Thursday, April 25, 2024

उत्तर प्रदेश: गोंड़ समाज के अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र पर सभी सरकारें क्यों हैं मौन?

उत्तर प्रदेश में गोंड़ समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का शासनादेश करीब डेढ़ दशक पहले जारी हो गया था, लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है। प्रशासन अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं कर रहा है। जिसको लेकर गोंड़ समाज के लोग धरना प्रदर्शन करने को बाध्य हो रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद में गोंड़ समाज की जनसंख्या 10 फ़ीसदी से ज्यादा है। डेढ़ दशक पहले प्रदेश सरकार ने इन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का एक शासनादेश जारी किया था, बावजूद इसके प्रशासन इस शासनादेश को लगातार दरकिनार कर रहा है।

प्रशासन के इस रवैए के खिलाफ गोंड़ समाज ने 2 नवंबर 2004 से जौनपुर के जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया था। करीब 2 माह के लंबे संघर्ष के बाद 22 जनवरी 2005 को प्रशासन राजी हुआ और 3 पात्र व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी कर इस आंदोलन का पटाक्षेप करा दिया था। इस दिन प्रशासन ने गोंड़ समाज के विकास, बीनू व प्रियंका को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी किया था।

तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट रहे आरके राम ने उस वक्त कहा था कि अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है। इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही प्रमाण पत्र जारी किये जाएंगे।

दरअसल जौनपुर जिले में नवंबर 2004 में जब गोंड़ समाज को अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए आंदोलन प्रारंभ किया गया था तो उस वक्त जौनपुर जिले की आबादी तकरीबन 40 लाख थी। इनमें तकरीबन ढाई लाख लोग गोंड़ समाज के थे, जो अब बढ़कर 5 लाख के पार हो गए हैं।

गोंड़ समाज के नेता विनोद गोंड़ बताते हैं कि “राजनीतिक दल हमारी मांगे पूरी कराने के लिए सिर्फ आश्वासन ही देते रहे हैं, लेकिन अब ऐसे चलने वाला नहीं है। हमारे समाज का धैर्य टूटता हुआ नजर आ रहा है। अब आंदोलन की राह पकड़ लिए हैं, अपने हक और अधिकार के लिए हम पीछे हटने वाले नहीं हैं।”

आंदोलन की राह पर गोंड़ समाज

पूर्वांचल में भारी तादाद में है गोंड़ समाज के लोग

जौनपुर के मछलीशहर, मड़ियाहूं, शाहगंज, केराकत व बदलापुर तहसील में भारी संख्या में गोंड़ समाज के लोग निवास करते हैं। पूर्वांचल के सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, सिद्धार्थनगर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज सहित झांसी, उन्नाव इत्यादि जनपदों में भी गोंड़ समाज की अच्छी खासी तादाद बताई जाती है। बावजूद इसके ये लंबे समय से जाति प्रमाण पत्र के लिए आंदोलन करते आ रहे हैं।

सवाल उठता है कि आखिरकार जब जाति प्रमाण पत्र के लिए शासनादेश जारी कर दिया गया तो फिर प्रमाण पत्र जारी करने में सरकारी मुलाजिमों को परेशानी क्या है? आखिरकार क्यों इनके साथ खेल खेला जा रहा है?

आंदोलनों के बाद ही जागता है प्रशासन  

पिछले दिनों फरवरी 2023 के प्रथम सप्ताह में उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के कलेक्ट्रेट परिसर में अखिल भारत वर्षीय गोंड महासभा के लोगों ने जाति प्रमाण पत्र जारी करने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन प्रारंभ किया था। लेकिन 3 दिन बाद प्रशासन ने आश्वासन देकर अनशन समाप्त करा दिया।

गोंड़ महासभा के जिलाध्यक्ष रमाकांत गोंड़ का कहना था कि “मऊ जिला प्रशासन हमारे समाज के लोगों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं कर रहा है और लगातार सिर्फ हीला हवाली कर रहा है।”

फरवरी 2021 में गोंड़ महासभा ने आदिवासी बाहुल्य जिले मिर्जापुर के कलेक्ट्रेट का घेराव कर जोरदार प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन के जरिए गोड़ जाति को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण देने और मिर्जापुर में अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या को शून्य दिखाए जाने को निरस्त करने की मांग की गई थी।

गोंड़ महासभा का घरना प्रदर्शन

इस प्रदर्शन में भारी संख्या में महिलाओं की भी भागीदारी रही। प्रदर्शन के दौरान लोगों ने आरोप लगाया कि एक सोची समझी साजिश के तहत उनका जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा है। जाति प्रमाण पत्र न होने से वो कई योजनाओं का लाभ पाने से वंचित हो जा रहे हैं।

अनुसूचित जनजाति की संख्या शून्य दिखाने का असर

अखिल भारत वर्षीय गोंड महासभा ने आरोप लगाया कि मिर्जापुर जिले सहित पूर्वांचल के कई जनपदों में अनुसूचित जनजाति के लोगों को शून्य दिखाए जाने से यह समाज कई योजनाओं से महरूम हो जा रहा है।

मिर्जापुर कलेक्ट्रेट में धरना प्रदर्शन के दौरान लोगों ने आरोप लगाया कि मिर्जापुर के सदर तहसील के ग्राम बेलन के लेखपाल द्वारा खुलेआम गोंड़ जाति के लोगों को अनुसूची जनजाति का प्रमाणपत्र जारी करने के लिए रुपये की मांग की जा रही है।

आरोप यह भी लगाया गया कि लेखपाल को उप जिलाधिकारी व तहसीलदार सदर का संरक्षण प्राप्त है। मांग पूरी न होने पर जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया जाता है, जबकि जिले में गोंड़ अनुसूचित जनजाति के लोग काफी संख्या में पाए जाते हैं।

हालांकि इस संदर्भ में तत्कालीन जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार ने गोंड समुदाय के प्रतिनिधि मंडल को 1 फरवरी को संपूर्ण दस्तावेज के साथ मिलने का समय देते हुए उनका धरना समाप्त करवा दिया था।

गौरतलब है कि अपने हक-हकूकों की लड़ाई के लिए गोंड़ समाज का यह कोई पहला धरना प्रदर्शन नहीं है। लंबे समय से ये लोग अपने हक-अधिकार के लिए खासकर अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र जारी करने के लिए संघर्ष करते आए हैं पूर्वांचल के कई जनपदों में लोग धरना प्रदर्शन करने के लिए विवश हुए हैं।

मांगों को लेकर गोंड़ समाज का आंदोलन

इसे मनमानी और हठधर्मिता ही नहीं तो और क्या कहेंगे कि एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पारदर्शी नीतियों एवं सरकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ पात्रों को उपलब्ध कराने का दावा करती है, लेकिन वहीं उनके अधिकारी मनमानी पर अमादा हैं।

मिर्जापुर जिले के सीखड़ विकास खंड के सिल्पी गांव निवासी रमाकांत की अपनी एक अलग ही व्यथा रही है, उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी संगीता देवी के नाम प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत आवास आवंटित किया गया था, लेकिन उसमें जाति प्रमाणपत्र का पेंच फंसा दिया गया।

आरोप है कि ब्लॉक द्वारा उन्हें जाति प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जा रहा था, जिससे उन्हें आवास योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था। इसके लिए वह तहसील से लेकर ब्लॉक अधिकारियों के चौखट पर कई बार गुहार लगा चुके थे। यहां तक कि उनके पक्ष में ग्राम प्रधान ने भी स्वीकृत दे दी थी, बावजूद इसके उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हो रही थी।

आश्चर्य की बात तो यह है कि रमाकांत की बेटी को चुनार तहसीलदार द्वारा 2018 में अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाणपत्र जारी किया गया था, ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब बेटी को जाति प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया तो फिर पिता और माता को जाति प्रमाणपत्र देने में क्या समस्या आड़े आ रही है?

रमाकांत की बेटी का प्रमाण पत्र

यह स्पष्ट होता है कि अधिकारी मनमानी और अपनी हठधर्मिता पर आमादा हैं। हालांकि बाद में इस मामले में जीत रमाकांत की होती है वह अपना हक पाने के लिए ना केवल संघर्षरत थे बल्कि सफलता भी उन्हें मिली।

अधिकारियों के साथ बैठक का नतीजा रहता है सिफर

गोंड़ जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र जारी करने की मांग के संदर्भ में मिर्जापुर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में 1 फरवरी 2021 को कलेक्ट्रेट सभागार में बैठक हुई थी। जिसमें उप जिलाधिकारी सदर व तहसीलदार सदर के साथ साथ गोंड़ समाज के लोग भी शामिल थे।

बैठक में गोंड़ समाज की ओर से पूर्व सेक्टर कमीश्नर केएन गोंड़, रामप्यारे गोंड़, एडवोकेट ज्ञानेन्द्र ध्रुवे, लवकुश गोंड, शिव कुमार गोंड़, कमलेश कुमार गोंड़ एडवोकेट प्रभाकर गोंड़, बृजेश कुमार गोंड़, सूरज कुमार गोंड शामिल थे।

इस बैठक में सेवानिवृत्त कमीश्नर केएन गोंड़ ने उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों हवाला देकर बताया कि गोंड़ अनुसूचित जनजाति के लोग पूरे मिर्जापुर जनपद में पाये जाते है।

अखिल भारत वर्षीय गोंड महासभा का आंदोलन

मामले का निस्तारण कर जाति प्रमाणप्रत्र जारी करने के लिए तहसीलदार सदर और उप जिलाधिकारी सदर ने जिलाधिकारी से एक सप्ताह का समय देने की मांग की, जिस पर गोंड़ समाज के लोग व जिलाधिकारी मिर्जापुर ने अपनी सहमति दी। लेकिन गोंड़ समाज के लोग आज भी अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए दर-दर भटकते हुए नजर आ रहे हैं।

इस संदर्भ में गोंड़ समाज के लोगों का कहना है कि यदि इतने के बाद भी उनकी समस्याओं का निस्तारण ना हुआ और अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी करने में फिर हीला हवाली बरती गई तो वो बड़े पैमाने पर जन आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे।

(यूपी से संतोष देव गिरि की ग्राउंड रिपोर्ट)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।

Related Articles

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।