निजीकरण के खिलाफ उतरे सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के हजारों कर्मचारी

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सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के कर्मचारियों ने 15 नवंबर से 19 नवंबर तक प्रधान कार्यालयों, क्षेत्रीय कार्यालयों और अन्य केंद्रों में सरकार की निजीकरण नीति व विनिवेश का विरोध किया। इस कार्यक्रम में कर्मचारियों की तरफ से  1 अगस्त, 2017 से देय वेतन संशोधन की लम्बित मांग के तत्काल निपटाने, परिवार पेंशन को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत करने, एनपीएस अंशदान को 14 प्रतिशत और 1995 पेंशन योजना में नवनियुक्त कर्मचारियों और अधिकारियों समेत सभी को सम्मिलित करने की मांग गयी थी। देशव्यापी पांच दिनों तक चला यह क्रमिक धरना कार्यक्रम के साथ भोजनावकाश में प्रदर्शन में तब्दील हो जाता था। कर्मचारियों से जुड़े ट्रेड यूनियनों का दावा है कि इन कार्यक्रमों में 50 हजार से अधिक कर्मचारियों और अधिकारियों ने हिस्सा लिया। उनका कहना है कि पिछले 51 महीनों से अपनी जायज मांगों को पूरा करवाने के लिए कर्मचारी लगातार संघर्ष कर रहे हैं।

ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने कहा कि यह उन समस्त कर्मचारियों के लिए दुखद है, जिन्होंने कोविड 2019 महामारी की कठिन अवधि में कोरोना योद्धाओं के रूप में काम किया और पिछले वर्षों में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है। रिकॉर्ड के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र की सामान्य बीमा कंपनियों द्वारा भारत सरकार को हजारों करोड़ रुपये दिए गए और पिछले 50 वर्षों में भूकंप, बाढ़,1984 व गुजरात दंगे, गुजरात भूकंप, केदारनाथ आपदा  के दौरान दावों के फलस्वरूप भारी नुकसान उठाया । असम, बिहार, चेन्नई और मुंबई आदि में भयानक बाढ़, सुनामी और भारी बारिश, ओलावृष्टि व तूफान के दौरान, यह उद्योग  अपनी कल्याणकारी नीति के तहत देशवासियों के लिए सबसे बड़ा तारणहार था।

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की ये चार सामान्य बीमा कंपनियां इस देश के आम लोगों के लिए काम कर रही हैं और पूरे समाज को सामान्य बीमा सेवाएं प्रदान करती हैं तथा  देश के 50 करोड़ से अधिक लोगों को फसल बीमा योजना, पीएम आयुष्मान भारत योजना, सुरक्षा बीमा योजना और कई अन्य सामाजिक क्षेत्र की योजनाएं जो निजी बीमा कंपनियों द्वारा नहीं की जा रही हैं,  के माध्यम से सेवा प्रदान करती हैं।

इन चार कंपनियों ने प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना की  9 करोड़ पालिसियों को अंडरराइट किया है, जो इस सरकार की एक महत्वपूर्ण परियोजना है। यह कवर मात्र रु. 12.00 के प्रीमियम पर 2 लाख का मुआवजा प्रदान करता है। दावों के अनुपात के कारण  27 निजी कंपनियों ने बहुत कम इन पॉलिसियों को अंडरराइट किया है।

निजी सामान्य बीमा कंपनियों से अनैतिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 20% व्यवसाय का बीमा करती हैं और पशु बीमा में अग्रणी हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की चार साधारण बीमा  कंपनियों के पास लगभग 42% बाजार हिस्सेदारी है और इन चार कंपनियों ने सरकारी प्रतिभूतियों और बुनियादी ढांचे के विकास में लगभग 1.7 लाख करोड़ का निवेश किया है। यह बहुत अधिक हो सकता था यदि चार साधारण बीमा कंपनियों को एलआईसी के समान एक इकाई में मिला दिया गया होता। सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों का निजीकरण इस देश के लोगों के हितों के लिए हानिकारक है।

उन्होंने कहा कि समय की मांग है कि सार्वजनिक क्षेत्र की साधारण बीमा कंपनियों को मजबूत किया जाए। इन कंपनियों के सभी कर्मचारियों को अपनी नौकरी की सुरक्षा, सेवा शर्तों और अन्य लाभों के बारे में बहुत सारी अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है, जो कि हाल ही में पारित GIBNA संशोधन अधिनियम 2021 के प्रावधान के कारण हैं।  इन कंपनियों के सभी स्तर पर कार्यरत और सेवानिवृत्त दोनों ही कर्मचारी अपनी आजीविका में इन प्रावधानों का प्रभाव के कारण गंभीर रूप से चिंतित हैं।

यूनियनों और संघों का कहना है कि डीएफएस और जिप्सा प्रबंधन को इन सभी मुद्दों को समझ कर उचित हल निकालना होगा, जिसके विफल होने पर हम आने वाले दिनों में ट्रेड यूनियनों की बड़ी और व्यापक कार्रवाई करने के लिए मजबूर होंगे।

संगठनों ने इस अधिनियम को निरस्त करने और कर्मचारियों की लंबे समय से लंबित जायज मांगों को पूरा करने की मांग की है।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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