बिहार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के फेसबुक पोस्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सितंबर 2022 में बयान दिया था कि फल्गु नदी में पानी नहीं रहने से हो रही परेशानियों को दूर करने के लिए रबर डैम का निर्माण कराया गया है। यह डैम भारत का सबसे बड़ा रबर डैम है। सरकार की ओर से प्रचार किया गया था कि इस रबर डैम के बन जाने से फल्गु नदी में पूरे साल 3 मीटर पानी रहेगा। आईपीआरडी के मुताबिक, 334 करोड़ रुपये की लागत से गया जिला स्थित फल्गु नदी पर बना रबर डैम भारत का सबसे लंबा रबर डैम है। इसकी लंबाई 411 मीटर और चौड़ाई 95 मीटर है सरकार के द्वारा रबर डैम का नामकरण ‘गया जी डैम’ किया गया।

आज लगभग 21 महीने के बाद स्थिति बद से बदतर हो गई है। रबर डैम की वजह से फल्गु का पानी सड़न का शिकार हो गया है। पंडे श्रद्धालुओं को फल्गु में पिंड डालने से रोक रहे हैं और उसे गाय को खिलाने के लिए कह रहे हैं ताकि सड़न और बदबू और न बढ़े। कई विशेषज्ञ इस बात को मानते हैं कि अगर गया तीर्थ को जिंदा रखना है तो सबसे पहले रबरडैम को हटाना होगा।
पानी खरीद कर पिंडदान कर रहें लोग
हिंदू और बौद्ध धर्म के तीर्थस्थली गया में फल्गु नदी के पानी को स्टोर करने के लिए एक रबर डैम बनाया गया। फल्गु नदी में गंगाजल पहुंचाने की खूब पब्लिसिटी हुई। लेकिन अब यही डैम परेशानी बन रहा है। शुरुआत में इसमें इतना पानी था, कि बोट चलते थे, लेकिन अब देश के कोने-कोने से पहुंचने वाले पिंडदानियों को अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पानी खरीदना पड़ता है।
पश्चिम बंगाल से आई आशा देवी बताती है कि “पूर्वज के तर्पण के लिए पूजा पाठ करना था। जिसके लिए बालू और पानी की जरूरत है। बालू की तो यहां कमी नहीं है लेकिन पानी ना के बराबर है। कुछ लोग बोल रहे थे कि थोड़ा बालू हटाने पर पानी मिल जाता है। हमने प्रयास भी किया, लेकिन नहीं मिलने पर पानी खरीदना पड़ा।”

आशा देवी 22 वर्षीय सुमित से पानी खरीद रही हैं। सुमित ने नदी के बीच में गड्ढा किया हुआ है। साथ ही वहां पर कुछ देवताओं के फोटो रखे हुए हैं। 10 से 30 रुपये तक पानी बेच रहा है। सुमित बताता है कि “पानी निकालने के लिए गड्ढा करना पड़ता है। स्थानीय बोलचाल की भाषा में इन्हें चुआड़ी कहते हैं। जल अर्पण के लिए कम से कम दो चुक्का पानी की जरूरत पड़ती है। एक परिवार में 5 लोग के हिसाब से ही जोड़िए तो 2-2 चुक्का प्रति व्यक्ति के हिसाब से उस परिवार को 100 रुपए लग जाते है। पूरे दिन में 500 रुपये कमा लेते हैं। डैम बनने के तीन-चार महीने बाद तक पानी रहा। फिर पानी की स्थिति वैसी की वैसी ही हो गई।”
आश्चर्य है पुरस्कार कैसे मिला?
बिहार सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के मुताबिक मार्च 2023 में गया जी डैम को ‘जल संसाधन के सर्वोत्तम कार्यान्वयन’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। तत्कालीन जल संसाधन विभाग मंत्री संजय झा ने इसे सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया था। इस सम्मान के मिलने पर खुशी की बजाय पंडा, पर्यटक और स्थानीय लोग असमंजस की स्थिति में हैं।
नालंदा के स्थानीय पत्रकार सृजन बताते हैं कि “रबर डैम से नदी की प्रकृति खराब हो रही। उसकी पेटी में बालू के बदले गाद जम रही। पहले फल्गु का बालू हटाने से पानी निकल आता था, अब वह सपना हो गया। गया जी डैम का पानी गंदा हो गया था। इसमें स्नान करने से कई तरह की स्किन की बीमारियां होनी शुरू हो गई थी। फल्गु में तो बस रबर डैम के आसपास ही पानी है। बोधगया तक तो नदी के तले में जंगल हो गया है और लोग मोटरसाइकिल से पार कर रहे हैं। हाल ही में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा ने इस नदी के पुनर्जीवन के लिए नमामि निरंजना मिशन भी प्रारंभ किया है। रबर डैम सिर्फ एक राजनीतिक प्रयोग है।”

निरंजना रीवर रिचार्ज मिशन के संयोजक संजय बताते हैं कि “फल्गु नदी राज्य के अधिकांश नदियों की तरह विलुप्त होती जा रही है। रबर डैम फल्गु नदी के जीर्णोद्धार से संबंधित नहीं है। यह सिर्फ पर्यटन के दृष्टिकोण से बनाया गया है, जिससे विष्णुपद मंदिर के अगल-बगल फल्गु नदी का पानी धरती के ऊपर जमा रहेगा।”
डिजाइन पर आईआईटी दिल्ली पहले ही सवाल उठा चुका है
रूड़की विशेषज्ञों द्वारा बांध का डिजाइन किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बांध 11 मीटर लंबा और 95.5 मीटर चौड़ा और इसे 3 मीटर ऊंचा बनाया गया है। इसके अलावा नदी के किनारे को भी और डेवलप किया गया है। तीर्थ यात्रियों के लिए सीता कुंड के दर्शन के लिए एक स्टील का पुल भी बनाया गया है। फल्गु नदी में मानसून के मौसम में ही पानी रहता था और साल भर नदी सूखा रहता था। इस बांध के बनने के बाद अब फल्गु नदी में पूरे साल भर पानी भरा रहेगा। पिंडदान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की सहायता के लिए इस बांध का निर्माण किया गया है। ऑस्ट्रिया की कंपनी और हैदराबाद की एजेंसी ने मिलकर इसे तैयार किया है। रबर डैम 17 एमएम मोटी रबर से बना है। यह बुलेटप्रूफ है। साथ ही यह दावा किया जा रहा है कि यह एक सौ साल तक खराब नहीं होगा।

जिस वक्त मीडिया और सोशल मीडिया पर लगातार फल्गु नदी में रबर डैम बनने की वजह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वाहवाही की जा रही थी, तभी कई लोग इस पर सवाल भी उठा रहे थे।
आईआईटी के छात्र अभिषेक बताते हैं कि “नदी जल विशेषज्ञों ने कहा था कि शहर का एक बड़ा हिस्सा जल संकट से जूझेगा… क्योंकि फल्गु अंतःसलिला भी है और फल्गु की धारा को नीचे तक रोक दिया गया है। ऐसे में डैम क्षेत्र से आगे लेयर भागेगा और जल संकट बढ़ेगा। इसके डिजाइन पर आईआईटी दिल्ली पहले ही सवाल उठा चुका है।”

पत्रकार दीपक दक्ष सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि “नाम ना बताने की शर्त पर जल संसाधन विभाग की एक कर्मचारी ने कहा कि रबर डैम फेल हो जायेगा। तब आनन-फानन में आईआईटी रुड़की से ह्वेटिंग कराई गई और मजेदार बात यह कि डिजाइन पर मोहर लगवाने से पहले ही टेंडर पास हो गया था। अगस्त 2020 में टेंडर हो गया था। 23 सितंबर 2020 को 277 करोड़ का काम आवंटित हो गया और डिजाइन की जांच करने के लिए 5 दिसंबर 2020 में आईआईटी रुड़की की टीम आयी और टीम में सिर्फ दो लोग ही थे। अंततः 3 फरवरी 21 को डिजाइन की स्वीकृति दे दी गयी।”
विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभुलाल विट्ठल बताते हैं कि प्रतिदिन हजारों तीर्थयात्री मोक्ष धाम गया जी में पिंडदान करने को आते हैं, लेकिन उन्हें पानी की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। डीएम से मिलकर गया जी डैम के सूखा होने से तीर्थ यात्रियों को होने वाली दिक्कतों के निष्पादन के लिए बात की है।
(बिहार से राहुल की रिपोर्ट)
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