आईआईटी कानपुर की नाक के नीचे एक समुदाय खुले में शौच जाने को मजबूर !

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कानपुर। भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर बहुत बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। जिसमें खुले में शौच मुक्त भारत का दावा किया जाता है। पर कानपुर में एक ऐसी जगह है जहां लोग आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं।

जी हां, आईआईटी कानपुर परिसर के अंदर छात्रों के कपड़ों की धुलाई का कार्य करने वाले धोबी समुदाय के 34 परिवार आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। महिलाओं और जवान लड़कियों को खुले में स्नान करना पड़ता है।

आईआईटी कानपुर जैसे प्रतिष्ठित संस्थान जिसे पूरे देश में तकनीकी शिक्षण में अव्वल दर्जे का माना जाता है और देश-विदेश से लोगों का आना-जाना रहता है, जहां से देश की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है वहीं पर कुछ परिवार आज भी निम्न दर्जे का जीवन जीने को मजबूर हैं।

ऐसे में आईआईटी प्रशासन सुविधा देने की बजाय उनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार कर रहा है उन्हें परिसर से बेदखली का नोटिस दे दिया गया है।

उनका रोजगार छीन कर, एक ड्राई क्लीनिंग कंपनी को ठेका देने का प्रयास किया जा रहा है जिसमें कमीशनबाजी का मामला भी सुनने को मिल रहा है। पूरे देश में ठेका प्रथा के माध्यम से कमीशनबाजी का खेल किस तरह हावी है यह तो आप सभी अच्छे से जानते हैं और कहीं कहीं उसका शिकार भी हुए होंगे। और शायद उसी दलाली प्रथा का शिकार यह समुदाय भी हो रहा है।

आपको बताते चलें कि ये सभी परिवार 1962 से आईआईटी कानपुर में छात्र-छात्राओं और फैकल्टी स्टाफ़ के कपड़े धोने का कार्य कर रहे हैं। जब कपड़े धोने वाली मशीन का आविष्कार भी नहीं हुआ था, तब इन्हीं समुदाय के लोगों की मदद ली जाती थी और बहुत सस्ते दाम पर इनकी सेवाएं ली जाती थी।

और आज विकास के नाम पर उनसे उनका रोजगार छीन कर उन्हें अपाहिज बनाने का शर्मनाक कार्य आईआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थान द्वारा किया जा रहा है।

उनके घरों के बाहर बेदख़ली के नोटिस चस्पा कर दिये गये हैं बिजली पानी बंद करने की धमकी दी जा रही है, पुलिस प्रशासन द्वारा भय दिखाया जा रहा है।

आईआईटी में अभी भी बहुत सी जगह बेकार पड़ी हुई जहां पर इन परिवारों को बसाया जा सकता है पर कहते हैं कि ज़्यादा शोहरत भी आदमी की बुद्धि भ्रष्ट कर देती है शायद आईआईटी कानपुर भी अपनी शोहरत में इतना अंधा हो गया है कि उसे इन परिवारों का दर्द नहीं दिख रहा है वो सिर्फ़ अपनी चमक धमक में मशगूल है।

मगर वो शायद यह भूल रहा है कि हिटलर शाही लंबे समय तक नहीं चलती है, एक ना एक दिन सभी को जाना पड़ता है तो आईआईटी के निदेशक साहब उससे अछूते नहीं रहेंगे उनका भी नंबर आएगा।

(जनचौक की रिपोर्ट)

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