मुजफ्फरपुर। मुजफ्फरपुर जिला स्थित अहियापुर इलाके की रेणु देवी की बेटी की तबीयत खराब हो गई थी। जिस वजह से वो गांव की एक महाजन से 10 फीसदी ब्याज पर 30 हजार रुपये कर्ज लीं। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से वो 9 महीने के अंतराल में 2-3 महीने सूद का रुपया नहीं दे पाई।
जब कर्ज देने गई तो पता चला कि कर्ज का रुपया लगभग 42.000 रुपया हो गया है। जब वो इस रुपया को देने में असमर्थता जताई तो जमीन पर कब्जा करने की धमकी दी जाने लगी। बाद में रेणु देवी उसी गांव के दूसरे महाजन से 7 फीसदी ब्याज पर रुपया लेकर पहले महाजन का कर्ज चुकाई।
अप्रैल 2024 में बिहार के बेगूसराय के गोविंदपुर पंचायत के सुरो ओझा टोला गांव की रहने वाली कंचन देवी ने निजी बैंक से 65,000 रुपए का लोन लिया था। उसे हर महीने 3,600 रुपए की किस्त 20 महीने तक चुकानी थी। किस्त नहीं चुकाने पर बैंक के कर्मचारियों ने उसे परेशान करना शुरू कर दिए। उसे धमकाया गया कि अगर किस्त का पैसा नहीं दिया तो पुलिस को बुला लिया जाएगा। बैंक कर्मचारियों की लगातार धमकी से परेशान होकर कंचन देवी ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। रेणु देवी और कंचन देवी बिहार के अधिकांश गांवों में मिल जाएगी।
बिहार में सूदखोरी का धंधा कई सालों या दशकों से संचालित हो रहा है। सरकारी नियम के मुताबिक बिना लाइसेंस महाजनी यानी सूद पर पैसे देना अपराध है, इसके बावजूद बिहार में खासकर गांवों में सूदखोरों की एक समानांतर अर्थव्यवस्था कायम है। मनी लांड्रिंग कंट्रोल एक्ट, 1986 के तहत मनमाना ब्याज वसूली और शर्तों का उल्लंघन करना दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। इसमें तीन से सात साल की सजा हो सकती है।
इस अधिनियम में प्रावधान है कि कोई व्यक्ति बिना लाइसेंस सूद पर किसी को पैसे नहीं दे सकता है। बिहार सरकार के पास सूदखोरी के धंधा का कोई लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है। हालांकि अनुमान के मुताबिक बिहार में सूदखोरी का धंधा करोड़ों का है। साधारण ब्याज के अलावा चक्रवृद्धि ब्याज पर भी रुपया वसूला जाता है। इस धंधे में दबंगई की स्थिति ऐसी है कि इनके आतंक से कई लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं। यह अवैध धंधा बिहार में काफी तेजी से फैल रहा है।
मेरे पास जहर खाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा था
सूद पर दिए पैसों के एवज में लोगों की घर-घराड़ी व खेत-जमीन अपने नाम करवा लेते हैं. उनकी कोई भी कमाई उनके घर पहुंचने नहीं देते। बिहार के हरेक गांव, कस्बा या शहर में सूद का धंधा बदस्तूर जारी है। जिसको लेकर लगातार मीडिया में बिहार सुर्खियों में रहता है। नवंबर 2023 में पटना के खुसरूपुर में एक दलित जाति की महिला ने गांव के दबंग से एक साल पहले पंद्रह सौ रुपया कर्ज लिया था, पांच हजार से ज्यादा इसका सूद दे दिया लेकिन दबंग ने पैसे के लिए महिला के साथ ऐसी हैवानियत की, जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती है। वह उसे नंगा कर पीटा, फिर उस पर पेशाब करवाया गया… बाद में पिटाई की, जिससे वह गंभीर रूप से जख़्मी हो गई। उसने अस्पताल में जाते-जाते दम तोड़ दिया।
वर्ष 2022 दिसंबर में बिहार के नवादा के फल व्यवसायी केदार गुप्ता कर्ज से परेशान होकर अपने परिवार के 5 सदस्य के साथ आत्महत्या कर ली। एक सुसाइड नोट भी लिखा था, जिसमें लिखा था कि दो गुना-तीन गुना ब्याज देने के बावजूद कर्ज खत्म नहीं हो रहा था। बार-बार महाजन लोग दबाव बनाता था। गाली गलौज करता था।
मेरे पास जहर खाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा था। बिहार में इस तरह की कहानी आम है। सूदखोरी की वजह से राज्य के कई क्षेत्रों से लोगों द्वारा आत्महत्या या पूरे परिवार सहित अपनी जीवन लीला समाप्त करने की घटनाएं लगातार होती रही है। बिहार के कई घटना को सुनने के बाद ऐसा लगता है कि कर्ज लेने वालों की जिंदगी बंधुआ मजदूरों से भी बदतर हो चुकी है।
युवा अधिवक्ता सिद्धार्थ बताते हैं कि “इस धंधे में पैसे का लेन-देन विश्वास पर होता है। ऐसे में जहां कहीं संदेह होता है तो संबंधित व्यक्ति से ब्लैंक चेक या फिर जमीन-जायदाद आदि के कागजात गारंटी के तौर पर लिए जाते हैं। इस कारोबार में गांव के महाजन से लेकर शहर के रईस तक शामिल होते है। हर महीने धंधे के नफा-नुकसान को देखते हुए कारोबार का विस्तार किया जाता है। गरीबी और बेरोजगारी की वजह से राज्य में जिलों व कस्बों तक में कर्ज देने वाले मौजूद हैं। इनसे छोटा-बड़ा कर्ज लेने का चलन आम है। लोगों की मजबूरी ऐसे लोगों को उन्हें पहुंचा देती है।”
सिद्धार्थ आगे बताते हैं “सरकारी व्यवस्था की नाकामी की वजह से इस तरह की व्यवस्था पनपती है। बैंक से गरीब लोगों को लोन मिलना बहुत कठिन है। इसी का फायदा समाज के अमीर और दबंग लोग उठाते है। हालांकि जीविका जैसी संस्था ने गरीब तबका के बीच एक उम्मीद का किरण बढ़ाया है।”
भागलपुर के विवेक मंडल ग्रामीण राजनीति में सक्रिय रहते है। वो बताते हैं कि, “आज के समय में गांव में अधिकांश कर्ज लेने वाले दलित और महादलित समुदाय के लोग होते है। जो गरीब भी होते हैं और अनपढ़ भी..ऐसे में अधिकांश महाजन अपनी मर्जी के हिसाब से धंधा करते हैं। अपने मन मुताबिक ब्याज पर ही राशि देते है।
इसके बाद प्रत्येक महीने सूद का पैसा वसूला जाता है। समय पर ब्याज की राशि नहीं देने पर मूलधन की रकम में जुड़ता चला जाता है। मूलधन वैसे का वैसा खड़ा रहा, जिस माह सूद नहीं चुका पाते, अगले माह सूदखोर उस रकम को मूलधन में बदल देते, नतीजतन कर्ज अंधा कुआं बन गया, कितना भी डालो भरता ही नहीं था।”
सूदखोरों से पैसा ले चुके दलित और महादलित समुदाय के लोगों के मुताबिक गांव के प्रतिष्ठित लोग ब्याज पर रुपए देने का काम करते हैं और इसकी एवज में 2 से लेकर 7 परसेंट तक ब्याज वसूला करते है। कई लोग इसे चक्रवृद्धि ब्याज के रूप में भी बदल देते है। इस गोरखधंधे ने आज एक बड़े कारोबार का रूप ले लिया है।
(बिहार से राहुल की रिपोर्ट)