झारखंड में उत्पाद सिपाही भर्ती में 12 अभ्यर्थियों की मौत की मूल वजह

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रांची। झारखंड में उत्पाद सिपाही की शारीरिक दक्षता परीक्षा की दौड़ में भाग ले रहे 12 अभ्यर्थियों की मौत की खबर अखबारों, यूट्यूब चैनलों पर पढ़ा और देखा तो अचानक एक कहानी जेहन में आ गई।

कहानी यह है कि एक राजा एक गरीब आदमी को अपनी जमीन दिखाते हुए कहता है कि वह दौड़ लगाकर जितनी जमीन चाहे ले सकता है, वह जहां रूक जाएगा, वहां तक की सारी जमीन उसकी होगी। वह आदमी जमीन की लालच में दौड़ता चला जाता है… दौड़ता चला जाता है… अंततः वह गिर पड़ता है और उसके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं….।

इस दौड़ में और उस दौड़ में बस फर्क इतना भर है कि उस वक्त राजतंत्र था और आज लोकतंत्र है। लेकिन हालात वहीं के वहीं खड़े हैं। उस वक्त राजा ने उस गरीब की क्षमता का आकलन किया और आज सरकारें बेरोजगारों की क्षमता का आकलन कर रही हैं। लेकिन न उस वक्त गरीब की मूल समस्या का समाधान था और न आज मूल समस्या बेरोजगारी का समाधान है। जो है, जितना है, ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।

अब आते हैं झारखंड में हुई बहाली प्रक्रिया के दौरान 12 बेरोजगारों की मौत की कहानी पर। ऐसा नहीं है कि ये मौतें एक ही दिन हुई है। यह परीक्षा पिछले 22 अगस्त से राज्य में उत्पाद सिपाही बहाली प्रक्रिया के तहत चल रही थी। 12 अभ्यर्थियों की जान जाने के बाद राज्य सरकार ने इस प्रक्रिया को फिलहाल बंद कर दिया है।

उत्पाद सिपाहियों के 583 पद के लिए भर्ती प्रक्रिया में पहले चरण की हुई शारीरिक दक्षता परीक्षा में एक सितंबर तक कुल एक लाख पैंतालीस हजार अभ्यर्थी शामिल हो चुके थे। इनमें से लगभग 90 हजार अभ्यर्थी दौड़ में सफल भी हुए हैं।

अब बता दें कि अपनी जान गवां चुके इन 12 अभ्यर्थियों में पलामू में हुई दौड़ में पांच अभ्यर्थी की जान जा चुकी है और दौड़ के दौरान यहां 93 अभ्यर्थी बेहोश हुए थे। वहीं गिरिडीह में दो अभ्यर्थी की मौत हुई और 178 बीमार हुए थे। हजारीबाग में दो की मौत हुई और एक दर्जन से अधिक बेहोश हुए। मुसाबनी में एक, साहिबगंज में एक तथा रांची में एक अभ्यर्थी की मौत हुई है।

12 अभ्यर्थियों की मौत के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस दौड़ पर रोक लगा दी है। साथ ही नियमावली की समीक्षा करने का निर्देश भी जारी कर दिया है।

बहाली की इस प्रक्रिया के तहत शारीरिक दक्षता परीक्षा में पुरुष सिपाही भर्ती के लिए वर्तमान में 60 मिनट यानी एक घंटे में 10 किमी की दौड़ करायी जाती है। जो पहले 1,600 मीटर की दौड़ 6 मिनट में लगानी होती थी, इसके बाद लंबी व ऊंची कूद की परीक्षा होती थी।

इसके आधार पर मेरिट लिस्ट बनती थी। जिसमें रघुवर दास सरकार के कार्यकाल में बदलाव करते हुए साल 2016 के बाद एक घंटे में 10 किमी की दौड़ कराये जाने की नियमावली बनी। 

अभ्यर्थियों की हुई इन मौतों पर एमएमसीएच के प्रभारी अधीक्षक डॉ. आरके रंजन कहते हैं कि अभ्यर्थी डिहाइड्रेशन की वजह से बेहोश होते रहे हैं। सुबह 9 बजे से शाम पांच बजे तक प्रतियोगिता में शामिल होने के कारण अभ्यर्थियों को धूप व गरमी के कारण डिहाइड्रेशन हो जा रहा था।

इस कारण अभ्यर्थियों का ब्लड प्रेशर व ऑक्सीजन लेबल कम हो जा रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि स्ट्रोक व रक्त का प्रवाह सही तरीके से नहीं होने के कारण कई बीमार अभ्यर्थियों की स्थिति गंभीर हो गयी। इस वजह से उनकी मौत भी हो गयी।

इन मौतों को लेकर जहां विपक्ष हेमंत सोरेन सरकार पर हमलावर है। वहीं कई सामाजिक व राजनीतिक दल के लोग इसकी जांच और मृतकों के आश्रितों मुआवजा की मांग कर रहे हैं। लेकिन कोई इन मौतों के मूल कारण पर बात नहीं कर रहा है।

उक्त घटना पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि 583 पद की भर्ती के लिए पहले चरण की शारीरिक दक्षता परीक्षा में एक सितंबर तक कुल 1,45,000 (एक लाख पैतालीस हजार) अभ्यर्थी शामिल हुए। इनमें से लगभग 90 हजार अभ्यर्थी दौड़ में सफल हुए हैं।तो क्या इन 90 हजार अभ्यर्थियों की बहाली होगी या निर्धारित पद 583 की? अगर 583 की ही नियुक्ति होनी है तो बाकी सफल 89,400 अभ्यर्थी क्या करेंगे?

यह सवाल इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि परीक्षा में सफल हुए तमाम 90 हजार अभ्यर्थियों में आशा बंधी होगी कि शायद अब उन्हें नौकरी मिल जाएगी।

इस भर्ती के लिए कितने आवेदन आए इसका खुलासा विभाग ने अभी तक नहीं किया है। लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि 4 लाख से अधिक आवेदन आए है। ऐसे में 583 पद की नियुक्ति के लिए लाखों का आवेदन किस बात की ओर इशारा कर रहा है?

जाहिर है साधारण से साधारण आदमी भी इस बात को समझ सकता है कि इतनी कम नियुक्ति के लिए लाखों के आवेदन का एक मात्र कारण रोजगार के लिए है। यानी इस घटना के मूल में बेरोजगारी ही सबसे बड़ी समस्या है।

ऐसा नहीं है कि इतनी साधारण सी बात न मीडिया समझ पा रही है और न ही राजनीतिक चोंचलेबाज। जाहिर है सभी समझ रहे हैं। सच तो यह है कि इस मूल बात को ये सामने लाना नहीं चाहते। क्योंकि इनके दिमाग में लगातार यह धारणा बिठाया जाता रहा है कि सभी को रोजगार संभव नहीं है।

इस धारणा की कड़ी को मजबूती देने में जब हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी “पकौड़ा तलना भी रोजगार है” बताने में गुरेज नहीं करते जो सत्ता प्रायोजित धारणा को और भी मजबूत करता है।

सभी को रोजगार संभव नहीं है जैसी फैलाई गई भ्रातियों पर डा. श्रीकांत कहते हैं – ” एक भ्रांति है, बेरोजगारी हमारी अक्षमता के कारण है। तो बता दे कि बेरोजगारी हमारी अक्षमता के कारण नहीं बल्कि अवसरों की कमी के कारण है। कल्पना करें यदि किसी नौकरी के लिए सौ रिक्तियाँ हों और एक लाख आवेदक हो तो चाहे कोई कितनी भी तैयारी करें नौकरी तो सौ व्यक्तियों को ही मिलेगी।

प्रत्येक व्यक्ति को जीने का अधिकार है और उसे उसकी क्षमता के अनुसार काम मिलना चाहिए मेरे दृष्टिकोण से कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है जो समाज के लिए कुछ न कुछ योगदान नहीं कर सके।”

वे आगे कहते हैं – ” एक भ्रांति यह भी है कि सबों को रोजगार देना संभव नहीं है। यह भ्रांति सबसे खतरनाक है, जो हमें आगे बढ़कर अपना हक मांगने से हतोत्साहित करती है। यह भ्रांति भी अन्य सभी भ्रांतियों की तरह ही नितान्त झूठी और आधारहीन है।”

डा. श्रीकांत की माने तो – “बेरोजगारी कोई निर्जीव संख्या या कोई परिभाषा मात्र नहीं है बल्कि यह किसी भी मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है। बेरोजगारी तिल-तिल कर मरने की सजा है। यह एक अपमान भरी उदास जिन्दगी की कहानी है।”

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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