्ण ढंग से कैंडल मार्च निकालने के लिए एकत्रित हुए चंद मुट्ठी भर कांग्रेस नेताओं को घंटाघर से धक्का देते हुए पुलिस ने जिस तरह पुलिस वाहन में ठूंस गिरफ्तार कर शहर कोतवाली थाने ले गई, उसे देख हर किसी के जुबां पर बस एक ही शब्द तैर रहे थे कि आखिरकार चंद मुट्ठी भर जुटे हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं से भला पुलिस को किस बात का डर रहा? घंटाघर के मैदान में एक क्षेत्राधिकारी, दो थानों की पुलिस फोर्स की मौजूदगी यह बताने के लिए काफी रही है कि पुलिस घबराई हुई है।

घबराहट भी ऐसी कि क्षेत्राधिकारी सीटी अपने पद-गरिमा और भाषा को भी भुला बैठे थे। घंटाघर के मैदान से कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बिना कैंडल मार्च निकाले ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष एवं भगौती प्रसाद चौधरी, पूर्व रेल परामर्श दाता समिति के सदस्य व कांग्रेस नगर अध्यक्ष भगवान दत्त उर्फ राजन पाठक, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य एवं मीडिया प्रभारी छोटे खान, जिला पंचायत सदस्य शिवशंकर चौबे, इश्तियाक अंसारी सहित दर्जन भर कांग्रेसियों को धकियाते हुए पुलिस वाहन में ठूंस कर शहर कोतवाली उठा लाया जाता है।

जहां से सभी कांग्रेस नेताओं के जिला प्रशासन के हस्तक्षेप पर कुछ देर बाद छोड़ दिया जाता है। इस घटना को लेकर कांग्रेस नेताओं में जबरदस्त आक्रोश देखा जा रहा है। कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि वह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के आह्वान पर शांति पूर्वक घण्टाघर मैदान में कैंडल मार्च के माध्यम से सम्भल की घटना को लेकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे, इसी दौरान सीओ सीटी विवेक चावला ने संवैधानिक मूल्यों का हनन करते हुए लोकतंत्र में मिली आजादी को भी कुचलते हुए अभद्र व्यवहार करने पर आमादा हो गए।

उन्होंने जिस प्रकार से कांग्रेस नेताओं को धक्का देते हुए थाने ले जाने का कार्य किया है वह अक्षम्य और अशोभनीय रहा है। पुलिस द्वारा कांग्रेस नेताओं को धक्का देकर शहर कोतवाली ले जाते देख मौके पर जहां काफी संख्या में भीड़ एकत्र हो गई थी।
वहीं मौके पर अफरा-तफरी का माहौल व्याप्त हो गया था। जिला कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी छोटे खान ने कहा है कि पुलिस ने जो बर्ताव किया है, वह लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचलने जैसा रहा है।
आज के इस अशोभनीय दुर्व्यवहार को लेकर वह चुप नहीं बैठेंगे, इसे प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष रखते हुए कार्रवाई हेतु पुलिस के उच्चाधिकारियों से भी मिलेंगे। वह कहते हैं कि लोकतंत्र में शांति पूर्ण तरीके से विरोध-प्रदर्शन करना क्या अपराध है?
क्या यूपी में प्रतिरोध का लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त हो गया है?
दूसरी ओर शिक्षक नेता रमाशंकर शुक्ला कहते हैं, “लोकतांत्रिक व्यवस्था में बापू के सत्याग्रह का मार्ग हर कमजोर और लाचार का अब तक बहुत ही मजबूत हथियार रहा। सरकारों की अकूत ताकत के समक्ष वह इसी बूते डट कर खड़ा होता था। पुलिस इस हथियार के समक्ष लाचार होती थी। उच्चाधिकारी मान मनौव्वल कर सत्याग्रही का प्रकरण निबटाते थे।”

अपने फेसबुक एकाउंट पर किए गए पोस्ट में वह अपने छात्र जीवन और बाद के अन्ना आंदोलन के समय का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि “हमने सत्याग्रह का सम्मान देखा है। यूपीए के कार्यकाल में हम बड़े मजे से उसी के खिलाफ अनशनरत रहते और बड़ी संख्या में पुलिस, कभी-कभी तो एक ट्रक पीएसी दिन भर खड़ी रहती पर कभी किसी ने हमें अपमानित नहीं किया।
यहां तक कि तत्कालीन मंत्री और सांसद के घरों का भी हमने घेराव किया, दरवाजे को घंटों घेर कर रामधुन गाते पर पुलिस शांत रहती। यूपीए के खिलाफ नारेबाजी, पुतला दहन, शवयात्रा और अंतिम संस्कार के साथ ही हमने मुंडन संस्कार तक कर डाला।
तब भी पुलिस ने न डांट फटकार की और न ही अपमानजनक बर्ताव। सरकार सहन करती थी। शायद उस जमाने की सरकारों और अधिकारियों ने गांधी और गांधी के सत्याग्रह को ठीक से समझा भी रहा होगा और जिया भी होगा।”
रमाशंकर शुक्ला आगे भी लिखते हैं कि “अब जरा, इस वीडियो को पूरा देखिए। संभल प्रकरण को लेकर कैंडल जलाकर सत्याग्रह कर रहे कांग्रेसियों को पहले तो मार्च की अनुमति नहीं दी गई (क्यों भाई), फिर बैठने पर सीओ स्तर के अधिकारी द्वारा किया गया अभद्र व्यवहार। इनके कैंडल जलाने से कौन सी आग लग रही थी? क्या सूबे में प्रतिरोध का लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त हो गया है?”
(मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)
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