शहीद रघुनाथ महतोः गुरिल्ला युद्ध से अंग्रेजों के छुड़ा दिए थे पसीने

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सरायकेला खरसावां जिले का चांडिल इलाका भारतीय मुक्ति आंदोलन में योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता है। इसमें चुआड़ विद्रोह भी एक है। इसके नायक रघुनाथ महतो थे। ब्रिटिश हुकूमत के काले कानून के खिलाफ उन्होंने जनमानस को संगठित कर सशस्त्र विद्रोह किया था।

तत्कालीन जंगल महल अंतर्गत मानभूम जिले के एक छोटे से गांव घुंटियाडीह जो नीमडीह प्रखंड में स्थित है। इसी गांव में 21 मार्च 1738 को जन्मे रघुनाथ महतो अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम संगठित विद्रोह के महानायक थे। अपनी गुरिल्ला युद्ध नीति से अंग्रेजों पर हमला करने वाले इस विद्रोह को चुआड़ विद्रोह का नाम दिया गया था।

रघुनाथ महतो के संगठन शक्ति से वर्तमान के मेदनीपुर, पुरुलिया, धनबाद, हजारीबाग, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, चक्रधरपुर, चाईबासा, सिल्ली और ओडिशा के कुछ हिस्सों में अंग्रेजी शासक भयभीत थे।

चुआड़ विद्रोह सर्वप्रथम वर्ष 1760 में मेदनीपुर (बंगाल) अंचल में शुरू हुआ। यह आंदोलन कोई जाति विशेष पर केंद्रित नहीं था। इसमें मांझी, कुड़मी, संथाल, भुमिज, मुंडा, भुंईया आदि सभी समुदाय शामिल थे।

ब्रिटिश हुकूमत क्षेत्र में शासन चलाने के साथ जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा लूटना चाहती थी। उनके द्वारा बनाए जा रहे रेल और सड़क मार्ग सीधे कोलकाता बंदरगाह तक पहुंचते थे। जहां से जहाज द्वारा यहां की संपदा इंग्लैंड ले कर रवाना होते थे।

उनके इस मंसूबे को विफल करने के लिए चुआड़ विद्रोह शुरू हुआ। रघुनाथ महतो के नेतृत्व में 1769 में यह आंदोलन आग की तरह फैल रहा था। उनके लड़ाकू दस्ते में डोमन भूमिज, शंकर मांझी, झगड़ू मांझी, पुकलु मांझी, हलकू मांझी, बुली महतो आदि सेनापति थे।

रघुनाथ महतो की सेना में टांगी, फर्सा, तीर-धनुष, तलवार, भाला आदि हथियार से लैस पांच हजार से अधिक आदिवासी शामिल थे। दस साल तक इन विद्रोहियों ने ब्रिटिश सरकार को चैन से सोने नहीं दिया था।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने रघुनाथ महतो को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए बड़ा इनाम रखा। पांच अप्रैल 1778 की रात चुआड़ विद्रोह के नायक रघुनाथ महतो और उनके सहयोगियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुई। सिल्ली प्रखंड के लोटा पहाड़ किनारे अंग्रेजों के रामगढ़ छावनी से शस्त्र लूटने की योजना के लिए बैठक चल रही थी।

गुप्त सूचना पर अंग्रेजी फौज ने पहाड़ को घेर लिया और विद्रोहियों पर जमकर गोलीबारी की। इसमें रघुनाथ महतो और उनके कई साथी शहीद हो गए।

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