अदानी समूह की कंपनियों पर अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग के खुलासे के बाद, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रदेश के समस्त जिलों में स्थित स्टेट बैंक और जीवन बीमा निगम के दफ्तरों के सामने मोदी सरकार की ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ की नीतियों के खिलाफ छह फरवरी को प्रदर्शन करने जा रही है। इस प्रदर्शन की मुख्य मांगों में हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट पर संयुक्त संसदीय समिति या फिर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से निष्पक्ष जांच कराये जाने और अदानी समूह की कम्पनियों में सरकारी बैंकों और जीवन बीमा निगम के भारी निवेश पर संसद में चर्चा शामिल है।
यही नहीं, भारत जोड़ो यात्रा के समापन के बाद प्रदेश में इसके दूसरे चरण का अभियान ‘हाथ से हाथ जोड़ो’ भी चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत कांग्रेस कार्यकर्त्ता घर-घर संपर्क करके जनता को मोदी सरकार की असफलताओं का लेखा-जोखा भरा पत्र सौंप रहे हैं। पत्र में मोदी सरकार के गरीब विरोधी कार्यों का विवरण लिखा हुआ है।
गौरतलब है कि यह प्रदर्शन या फिर जनता से सीधे संवाद करने की यह रणनीति कांग्रेस की राजनीति का एक रूटीन मामला भर नहीं है। इसमें भविष्य की कांग्रेस के वो बीज छिपे हैं जिसका आधार नेहरू युगीन कांग्रेस में है। आज कांग्रेस जिस तरह ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ के खिलाफ मुखर है और अभिव्यक्ति के सभी साधनों पर मोदी सरकार के कब्जे का आरोप लगाकर जनता के बीच सीधे संवाद की रणनीति पर आगे बढ़ रही है, वह अपने आप में कांग्रेस की कार्य संस्कृति में बदलाव का एक मजबूत संकेत है।
जनता के बीच सीधा संवाद करने की कांग्रेस की इस रणनीति पर बात करते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य ब्रज मोहन यादव समझाते हैं कि, ‘जयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर के बाद, प्रदेश में कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है। अब वह नरेंद्र मोदी सरकार की देश और लोकतंत्र विरोधी नीतियों को प्रदेश की आम जनता के बीच संवाद करके बेनकाब करने पर काम कर रही है।’
वह आगे कहते हैं कि, ‘भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस पार्टी की तरफ से लगातार आम जनता के सवालों जैसे केंद्र सरकार प्रायोजित भयानक महंगाई, युवाओं में बढ़ रही बेरोजगारी, महंगी होती शिक्षा, किसानों के बुनियादी सवाल और कुछ एक कॉर्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाए जाने के खिलाफ लगातार बात हुई है। जनता से सीधा संवाद सबसे लोकप्रिय राजनीतिक तरीका है और यह तरीका मोदी सरकार को डरा रहा है। आप देख सकते हैं कि किस तरह मोदी सरकार के लोग बौखलाकर राहुल गांधी के खिलाफ प्रोपेगेंडा अभियान चला रहे हैं।’
पार्टी के एक अन्य नेता जनता के बीच जाकर सीधे संवाद करने की कांग्रेस की ‘रणनीति’ पर कहते हैं कि, ‘यह सब राहुल गांधी की उस बात का विस्तार है जिसे वह भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बार-बार कहते थे कि विपक्ष को उसकी बात कहने से लगातार रोका जा रहा है। जब सारे रास्ते बंद हो गए हैं तब प्रदेश में पार्टी आम जनता से सीधे संवाद कर रही है।’
हालांकि, पार्टी द्वारा जनता से सीधे संवाद करने की इस रणनीति पर कांग्रेस के ही एक नेता ने दबी जुबान सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि ‘यह तब होता है जब पार्टी के पास एक मजबूत संगठन हो। आखिर पार्टी के पास संगठन कहां है?’ वह कहते हैं कि ‘आज प्रदेश में पार्टी के पास किसी जाति का एकमुश्त वोट नहीं है। जातियों में बंटे इस समाज में पार्टी को वोट कहां से आएगा? पार्टी इस दिशा में काम ही नहीं कर रही है।’
इस सवाल के जवाब में प्रभारी प्रशासन दिनेश सिंह कहते हैं कि ‘कुछ जिलों को छोड़कर कांग्रेस के पास संगठन है। हम संगठन को मजबूत करने पर लगातार काम कर रहे हैं। हमारे प्रांतीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष लगातार अपने प्रभार क्षेत्र में दौरे कर रहे हैं। हमारे पदाधिकारी लगातार जनता के बीच हैं। नई कमेटियों की घोषणा भी अंतिम चरण में है।’
दिनेश सिंह आगे कहते हैं कि, ‘भारत जोड़ो यात्रा के दौरान प्रदेश के लोनी बार्डर पर जो जन सैलाब देखा गया था वह प्रदेश में संगठन होने का ही नतीजा है। हमसे लगातार ऐसे लोग जुड़ रहे हैं जो देश के हालात से चिंतित हैं। राहुल गांधी की यात्रा के बाद राजनैतिक स्थिति बदल रही है। हम प्रदेश के सभी समुदायों के बीच संवाद कर रहे हैं और मोदी सरकार की गरीब और देश विरोधी नीतियों की असलियत बता रहे हैं। जनता के बीच संवाद से ही मोदी सरकार बेनकाब होगी। चीजें बदल रही हैं।’
आम जनता से संवाद के सहारे नरेंद्र मोदी को टक्कर देने की रणनीति का मतलब क्या यह है कि कांग्रेस पार्टी अब जातियों के बीच नेतृत्व निर्माण से दूरी बना रही है? क्या पार्टी ‘अस्मितावादी’ राजनीति को छोड़ चुकी है? इस सवाल के जवाब में प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह कहते हैं कि, ‘कांग्रेस अस्मिताओं की राजनीति को या जातिगत अस्मिता को आगे करके वोट नहीं मांगती। पार्टी अपने चरित्र में समाज के सभी तबकों को अपने संगठन में जगह देती रही है।’
विश्वविजय सिंह आगे कहते हैं कि ‘कांग्रेस जाति और उसकी अस्मितागत राजनीति को संतुष्ट करने का मंच नहीं है। कांग्रेस अपने इतिहास में समाज के सभी तबकों को पार्टी के भीतर प्रतिनिधित्व के सवाल पर उदार रही है। जातिगत अस्मिता के आधार पर किसी को कांग्रेस प्रतिनिधित्व नहीं देती है। योग्य लोगों को समाज में उनके योगदान का पूरा अवसर जरूर देती है और इसी रास्ते कांग्रेस समाज के सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व करती है। आज राहुल गांधी संघ और हिंदुत्व पर जो हमला कर रहे हैं उसे जनता के बीच तार्किक बहस में परिवर्तित करने का काम जनता के बीच सीधे संवाद से ही हो सकता है।’
विश्वविजय सिंह आगे और जोड़ते हैं कि, ‘आज पार्टी प्रदेश के बुनियादी सवाल पर जनता के बीच संवाद कर रही है तब उसका एक सकारात्मक नतीजा भी हमें दिख रहा है। समाज के प्रत्येक समुदाय से हमें लोगों का समर्थन मिल रहा है। लोग आज स्वीकार कर रहे हैं कि राहुल गांधी की कही एक-एक बात सच हो रही है। यही स्वीकारोक्ति समाज में हमें लोकप्रिय बना रही है।’
कांग्रेस से जुड़े प्रयागराज के दिनेश चौधरी कहते हैं कि, ‘प्रदेश के सभी समुदायों के बीच पार्टी के लोग मोदी सरकार की नीतियों पर बात कर रहे हैं। देश के ख़राब हालात पर बात करने से प्रत्येक समुदाय से ऐसे लोग मिल रहे हैं जो अस्मितावादी राजनीति की सीमा समझते हैं। यह हमारी सफलता है। ऐसे ही लोग नेहरू युगीन कांग्रेस की विरासत को मजबूत करने के हमारे संघर्ष में भागीदार होंगे। यही लोग लोकतंत्र बचाने के संघर्ष में हमारे सहयोगी बनेंगे।’
वह समझाते हैं कि, ‘जातियों को जोड़कर भाजपा जैसी कैडर पार्टी को हराने का सपना दिवास्वप्न है। जैसे सपा ने पूरी कोशिश की लेकिन इस रास्ते भाजपा को नहीं हरा पाई। आज कांग्रेस जिस लाइन पर मोदी सरकार को घेर रही है उससे मोदी सरकार असहज है। हम प्रदेश की जनता को मोदी सरकार की गरीब विरोधी नीतियों के बारे में लगातार बताते रहेंगे। हमारे पास जनता से सीधे संवाद के अतिरिक्त और कोई विकल्प इस समय नहीं है।’
कुल मिलाकर आज उत्तर प्रदेश में जिस तरह विपक्ष चुप्पी साधे हुए है उसे देखते हुए एक बात तो तय है कि जनता के बीच संवाद करने की यह रणनीति भले ही कांग्रेस को त्वरित फायदा नहीं दे, लेकिन यदि यह प्रक्रिया चलती रही तो आने वाले समय में कांग्रेस कम से कम प्रदेश में विपक्ष की जगह ले सकती है। ‘हाथ से हाथ जोड़ो’ का यह अभियान प्रदेश में कांग्रेस को नए कार्यकर्त्ता और समुदायों में पैठ बनाने में मदद कर रहा है। यह रणनीति कितनी सफल हुई इसका पता 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बता पाएंगे।
(लखनऊ से स्वतंत्र पत्रकार हरेराम मिश्र की रिपोर्ट)