स्टालिन बन रहे विपक्षी एकता के नये केंद्र, चेन्नई में सामाजिक न्याय सम्मेलन बनेगा इसका मंच

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नई दिल्ली। राहुल गांधी को लोकसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के बाद से विपक्षी खेमे की गतिविधियां तेज हो गई हैं। मोदी सरकार की तानाशाही से लड़ने के लिए विपक्ष अब अपने छोटे-छोटे मतभेदों को भुलाकर राष्ट्रीय स्तर पर एक गठबंधन बनाने पर विचार कर रहा है। विपक्षी दलों ने अभी तक सीधे तौर पर कोई एलायंस बनाने पर बयान नहीं दिया है। लेकिन मौजूदा सरकार की तानाशाही के विरोध में सब लामबंद हो रहे हैं। ऐसे में 2024 आम चुनाव से पहले किसी मजबूत गठबंधन बनने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

केंद्र सरकार जिस तरह से विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है, विपक्षी दल उससे हलकान हैं। कांग्रेस अडानी समूह पर विपक्षी एकता बनाने की पहल करती रही है, लेकिन इस पहल में उसे बहुत सफलता नहीं मिली। कांग्रेस के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी विपक्षी एकता बनाने की दिशा में कुछ प्रयास किए, लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुई।

दरअसल, अभी 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां गठबंधन करने के मॉडल पर चल रही थीं। लेकिन अब उनके समझ में आ गया है कि मौजूदा वक्त अपनी पार्टी की राजनीतिक ताकत बढ़ाने का नहीं बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने और देश में लोकतंत्र को सुरक्षित करने का है। ऐसे में अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन सामने आए हैं। पहले उन्होंने अपने जन्मदिन पर उत्तर भारत के राजनीतिक दलों के प्रमुखों को आमंत्रित कर यह संदेश देने में सफल रहे कि यदि द्रमुक कोशिश करती है तो राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न दलों का एक गठबंधन बन सकता है, जो न सिर्फ मौजूदा निजाम से लड़ सकता है बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा करके भाजपा के रथ को रोक भी सकता है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के सामाजिक न्याय सम्मेलन पर सबकी निगाहें लगी हैं। ऐसे समय में जब विपक्षी एकता को मजबूत करने के प्रयास किए जा रहे हैं, तब स्टालिन ने गैर भाजपा दलों को एक मंच पर आमंत्रित करके संभावनाओं का द्वार खोल दिया है। दिल्ली से लेकर लखनऊ, पटना, रांची और कोलकाता में इस सम्मेलन पर चर्चा हो रही है।

यह सम्मेलन 3 अप्रैल को चेन्नई में होगा और सम्मेलन का विषय “भारत में सामाजिक न्याय को आगे ले जाना” है, जिसमें स्टालिन मुख्य वक्ता होंगे। ‘ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस’ के बैनर तले आयोजित की जा रही है। बैठक में अन्य दलों के नेताओं को भी बोलने के लिए स्लॉट प्रदान किए जाएंगे, जिसकी रूपरेखा जनवरी में स्टालिन द्वारा बनाई गई थी।

सूत्रों के मुताबिक इस सम्मेलन की सबसे बड़ी सफलता यह है कि इसमें बीजू जनता दल (बीजद) और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) शामिल होंगे, जिन्होंने अब तक विपक्ष की बड़ी छतरी से बाहर रहना चुना था।

ओडिशा में बीजेडी और आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी सत्तारूढ़ पार्टियां हैं। सम्मेलन में इन दोनों की उपस्थिति पर राजनीतिक विश्लेषकों की पैनी नजर है। क्योंकि अधिकांश विपक्षी दलों के नेताओं का निजी तौर पर मानना है कि ये पार्टियां बड़े पैमाने पर सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के करीब रहना पसंद करती हैं। और अभी तक वे किसी राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे पर भाजपा के विरोध में आने से बचते रहे हैं।

सूत्र ने कहा कि अभी तक जिन दलों ने डीएमके के नेतृत्व वाली बैठक में भाग लेने की पुष्टि की है, उनमें कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), समाजवादी पार्टी (सपा), वाईएसआरसीपी, बीजद, शामिल हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), भारत राष्ट्र समिति (BRS),भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI),CPI (मार्क्सवादी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), आम आदमी पार्टी (AAP), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML),और मारुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एमडीएमके)। झामुमो का प्रतिनिधित्व झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राजद का प्रतिनिधित्व बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव करेंगे, जबकि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी अपनी भागीदारी की पुष्टि की है। बीजद का प्रतिनिधित्व सस्मित पात्रा, वाईएसआरसीपी का प्रतिनिधित्व आंध्र प्रदेश के शिक्षा मंत्री ए. सुरेश और टीमसी का प्रतिनिधित्व डेरेक ओ ब्रायन करेंगे।

एक विपक्षी नेता ने कहा कि “पिछले कुछ दिनों में संसद के अंदर और बाहर विरोध-प्रदर्शनों में जिस तरह से एकता बनी रही, उससे आगे का रास्ता खुल रहा है। हर विपक्षी दल किसी न किसी मुद्दे का नेतृत्व कर सकता है। सामाजिक न्याय के मामले स्वाभाविक दावेदार DMK है।”

इस बयान के आधार पर यह निष्कर्ष लगाया जा सकता है कि भविष्य में यदि कोई गठबंधन आकार लेता है तो किसी एक दल का हर मुद्दे पर निर्णय या नेतृत्व करने की बजाए गठबंधन में शामिल हर दल को किसी मुद्दे पर निर्णय और नेतृत्व करने का तरीका विकसित किया जायेगा।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बीजद अपनी राजनीतिक अस्पष्टता को कुछ हद तक छोड़ने और आगे बढ़ने का मन बना लिया है। बीजद का फैसला ऐसे समय में आया है जब भाजपा राज्य में शासन और कानून व्यवस्था के मामलों पर ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजद सुप्रीमो नवीन पटनायक पर दबाव बढ़ा रही है। पटनायक ने पिछले रविवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की थी।

टीएमसी के एक नेता ने कहा कि ममता बनर्जी के खुद बैठक में शामिल होने की संभावना नहीं है, क्योंकि वह सोमवार को जिला समीक्षा बैठकों की अध्यक्षता करने वाली हैं। राज्यसभा में पार्टी के नेता डेरेक ओ ब्रायन इस सम्मेलन में टीएमसी के प्रतिनिधि होंगे।

अडानी समूह के खिलाफ आरोपों की जांच और लोकसभा सांसद के रूप में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अयोग्यता के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) गठित करने की मांगों को लेकर चल रहे संसद सत्र के दौरान विपक्षी दलों में समन्वय के संकेत दिखाई दे रहे हैं।

जबकि यह सच है कि टीएमसी जेपीसी की मांग में शामिल नहीं हुई, इसके बजाय पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की, यह राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में फ्लोर समन्वय बैठकों में शामिल हुई और अयोग्यता के बाद विपक्ष के अन्य विरोध प्रदर्शन हुए।

पिछले शुक्रवार को, 14 विपक्षी दलों ने अपने नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के “चयनात्मक और लक्षित” उपयोग का आरोप लगाते हुए SC का रुख किया। अदालत 5 अप्रैल को याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई है। पार्टियों में बीआरएस, आप, टीएमसी, झामुमो, जनता दल (यूनाइटेड), राजद, सपा, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), एनसी, एनसीपी, कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई और डीएमके शामिल हैं।

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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