नैनीताल शहर में हिंदू-मुस्लिम की तैयारी हो चुकी थी, फिर अचानक ब्रेक क्यों?

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जी हां, पिछले 4 दिनों से एक 12 साल की हिंदू बच्ची के साथ धर्म से मुस्लिम उस्मान नामक एक बुजुर्ग के द्वारा की गई हैवानियत के खिलाफ लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर जा चुका था। बुधवार से इस मामले ने तूल पकड़ा, जब मल्लीताल स्थित मुस्लिम व्यापारियों की कई दुकानों पर भीड़ ने तोड़फोड़ और वहां पर काम करने वालों के साथ जमकर हाथापाई की। 

यह वीडियो जैसे ही वायरल हुआ, हिंदू बच्ची के साथ बलात्कार की सूचना आग की तरह वायरल होने लगी। अगले दिन नैनीताल बंद का आयोजन भी होगा। नैनीताल शहर में अचानक से बड़ी संख्या में हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं की आमद भी शुरू हो गई। इससे पहले भी बहुत कुछ हुआ, जिसे तफसील से जाने बिना ध्रुवीकरण को कैसे अंजाम दिया जाता है, और फिर आर्थिक हितों को भारी नुकसान के चलते खुद को योगी आदित्यनाथ से बड़ा हिंदुत्ववादी साबित करने की होड़ में लगे एक मुख्यमंत्री को इस तनाव को रोकने में प्रशासन की ऊर्जा खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, को समझा जा सकता है।

यह मामला बुधवार को तब प्रकाश में आया, जब पीड़िता बच्ची की मां ने नैनीताल पुलिस में मामले की रिपोर्ट की। बच्ची नैनीताल में अपने रिश्तेदार के साथ रह रही थी, जबकि उसकी मां उत्तरप्रदेश के संभल जिले में रहती है। यह घटना 12 अप्रैल की बताई जा रही है, जिसमें पड़ोस में रहने वाले बिल्डिंग ठेकेदार, उस्मान ने लड़की को पैसे का लालच देकर अपनी कार में बुलाया और उसके साथ बलात्कार किया।

प्राथमिकी दर्ज होने के बाद पुलिस ने आरोपी को हिरासत में ले लिया। लेकिन यह खबर नैनीताल में फ़ैल गई कि एक वृद्ध मुस्लिम ने एक हिंदू बच्ची के साथ बलात्कार किया है। फिर क्या था, बुधवार की रात 9 बजे लोगों का हुजूम मल्लीताल पुलिस के पास जमा होने लगा। आरोपी को पुलिस हिरासत से मुक्त कर भीड़ के हवाले करने की मांग उठने लगी। इसके कुछ ही देर बाद गाड़ी पड़ाव इलाके में मुस्लिमों की दुकानों पर तोड़फोड़ का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह काफी डराने वाला था। अगले दिन मस्जिद पर भी पथराव की खबरें हैं, लेकिन उसकी पुष्टि के लिए हमारे पास कोई वीडियो या तस्वीरें नहीं हैं।

इस वायरल वीडियो के बाद तो हिन्दुववादी संगठनों की आंख खुल गई। मांग उठने लगी कि आरोपी के घर को बुलडोज किया जाना चाहिए। इस काम के लिए स्वंय उत्तराखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष, कुसुम कंडवाल ने मांग उठाई है। सभी प्रमुख समाचारपत्रों में उनके बयान को जगह मिली है। उनके X हैंडल पर जाकर देखने पर पता चलता है कि मैडम का आखिरी ट्वीट ही 6 अप्रैल का है, जिसमें बीजेपी के स्थापना दिवस की शुभकामनाएं दी गई हैं। 

अब जिस राज्य की महिला आयोग की अध्यक्ष ही किसी एक राजनीतिक दल की पूजा-अर्चना से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं, वे भला राज्य की महिलाओं की रक्षा के लिए क्या कर सकती हैं? बहरहाल, अगले दिन बड़ी संख्या में लोगों का हुजूम नैनीताल की सड़कों और गलियों में नारे लगाते हुए घूमा। कुछ हिंदुत्ववादी शक्तियों ने मुस्लिम दुकानों और ढाबों में जाकर दुकानदारों को धमकाना शुरू कर दिया। 

इस पूरे विवाद में राष्ट्रीय चैनलों के स्थानीय संस्करणों और सोशल मीडिया यूट्यूबरों की भूमिका किसी से कम नहीं है। उदाहरण के लिए नभाटा के ही एक न्यूज़ वीडियो में इसका संवावदाता अंधेरी रात में मुस्लिम बस्तियों का दौरा करता है और आरोपी उस्मान के घर की शिनाख्त कराते हुए अपने वीडियो में बता रहा है कि नैनीताल नगरपालिका का नोटिस उसके घर की दीवार पर लगा है। उस्मान के घर पर ताला लगा हुआ है, लेकिन एंकर एक नहीं दसियों घरों में लटके तालों को दिखाकर बताता है कि मोहल्ले के मुस्लिम परिवारों ने यहां से पलायन कर लिया है। 

करीब 100 घरों को नगरपालिका ने नोटिस दिया था कि उनके घर सरकारी भूमि पर बने हैं, और उन्हें 3 दिन का समय दिया गया था। मामला पूरी तरह से साफ़ था कि यूपी के योगी आदित्यनाथ वाले बुलडोजर को नैनीताल में भी अंजाम देकर समूचे अल्पसंख्यक समुदाय को सबक सिखाने की तैयारी जिला प्रशासन कर चुका था।

नैनीताल में हिंदुत्ववादी शक्तियों की धमक के आगे पुलिस प्रशासन भी किस कदर बौना हो चुका है, इसकी एक मिसाल उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र संगठन आइसा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, इन्द्रेश मैखुरी के द्वारा जारी इस वीडियो में साफ़ देखी जा सकती है।

संभवतः यह गुस्सा रेप के आरोपी उस्मान को भीड़ के हवाले न किये जाने और जबरन घुसपैठ पर पुलिस कार्यवाही का नतीजा थी। लेकिन न ही नैनीताल पुलिस और न ही स्थानीय समाचार पत्रों में थाने के भीतर पुलिस अधिकारी पर हमले पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई किये जाने की सूचना है। यह बताता है कि हमारे देश में संविधान को अमल में लाने वाले संस्थान किस हद तक राज्य सत्ता के इशारे पर चल रहे हैं।

उत्तरा 100 न्यूज़ जैसे वेब पोर्टल भी चीख-चीख कर बताने लगे कि नैनीताल में हिंदू हितों की रक्षा के लिए हिंदू महासंगठन के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी चिन्मयानन्द पधार रहे हैं। स्वामी चिन्मयानंद अपने वक्तव्य में बताते दिख रहे हैं कि उक्त अपराधी के घर पर बुलडोजर चले, और यदि नहीं चलता है तो उस घर को उस पीड़िता बिटिया के नाम कर दिया जाये। उक्त स्वामी को पुलिस प्रशासन ने अपनी सेना के साथ प्रवेश पर रोक लगा दी थी। लेकिन ऐसे तमाम स्वघोषित साधू संतों का धावा नैनीताल में हो पाता उससे पहले ही राज्य प्रशासन ने स्थिति को काबू से बाहर होने से पहले ही संभालने का फैसला ले लिया।

इसमें सबसे प्रमुख है, कल शुक्रवार को आये नैनीताल उच्च न्यायालय के कल के आदेश का, जिसने सबसे पहले समाचार पत्रों और न्यूज़ पोर्टलों के रुख को बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। हिंदुत्ववादियों के प्रभाव का ही यह असर था कि नगरपालिका ने रेप के आरोपी सहित दर्जनों मुस्लिम परिवारों के घरों के आगे नोटिस चिपकाकर 3 दिन दिन के भीतर स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दे दिया था।

आरोपी की 60 वर्षीय पत्नी ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की, जिसका संज्ञान लेंते हुए मुख्य न्यायाधीश जी नरेंदर और जस्टिस रविन्द्र नैथानी की खंडपीठ ने नगरपालिका को मानहानि का आरोप लगाते हुए अपने फैसले में कहा है कि वह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन नहीं कर सकती है। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में साफ़ कहा है कि यदि आप किसी घर को ढहाना चाहते हैं, तो उसके लिए प्रकिया का पालन करना होगा।

इसके बाद नगरपालिका का पक्ष रखने वाले वकील जेएस विर्क ने अदालत को आश्वासन दिया कि नगर पालिका के नोटिस को वापिस लिया जायेगा। नैनीताल मुख्य न्यायाधीश ने पुलिस प्रशासन को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा है, “आपकी अक्षमता की वजह से यह सब हो रहा है, और आप पूरे मामले पर लीपापोती में लगे हैं? दुकानें सभी की हैं, उन्हें क्यों तहस-नहस होने दिया गया? यदि पुलिस हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी होती तो यह सब नहीं होता। दंगाइयों के खिलाफ आपने अभी तक क्या कार्रवाई की है?”

इससे पहले गुरुवार को जब आरोपी को जिला अदालत में पेश किया जा रहा था, तब वकीलों ने उसका केस लेने से इंकार ही नहीं किया बल्कि वे उसके साथ मारपीट पर उतारू थे। इस पर टिप्पणी करते हुए न्यायाधीश मैथानी ने कहा, “जब आरोपी को कोर्ट में पेश किया जा रहा था, तो अदालत के दरवाजे पर उसके साथ हाथापाई की गई। आपने इसकी इजाजत कैसे दी? आपने इसका पहले से पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया था?” चीफ जस्टिस ने सवाल उठाया कि कैसे किसी भी आरोपी का प्रतिनिधित्व करने से रोका जा सकता है?

नैनीताल की प्रबुद्ध महिला शक्ति का सामने आना एक शुभ संकेत

लेकिन इसी के साथ ऐसे उन्मादी माहौल में एक हिंदू महिला के प्रतिरोध ने भी राज्य में नागरिक समाज की अंतरात्मा को जगाने में बड़ी भूमिका अदा कर दी है। बुधवार की मारपीट और तोड़फोड़ पर एक महिला का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगा, जिसमें वे दूसरी महिला से सवाल करते हुए देखी जा सकती हैं कि न्याय के नाम पर दूसरे समुदाय की दुकानों में तोड़फोड़ और हिंसक हमले सही नहीं हैं। उक्त महिला ने यह सवाल भी किया कि जब गाय के साथ बलात्कार की घटना प्रकाश में आती है, तब ऐसा विरोध क्यों नहीं होता?

इसके बाद तो महिलाओं के एक समूह ने दिन में बरसात के बावजूद नैनीताल की सड़कों पर पीड़ित बच्ची के लिए न्याय की मांग करते हुए पूरे मामले को हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव में ढाले जाने पर अपना विरोध प्रकट किया। यह बताता है कि नैनीताल शहर में अभी भी नागरिक समाज की संवेदना मरी नहीं है, जैसा कि इस पहाड़ी राज्य के लगभग सभी जगहों पर हो चुका है। 

यह अलग बात है कि शैला नेगी नामक उक्त महिला को अब हिंदुत्वादी समूहों की ओर से रेप और जान से मार देने की धमकियां मिल रही हैं। आखिर नैनीताल में एक हिंदू बच्ची के साथ बलात्कार की खबर पर उबाल खाते इन हिंदुत्ववादियों को दूसरी हिंदू महिला का रेप कर देने की धमकी देना नहीं बताता कि ये भी अभियुक्त उस्मान की ही सोच रखने वाले लोग हैं? इन्हें एक 12 वर्षीय बच्ची के साथ की गई हैवानियत से कोई फर्क नहीं पड़ता, फर्क पड़ता है सिर्फ इस बात से कि यह कुकर्म एक मुस्लिम बिरादरी वाले ने किया है। इनके हिंदुत्व से हिंदू धर्म और हिंदुओं का कितना भला हो रहा है, यह बात इनके भेजे में कभी नहीं घुस सकती।

धामी सरकार को होश आ गया कि ये तो टूरिस्ट सीजन है

नैनीताल को हल्द्वानी का बनभूलपुरा बनाने में बस चंद दिनों की ही कसर थी कि अचानक से धामी प्रशासन हरकत में आ गया है। यह क्यों और कैसे हुआ, उसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि यह सब नैनीताल में हो रहा है। 30 अप्रैल की रात के बवाल ने नैनीताल के टूरिस्ट सीजन पर भी चोट कर दी थी। 1 मई से ही टूरिस्टों का नैनीताल छोड़कर वापस जाना शुरू हो चुका था। जिन्होंने एडवांस बुकिंग कर रखी थी, उनके भी होटल कैंसिल होने लगे थे। 

नैनीताल में ले दे कर मल्लीताल, तल्लीताल और नैना झील, घुड़सवारी सहित दो-चार चीजों के अलावा सैलानियों के लिए क्या आकर्षण बचता है? नाविकों में से अधिकांश मुस्लिम हैं, जो हिंदुत्व के हिंसक रुख को देख काम-धंधा छोड़कर पलायन कर चुके हैं। मल्लीताल पर हिंसक हमले और दुकानों को तोड़ा जाता है तो भला पर्यटक कैसे रुक सकते हैं। पहलगाम आतंकी हमले के घाव अभी ताजा हैं, यह बात राज्य प्रशासन को देर से सही पर आ गई है।

सोशल मीडिया पर अपने कारनामों के चलते उत्तराखंड में लोकप्रिय कमिश्नर दीपक रावत ने भी अपने बयान में पर्यटकों से अपील की है कि नैनीताल और आसपास के सभी पर्यटन स्थलों में स्थिति सामान्य और सुरक्षित है और कानून-व्यवस्था पूरी तरह से नियंत्रण में है। बता दें कि कल से प्रशासन ने हल्द्वानी, कालाढूंगी, रामनगर और भवाली से आने वाले सभी वाहनों की कड़ी चेकिंग की व्यवस्था लागू कर दी है। बीजेपी राज्य सरकार को पता है कि हिंदुत्ववादी शक्तियां पहलगाम आतंकी हमले का जवाब मांग रहे, लेकिन बदले में उन्हें जाति जनगणना पकड़कर मोदी सरकार ने विस्फोटक बना दिया है। 

अपनी निराशा और खीज को यदि उन्होंने हजारों की तादाद में आकर नैनीताल पर निकाला तो राज्य की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और ‘अतिथि देवो भव’ का बंटाधार होना तय है। दो दिन पहले ही केदारनाथ धाम के कपाट खोले गये हैं, और सरकार के पास कमाने का यही एकमात्र सीजन है। इसलिए आम हिंदू के मानस को मुस्लिमों के खिलाफ घृणा से भरने का कम से कम यह समय तो बिल्कुल भी उचित नहीं है।  

अंत में उत्तराखंड के गढ़वाल विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और रिसर्च स्कॉलर, शिवानी पांडे की फेसबुक पोस्ट को भी पढ़ा जाना चाहिए,  जिन्होंने ऐसी तमाम घटनाओं पर उत्तराखंड के मानस को झकझोरते हुए कुछ बेहद गंभीर सवाल उठाये हैं। 

शिवानी लिखती हैं “हम महिलाओं के शरीर पर सांप्रदायिक नफरत बंद करो!

नैनीताल में आरोप है कि एक बच्ची के साथ 72 साल के उस्मान ने बलात्कार किया, इसके बाद पुलिस ने अपराधी को गिरफ्तार कर कार्रवाई की। इस मामले के आने के बाद से नैनीताल और राज्य के दूसरे हिस्सों में विरोध प्रदर्शनों ने सांप्रदायिक रंग ले लिया है। लोगों का गुस्सा घटना से ज्यादा आरोपी के धर्म पर ज्यादा दिख रहा है। इसी का नतीजा है कि नैनीताल समेत कई दूसरे जगहों पर मुस्लिम दुकानदारों और मस्जिदों पर हमले किए जा रहे हैं।

अगर विरोध करने वाले लोग वाकई उस 12 साल की बच्ची के लिए अक्रोशित होते या इस घटना पर अपना प्रतिरोध जाहिर कर रहे होते तो सरकार और प्रशासन से कठोर कार्रवाई जैसी मांग करते और पुलिस प्रशासन को उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही महिला अपराधों की संख्या के लिए जिम्मेदार ठहरती। लेकिन विरोध प्रदर्शनों को देखेंगे तो लगेगा कि ये प्रदर्शन 12 साल की बच्ची के लिए नहीं बल्कि केवल और केवल सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए किया जा रहा विरोध प्रदर्शन है।

अगर ऐसा नहीं है तो इस राज्य के अंदर बीते अप्रैल महीने में कई इस तरह की घटनाएं घटी, जिसमें पीड़िता नाबालिक से लेकर बुजुर्ग तक है लेकिन चूंकि इन घटनाओं में वैसा धार्मिक एंगल नहीं बन पाया जैसा नैनीताल की घटना में बन रहा है इसलिए इन बच्चियों, इन महिलाओं के लिए कोई विरोध प्रदर्शन, कोई दुख, कोई आक्रोश न इनके गांव में जताया गया, न इनके शहरों में और ना राज्य के किसी कोने में। यह कुछ घटनाएं हैं जो अखबारों में और पुलिस की रिपोर्ट में दर्ज हुई होंगी, इसके अलावा भी कई घटनाएं होंगी जो शायद मेरी नजरों से न गुजारी हो। लेकिन तारीख दर तारीख हर रोज ऐसी घटनाएं हो रही हैं।

1 अप्रैल 2025 – देहरादून पुलिस ने एक नाबालिक लड़की और उसकी सहेली का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया।

1 अप्रैल 2025 – थाना सहसपुर क्षेत्र  (विकासनगर, देहरादून) में दो बहनों के साथ मारपीट कर जंगल में ले जाकर दुष्कर्म का मामला सामने आया।

4 अप्रैल 2025 – बसंत विहार देहरादून की पुलिस ने युवती के साथ बलात्कार कर उसकी फोटो और वीडियो बनाने की शिकायत दर्ज की। पुलिस ने आरोपी को उत्तर प्रदेश के रामपुर से गिरफ्तार किया।

6 अप्रैल 2025 – पटेल नगर देहरादून कोतवाली में दर्द शिकायत के अनुसार एक नाबालिक बच्ची को पहले बहला- फुसला कर आरोपी अपने साथ ले गया और उसके साथ पुलिस ने आरोपी को रुड़की से गिरफ्तार किया।

9 अप्रैल 2025 – विकासनगर, चकराता के एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक पर मामला दर्ज किया गया कि उसने बगीचे में काम करने आई गांव की ही युवती से दुष्कर्म किया। इतना ही नहीं आरोप है कि शिक्षक पीड़िता के परिवार पर समझौते का दबाव बनाने लगा तो युवती ने जहरीला पदार्थ निगल लिया था।

9 अप्रैल 2025 को सभी खबर के मुताबिक रुद्रप्रयाग में नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ की और जब बच्ची का भाई उसे बचाने गया तो आरोपियों ने उसके कान काट दिए।

21 अप्रैल 2025 -अल्मोड़ा के लमगड़ा क्षेत्र में नाबालिक लड़की के साथ उसके ही गांव के लड़के ने दुष्कर्म किया। पुलिस ने पॉस्को एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है।

22 अप्रैल 2025 – किच्छा के एक होटल में डांस प्रतियोगिता में शामिल कराने के बहाने एक 7 वीं कक्षा की बच्ची के साथ तमंचा और चाकू दिखाकर गैंगरेप किया गया।

23 अप्रैल 2025 – काशीपुर में कुंडा थाना क्षेत्र में 70 साल की मूक-बधिर महिला के साथ एक युवक पर बलात्कार का मामला दर्ज हुआ।

26 अप्रैल 2025 – काशीपुर में आईटीआई थाना क्षेत्र में एक मुक-बधिर बच्ची के साथ दुष्कर्म के प्रयास का मुकदमा दर्ज हुआ।

28 अप्रैल 2025 को  अखबारों में छपी खबर के मुताबिक चमोली में नाबालिक लड़की के पेट में दर्द होने पर रेप का खुलासा हुआ। डॉक्टर ने कहा कि नाबालिक लड़की 6 माह की गर्भवती है।

इन सब मामलों में आरोपी चूंकि हिंदू है इस लिए कहीं कोई आवाज नहीं? ये कैसा इंसाफ मांग रहे हैं आप हम महिलाओं के लिए? क्या आप ये कहना चाहते हैं कि मुस्लिमों के द्वारा किया गया बलात्कार स्वीकार नहीं है, लेकिन हिंदुओं के द्वारा किया गया बलात्कार आपको स्वीकार है?

कहना बस इतना सा है कि हम महिलाओं के शरीर, हमारे दर्द, हमारे साथ होने वाले अपराधों के साथ किसी जाति, किसी धर्म, किसी क्षेत्र को ना जोड़ा जाए। क्योंकि आरोपी किसी भी जाति, किसी धर्म, किसी क्षेत्र, किसी राजनीतिक पकड़ के होने से हमारा दर्द कम या ज्यादा नहीं होता है।

अगर! आप वाकई दुखी हैं, आक्रोशित हैं तो इस प्रदेश में हर एक बच्ची, हर एक महिला के लिए इंसाफ मांगें। बिना यह देखे कि आरोपी का धर्म, उसकी जाति, उसका क्षेत्र, उसकी राजनीतिक पकड़ कैसी है? तब असल में आप अपनी बच्चियों, अपनी बेटियों को बचा पाएंगे। और हाथ जोड़कर विनती है कि हम महिलाओं के शरीर पर अपनी सांप्रदायिक नफरत की रोटियां मत सेकिए।

हम महिलाओं को हमारी मर्जी के बगैर छूना भी स्वीकार नहीं है, वो चाहे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी कोई भी धर्म, जाति, नस्ल किसी भी राजनीतिक – धार्मिक – जातीय पृष्ठभूमि का क्यों न हो! वो अपराधी है बस इतनी बात समझ लीजिए।”

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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