मई दिवस: झंडा लाल है किनके खून से, उन वीरों को याद करो

Estimated read time 1 min read

आजमगढ़, उत्तर प्रदेश। ‘जांगर’ (श्रम-मेहनत) बेच के ‘हाड़’ (हड्डी) तोड़ के साहब हमनी काम करी ला, तब जाके दूई जून क रोटी मिल पावे ला..! नहीं ता केहू ना पूछे ला, आपन मरद नाहीं पूछत दूसर काहे पूछी? यह कहते हुए संतरा देवी अपने सर के पल्लू को संभालते हुए धूप से बचने के लिए चेहरा ढकने का जतन करते हुए दूध मुंहे बच्चे को सीने से चिपकाए हुए आगे बढ़ने को होती हैं कि अचानक रुकती हैं और हाथ जोड़कर विनती भरे लहजे में कहतीं हैं “साहेब फोटो कांहे खींचत हया मरद (पति) कहीं (मोबाइल में) देख लेगा तो जुलूम कय देई।” 

आजमगढ़ जनपद के फूलपुर बाजार के समीप शाहगंज, जौनपुर से आने वाली एक बस से उतरकर सड़क की पटरियों के रास्ते अपनी मंजिल की ओर बढती संतरा देवी बुखार होने पर अस्पताल गई थी, जहां से लौटते समय सामना होने पर “जनचौक” द्धारा श्रमिकों को लेकर किए जा रहे पड़ताल और “मई दिवस” के बारे में पूछे जाने पर बोलती हैं। वह कहती हैं मई दिवस क्या है कब है? उन्हें कुछ नहीं पता। बस इतना ही जानती हैं कि काम करेंगी तो रोटी मिलेगी वरना भूखे पेट ही सोना पड़ेगा। यही कोई उम्र के 38 वर्ष के आसपास की दिखने वाली संतरा देवी चार बच्चों की मां हैं। तीन चलते-फिरते हैं तो सबसे छोटा अभी गोद में ही है। घर के घरेलू कामकाज से लेकर भवन निर्माण कार्य में मेहनत मजदूरी से भी परहेज़ नहीं है। बस शर्त यह है कि मजदूरी उन्हें रोज का रोज़ चाहिए। इसके पीछे के कारण को भी वह बताती हैं, वह इस लिए कि उन्हीं पैसों से उनकी घर गृहस्थी का सामान आता है तब जाकर कहीं सभी का पेट भरता है। पति कामकाज करने में असमर्थ हैं, लेकिन शराबी है जिसके लिए शराब का भी बंदोबस्त करना पड़ता है, वरना उसके यातनाओं को सहना पड़ता है। 

यह कहानी सिर्फ संतरा देवी की इकलौती कहानी नहीं है, बल्कि ऐसी अनगिनत संतरा देवी सरीखी महिला श्रमिक, मजदूरों की हैं जिनकी कहानी विपन्नाओं से भरी हुई है। जिन्हें घर परिवार से लेकर बाहर समाज के लोगों के बीच भी मुफलिसी और परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। यहां तक की 1 मई मजदूर दिवस अवसर पर भी इन्हें आराम करना हराम रहता है। मजदूर इस देश का एक मजबूत आधार स्तम्भ है बावजूद इसके वह हाशिए पर है। मजदूर दिवस पर सरकारी व गैर सरकारी तौर पर कोई भी कार्यक्रम नहीं हुए। बहाना बना चुनाव आचार संहिता की बंदिशों का, यही हवाला भी दिया गया। और तो और चुनावी महासमर में कूदी राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया पर भी मजदूरों को याद नहीं करने का साहस किया।

मजदूर मजबूर हैं लाचार है, किंतु मजबूत वोटबैंक भी है। बावजूद इसके वह हाशिए पर है। कहने को तो देश के असंगठित क्षेत्र का भी विकास हुआ है। लेकिन कितना विकास हुआ है यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है खुद मजदूरों की माली हालत को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। संतरा देवी सरीखी महिला मजदूर उसी के अपवाद हैं। 

एक-एक कर समाप्त कर दिए श्रमिकों के सारे संवैधानिक अधिकार 

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की 136 वीं वर्षगांठ पर जौनपुर के केराकत तहसील क्षेत्र में दिशा फाउंडेशन ने ग्राम सभा मुरकी में संयुक्त रूप से जन सभा का आयोजन किया। जनसभा में ग्राम सभा के साथ ही आस-पास के गांवों से सैकड़ों की संख्या में महिलाएं पुरुष, नौजवानों ने जन सभा में हिस्सा लिया। जनसभा में राजदेव राजभर ने अपने गीत “जांगर बेच के जीने वाले मई दिवस को याद करों झंडा लाल है किनके खून से, उन वीरों को याद करो, गीत गाकर मई दिवस के शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

दिशा फाउंडेशन के संस्थापक लाल प्रकाश राही ने मई दिवस के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा की श्रम करने वाले अपने ऊपर होने वाले जुल्म अत्याचार के खिलाफ उस समय से लड़ रहें है जब दुनिया में कई धर्मों का उदय भी नहीं हुआ था। ईसा से 109 वर्ष पूर्व रोमन साम्राज्य के विरुद्ध स्पार्टकस ने गुलामों का नेतृत्व करते हुए एक लंबी लड़ाई लड़ी। जिसमें एक लाख बीस हजार गुलाम विद्रोह में शामिल हुए थे जिनमें से अधिकार दासों को मौत के घाट उतार दिया गया है। स्पार्टकस की प्रेमिका भी गुलामी के विरुद्ध इस संघर्ष में शहादत प्राप्त की इस दुनियां में मेहनत करने वालों ने लंबी लड़ाईयां लड़ कर अपने अधिकारों को हासिल किया किया था जिसे आज भारत की सरकार 29 श्रम कानूनों को समाप्त कर चार श्रम कोड में श्रमिकों के सारे संवैधानिक अधिकारों को समाप्त कर दिए हैं।

सभा को संबोधित करते हुए कामरेड बचाऊ राम ने कहा कि मई दिवस सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक साथ मनाया जाता है। यह घटना 1 मई 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर के हे-मार्केट में मजदूरों की एक रैली में पूंजी पतियो के एजेंटों के द्वारा बम विस्फोट कराकर शिकागों की पुलिस और मिलिसिया सेना के द्वारा गोलियों से चलवाया गया। जिसमें सैकड़ों मजदूर शहीद हो गए थे। इस घटना ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि “आज जरूरत है धर्म, जाति, अंधविश्वास के बंधनों से बाहर आकर जनता के जन आंदोलन को मजबूत कर आंदोलन चलाने की जरूरत है। यदि हम (मजदूर) आज नहीं सोच रहें है और निर्णायक निर्णय नहीं लेंगे तो हमारा सब कुछ छीन लिया जाएगा और हमारे ऊपर जुल्म और फिर अत्याचार किया जाएगा।”

लालगंज (आजमगढ़) से आए राजपत राजभर ने मजदूरों के गीत के माध्यम से संगठित करने का आह्वान किया। इसी क्रम में सभा को विवेक शर्मा, साधना यादव, डा महेंद्र प्रताप, राजादेव यादव, आजमगढ़ से आए पूर्व प्रधानाध्यापक जगनंदन, पूर्व प्रधानाध्यापक नंदलाल, एडोकेट नमः नाथ शर्मा समेत दर्जनों वक्ताओं ने अपना विचार व्यक्त किया। सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ किसान नेता जनार्दन चौहान और संचलन कैलाश राम ने किया इस मौके पर ग्राम सभा मुरकी की सैकड़ों महिलाएं पुरुष समेत आस-पास के गांवों से भी दर्जनों की संख्या में लोग शामिल हुए। इस दौरान मजदूरों की आवाज को बुलंद करते हुए उनका आह्वान किया गया कि वह अपने अधिकार को जाने अपने जनप्रतिनिधियों सासंद, विधायक से जाने की उन्होंने उनके लिए बीते पांच सालों में ऐसा क्या कुछ खास किया जिसे वह बेहतर कह सके। 

“जनचौक” को लाल प्रकाश “राही” बताते हैं कि “दिशा फाउंडेशन द्वारा पूरे एक पखवाड़े तक श्रमिकों के संघर्ष गाथा को जन जन तक पहुंचाने और उन्हें रुढ़िवादी जकड़न से बाहर निकल कर अपने अधिकारों को समझने जानने के लिए प्रेरित और जागरूक किया जाएगा, ताकि वह हाशिए पर खड़े समाज की पंक्ति से बाहर निकल कर एक मजबूत नींव और दीवार बनें।” सरकार के आत्मनिर्भर वाले स्लोगन पर प्रहार करते हुए लाल प्रकाश राही मजदूरों की स्थिति को रेखांकित करते हुए कहते हैं “मजदूर जहां कल था वहीं आज भी खड़ा है, फिर कैसी आत्मनिर्भरता? हां यह जरूर हुआ है कि मजदूरों के मजबूत बनाने वाले ज़रुर मजबूत होते गए हैं।”

चुनावी शोर और चौराहों पर खड़ा मजदूर

मजदूर दिवस पर सरकारी और गैर सरकारी तौर पर कोई कार्यक्रम नहीं हुए। भाकपा माले, वामपंथी और अम्बेडकरवादी सामाजिक व कुछेक संगठनों को छोड़ कर किसी भी राजनीतिक दल ने सोशल मीडिया पर भी मजदूरों को याद नहीं किया। दिखावे के तौर पर कुछ स्टीकर जरूर चिपका दिए हों। कार्यस्थलों पर काम करने वाले निर्माण श्रमिक मंहगाई से सबसे अधिक परेशान हैं। ऐसे में चुनाव में मजदूरों का ग़ुस्सा सत्ता में बैठे हुए दलों को नुक़सान कर सकता है।

आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों पर ग़ौर करें तो आर्थिक सर्वेक्षण, 2021-22 के अनुसार, 2019-20 के दौरान असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 43.99 करोड़ रही है। 18 जुलाई 2023 तक, 28.96 करोड़ से अधिक श्रमिकों को ई-श्रम पोर्टल के तहत पंजीकृत किया गया है, जिनमें से लगभग 52.70 लाख श्रमिकों को हरियाणा में ई-श्रम पर पंजीकृत किया गया है। भारत में श्रम का तात्पर्य भारत की अर्थव्यवस्था में रोजगार से जोड़ा गया है। 2020 में, भारत में लगभग 476.67 मिलियन श्रमिक थे, जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा स्थान है। जिसमें से कृषि उद्योग में 41.19%, उद्योग क्षेत्र में 26.18% और सेवा क्षेत्र में कुल श्रम शक्ति का 32.33% शामिल है।

बात करें तो देश के कुल रोज़गार में संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2004 के 8.9 फीसदी से बढ़कर 2017 में 14 फीसदी हो गई। अध्ययन के अनुसार, देश के असंगठित क्षेत्र का भी विकास हुआ है। लेकिन श्रमिकों के हित में काम करने वाले लोगों की माने तो सरकारी आंकड़े सरकारी हिसाब-किताब से नाता रखते हैं उन्हें मजदूरों की दशा से कोई लेना-देना नहीं होता है। मजदूरों की तादाद दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। पढ़ा-लिखा नौजवान भी सरकारी नौकरियों के अभाव में मजदूरों के कतार में खड़े होने को विवश है।

मजदूर दिवस अवसर पर पूर्वांचल के कई जिलों में मसलन, अमेठी, जौनपुर, आजमगढ़, भदोही, चंदौली, सोनभद्र, मिर्ज़ापुर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी मजदूरों की स्थिति की पड़ताल की गई तो, रोज की तरह इस दिवस पर भी मजदूर हाड़ तोड़ मेहनत करते हुए दिखाई दिए। केन्द्रीय मंत्री स्मृति इरानी के संसदीय क्षेत्र अमेठी के रामलीला मैदान और गौरीगंज की सब्जी मंडी, मिर्ज़ापुर के घंटाघर, जौनपुर के कोतवाली, चहारसू चौराहा पर काम की तलाश में आए मजदूरों को काम नहीं मिल पाया, अधिकांश मजदूरों को बिना काम के वापस लौटना पड़ा, तो कुछ इस उम्मीद में खड़े रहे की शाय़द कोई काम मिल जाए।

मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी में भी खोट

वी-वीआई लोकसभा सीटों में शुमार उत्तर प्रदेश के अमेठी में मनरेगा मजदूरों की माली हालत खस्ता है। उनके मजदूरी में भी कटौती कर उनका हक डकार लिया जा रहा है। विकास भवन के आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो मजदूर दिवस अवसर पर मनरेगा योजना अंतर्गत कुल 11263 मजदूरों को काम मिला है। हीट वे और लू के मौसम में काम अधिकांश गांवों में बंद हैं। बताया गया कि प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के लाभार्थियों के मास्टर रोल फीड करके सभी विकास खंडों में मनरेगा की गाड़ी खींची जा रही है। बुधवार को काम प्राप्त करने वाले मजदूरों की सबसे कम संख्या अमेठी विकास खंड में और सबसे अधिक संख्या जामो विकास खंड में रही है। दस विकास खंडों में मजदूरों की संख्या एक हजार से कम रही है।

मनरेगा में श्रमिकों को भारत सरकार की ओर से प्रतिदिन 237 रुपए मजदूरी दी जा रही है। जबकि राज्य सरकार की ओर से अकुशल श्रमिकों को 395 रूपए, अर्द्धकुशल श्रमिकों को 435 रूपए और कुशल श्रमिकों को 487 रूपए न्यूनतम मजदूरी के भुगतान के निर्देश है। मजदूरों को काम देने वाले अधिकांश निजी प्रतिष्ठान और ठेकेदार चार सौ रुपए से अधिक मजदूरी नहीं दे रहे हैं।

 मजदूर के हितों की हो रही है अनदेखी

भाकपा माले रेड स्टार के वरिष्ठ नेता कामरेड वासुदेव मौर्य ने कहते हैं “मौजूदा दौर में मजदूरों के हितों की अनदेखी करते हुए उनको चोट दर चोट पहुंचाया जा रहा है।” वह  शिकागो में एक मई 1886 को मजदूर दिवस में मजदूरों की ओर से काम के घंटों को कम करने के लिए शुरू किए गए ऐतिहासिक आंदोलन की स्मृति में मनाये जाने का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि ‌”इस आन्दोलन में आठ मजदूर शहीद हुए थे। आज भी मजदूरों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। भारत का मजदूर वर्ग अपनी श्रमशक्ति को सस्ते दर पर बेचने के लिए अभिशप्त है। मशीनीकरण ने मजदूरों के हाथ के काम छीन लिए हैं। मौजूदा फांसीवादी और पूंजीवादी सरकार कार्पोरेट पूंजी के साथ गठजोड़ करके मजदूरों के हितों पर लगातार चोट पर चोट करती आ रही है। लोक कल्याणकारी और मजदूर वर्ग के हितों को सुरक्षित करने वाली वैकल्पिक राजनीति के लिए भारत के मजदूरों को एक जुट होने की जरूरत पर जोर देते हैं।”

तमाम कवायदों के बावजूद मजदूरों की हालात में नहीं हुआ सुधार

मिर्ज़ापुर में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद (शशि सिंह गुट) एवं अन्य कर्मचारी संगठनों द्वारा श्रमिक दिवस पखवाड़ा दिवस अन्तर्गत गुरुवार को मंडलीय चिकित्सालय रामबाग स्थित संघ भवन में मजदूरों की स्थिति और उनकी उपेक्षा पर चर्चा हुई। परिषद के जिलाध्यक्ष मोहनलाल यादव ने कहा  “तमाम कवायदों के बावजूद मजदूरों की हालात में सुधार नहीं हुआ है। इन्हें आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरसना पड़ रहा है। अकेले जनपद मिर्ज़ापुर में पीतल बर्तन, पत्थर और कालीन का कारोबार विख्यात है। ईंट भट्ठा, खेती, किसानी, बीड़ी उद्योग व मकानों का निर्माण भी जनपद में होता है जिनके मजदूरों के ही पसीने बहते हैं। जिनकी स्थिति क्या है यह पूछने की आवश्यकता नहीं है।”

उन्होंने सरकारी विभागों में कर्मियों को संविदा पर रखकर उनको मानक के अनुरूप वेतन न देकर मनचाहा वेतन दिए जाने का खुला आरोप लगाते हुए कहा “स्वास्थ्य विभाग में संविदा आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की हालत बुरी है। कोविड काल में जान जोखिम में डालकर ड्यूटी निभाने वाले आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़े हुए हैं। उनमें भी निश्चित रकम में कटौती कर दी जाती है। जिस पर सरकार और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी श्रमिक विरोधी होने का प्रमाण है।” 1 मई को हर जगह मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मजदूरों की बेहतरीन के लिए तमाम वादे किये जाते है। साथ ही कई सरकारी कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की जाती है। इसके बावजूद मजदूरों की हालत जस की तस बनी रहती है। विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े हजारों मजदूरों को आज भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। कहा कि सरकार की तरफ से उनको दस हजार रूपया देय है आज भी नगर पालिका एवं जिला चिकित्सालय सहित तमाम विभागों में संविदा कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। उनको दो से तीन हजार रूपये दिये जाते हैं। इतने कम भुगतान के कारण वह अपने परिवार का भरण-पोषण सुचारू रूप से नहीं कर पाते है। यही कारण है कि अपने जनपद में मजदूरी के अभाव में लोग अन्य जनपदों में पलायन करते जा रहे है।”

विजय लाल दुबे ने कहा कि “जिस देश का मजदूर, कर्मचारी कमजोर होगा उस देश का कभी विकास नहीं होगा। क्योंकि देश का मजदूर कर्मचारी ही देश को मजबूत करता है। जगदीश प्रसाद खरवार ने कहा कि रूस एवं जर्मनी मजदूरों के साथ दमनकारी रवैया अपनाया तो उसका विरोध किया गया। इसी तरह कर्मचारी मजदूर दलित कमजोर वर्गों के आगे बढ़ने के लिए लड़ाई हमेशा चलती रहेगी। अन्धाधुंध मशीनीकरण से उत्पन्न बेरोजगारी बाल श्रमिकों, कर्मचारियों का बड़े पैमाने पर शोषण का विरोध किया जायेगा। कहा सरकार द्वारा सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाय, कर्मचारी मजूदरों को कार्य के समान उचित मजदूरी दी जाय, हर मानव को एक समान अधिकार प्राप्त है। संगठन मंत्री सुनील कनौजिया ने कहा “मजदूरों का उसके आत्मसम्मान की रक्षा की जाएगी। महिला कर्मचारियों के साथ हो रहे शोषण को बन्द किया जाय। किसी भी अधिकार का कदापि हनन नहीं होने दिया जाये।

(संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments