Friday, April 26, 2024

स्पेशल रिपोर्ट: बिहार में किसान यूरिया पर प्रति बोरी 50 से 100 रुपए तो डीएपी पर 400 से ज्यादा देने को मजबूर

“17 दिसंबर की सुबह लगभग 3 बजे से यूरिया का इंतजार कर रहा था। गांव से सुपौल लगभग 2 बजे ही पहुंच गया था। 8 बजे दुकान खुली। लगभग 12 बजे मेरा नंबर आया। मुझे पांच बोरी यूरिया लेना था। लगभग 4 बीघा से ज्यादा जमीन पर मैं खेती करता हूं। मुझे सिर्फ 2 बोरी यूरिया मिला। 266 रुपये प्रति कुंतल दर के हिसाब से, बाकी 3 बोरा यूरिया मुझे ब्लॉक से लेना पड़ा। 400 रुपये प्रति बोरा के हिसाब से मुझे यूरिया मिला।” सुपौल जिला के लक्ष्मीनिया पंचायत के किसान सुनील चौधरी बताते हैं।

वहीं लक्ष्मीनिया पंचायत के बटाईदार किसान लक्ष्मण मंडल बताते हैं कि, “आप बटाईदार किसान को यूरिया और खाद का पूरा खर्च देना पड़ता है। जिसके बदले में मुझे भूसा मिलता है। लेकिन जिस हिसाब से यूरिया और खाद मिल रही है। ऐसे में बहुत नुकसान हो जाएगा। बटाईदार किसान के लिए बहुत ही मुश्किल है।”

देश के गरीब राज्यों में शामिल बिहार धान की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में से एक है। बिहार के 76 प्रतिशत लोग कृषि गतिविधियों में लगे हुए हैं। भारत सरकार के उर्वरक विभाग के मुताबिक राज्य में लगभग 7.95 मिलियन हेक्टेयर में खेती होती है, जिसमें लगभग 10.5 मिलियन किसान हैं। इन 82.9 प्रतिशत मेकअप सीमांत किसानों में से 9.6 प्रतिशत छोटे किसान हैं और केवल 7.5 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से अधिक भूमि है। बिहार को हर साल कृषि के लिए दस लाख टन यूरिया की जरूरत होती है। रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अनुसार, राज्य को आवश्यकता अनुसार यूरिया और डीएपी नहीं मिली है। केंद्र सरकार से कम आपूर्ति के कारण पिछले 2 से 3 सालों से बिहार के किसानों को खरीफ सीजन के दौरान उर्वरकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

खुदरा व्यापारी भी ऊंची कीमत पर बेचने को विवश

राज्य के सीमांचल और कोसी इलाकों के जिलों के हजारों किसान यूरिया के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जिले के कई खुदरा व्यापारी खाद का लाइसेंस रहने के बावजूद खाद नहीं मंगा रहे हैं। इस वजह से किसानों को शहरों की तरफ जाना पड़ रहा है।

कोसी इलाके के खुदरा विक्रेताओं के एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है, “सरकार जिस दाम पर किसानों को यूरिया उपलब्ध कराने के लिए कह रही है। उससे 15 रुपये या कम दर पर हमें दिया जाए। साथ ही जीएसटी एवं इनकम टैक्स इन सारे खर्चों के अतिरिक्त थोक विक्रेता को मार्जिन 5% और खुदरा विक्रेताओं को मार्जिन 8% नहीं मिलेगा तो उर्वरक का व्यापार कैसे हो पाएगा।”

सहरसा जिले के बनगांव गांव के खुदरा विक्रेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि, “दुकान में अगर तीन लोगों का लाइसेंस है तो 5 लोग यूरिया बेच रहे हैं। क्योंकि गांव तक यूरिया पहुंचने में ही 400रुपये लग रहा है। ऐसे में हम किसानों को 266 रुपये में यूरिया कैसे बेचेंगे। रैक प्वाइंट से थोक विक्रेताओं को एनएफएल की यूरिया खाद 239 रुपए, सीएफसीएल यूरिया 243 रुपए, साथ ही प्रति बैग लाने-पहुंचाने, लोडिंग-अनलोडिंग में 32 रुपए तक खर्च आता है। ऐसे में सरकारी दर पर कैसे किसानों को यूरिया दें।”

कृषि विभाग बिहार सरकार ने सभी उर्वरक बिक्री केंद्र तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कंपनी को दी है। ताकि किसानों तक सरकारी दर पर यूरिया मिल सके। ग्राउंड रिपोर्ट की मानें तो आदेश जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। ग्रामीण इलाकों में दुकानदार चोरी-छिपे किसानों को यूरिया बेच रहे हैं, वो भी सरकारी दर से अधिक मूल्य पर।

पूर्व कृषि मंत्री के पत्र से झलकता है कृषि विभाग का हाल

बिहार में कुछ दिनों पहले पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर त्यागपत्र दे दिया कि बिहार कृषि विभाग सबसे ज्यादा भ्रष्ट है। हाल में ही पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा कि 2006 में निरस्त किये गए बिहार कृषि उपज बाजार अधिनियम के बदले में बिहार में नई कृषि मार्केटिंग या मंडी कानून के नहीं होने से बिहार की कृषि व्यवस्था चरमरा गई है। पंजाब में धान की बिक्री मूल्य औसत 2300 रुपये प्रति क्विंटल है वहीं बिहार में धान की बिक्री मूल्य औसत 1600 रुपये प्रति क्विंटल है यह बिक्री दर का अन्तर केवल धान में ही नहीं विभिन्न फसलों में भी स्पष्ट दिखता है। अगर हम सिर्फ धान और गेहूं के बिक्री मूल्य के अंतर को ही देख लें तो पंजाब के मुकाबले बिहार के किसानों को बीस हजार करोड़ रुपये की कम आय हो रही है।

खाद के साथ नैनो यूरिया जबरदस्ती देने का आरोप

“2 बोरी यूरिया के साथ एक नैनो यूरिया का छोटा पैक लेना ही पड़ेगा। नहीं तो यूरिया का बोरा नहीं मिलेगा। इस वजह से कई किसान बेवजह नैनो यूरिया ले रहे हैं। पिछली बार यूरिया की कमी की वजह से नैनो यूरिया खरीदा था लेकिन कोई खास फर्क नहीं पड़ा।” बिहार के सहरसा के बरगांव पंचायत के सत्तो महतो बताते हैं। राज्य के कई जिलों में नैनो यूरिया किसानों को उनकी मर्जी के खिलाफ जबरन बेचा जा रहा है।

एक तरफ रासायनिक खाद की समय पर आपूर्ति नहीं होने से वहीं दूसरी तरफ पिछले कुछ सालों से जैविक कृषि में अनुदान नहीं देने की वजह से वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन ठप पड़ गया। इस वजह से किसानों को और भी समस्या हो रही है।

(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)

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