Friday, March 29, 2024

नॉर्थ ईस्ट डायरीः गुवाहाटी पुस्तक मेले में लाखों पाठकों की उमड़ी भीड़, 8 करोड़ की बिकीं किताबें

लगभग दस महीने से गुवाहाटी शहर के लोग कोरोना की दहशत के बीच जिस तरह घर के अंदर कैद थे, उसके अवसाद को काफी हद तक गुवाहाटी पुस्तक मेले ने दूर किया है। 30 दिसंबर 2020 से 10 जनवरी 2021 तक आयोजित 33वें गुवाहाटी पुस्तक मेले में लाखों पाठकों का आगमन हुआ। पब्लिकेशन बोर्ड असम के अनुसार, एक साल से अधिक समय में पहली बार इतने बड़े सार्वजनिक मेले का आयोजन हुआ। हर दिन मेले में लगभग 25,000-एक लाख लोग शामिल हुए और 12 दिनों में आठ करोड़ रुपये की किताबें बेची गईं।

रूपम दत्ता ने कभी लेखक बनने का सपना नहीं देखा था, लेकिन संयोग से 33वें गुवाहाटी पुस्तक मेले ने उन्हें राज्य के लोकप्रिय उपन्यासकार में बदल दिया। उनका पहला साहित्यिक उद्यम लाइफ ऑफ ए ड्राईवर: केबिनोर एपार मेले में सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों में से एक थी।

लेखक के अनुसार, लाइफ़ ऑफ़ ए ड्राइवर: केबिनोर एपार में उन्होंने अपने 15 साल के रात्रि-बस चालक के रूप में लंबे अनुभव के बारे में लिखा है। उन्होंने पहले सोशल मीडिया ग्रुप ‘असोमिया फेसबुक’ में अपने अनुभवों पर लिखना शुरू किया और नेटवर्क्स से जबरदस्त प्रतिक्रिया और प्रशंसा प्राप्त की। बाद में प्रकाशक अनिल बरुवा ने उन कहानियों को एक पुस्तक प्रारूप में प्रकाशित करने के लिए दत्ता से संपर्क किया।

पुस्तक मेले में हिस्सा लेने वाले अधिकांश पुस्तक विक्रेताओं ने कहा कि पिछले 12 दिनों में उन्होंने पुस्तक की सैकड़ों प्रतियां बेची हैं।

‘मोरे असोम जीये कोन’- रीता चौधरी द्वारा लिखित और ज्योति प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक को भी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। पुस्तक की प्रस्तावना के अनुसार उपन्यास ऐतिहासिक असम आंदोलन पर आधारित है, जिसमें लेखिका ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेखिका ने आंदोलन को खुद के लिए एक बड़ा सबक बताया है।

गौरतलब है कि पुस्तक मेले ने यह भी साबित किया कि असमिया का कालजयी उपन्यास ‘असीमत जार हेराल सीमा’ असमिया साहित्य के रत्नों में से एक है, जो पाठकों के दिल पर राज करता है। सैकड़ों नई पीढ़ी के पाठकों ने विशेष रूप से कंचन बरुवा द्वारा लिखित उपन्यास को पुस्तक मेले से खरीदा है।

पुस्तक मेले के आयोजक, असम पब्लिकेशन बोर्ड के सचिव प्रोमोद कलिता ने कहा कि पुस्तकों की रिकॉर्ड बिक्री आठ करोड़ रुपये से अधिक थी। प्रत्येक दिन 25,000-एक लाख के बीच लोग मेले में आते रहे।

कलिता ने कहा, “पुस्तक मेले में सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों की सूची में लाइफ़ ऑफ़ ए ड्राइवर, हिरेन भट्टाचार्य के लेखन का संग्रह, मोरे असोम जीये कोन, असीमत जार हेराल सीमा इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा, हिंदी और बंगाली साहित्य की पुस्तकें भी बिकी हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि पुस्तक मेले ने असमिया पुस्तक प्रकाशन क्षेत्र को नया जीवन दिया है, जिसे कोविड-19 प्रेरित लॉकडाउन के बीच एक बड़ा झटका लगा था।

युवा असमिया लेखकों की पुस्तकों को भी मेले में अच्छी प्रतिक्रिया मिली। शहर स्थित प्रकाशन घर पांचजन्य प्रकाशन के जोनमनी दास ने कहा कि उन्होंने युवा असमिया कथा लेखकों जैसे कि गीताली बोरा, जिंटू गितार्थ और प्रद्युम्न कुमार गोगोई की पुस्तकों की अच्छी संख्या में बिक्री की है। इसके अलावा, निर्मल डेका द्वारा लिखित असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की एक जीवनी को भी पाठकों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

पब्लिशर्स एंड बुक-सेलर्स गिल्ड, पश्चिम बंगाल के देबाशीष लाहिड़ी ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर, सत्यजीत रे, सौमित्र चटर्जी और सुनील गंगोपाध्याय की पुस्तकों को पुस्तक मेले में अपने स्टाल पर पाठकों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

इस बार अंग्रेजी और बंगाली साहित्य की पुस्तकों की बिक्री बहुत उत्साहजनक रही। पश्चिम बंगाल के एक प्रकाशक चक्रवर्ती चटर्जी एंड कंपनी के सुखेंदु साहा ने 10 लाख रुपये से अधिक की किताबें बेच दीं।

बीआर बुक स्टॉल के चंपक कलिता ने बताया कि लाइफ ऑफ ए ड्राइवर के साथ-साथ, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम पर धीरुमणि गोगोई द्वारा लिखित निषिद्ध योद्दा पुस्तक को भी अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

चूंकि यह आयोजन दो साल के अंतराल के बाद आयोजित किया गया, इसलिए यह अधिक पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम हुआ, जिनमें से कुछ न केवल पढ़ने के लिए किताबें खरीदने के लिए आए, बल्कि उन्हें इकट्ठा करने के लिए भी आए। इसके अलावा, यह भी पता चला है कि कई लोगों ने लंबी लॉकडाउन अवधि के दौरान पढ़ने में नई रुचि पाई। आयोजकों के अनुसार, सभी आयु वर्ग के लोग लेखकों की विभिन्न प्राथमिकताओं के साथ खजाने की खोज में आए हैं।

युवा पीढ़ी ने चेतन भगत, अमीश त्रिपाठी, रविंदर सिंह आदि की पुस्तकों की खोज की, पुराने लोग इंदिरा गोस्वामी, सौरभ कुमार चलिहा, भवेंद्रनाथ सैकिया आदि को पसंद करते हैं।

(दिनकर कुमार ‘द सेंटिनेल’ के पूर्व संपादक हैं। आजकल वह गुवाहाटी में रहते हैं।)

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