‘जनता कर्फ़्यू’ के सोशल डिस्टेंसिंग से नहीं टूटेगी कोरोना वायरस ट्रांसमिशन की चेन

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। पीएम मोदी द्वारा विश्वव्यापी महामारी कोरोना के ख़िलाफ़ घोषित किए गए 14 घंटे के कर्फ़्यू को एक हिस्सा कोरोना की श्रृंखला को तोड़ने के आयोजन के तौर पर पेश कर रहा है। उसका मानना है कि इसके बाद कोरोना का नामोनिशान नहीं रहेगा। इस सिलसिले में सोशल मीडिया से लेकर तमाम प्लेटफार्मों पर तरह-तरह की पोस्ट फारवर्ड की जा रही हैं। यहाँ तक कि सरकारी महकमे में काम करने वाले और संवैधानिक पदों पर बैठे कुछ लोगों ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए हैं।

लेकिन विशेषज्ञ ऐसा नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग के संदेश के लिहाज़ से इस कार्यक्रम का महत्व ज़रूर है लेकिन इससे बीमारी के ख़ात्मे के निष्कर्ष पर पहुंचना बेहद बचकाना होगा।

एम्स की डॉक्टर सोभा ब्रूर ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताया कि यह कहना कि एक दिन लोगों का लोगों से संपर्क टूट जाने पर वायरस की मौत हो जाएगी। यह मामले का सरलीकरण है। उन्होंने कहा कि “यह ट्रांसमिशन को कम कर देगा क्योंकि लोग एक दूसरे के संपर्क में नहीं आएँगे। लेकिन यह श्रृंखला को पूरी तरह से कतई नहीं तोड़ पाएगा। आपने इस मसले पर एनईजेएम का लेख पढ़ा होगा जिसमें बताया गया है कि सतह पर वायरस कितने लंबे समय तक ज़िंदा रहता है। अभी तक के प्रमाण बताते हैं कि वायरस 20-22 घंटे में नहीं मरेंगे। मंत्रालय ने शायद मामले का बेहद सरलीकरण कर दिया है। मेरे हिसाब से ‘जनता कर्फ़्यू’ सामाजिक डिस्टेंसिंग को लागू करने का अपना एक तरीक़ा है”।

शुक्रवार को संवाददाताओं से बात करते हुए संयुक्त सचिव (स्वास्थ्य)  लव अग्रवाल ने कहा था कि प्रधानमंत्री के आह्वान को जनता का सहयोग वायरस के ट्रांसमिशन की श्रृंखला को तोड़ सकता है। अग्रवाल ने कहा था कि “पीएम मोदी का दूसरा मुद्दा यह था कि देश में बीमारी के ट्रांसमिशन को कैसे रोका जाए। उन्होंने कहा कि ट्रांसमिशन को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग एक रास्ता है…..उन्होंने कहा कि लोगों के द्वारा लोगों के लिए आयोजित होने वाला जनता कर्फ़्यू सोशल डिस्टेंसिंग को बढ़ावा देने का एक तरीक़ा है……यह एक दिन का प्रयास, एक दिन का अभ्यास….ट्रांसमिशन की श्रृंखला को तोड़ने के रास्ते में बेहद मददगार साबित होगा”।

उसके बाद बहुत सारे सरकारी विभागों में कार्यरत लोग यहाँ तक कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों ने भी इस दावे को दोहराना शुरू कर दिया। शनिवार को की गयी एक अपील में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि “विशेषज्ञों और डब्ल्यूएचओ ने विषाणु को फैलने से रोकने के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखने की वकालत की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतः स्फूर्त ढंग से जनता कर्फ़्यू का क्लैरियन कॉल इस लक्ष्य को पाने के उद्देश्य के साथ दिया गया है।”

डब्ल्यूएचओ की चीफ़ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि “यह तैयारी की दिशा में एक अभ्यास है। अगर आपको ट्रांसमिशन की श्रृंखला तोड़नी है तो उसके लिए अगर महीना नहीं तो हस्तक्षेप के लिए कई सप्ताह की ज़रूरत ज़रूर है। केवल एक बार नहीं बल्कि ढेर सारे ग़ैर दवाई वाले हस्तक्षेप। खोजिए, जांच करिए, आइसोलेट करिए, क्वारैंटाइन कीजिए, भीड़ से बचिए, बुजुर्गों और हेल्थ केयर वर्करों की सुरक्षा करिए। और इसके साथ ही शारीरिक दूरी भी बनाए रखिए। जिन्हें बुख़ार और कफ़ है उन्हें ख़ुद ही अपने आपको आइसोलेट कर लेना चाहिए। बहुत ज़रूरी न हो तो अस्पताल जाने से बचना चाहिए”। 

वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि 14 घंटे का समयांतराल- अगर इसे अगले 24 घंटे के लिए भी बढ़ा दिया जाए- वायरस का कुछ नहीं बिगाड़ने जा रहा है क्योंकि उसके जीवन का समय लंबा है। न्यू इंग्लैंड में मेडिसिन के एक जर्नल में 17 मार्च को प्रकाशित एक आर्टिकिल में बताया गया था कि “सार्स-सीओवी-2 प्लास्टिक और स्टैनलेश स्टील में ज़्यादा प्रभावी है बनिस्पत कॉपर और कार्डबोर्ड के और इन चीजों की सतह पर रखे जाने पर इन्हें 72 घंटे बाद भी हासिल किया जा सकता है।“

आईसीएमआर के पूर्व चेयरमैन ने एक्सप्रेस को ई-मेल के ज़रिये एक जवाब में कहा कि क़तई नहीं, यह महज़ इच्छा है। उम्मीद करते हैं कि वे उसे साबित करेंगे। 

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author