उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के विरोध में धरना- प्रदर्शन

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वाराणसी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने वाराणसी में जिला मुख्यालय शास्त्री घाट पर राज्यव्यापी आंदोलन के तहत बिजली के निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान चार सूत्री मांग पत्र वाराणसी के जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को सौंपा गया।

वक्ताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार लंबे समय से बिजली को निजी हाथों में देने का प्रयास कर रही है। किसानों, मजदूरों और उपभोक्ताओं के दबाव के कारण यह निर्णय पहले लागू नहीं हो सका था। अब वाराणसी और आगरा विद्युत वितरण निगम का निजीकरण करने का निर्णय अदूरदर्शी और जनविरोधी है।

ओडिशा का उदाहरण: निजीकरण की विफलता

धरने में वक्ताओं ने ओडिशा का उदाहरण देते हुए कहा कि वर्ष 1998 में वहां निजीकरण का प्रयोग किया गया, जो पूरी तरह विफल रहा। 2015 में ओडिशा विद्युत नियामक आयोग ने रिलायंस के सभी लाइसेंस रद्द कर दिए।

निजीकरण के कारण महंगी बिजली

निजी कंपनियों से महंगी दरों पर बिजली खरीदने के कारण घाटा उठाना पड़ता है। मुंबई में टाटा पावर कंपनी की दरों का हवाला देते हुए बताया गया कि घरेलू उपभोक्ताओं को 500 यूनिट से अधिक खपत पर 15.17 रुपये प्रति यूनिट का भुगतान करना पड़ता है। पार्टी ने बिजली के निजीकरण का विरोध करते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की।

धरने में अनिल कुमार सिंह (जिला सचिव), नंदलाल पटेल, मोवीन अहमद, लालमणि वर्मा, श्यामलाल मौर्य, लक्ष्मण प्रसाद वर्मा और अन्य वक्ताओं ने संबोधित किया। अध्यक्षता शिवनाथ यादव और संचालन रामजी सिंह ने किया।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने बिजली के निजीकरण को जनविरोधी बताते हुए सरकार से इसे तुरंत रद्द करने की मांग की। पार्टी ने चेतावनी दी कि यदि इस निर्णय को वापस नहीं लिया गया, तो आंदोलन और तेज होगा।

(प्रेस विज्ञप्ति)

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