शासकों को रोज आत्म निरीक्षण करना चाहिए: चीफ जस्टिस

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सुप्रीम कोर्ट केचीफ जस्टिस एनवी रमना ने सोमवार को कहा कि शासकों को रोज इस बात का आत्म निरीक्षण करना चाहिए कि क्या उनके द्वारा लिए गए निर्णय अच्छे हैं। उन्हें यह भी जांचना चाहिए कि उनमें कोई दुर्गुण तो नहीं है। आंध्रप्रदेश के अनंतपुरम जिले के पुट्टपर्थी में श्री सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर लर्निंग के 40 वें दीक्षांत समारोह में चीफ जस्टिस रमना ने रामायण व महाभारत को उद्धृत करते हुए कहा कि इनमें राजा के 14 दुर्गुण बताए गए हैं, शासकों को उनसे बचना चाहिए।

चीफ जस्टिस ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रणाली में सभी शासकों को रोज अपना नियमित काम शुरू करने से पहले यह आत्म विश्लेषण करना चाहिए कि उनमें कोई बुराई तो नहीं है। लोकतंत्र में उचित शासन की जरूरत है और वह जनता की जरूरतों के मुताबिक होना चाहिए। दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि यहां कई बुद्धिमान लोग हैं और वे विश्व में और देशभर में हो रहे घटनाक्रमों को देख रहे हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है। सरकार ने जो भी फैसला लिया है, उसका फायदा उन्हें मिलना चाहिए। उनकी इच्छा है कि देश का सारा तंत्र स्वतंत्र और ईमानदार होना चाहिए। उसका मकसद जनता की सेवा होना चाहिए। सत्य साईं बाबा भी अक्सर यही बात कहा करते थे।

दुर्भाग्य से आधुनिक शिक्षा प्रणाली का ध्यान केवल उपयोगितावादी कार्यों पर है। यह प्रणाली विद्यार्थियों को नैतिक व आध्यात्मिक कार्यों के प्रति प्रवृत्त नहीं करती, जिनसे छात्र के चरित्र का निर्माण होता है। ये प्रवृत्तियां ही उनमें सामाजिक चेतना व जिम्मेदारी की भावना पैदा करती हैं।

चीफ जस्टिस  ने कहा कि आधुनिक शिक्षा प्रकृति में उपयोगितावादी है और छात्र के चरित्र के निर्माण या नैतिक मूल्यों के पोषण में मदद नहीं कर सकती है। उन्होंने कहा कि सच्ची शिक्षा में नैतिक और नैतिक मूल्यों के विकास सहित व्यक्ति का समग्र विकास शामिल होना चाहिए। चीफ जस्टिस  ने कहा कि आधुनिक शिक्षा शिक्षा की उपयोगितावादी प्रणाली पर केंद्रित है और यह छात्र के चरित्र का निर्माण करने और छात्रों के नैतिक मूल्य को विकसित करने के लिए उपयुक्त नहीं है। सच्ची शिक्षा से धैर्य, आपसी समझ और आपसी सम्मान का विकास होता है। मानवीय मूल्यों के सच्चे मूल को विकसित करने के लिए शैक्षिक यात्रा को जारी रखें।

चीफ जस्टिस ने कहा कि छात्रों को वैश्विक नागरिक होने के नाते एक प्रगतिशील दुनिया की स्थापना के लिए प्रयास करना चाहिए। चीफ जस्टिस ने छात्रों से कहा कि उन्हें व्यक्तिगत जरूरतों या चाहतों में नहीं फंसना चाहिए और परिवार, पड़ोस, गांव, समुदाय आदि के बीच रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि आप इसका अभ्यास करना शुरू करते हैं, तो आप जल्द ही संघर्षों और हिंसा से मुक्त एक बेहतर दुनिया में रहेंगे।

चीफ जस्टिस ने विश्वविद्यालय की सराहना की, जो उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए सत्य साईं बाबा के अटूट प्रेम के कारण अस्तित्व में आया।उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति और मूल्यों को आगे बढ़ाने वाली शिक्षा प्रदान कर रहा है। यह विश्वविद्यालय आधुनिक गुरुकुलम की अवधारणा के आसपास बनाया गया है। सीखना सबसे समकालीन है। भारतीय संस्कृति और मूल्यों का सार भी आत्मसात किया जाता है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि यह विश्वविद्यालय एक नए अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र की योजना बना रहा है।

चीफ जस्टिस ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे कोविड-19 महामारी ने गहरी असमानताओं और कमजोरियों को उजागर किया है।उन्होंने जोर देकर कहा कि अब लोगों को एक साथ आने की जरूरत है। मुझे यकीन है कि मेरे युवा दोस्त जिन्होंने यहां से स्नातक किया है, वे जनता की भलाई के विचार को कायम रखेंगे।

चीफ जस्टिस ने कहा कि मुझे बाबा के दर्शन करने का सौभाग्य मिला है। मैंने हमेशा उनकी ज्ञान की बातों को अपने साथ रखा। बाबा से बड़ा कोई गुरु नहीं है। सत्य साईं का अर्थ है प्रेम, सेवा, त्याग। बाबा ने हमें नेक मार्ग दिखाया है। यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के हमारे संस्कार में निहित है। बाबा का जीवन सभी के लिए प्रेरणादायी होना चाहिए।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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