नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि व्यक्तियों और विशेष कर पत्रकारों या फिर मीडिया पर्सन से जुड़े मोबाइल फोनों या फिर दूसरे डिजिटल डिवाइसेज की जांच और जब्ती को संचालित करने के लिए गाइडलाइन होनी चाहिए।
संजय किशन कौल और सुधांशु धुलिया की बेंच ने इस बात को चिन्हित किया कि मीडिया प्रोफेशनल गोपनीय सूचनाएं या फिर डिवाइस में अपने दूसरे सूत्रों की डिटेल रख सकते हैं।
जस्टिस कौल ने मौखिक तौर पर कहा कि “देखिए ये मीडिया प्रोफेशनल हैं वे अपने फोन में सूत्रों और संपर्कों को रखते हैं। इसलिए वहां कुछ गाइडलाइन होनी चाहिए। यह गंभीर मामला है।”
केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सालिसीटर जनरल एसवी राजू ने उत्तर देते हुए कहा कि अधिकारियों को इस तरह की डिवाइसेज की जांच से रोका नहीं जा सकता है।
उन्होंने कहा कि “लेकिन वहां राष्ट्रद्रोही हैं जो…..हम पूरी तरह से रोक नहीं लगा सकते हैं। मीडिया कानून से ऊपर नहीं हो सकता है।”
हालांकि कोर्ट ने अपना रुख बरकरार रखा और कहा कि किसी गाइडलाइन के अभाव में सरकार को अगर बहुत ज्यादा शक्ति दी जाती है तो यह बेहद खतरनाक होगा। कोर्ट ने सरकार को डिवाइसेज की जांच और जब्ती को संचालित करने के लिए गाइडलाइन का सुझाव देने के लिए एक महीने का समय दिया है।
कोर्ट ने आगे कहा कि मामले को किसी उल्टे नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। और सरकार को जरूरी गाइडलाइन तैयार करने के लिए एक भूमिका निभानी चाहिए।
बेंच फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में सरकारी एजेंसियों द्वारा डिजिटल डिवाइसेज की जांच और जब्ती के लिए गाइडलाइन की मांग की गयी है। सुप्रीम कोर्ट पांच एकेडमीशियन और रिसर्चर के एक समूह द्वारा दायर उसी तरह की एक और याचिका पर भी सुनवाई कर रहा है।
उस याचिका में कहा गया है कि जहां तक डिजिटल डिवाइसेज, जिसमें एक नागरिक का अगर पूरा नहीं तो ज्यादा व्यक्तिगत और प्रोफेशनल जीवन मौजूद रहता है, की जब्ती की बात है तो यह देखा जा रहा है कि जांच एजेंसियों द्वारा बेतहाशा शक्ति का इस्तेमाल किया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की जब्ती सभ्य तरीके से संचालित की जानी चाहिए जो सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के तहत हो।
याचिका में कहा गया है कि हाल के दिनों में बहुत सारे ऐसे लोगों की डिवाइसेज की जब्ती की गयी है जो एकैडमिक दुनिया से ताल्लुक रखते हैं या फिर जाने-माने लेखक हैं।
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