ग्राउंड रिपोर्टः पूर्वांचल में वंचित समुदाय की हत्याओं पर उठे योगी सरकार पर सवाल, कब खुलेगा न्याय का दरवाजा?

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वाराणसी। उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित महेश पट्टी गांव में किसान मुन्नीलाल मौर्य की हत्या के बाद डबल इंजन की सरकार पर पड़े खून के छींटे अभी धुल भी नहीं पाए थे कि सामंतों ने चंदौली जिले के करजरा गांव में एक और किसान को जघन्य तरीके से फावड़े से काट डाला। दोनों घटनाओं की गूंज पूरे देश ने सुना। पुलिस और प्रशासन के माथे पर तमाम संगीन आरोप भी चस्पा हुए, लेकिन हत्यारों के घरों पर न बुल्डोजर चले और न ही उनके पैर छेदे गए। खास बात यह है कि ये वारदातें उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में हुई हैं जहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे की क़ानून व्यवस्था बेहतर होने का दावा करने के साथ इसे अपनी ‘सबसे बड़ी उपलब्धि’ बताते हैं।

करजरा में एकत्र ग्रामीण

चंदौली जिले के धीना थाना क्षेत्र के करजरा गांव में 6 जुलाई 2024 को 38 वर्षीय अजय प्रसाद प्रजापति उर्फ धर्मू प्रजापति नामक व्यक्ति की फावड़े से हत्या कर दी गई थी। हमलावरों ने धर्मू के 11 वर्षीय पुत्र हंसदीप और 9 वर्षीय कौशलदीप को भी नहीं बख्शा। हमले में दोनों बच्चे भी घायल हुए हैं। करजरा गांव में रह-रहकर औरतों की चीखें सुनाई दे रही हैं। धर्मू की हत्या से ग्रामीण बेहद बहुत गुस्से में है। सुरक्षा के मद्देनजर करजरा में पीएसी तैनात है। धर्मू प्रजापति के पास सिर्फ दो कमरों वाला एक छोटा का मकान है, जो चौतरफा खुला हुआ है। हत्या के बाद से धर्मू की पत्नी मंसा देवी बेहद भयभीत हैं। इन्हें इस बात की चिंता है कि अब वह अपने दोनों बेटों की सुरक्षा और परवरिश कैसे करेंगी?

सहमा है परिवार

31 वर्षीय पत्नी मंसा देवी का रो-रोकर बुरा हाल है। धर्मू के घर पहुंचने वाले हर शख्स के सवाल का जवाब देते-देते मंसा देवी का गला बैठ गया है और आंखों के आंसू भी सूख गए हैं। वह बेसुध हालत में हैं। पास-पड़ोस की औरतें उन्हें ढांढस बंधाने का प्रयास करती हैं, लेकिन वह ठीक से बैठ पाने की स्थिति में नहीं हैं। धर्मू के बड़े बेटे हंसदीप ने अपने पिता को मुखाग्नि दी है। हमलावरों ने उसके सिर पर फावड़े से हमला किया है। पिता की मौत से दोनों बच्चे सहमे हुए हैं। नौ वर्षीय कौशलदीप अपनी मां से बार-बार एक ही सवाल पूछ रहा है, “पापा कब आएंगे।” उसे यह नहीं मालूम है कि उसके पिता अब कभी नहीं लौटेंगे।?

मुख्य अभियुक्त अभिषेक सिंह

धर्मू प्रजापति की फावड़े से जघन्य हत्या करने वाले अभियुक्तों में नरेंद्र सिंह और उसके बेटे आशीष सिंह और अभिषेक सिंह हैं, जो राजपूत समुदाय से आते हैं। आरोप है कि सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं का इनके सिर पर हाथ है। इनकी गिनती इलाके के दबंगों में होती रही है। धर्मू पर उस समय हमला किया जब वो अपनी जमीन का बाउंड्री करा रहे थे। जिस स्थान पर धर्मू प्रजापति का खेत है, उसी के पास नरेंद्र सिंह का मुर्गी फार्म है।

अभियुक्त आशीष सिंह

दबंग बाप-बेटे धर्मू पर काफी दिनों से दबाव बना रहे थे कि वो मुर्गी फार्म पर जाने के लिए अपनी जमीन पर रास्ता छोड़े। नरेंद्र सिंह के मुर्गी फार्म पर जाने के लिए छह फीट का रास्ता पहले ही है। धर्मू प्रजापति का कहना था कि उसके पास थोड़ी जमीन है। वह रास्ता तभी छोड़ेगा, जब उसे जमीन के बदले दूसरी जमीन दी जाएगी। धर्मू के बड़े भाई शम्भूनाथ प्रजापति ने पुलिस को तहरीर देकर परिवार की सुरक्षा की गुहार लगाई है।

सुरक्षा की गुहार

धीना थाना पुलिस की दी गई नई तहरीर में शम्भूनाथ प्रजापति कहते हैं, “मेरे भाई अजय प्रसाद प्रजापति उर्फ धर्मू की मौत के बाद मेरे परिजन और मेरी बहन मेरे घर आकर रो रहे थे। इस बीच अभियुक्त नरेंद्र सिंह का चाचा फतेह बहादुर सिंह मेरे घर आया और मेरी बहन प्रभावती देवी को गाली देते हुए कहने लगा कि तुम लोग होश में रहो, नहीं तो तुम लोगों का हाल भी वही होगा जो गांव के हवलदार नाई का किया था। हत्या की धमकी देते हुए वह चला गया। हवलदार हमारे गांव के थे। वो फौज से रिटायर हुए थे। वह घर आए तो उनका रहन-सहन सामंतों को नागवार गुजरा। किसी बात को लेकर उन्होंने हवलदार के घर में घुसकर कई मर्तबा मारा-पीटा था। राजपूत समुदाय के लोग उन्हें अक्सर परेशान करते थे, जिसके चलते वो गांव से पलायन कर गए। अपनी संपत्ति बेचकर परिवार के साथ जमनिया रहने लगे।”

धर्मू प्रजापति के बच्चे

शम्भूनाथ यह कहते हैं, “मेरे ऊपर काफी दबाव है और हमारे कुनबे के लोगों को खुलेआम धमकियां दी जा रही हैं। हत्यारों ने उस दिन मेरे भाई धर्मू के पुत्र हंसदीप और कौशल दीप बेटों की भी हत्या करने की कोशिश की थी। हंसदीप ने भागकर अपनी जान बचाई, जबकि दूसरा मरते-मरते बचा है। हत्यारों ने उस पर भी फावड़े से प्रहार किया था, लेकिन फावड़ा मुड़ जाने की वजह से उसका बट ही उसके हाथ पर लग पाया। इसके बाद उन्होंने उसे उठाकर पटक दिया। अस्पताल में लोगों ने उसका मेडिकल चेकअप तक करने नहीं दिया। दो हत्यारे अभी फरार हैं। पुलिस हमें सुरक्षा की गारंटी नहीं दे रही है, जिसके चलते हमारा परिवार और रिश्तेदार दहशत में जी रहे हैं।”

“हमारे भाई धर्मू प्रजापति अपनी निजी भूमि पर चहारदीवारी की निर्माण करा रहे थे। नरेंद्र सिंह और उनके दो बेटे आशीष और अभिषेक ने गालियां देते हुए अचानक हमला बोल दिया। अभिषेक ने मेरे भाई के सिर पर फावड़े से प्रहार किया, जिससे वह गिर पड़े। कुछ लोग उन्हें बचाने पहुंचे तो उन्हें भी अभियुक्तों ने दौड़ा लिया। सिर से तेज खून बह रहा था और वो बेहोश हो गए। काफी देर बाद हम अपने भाई को लेकर इलाज के लिए बीएचयू ट्रॉमा सेंटर पहुंचे, जहां सात जुलाई की सुबह उनकी मौत हो गई। घटना में वांछित मुख्य अभियुक्त आशीष सिंह विनायक ही गिरफ्तार हो सका है। नरेंद्र सिंह और उनका बेटा अभिषेक सिंह फरार हैं।”

उस दिन क्या हुआ था?

धर्मू की पत्नी मंशा कहती हैं, “तीन महीने पहले हमारे पति ने बाउंड्री के लिए नींव खुदवाई थी। उस समय तय हुआ था कि रास्ते की जमीन के बदले वो हमें एक बिस्वा जमीन देंगे। बाद में वो मुकर गए और जबरिया हमसे रास्ता मांगने लगे। उन्होंने तो हमारा सुहाग ही उजाड़ दिया। मैं विधवा हो गई। हमारी और हमारे बच्चों की परवरिश अब कौन करेगा? कुछ दिन पहले उन्होंने हमें भी धमकी दी थी और मारने-पीटने के लिए दौड़ा लिया था। गांव को लोगों ने हमें बचाया। उनके आतंक से आसपास सभी गांवों के गरीब तबके के लोग थर्राते थे। हम चाहते हैं कि हत्यारों को फांसी हो और इनके घर पर सरकार बुल्डोजर चलवाए।”

धर्मू के भाई शंभूनाथ प्रजापति की बेटियां चीख-चीखकर सवाल कर रही हैं कि आखिर बाबा का बुल्डोजर कब चलेगा? हम गरीब कहां जाएंगे? वो हमें डरा रहे, धमका रहे। बाबा गरीबों के लिए बुल्डोजर नहीं चलवाते? हत्यारों के पैर क्यों नहीं छेदे जा रहे हैं। बाबा हमें न्याय क्यों नहीं दे रहे हैं? हत्यारों का घर और मुर्गी फार्म ढहवाइए और उन्हें फांसी की सजा होनी चाहिए। धर्मू की बहन दुर्गावती जनचौक से कहती हैं, “मेरी भाभी विधवा हो गई। अब वो कैसे जिंदा रहेंगी और उनके बच्चे कैसे पढ़ेंगे? सरकार हमारे बारे में सोचे।”

न्याय की गुहार लगाती धर्मू के परिवार की महिलाएं

ग्रामवासी ऊषा कहती हैं कि धर्मू बहुत अच्छे आदमी थे। वो सभी की मदद करते थे। इन लोगों ने बहुत अत्याचार किया है। हत्यारों को फांसी होनी चाहिए। हमें भी धमकाया जा रहा है। मौके पर मौजूद प्रदीप प्रजापति कहते है, “ब्रूटल मर्डर के बाद भी बुल्डोजर क्यों नहीं चल रहा है? किसी छोटी जाति का हत्यारा होता और वो किसी सामंत की हत्या किया होता तो उसका एकाउंटर हो गया होता। चंदौली में जाति की राजनीति हावी है। सत्ता में बैठे लोग अभियुक्तों को बचा रहे हैं। प्रजापति की आबादी कम है, इसलिए सताए जा रहे हैं। गरीबों पर सामंतवादी चाभुक चलाया जा रहा है। न्याय का प्रतीक बाबा का बुल्डोजर आखिर कहां गुम हो गया है?”

धर्मू की हत्या से आहत ग्रामीण महिला बीनू देवी कहती हैं, “कातिलों को फांसी हो, नहीं तो अपराधियों का मनोबल बढ़ जाएगा। जमीन को लेकर तीन महीने से पहले से विवाद खड़ा कर रखा था।” ग्रामीण मुकेश यादव ऐलानिया तौर पर कहते हैं कि करजरा में गरीबों को सताया जा रहा है। वह आरोप लगाते हैं कि, “हत्यारों के सिर पर इलाकाई विधायक का हाथ है। वो उनके खास लोग हैं। अपराधियों को सरकार का संरक्षण मिल रहा है। गुंडागर्दी कंट्रोल नहीं हो रही है। प्रजापति समुदाय अपने लिए सुरक्षित जीवन की मांग कर रहे हैं। जनार्धन प्रजापति कहते हैं कि हमें न्याय नहीं मिला तो सरकार से भरोसा उठ जाएगा।”

सामंतों का आतंक

चंदौली जिले के करजरा गांव की आबादी करीब तीन हजार के आसपास है। राजपूत और यादव बहुल इस गांव में प्रजापति समुदाय के चार-पांच परिवार ही रहते हैं। इसी गांव से जुड़ी दलितों की एक बस्ती भी है जहां मुसहर समुदाय के लोग खेत-खलिहान में मजूरी करते हैं। दलित बस्ती के पास ही सामंतों ने धर्मू पर जानलेवा हमाल किया था। वंचित समुदाय के लोग बताते हैं कि करजरा गांव में बनिया आर्थिक तौर पर मजबूत हैं। यादव और वैश्यों पर राजपूतों का जोर नहीं चलता, लेकिन दलित व अन्य पिछड़ी जातियों पर इनका आतंक हमेशा बना रहता है। इनके जानवर भी अगर इनके खेत में चले जाते हैं तो ये मारपीट शुरू कर देते हैं। यादव ताकतवर हैं, इसलिए वो उनसे नहीं उलझते।

करजरा के लोग कहते हैं कि धर्मू बेहद मिलनसार थे, जिसके चलते वो लोकप्रिय थे। इनकी हत्या के बाद इलाके में तनाव है और जो महिलाएं सामंतों से डरा करती थी वो अब मुखर होकर उनके खिलाफ खड़ी हो गई हैं। बगल के गांव लखईपुर के लोग भी अब सामंतों के खिलाफ तन कर खड़े हैं और उन्हें सबक सिखाने के मूड में हैं। करजरा के प्रधान सुभाष यादव कहते हैं, “हमारे गांव में जहां पानी की टंकी है, उसी के बगल में धर्मू प्रजापति का घर है। वहीं जमीन के एक छोटे टुकड़े पर वो खेती किया करते थे। धर्मू की हत्या के बाद इनके परिवार की सुरक्षा के अलावा उनके भरण-पोषण का संकट खड़ा हो सकता है। दो कमरों वाला उनका घर भी असुरक्षित है। बड़े भाई शंभू का परिवार अलग रहता है, जिनके एक बेटा और दो बेटियां हैं। अगर नरेंद्र सिंह को अपने मुर्गी फार्म पर जाने के लिए रास्ता चाहिए था तो राजस्व विभाग से मांगना चाहिए था। राजस्व विभाग से नाप-जोख नहीं कराई। अपनी ताकत की बदौलत उन्होंने जबरिया जमीन लेने की कोशिश की। कामयाब नहीं हुए तो धर्मू की हत्या ही कर डाली।”

पुलिस-प्रशासन पर उठे सवाल

धर्मू हत्याकांड के बाद समूचे पूर्वांचल में प्रजापति समुदाय बेहद गुस्से में है। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज करने के बाद एक नामजद आरोपी अभिषेक सिंह को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि अन्य आरोपी नरेंद्र सिंह और आशीष सिंह अभी फरार हैं। फरार आरोपियों की गिरफ्तारी और मुआवजे की मांग को लेकर ग्रामीणों ने सोमवार को धानापुर-जमानिया मार्ग जाम कर दिया था। दो दिनों के अंदर नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के आश्वासन पर ग्रामीणों ने जाम खत्म किया था। पुलिस ने धीना थाना में दर्ज प्राथमिकी में भारतीय न्याय संहिता की हत्या की धारा-103 (1) बढ़ा दी है। नौ जुलाई को धीना थानाध्यक्ष रमेश यादव हत्यारोपी अभिषेक सिंह को लेकर गांव में पहुंची थी। अभियुक्त ने हत्या में प्रयुक्त फावड़ा अपने मुर्गी फार्म से बरामद कराया। साथ ही ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि पुलिस पीड़ितों की हिफाजत करेगी।

एफआईआर की कॉपी

धर्मू हत्याकांड के बाद करजरा गांव में विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के नेताओं की आवाजाही बढ़ गई है। साथ ही आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी तेज हो गया है। चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह आठ जुलाई को पीड़ित के घर पहुंचे और हर संभव मदद का भरोसा दिया। भाजपा विधायक सुशील सिंह भी करजरा पहुंचे थे। जन भागीदारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र कुमार प्रजापति के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया और धर्मू के हत्यारों को फांसी और विधवा मंसा देवी को आर्थिक सहायता देने की मांग उठाई। इस हत्याकांड के लिए देवेंद्र ने डबल इंजन सरकार को आड़े हाथ लिया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर सवाल उठाते हुए कहा, “क़ानून व्यवस्था बेहतर होने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री की क्या यही ‘सबसे बड़ी उपलब्धि’ है? क्या यही रामराज है? गुंडागर्दी लॉ-एंड ऑर्डर नहीं हो सकती। ऐसी घटनाओं से आम जनता में काफी दहशत है। योगी सरकार का बुल्डोजर कहां गुम हो गया और उनकी पुलिस की गोलियां आतंक का पर्याय बने दबंगों व सामंतों का पैर क्यों नहीं छेद पा रही है? इस सरकार को अब मानवाधिकार, लॉ एंड आर्डर बाकी चीज़ों से कोई मतलब नहीं रह गया।”

उत्तर प्रदेश में योगी के शासनकाल में जमीन को लेकर जघन्य हत्याएं बढ़ती जा रही हैं। देवरिया के फतेहपुर से पहले 17 जुलाई 2019 में सोनभद्र के उम्भा गांव में जमीन विवाद को लेकर हुए नरसंहार ने पूरे देश को हिला दिया था। जमीन कब्जे को लेकर हुए विवाद के बाद आदिवासियों पर हुई फायरिंग में 11 लोगों की जान चली गई थी। हेट क्राइम के मामले में उत्तर प्रदेश देश में अव्वल है। एमनेस्टी के आंकड़ों में मुसलमानों के अलावा दलितों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा भी शामिल है। हत्या की जघन्य वारदातों के बाद पुलिस सिर्फ लकीर पीटती है। हर अफसर एक ही रिकार्ड बजाता है कि हत्यारों के खिलाफ़ कठोर कार्रवाई की जाएगी। किसी को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है, चाहे वह कोई भी हो।

वरिष्ठ पत्रकार शिवादास धर्मू हत्याकांड को अलग नजरिये से देखते हैं। वह कहते हैं, “यूपी में इन दिनों जातीय वर्चस्व को ताकत मिल रही है। सामंतों पर कड़ा एक्शन नहीं होने की वजह से जघन्य हत्याओं का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद संवैधानिक पद पर बैठे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी जाति पर गर्वान्वित होने का बयान दिया था। उसी जाति गर्व का नतीजा है कि इन दिनों दबंग जातियों के लोग अति पिछड़ों, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों के अलावा शोषित और वंचित समाज पर कहर बरपा रहे हैं। यूपी में ऐसे लोग सताए जा रहे हैं, जो गोलबंद नहीं है और जिन्हें राजनीतिक तौर पर सत्ता का संरक्षण प्राप्त नहीं है।”

कहां है बाबा का बुल्डोजर?

“चंदौली के करजरा और बनारस के महेश पट्टी गांव में किसानों की हत्या की घटनाओं के बाद हत्यारों के घरों पर न तो योगी सरकार का बुल्डोजर चल पाया और न ही अभियुक्तों के पैर छेदे गए। यूपी में राजनाथ सिंह जब मुख्यमंत्री बने थे उस समय पूर्वांचल में नक्सलवाद का दौर था। उस समय राजनाथ सिंह ने भी इसी तरह का बयान दिया था और सोनभद्र, चंदौली व मिर्जापुर के मुठभेड़ों में दलितों और आदिवासियों की हत्याएं बढ़ गई थीं। सोनभद्र के रनटोला मुठभेड़ कांड में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक निर्दोष छात्र को पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था। इस मामले में 14 पुलिस कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा हुई थी। कुछ ऐसा ही खेल इन दिनों जाति गर्व के नाम पर चल रहा है।”

सामंतों के खिलाफ लामबंद हुई गांव की औरतें

वरिष्ठ पत्रकार शिवदास यह भी कहते हैं, “दबंग जातियों के लोग अब खुलेआम हत्याएं कर रहे हैं। शोषित वर्ग के लोग दबंगों और सामंतों के आतंक के शिकार हो रहे हैं। यह सिलसिला रुकना चाहिए, क्योंकि देश भारतीय संविधान से चलता है, जातिवाद से नहीं। करजरा की घटना में जो आरोपी हैं वो हमले के बाद भी गांव में जमे हुए थे। पुलिस की मौजूदगी के बावजूद वो फरार हो गए। इससे साफ पता चलता है कि पुलिस पर सत्ता में शामिल लोगों का दबाव है।”

चंदौली के करजरा गांव का दौरा कर लौटे बनारस के वरिष्ठ पत्रकार कुमार विजय कहते हैं, “धर्मू हत्याकांड से पहले बनारस के महेश पट्टी गांव में किसान मुन्नीलाल मौर्य की हत्या इसी तरह से दबंगों ने की थी। दोनों घटनाओं ने यह साबित कर दिया है सूबे की कानून व्यवस्था पटरी से उतर गई है। यह भी कह सकते हैं कि कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब हालत में है। बीजेपी के समर्थक इन दिनों पुलिस पर जिस तरह से रौब झाड़ते नजर आते हैं उसने खाकी वर्दी का आत्मविश्वास डावांडोल हो रहा है। सवर्णों और सामंतों पर अंकुश लगाने के बजाय नौकरशाही उनके अपराध को संरक्षित करने में लग जाती है। करजरा गांव की घटना में प्रशासन ने तत्परता दिखाई होती तो अपराधी फरार नहीं हो पाते। इस तरह की घटनाएं दिखाती हैं कि कानून व्यवस्था के मामले सरकार पूरी तरह से नाकाम है उसका चाबुक और बुलडोजर सिर्फ शोषितों, वंचितों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोगों के लिए है।”

चंदौली के किसान नेता सरवन सिंह कुशवाहा कहते हैं, “पुलिस और राजस्व अधिकारी अगर सक्रिय हों तो ऐसी हत्याएं आसानी से रोकी जा सकती हैं। जमीन के मामलों में हत्याएं तुरंत नहीं होती हैं। एक लंबी प्रक्रिया के बाद जब राजस्व के स्तर से निपटारा नहीं होता है तो खूनी संघर्ष की नौबत आती है। अक्सर कब्जे व नाप-जोख को लेकर विवाद होते हैं। राजस्व व तहसील के अधिकारी विवादों को लटकाए रहते हैं। कई बार भ्रष्टाचार भी इसकी बड़ी वजह होती है। डीएम व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के आदेशों के बाद भी नाप-जोख नहीं होती है। अगर तहसील व राजस्व के अधिकारी समय रहते ऐसे मामलों में हस्तक्षेप किए होते तो ऐसी हत्याओं को रोका जा सकता था। चाहे वो घटना करजरा की हो या फिर बनारस के महेश पट्टी गांव में किसान मुन्नीलाल मौर्य की हत्या का। धर्मू का परिवार जातीय तौर पर कमजोर है, इसलिए पुलिस और प्रशासन उनकी शिकायतों को लगातार नजरंदाज करता रहा। पुलिस और राजस्व विभाग के अफसर मुस्तैद होते तो धर्मू आज जिंदा होते।”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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