पुरोला: कोर्ट में भी झूठी साबित हुई लव जिहाद की कहानी

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जनचौक ने घटना के बाद ही उजागर कर दी थी सच्चाई

पिछले साल मई-जून में उत्तराखंड के पुरोला में जिस तथाकथित लव जिहाद के मामले को खूब हवा दी गई थी और जिसकी आड़ में पूरे राज्य में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास किया गया, उस घटना की सच्चाई अब कोर्ट में भी सामने आ गई है। कोर्ट ने इस पूरी घटना को धोखा माना है और जिन दो युवकों को इस मामले में आरोपी बनाया गया था, उन्हें बरी कर दिया है। 26 मई 2023 को हुई इस घटना के बाद सबसे पहले जनचौक ने पुरोला पहुंचकर घटना की जानकारी ली थी और इस कहानी की सत्यता को उजागर करती ग्राउंड रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जनचौक की रिपोर्ट में इस घटना की सच्चाई को लेकर जो बातें कही गई थी, मामूली बदलावों के साथ कोर्ट में भी लगभग वही कहानी सामने आई है। हमारी रिपोर्ट में उस व्यक्ति की पहचान उजागर नहीं हो पाई थी, जिसने यह पूरी साजिश रची थी। कोर्ट में उस व्यक्ति की पहचान आरएसएस के स्थानीय पदाधिकारी आशीष चुनार के रूप में हुई। यह भी साफ हुआ कि यह पूरी स्क्रिप्ट इसी आशीष चुनार ने लिखी थी और एक स्थानीय पत्रकार ने इसमें मदद की थी।

घटना 26 मई 2023 को हुई थी। आरोप था कि पुरोला में दुकान चलाने वाले मूल रूप से बिजनौर के दो लड़के उवैद खान और जितेन्द्र सैनी एक स्थानीय नाबालिग लड़की को भगाकर ले जा रहे थे। इस मामले को लव जिहाद का नाम दिया गया और आरोप लगाया गया कि उवैद ने नाबालिग लड़की को अपना नाम अंकित बताया और उसे शादी करने का झांसा दिया। इस पूरी कहानी को एक स्थानीय पत्रकार ने अपने पोर्टल पर प्रकाशित किया। कहानी के अनुसार जब उवैद खान और जितेन्द्र सैनी लड़की को जबरन टेंपो में बिठा रहे थे तो कुछ लोगों ने उन्हें देख लिया। लोगों ने लड़की को युवकों के चंगुल से छुड़ाया और उसके परिवार वालों की सूचित किया। जनचौक को जानकारी मिली थी कि एक स्थानीय व्यक्ति और एक पत्रकार इस मामले में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। इन दोनों ने लड़की के परिवार वालों के आने से पहले ही एक एप्लीकेशन भी पुलिस को दी थी, जिसमें दोनों युवकों पर लव जिहाद का आरोप लगाया गया था। हालांकि लड़की के चाचा (पहले मामा बताया गया था) ने वह एप्लीकेशन फाड़ दी थी और दूसरी एप्लीकेशन लिखी थी।

उस समय पत्रकार के साथ सक्रिय दूसरे व्यक्ति की पहचान किसी ने हमें नहीं बताई थी। बाद में कोर्ट में वह व्यक्ति आरएसएस के पदाधिकारी आशीष चुनार के रूप में पेश हुआ। लगता है आशीष चुनार की दबंगई के कारण उस समय किसी ने उसका नाम लेने का साहस नहीं किया था। पुलिस ने लड़की के चाचा की शिकायत पर उवैद खान और जितेन्द्र सैनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था।

उसी शाम एक स्थानीय पत्रकार अनिल असवाल ने अपने न्यूज पोर्टल पर लड़की को लव जेहाद में फंसाकर उसका अपहरण करने का प्रयास करने की खबर छाप दी। रातों-रात यह खबर वायरल करवाई गई। अगले ही दिन विश्व हिन्दू परिषद और देवभूमि रक्षा मोर्चा जैसे कई हिदुत्ववादी संगठनों के लोग पुरोला पहुंच गये। वहां जुलूस निकाला। मुसलमानों की दुकानों पर पुरोला छोड़ने के पोस्टर चस्पा किये गये। इस मामले में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया, हालांकि वीडियो में कई चेहरे नजर आने और पोस्टर पर संगठन का नाम होने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। हिन्दुत्ववादी संगठनों ने इसके बाद पुरोला के आसपास के कई कस्बों में भी उपद्रव करने का प्रयास किया। मुसलमानों के खिलाफ संगठित अभियान चलाया गया। राज्य के कुछ अन्य हिस्सों में भी ऐसा करने का प्रयास किया गया। इन संगठनों ने पुरोला में एक महापंचायत करने की भी घोषणा की और इसे सफल बनाने के लिए पूरे राज्य में अभियान शुरू कर दिया।

न्यूज चैनलों ने इस मामले को हवा देने का खूब प्रयास किया। मुसलमान किस तरह से उत्तराखंड में लव जिहाद और लैंड जिहाद कर रहे हैं इसे लेकर कई तरह की भ्रामक जानकारियां न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर फैलाई गई। खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घटना के आसपास के दिनों में लगातार उत्तरकाशी के दौरे किये थे। उन्होंने मीडिया के सामने इस घटना को लव जिहाद का नाम दिया था और कहा था कि यह अपराध है, ऐसे अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा।

इसी बीच जनचौक ने मौके पर जाकर 10 जून 2023 को घटना का सच उजागर करती रिपोर्ट छापी। कुछ अन्य समाचार माध्यमों ने भी यह बात कही। दबाव में आकर आखिरकार राज्य सरकार ने प्रस्तावित हिन्दू महापंचायत पर रोक लगा दी। इस तरह से पुरोला सहित पूरे राज्य में बड़ा उपद्रव होने से बच गया। सच्चाई सामने आने के बाद हिन्दू संगठन चुपचाप इस मामले से अलग हो गये और मामला कोर्ट चला गया। इस बीच करीब एक महीने तक पुरोला में टीवी चैनल वालों का जमावड़ा लगा रहा, लेकिन ज्यादातर सच्चाई बताने के बजाए लीपापोती ही करते रहे। कैमरों के पुरोला से हटने के बाद दोनों आरोपियों को कोर्ट से जमानत मिल गई थी।

घटना के बाद नाबालिग लड़की के चाचा ने पुलिस में शिकायत की थी। शिकायत में कहा था कि उनकी भतीजी ने उन्हें बताया कि उवैद खान और जितेन्द्र सैनी उसे धोखे से पेट्रोल पंप पर ले गए थे। उवैद ने खुद को अंकित बताया था और शादी करने की बात कही थी। पेट्रोल पंप पर उन्होंने एक टेम्पो बुलाया और उसे अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन चुनार और एक अन्य व्यक्ति ने देख लिया और उसे बचा लिया। चुनार यानी आशीष चुनार। आरएसएस का नेता। इसी आशीष चुनार का नाम घटना के बाद के दिनों में किसी ने नहीं लिया था। जबकि स्थानीय लोगों को सारी कहानी मालूम थी।

रिपोर्ट के अनुसार मुकदमे के दौरान, जब नाबालिग के चाचा से वकीलों ने जिरह की, तो उन्होंने अदालत को बताया कि उनकी भतीजी ने उन्हें घटना के बारे में कुछ नहीं बताया था। उन्होंने जो शिकायत लिखकर पुलिस को दी थी, वह आशीष चुनार के कहने पर लिखी थी। हालांकि आशीष चुनार ने इस आरोप को गलत बताया और कहा कि उसके कहने से शिकायत नहीं लिखी गई थी। एक खास बात यह कि घटना के बाद के दिनों में लड़की के चाचा का एक बयान आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे दोनों लड़कों को माफ कर मामला खत्म करना चाहते थे। खबर यह भी आई थी कि मीडिया के लोगों ने उन्हें इतना परेशान किया कि वे कई दिनों तक मोबाइल बंद करके अपने घर के कमरे में कैद रहे।

लड़की की चाची भी अदालत पेश हुई और कहा कि उनकी भतीजी ने उन्हें घटना के बारे में नहीं बताया और आरोपी का नाम नहीं बताया। उसने केवल इतना कहा था कि वह कपड़े सिलवाने के लिए घर से गई थी और आशीष चुनार उसे अपनी दुकान पर ले गया। आशीष चुनार ही इस पूरी घटना का एकमात्र चश्मदीद गवाह भी बना। उसका बयान तो कोर्ट में और भी मजेदार रहा। कोर्ट में खान और सैनी को चुनार के सामने पेश किया गया। चुनार ने अदालत को बताया कि 26 मई को उसने दो लोगों को नाबालिग से बात करते देखा था, लेकिन वे दोनों खान और सैनी नहीं थे।

घटना के बाद 27 मई 2023 को मजिस्ट्रेट के सामने 164 के तहत लड़की का बयान दर्ज किया गया था। बयान में लड़की ने कहा था कि जब उसने उनसे यानी खान और सैनी से दर्जी की दुकान का रास्ता पूछा, तो वे उसे पेट्रोल पंप पर ले गए और एक टेम्पो बुलाया। उन्होंने उसका हाथ पकड़ा और टेम्पो के अंदर बैठाने की कोशिश की। उसने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की। इसी दौरान आशीष चुनार आया। उसे देखकर दोनों लड़के भाग गए। फिर चुनार ने उसे अपनी दुकान पर बैठाया और परिवार को बुलाया। शिकायत और लड़की के बयान के आधार पर खान और सैनी के खिलाफ अपहरण, ह्यूमन ट्रैफिकिंग और यौन उत्पीड़न की धाराओं के साथ ही पोक्सो एक्ट में केस दर्ज किया गया।

कोर्ट में नाबालिग ने भी सच्चाई उजागर कर दी। उसने कहा कि खान और सैनी को फंसाने वाला बयान देने के लिए उसे ट्रेनिंग दी गई थी। बयान देने से पहले, पुलिस ने उसे समझाया था कि उसे क्या कहना है और यही उसने मैडम यानी सिविल मजिस्ट्रेट को बताया। लड़की ने कोर्ट में ये भी कहा कि उसने बयान नहीं पढ़ा, सिर्फ उस पर हस्ताक्षर किए।
कोर्ट ने कुल मिलाकर 19 सुनवाइयों के बाद दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। न्यायाधीश गुरुबख्श सिंह ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने के लिए कोई बयान या सबूत पेश नहीं किया कि खान और सैनी ने नाबालिग को गलत इरादे से छुआ था।

उन्होंने अपने फैसले में लिखा- रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर विचार करते हुए, यह विशेष अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों से, आरोपी उवैद खान और जितेंद्र सैनी के खिलाफ अभियोजन पक्ष का आरोप साबित नहीं होता है।

(त्रिलोचन भट्ट वरिष्ठ पत्रकार हैं और उत्तराखंड में रहते हैं।)

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