पटना। साम्राज्यवाद विरोधी साझी शहादत साझी विरासत पर खड़े भारतीय राष्ट्रवाद के झंडे को बुलंद करते हुए आतंक-युद्धोन्माद व दमन के खिलाफ शांति-सौहार्द व न्याय के सवाल पर आज भाकपा-माले व अखिल भारतीय किसान महासभा ने संयुक्त रूप से पूरे बिहार में कार्यक्रम आयोजित किए। विदित हो कि आज ही के दिन 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली जंग की शुरूआत हुई थी।
राजधानी पटना सहित आरा, पालीगंज, मसौढ़ी, गया, नवादा, बक्सर, बांका आदि जगहों पर मार्च निकाले गए और आजादी के शहीदों को याद किया गया। पटना में जीपीओ गोलंबर से मार्च निकला और बुद्ध स्मृति पार्क के समीप सभा हुई।

सभा को मुख्य रूप से ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, विधायक गोपाल रविदास, किसान महासभा के राज्य सचिव उमेश सिंह आदि ने संबोधित किया। मौके पर प्रकाश कुमार, जितेंद्र कुमार, मोहन प्रसाद, जयप्रकाश पासवान, सत्यनारायण प्रसाद, समता राय, माधुरी गुप्ता, अनिल अंशुमन, मुर्तजा अली, विनय कुमार, राखी मेहता, पुनीत पाठक, प्रमोद यादव, शहजादे आलम, मुजफ्फर आलम, तपेश्वर मांझी और किसान नेता कृपानारायण सिंह, मधेवश्वर शर्मा, मुन्ना चौहान व राजेश गुप्ता उपस्थित थे।
मीना तिवारी ने कहा कि पहलगाम में हुई आतंकी घटना अत्यंत दुखद है। अपराधियों को कठोरतम सज़ा दी जानी चाहिए। उन्हें कानूनी प्रक्रिया के तहत लाना चाहिए, लेकिन इसके नाम पर युद्धोन्माद की कत्तई इजाजत नहीं दी जा सकती। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत और पाकिस्तान दो परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसी हैं। दोनों देश के लोग एक और युद्ध का जोखिम नहीं उठा सकते। युद्ध उन्माद को नकारें, तनाव कम करें और स्थायी शांति का निर्माण करे। युद्ध का सबसे ज्यादा असर महिलाओं व बच्चों पर पड़ेगा। भारत सरकार को कूटनीतिक वार्ता के जरिए इसका हल निकालना चाहिए। कोई भी सभय समाज युद्ध का पक्ष नहीं ले सकता।

उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यूपर्ण है कि खुद सरकार और भाजपा व आरएसएस के लोग इस विकट स्थिति में भी विपक्ष और सच के पक्ष में बोलने वाली आवाजों – वैकल्पिक मीडिया समूह को टारगेट कर रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियानों के नाम पर मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा युद्ध का वातावरण बनाना और भी खतरनाक है। इसपर तत्काल रोक लगानी चाहिए और युद्धोन्माद पैदा करने वाली ताकतों पर कड़ी कार्रवाई हो।

विधायक गोपाल रविदास ने कहा कि पहलगाम की घटना की आड़ में देश में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की साजिश रची गई। आतंकी घटना के शिकार नागरिकों की पत्नियों को ट्रोल किया जा रहा है और उनकी संवेदनाओं का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। यह न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि बेहद गलत परंपरा है। युद्ध से आतंक खत्म नहीं होगा।
भारत सरकार सीमा पर चौकसी बढ़ाए, अपनी विफलताओं को स्वीकार करे और तत्काल इस मसले का राजनीतिक समाधान निकाले। आम नागरिकों की हत्या का जश्न नहीं मनाया जा सकता, चाहे किसी तरफ के लोग मारे जाएं। भारत और पाकिस्तान की जनता की एक ही चाहत है – न युद्ध, न आतंकवाद। हमारे देश का राष्ट्रवाद साझी शहादत साझी विरासत पर खड़ा है, लेकिन पहलगाम आतंकी घटना के बाद देश में मुसलमानों को एक बार फिर से टारगेट करना अत्यंत निंदनीय है।

किसान नेता उमेश सिंह ने कहा कि भारत की संप्रभुता, लोकतंत्र और किसानों के अधिकारों की रक्षा के संकल्प के साथ पूरे राज्य में मार्च किया गया। अमेरिका द्वारा भारत के नागरिकों का अपमान करने और उसी के दबाव में लाया गया कृषि विपणन पर राष्ट्रीय प्रस्ताव किसानों को गुलाम बनाने वाला है। 1857 की क्रांति अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ भारतीय किसानों का महाविद्रोह था। आज किसानों को नए सिरे से गुलाम बनाने की कोशिश हो रही है, जिसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
(प्रेस विज्ञप्ति)