गिग एंड प्लेटफार्म वर्कर्स के लिए राजस्थान सरकार ने बनाया कानून, श्रमिकों के शोषण पर लगेगी लगाम

राजस्थान गिग एंड प्लेटफार्म वर्कर्स (रजिस्ट्रेशन एंड वेल्फेयर) ऐक्ट एक महत्वपूर्ण विधेयक है। ओला और उबर जैसी राईडशेयर कैब सेवाएं भारत में 2010-11 में आईं। स्विगी जैसी फूड डिलीवरी सेवाएं उसके तुरंत बाद और अर्बन कंपनी जैसी बहुसेवा प्लेटफार्म को लगभग एक दशक हो रहा है। लाखों श्रमिकों के श्रम से लाभान्वित यह सेवाएं अब 250 भारतीय शहरों और अनगिनत कस्बों-नगरों में फैल चुकी हैं।

शुरुआती हनीमून अवधि, जब वेंचर कैपिटल आधारित बोनस टॉफियों की तरह वितरित किये जा रहे थे, के बाद आय के सोते सूखने लगे और श्रमिकों ने बेहद कम पारिश्रमिक, प्रताड़ना और ग्राहकों के दुर्व्यवहार जैसे मुद्दों पर आवाज़ उठानी शुरू की। इसके बावजूद न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारों ने कुछ करने की ज़रूरत समझी। कंपनियों ने प्लेटफॉर्म श्रमिकों को “पार्टनर” यानी साझीदार करार दिया ताकि श्रमिकों के तौर पर दिये जाने वाले लाभों से बचा जा सके। बताने की ज़रूरत नहीं है कि अपने “साझीदारों” से कोई मुनाफा भी साझा नहीं किया।

इसलिए, गिग/प्लेटफार्म वर्कर्स को मान्यता देना, किसी भी प्लेटफार्म से जुड़े हर श्रमिक को एक खास पहचान (यूनिक आईडी) देना ताकि उनके भविष्य के सारे लाभ मिल सकें, राजस्थान के कानून को महत्वपूर्ण बनाते हैं। यह कानून अन्य राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के लिए भी भारत के युवा कार्यबल के संरक्षण के संदर्भ में रचनात्मक चुनौती है।

विधेयक परिपूर्ण नहीं है। लेकिन इसकी तीन विशेषताएं इसे अनूठा बनाती हैं। पहली, प्लेटफार्म कंपनियों को स्थिरता हासिल करने व लाभकारी बनने के लिए चूंकि पर्याप्त समय मिल चुका है, इसलिये कानून यह सुनिश्चित करता है कि हर सौदे (ट्रांजेैक्शन) पर वेलफेयर फंड के लिए आय के स्रोत के रूप में शुल्क लागू हो। चूंकि अधिकांश कंपनियां “अपफ्रंट प्राइज़िंग” मॉडल अपनाती हैं, श्रमिक को पता नहीं होता कि ग्राहकों से वसूली जाने वाली कीमत क्या है इसलिए उसे यह अंदाज़ा भी नहीं होता कि सौदे पर प्रभावी कमीशन की दर क्या है? सौदे के स्तर के अनुरूप शुल्क की गणना इस डाटा को सामने लाने पर मजबूर करेगी।

दूसरी, कानून के अनुसार एक त्रिपक्षीय वेलफेयर बोर्ड बनेगा, जिसमें सरकार, कंपनियों और श्रमिकों की भागीदारी होगी जो फंड का संचालन करेगी। त्रिपक्षीय बोर्ड के लाभ सही मायने में ज्यादा होंगे। उबर जैसी कंपनियां पिछले कई सालों से ऐसी यूनियनों का समर्थन करती आई हैं, जो लचीली होती हैं और अक्सर कंपनियों के लिए ही काम करती हैं। त्रिपक्षीय बोर्ड संचालित फंड, जिसमें राजस्व कंपनियों से आयेगा, भ्रष्ट और गोदी यूनियनों के खिलाफ भी उपचारात्मक कार्य करेगा।

तीसरी, कानून कंपनियों को सौदा स्तरीय डाटा पर नियंत्रण छोड़ने को मजबूर करता है जो अपने आप में अनूठा है, यह डाटा को सरकार नियंत्रित डाटाबेस में सूचना प्रणाली/एप्प फ्रंट एंड के ज़रिये डालने को कहता है, जिस तक श्रमिकों की भी पहुंच होगी। दूसरे शब्दों में, कानून के तहत जानकारी साझा करने वाला हिस्सा पारदर्शिता की दिशा में पहला कदम होगा। यदि डाटा साझा करने के इस पहलू पर ठीक से अमल किया गया तो यह पहली बार होगा कि श्रमिकों, आम जनता और नीति-निर्धारकों को इस उद्योग को समझने और इसे अधिक टिकाऊ बनाने व प्रगतिशील दिशा में ले जाने का मौका मिलेगा।

कानून में कमज़ोरियां दो स्तरों पर हैं-श्रमिकों के गलत श्रेणीकरण का मुद्दा दरकिनार करना और पारित कानून में कुछ अस्पष्टाएं। दुनिया भर में इस पर लगभग सहमति बन रही है कि कई गिग वर्कर “कर्मचारी” की व्यापक परिभाषा में आते हैं और उन्हें कर्मचारियों/श्रमिकों को श्रम कानूनों के तहत मिलने वाली सुरक्षा मिलनी चाहिए। राजस्थान का कानून इस मुद्दे को किनारे करता है और गिग वर्कर को एग्रीगेटर मानता है।

कुल मिलाकर, चूंकि यह इस संघर्ष में पहला हस्तक्षेप है, यह मुद्दा सुलझा पाना इतना आसान भी नहीं था। लेकिन समाधान की दिशा में रास्ता इस कानून के स्पष्ट अमल में छिपा है चूंकि कानून पारित किया जा चुका है। सभी कानूनों का पालन इनके क्रियान्वयन के लिए बनाये नियमों और प्रणाली पर आधारित होता है। अधिनियम में कई क्षेत्र हैं-जैसे शिकायत निवारण और डाटा शेयरिंग-जिनके लिए प्रभावी नियम बनाना अगला कदम होगा। उबर एंड कंपनी का कानून न मानने का लंबा इतिहास है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि श्रमिकों का एकजुटीकरण, जिसने इस कानून को संभव बनाया, अमल की अवधि में भी जारी रहे।

राजस्थानी विधेयक फौरी राहत तो देता ही है, भविष्य के लिए भी वायदा है। सौदा स्तरीय डाटा के बूते शिकायत निवारण की प्रतिबद्धता और पार्टनर के बजाय श्रमिकों के तौर पर मान्यता की दिशा में, उद्योग की नयी यूनियन इंडियन फेडरेशन ऑफ एप्प-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स अब आगे के अधिकारों और उपायों के लिए राजस्थान में ही नहीं, देश भर में विस्तार कर आगे बढ़ सकती है।

(लेखक बीजू मैथ्यू न्यूयॉर्क टैक्सी वर्कर्स अलायंस के सह संस्थापक और ऑर्गनाइज़िंग कमेटी के सदस्य, इंटरनेशनल अलायंस ऑफ एप्प-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स के अध्यक्ष और राईडर यूनिवर्सिटी में इंफॉर्मेशन सिस्टम्स के एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

(इंडियन एक्सप्रेस से साभार)

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