बिहार के बेगूसराय शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित एकमात्र रामसर साइट और एशिया का सबसे बड़ा गोखुर झील (कावर ताल) के निकट लगभग 40 से 50 नाविक अपने नाव के साथ पर्यटक का इंतजार कर रहे हैं। वहीं जगह-जगह पर लगभग 10-12 जगह मछली पकड़ने के लिए जाल लगा हुआ है।
नाविक रोहित सादा बताते हैं कि, “अक्टूबर से लेकर मार्च अप्रैल तक पर्यटक ठीक-ठाक आते हैं। उसके बाद ना के बराबर पर्यटक आपको देखने को मिलेगा। इतना बड़ा क्षेत्र और पानी होने के बावजूद सरकार का कोई ध्यान नहीं है। लगभग 400 से 500 परिवारों का घर इस ताल के जरिए चलता है। इस ताल के अगल-बगल ही 16 गांव के लगभग 1000 परिवार हैं। ताल के सूखने के साथ हमारा व्यवसाय भी घट रहा है। इस वजह से नया जेनरेशन जो हम लोगों का हैं, वह लोग दिल्ली और पंजाब जाकर कमाने को मजबूर है।”

वहीं पर्यटक का इंतजार कर रहे नाविक सुरेंद्र सादा बताते हैं कि, “अभी लगभग हजार रुपया कमा लेता हूं। लेकिन बाद में ₹100 ₹200 पर भी आफत रहता है। किसी-किसी साल पूरा ताल ही सूख जाता है। दिनों-दिन झील की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। कुछ दिनों में मछुआरा समाज मछली पालने के लायक नहीं रहेगा। जब पानी ही नहीं रहेगा तो प्रवासी पक्षी नहीं आएंगे। सरकार के मुताबिक तो यह पर्यटक स्थल है लेकिन जिले के बाहर के लोग घूमने नहीं आते हैं।”
स्थानीय पत्रकार अजय पाठक बताते हैं कि, “इस पूरे कांवर झील के चारों तरफ घना जंगल है। आप पूरे जंगल को घूम लीजिए। गिना-चुना पौधा आपको मिलेगा जो 50 साल पुराना हो। सिर्फ कांवर झील ही बर्बाद नहीं हो रहा है बल्कि यह पूरा प्राकृतिक एरिया का ढांचा ही बदलने जा रहा है। इस पूरे कांवर झील का सबसे मुख्य बिंदु है कि यहां लगातार प्रवासी पक्षी आते रहते हैं। जिसको बचाने को लेकर आम प्रशासन एवं एनजीओ लगातार कोशिश जारी रखा हुआ है। लेकिन शिकारियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। प्रवासी पक्षी का शिकार भी लगातार बढ़ रहा है।” कांवर झील पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भी यहां प्रवासी पक्षियों का आना लगातार काम हुआ है।

कांवर झील में तैनात वनरक्षक मुकेश कुमार बताते हैं कि, “प्रवासी पक्षी को मारने के लिए प्रत्येक साल शिकारी की गिरफ्तारी की जाती है। प्रशासन अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ता है।” 42 वर्ग किलोमीटर में फैले इस झील के बर्ड सेंचुरी में 59 तरह के विदेशी पक्षी और 107 तरह के देशी पक्षी ठंड के मौसम में देखे जा हैं।
वहीं बेगूसराय स्थित आरसीएस कॉलेज के प्रोफेसर रविकांत कांवर झील पर रिसर्च कर चुके हैं। वह बताते हैं कि, “झील में गाद बढ़ने की वजह से लगातार गहराई कम होती जा रही है। इस पूरे प्रकरण में अगर सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया तो एक दिन कंवर झील का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।”
बूढ़ी गंडक और कोसी नदियों के इंटरफन में आर्द्र भूमि परिसरों का हिस्सा होने के कारण कांवर आर्द्र भूमि एक नहर के माध्यम से गंडक से जुड़ती है, इस वजह से गाद भर जाती है।
बेगूसराय स्थित कई बड़े किसानों की इच्छा है कि झील सूखा कर वहां पर खेती किया जाए। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अशोक घोष के एक रिपोर्ट के अनुसार वहां के स्थानीय जमींदार की दबंगई, वनों की लगातार कटाई, गाद में वृद्धि होना जैसी चुनौतियां कांवर झील को खोखला कर रही है।

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक घोष के रिपोर्ट के मुताबिक 1984 में झील 6,786 हेक्टेयर में फैली हुई थी, लेकिन 2012 तक, यह घटकर 2,032 हेक्टेयर रह गई थी। चिंताजनक बात यह है कि 2018 में झील का क्षेत्रफल मात्र 89 हेक्टेयर माना गया था।
खगड़िया जिला से कांवर झील देखने आएं विपुल बताते हैं कि, “झील को साफ कराना बहुत जरूरी है। प्रवासी पक्षी की संख्या बहुत ही कम देखने को मिल रही है। बिहार से बाहर अगर ऐसा स्थल रहता तो पर्यटक की बहुत भीड़ रहती।सरकार को बेहतर संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत है।”
(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)
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