अन्याय के खिलाफ तनकर खड़ी होने का नाम है वीना

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नई दिल्ली। 20 दिसंबर के कुछ दिनों बाद ही पुराना साल अतीत हो गया और हम नए वर्ष में प्रवेश कर गए। लेकिन 20 दिसंबर, 2022 हम लोगों के सीने में ऐसा जख्म कर गया जिसकी भरपाई कर पाना आने वाले अनेक नए साल में असंभव है। इस दिन जनचौक की पत्रकार वीना बागपत के अपने पैतृक गांव में एक रेल हादसे का शिकार हो, हम सबसे दूर चली गईं। इस एक महीने में देश-दुनिया में बहुत कुछ बदला होगा लेकिन वीना के जानने वालों के दिल-दिमाग और आंखों ने अब तक वीना के इस दुनिया में न होने की बात स्वीकार नहीं कर पाया।

दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में 20 जनवरी को शाम 4 बजे प्रेस क्लब और जनचौक ने संयुक्त रूप से एक कार्यक्रम किया। इस शोक सभा में संघर्षशील व्यक्तित्व वाली पत्रकार, फिल्मकार, एक्टिविस्ट वीना को याद करने के लिए लोग इकट्ठा हुए। आमतौर पर श्रद्धांजलि सभाओं और रस्मी कार्यक्रमों में प्रेस क्लब का हॉल लोगों के आने की बाट जोहता रहता है, लेकिन शुक्रवार को यह हॉल पूरी तरह भरा था। सभा में आए अधिकांश लोगों का दिल भारी और आंख नम थी। हर किसी के पास वीना की जिंदादिली, संघर्ष, स्वाभिमान और जनपक्षधरता से जुड़ी यादें थीं। हर कोई उनके संघर्ष को अलग तरह का बता रहा था।

श्रद्धांजलि समारोह में सबसे पहले जनचौक के संस्थापक संपादक महेंद्र मिश्र ने वीना के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, 2017 में जनचौक की शुरुआत होने के बाद उनसे संपर्क हुआ। जनचौक पर व्यंग्य लिखने के साथ उन्होंने अपने पत्रकारिता की शुरुआत की। उनके व्यंग्य बहुत धारदार होते थे और उसमें बहुत गहराई होती थी। वीना किसी से डरती नहीं थी इसलिए कभी-कभी वह सीधे नाम लेकर व्यंग्य लिख देती थी। कई बार उसे प्रकाशित करने के पहले उन्हें उसको कुछ हल्का करने को कहा जाता था।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहाकि, जनचौक शुरू होने के चंद दिनों बाद जब वह हम लोगों से जुड़ी तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैं काम के मामले में अगर सबसे ज्यादा किसी पर विश्वास करता था तो वह थीं वीना। उन्हें दाहिना हाथ कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। किसान आंदोलन के समय वह जमकर ग्राउंड रिपोर्टिंग की। जिस दिन लालकिले पर किसानों का प्रदर्शन था उस दिन कुछ असामाजिक तत्वों ने हिंसा फैलाई और एक युवक गोली से मारा गया। इस घटना की वह चश्मदीद थीं। दूसरा रिपोर्टर होता तो वह भाग लेता लेकिन वीना ने उस घटना की रिपोर्टिंग की।

महेंद्र मिश्र ने कहा कि आज हम लोगों को ये कार्यक्रम नहीं करना था। वीना को लंबी पारी खेलनी थी, अभी उनके व्यक्तित्व के सारे पक्ष उभर कर सामने आ रहे थे। बहुमुखी प्रतिभा वाली वीना समाज के लिए कुछ अच्छा करने का सपना देख रही थीं लेकिन अब क्या कहा जाए, आज हमें श्रद्धांजलि सभा में उनको याद करना पड़ रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं न्यूजक्लिक हिंदी के संपादक मुकुल सरल ने कहा कि वीना में जिद बहुत थी। यह जिद अपनी हर बात मनवाने की नहीं बल्कि सच को सच की तरह कबूल करने और करवाने की थी। वैसे तो कलमकार कभी मरता नहीं लेकिन वीना की मौत बहुत ही आसानी से हो गयी। आज भी मन स्वीकार नहीं करता कि वीना हम लोगों के बीच में नहीं हैं।

भाकपा-माले से जुड़े वीकेएस गौतम वीना को उनके संघर्ष के दिनों से जानते हैं। कैसे उन्होंने पितृसत्ता को चुनौती देते हुए न केवल ससुराल छोड़ा बल्कि दबाव बढ़ने पर पैतृक घर भी छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि अन्याय और गलत के विरोध में खड़े होने का नाम वीना है। उन्हें अपनी प्रतिभा के अनुरूप काम करने का समय और मौका नहीं मिला। लेकिन जितना जीवन जिया और काम किया कहीं पर भी समझौता नहीं किया।

भापका-माले के नेता राजेंद्र प्रथोली ने कहा कि विश्वास ही नहीं हो रहा है कि वीना नहीं हैं। उनके एक्टिविस्ट जीवन की शुरुआत के समय से हम परिचित थे। लेकिन समय और जीवन के संघर्षों के चलते हम सब एक जगह से दूसरे जगह आते-जाते रहते हैं। इस तरह 2005 के बाद हम लगभग 14 वर्षों बाद किसान आंदोलन के समय गाजीपुर बॉर्डर पर मिले, तब वीना जनचौक के लिए रिपोर्टिंग कर रही थीं। पितृसत्ता और समाज के अन्यायपूर्ण नियमों के विरोध में वह लड़ती रहीं। उनके व्यक्तित्व में दृढ़ता और संकल्प बहुत प्रबल था। उनको याद करने का मतलब उनके संकल्प को आगे बढ़ाना है।

वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने वीना को याद करते हुए कहा कि, हमने अपने जीवन में बहुत कम ऐसे पत्रकार और महिलावादी कार्यकर्ता देखे जिनमें सच को कहने और पाने सच्चा संकल्प हो, सच को पाने और उसे स्थापित करने में हर स्थापित अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया, तब चाहे वह मायका हो या ससुराल, पिता हो या पति, प्रोफेशनल जीवन हो या कोई आंदोलन। पितृसत्ता से जूझना और पिता की संपत्ति में बेटियों का हिस्सा मांगना आज भी कितना खतरनाक है। लेकिन वीना ने अपने अधिकार के लिए हर खतरे का मुकाबला किया।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए भाषा ने कहा कि पितृसत्ता की मार कितनी खतरनाक होती है वीना ने अपने जीवन में झेला था। रिश्तों में उन्हें जो कड़वाहट मिली थी वह उसे कागज पर उतारना चाहती थीं। इसलिए कई बार वह इतना सच बोल औऱ लिख देती थीं कि हर कोई तिलमिला जाता था।

सफाई मजदूरों के बीच काम करने वाले और वीना के घर छोड़कर संघर्ष को स्वीकरने के गवाह रहे शशि पंडित कहते हैं कि, एक दिन जब वीना बैग में अपने चंद कपड़ों के लेकर घर से बाहर निकली तो उन्हें नहीं पता था कि कहां जाना है? हम लोग उस समय सीलिंग के विरोध में आंदोलन कर रहे थे। उन्हें किसी ने बताया कि कामरेड राम अभिलाष तुम्हारी कुछ मदद कर सकते हैं। और जब वह आकर भाकपा-माले के साथियों से मिलीं तो अंत तक पितृसत्ता, पुरुष वर्चस्व, सामाजिक भेदभाव और अन्याय कि खिलाफ संघर्ष करती रहीं।

इस दौरान नरेंद्र ने कहा कि वीना को 2016 से जानते हैं। उनसे मिलकर और उनके साथ काम करने के बाद यह महसूस हुआ कि उनके सोच का दायरा बहुत बड़ा था। इतने विस्तृत फलक पर बहुत कम लोग सोचते हैं।

अरुण मांझी ने कहा कि हमारे समाज में मौजूद हर तरह के भेद-भाव यानि धर्म, जाति, लिंग आधारित भेदभाव के वह खिलाफ थी और इसके लिए संघर्ष कर रही थीं। पिता की संपत्ति में पुत्रियों का हिस्सा हो, इसकी न वो सिर्फ पैरोकार रहीं बल्कि अपने हिस्से के लिए भाई और पिता से कानूनी जंग भी लड़ रही थीं।

हिम्मत सिंह ने कहा कि वीना की मौत चीखते हुए आई और उसे हम लोगों से छीन ले गयी। उसके पास हमेशा मौत मंडरा रही थी। पितृ सत्ता को चुनौती देने पर कभी पति तो कभी पिता और भाई उसके खून के प्यासे बने। लेकिन वीना के तेवर और संघर्ष के कारण किसी की दाल नहीं गली। वीना को याद करने के बहुत सारे आयाम हैं- पत्रकार वीना, किसान वीना, फिल्मकार वीना……..

दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका राधिका मेनन ने कहा कि, हमें नहीं लगता कि वीना की मौत हो गयी है वह हम लोगों के आस-पास उपस्थित है। उसके व्यक्तित्व में गुस्सा, व्यंग्य और हड़बड़ी थी।

वीना की छोटी बहन अंजू ने कहा कि मां की मौत के बाद हम उनके करीब आए। मम्मी के वैवाहिक जीवन को देखते हुए हम दोनों बहनों ने तय किया था कि शादी नहीं करेंगे। लेकिन पिताजी ने वीना की जबरदस्ती शादी कर दी थी, जो किसी नरक से कम नहीं था।

वीना को याद करते हुए वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा ने कहा कि मैं उनसे एक या दो बार ही वाईएस गिल के यहां मिला था। लेकिन फोन पर उनसे अक्सर बात होती थी। किसी मुद्दे पर मेरे द्वारा रेडिकल लाइन न लेने पर वह कहती कि ये तो ऐसे ही हैं… वह मुझसे फैज, उर्दू शायरी और फिल्मों के बारे में बात करती। उन्हें अभी रहना था लेकिन वह हम लोगों के बीच से अचानक चली गयीं।

इस दौरान वीना के साथ थिएटर और कम्युनिटी रेडियो में काम कर चुके अभिनव ने वीना के व्यक्तित्व का वह पहलू सबके समक्ष रखा जो बड़े-बड़े सिद्धांतवादी और कट्टर आदर्शवादियों के लिए भी करना मुश्किल है। वीना ने कई नाटकों या प्रोग्राम में काम करने से इसलिए मना कर दिया कि वह समाज के सच को दिखाने की बजाए प्रायोजित सच को दिखा रहा था।

इस दौरान महिला कार्यकर्ता कुमुदिनी पति के वीना को याद करते हुए भेजे गए संदेश को पढ़ा गया। और वीना की कुछ चुनिंदा कविताओं का मुकुल सरल ने पाठ किया। श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता प्रेस क्लब के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने किया। कार्यक्रम में भारी संख्या में पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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