पंजाब में बेशक बाढ़ का पानी हाल-फिलहाल उतर गया है। यहां की नदियां और दरिया तकरीबन एक महीने जबरदस्त ढंग से क्रोधित रहे और सूबे में व्यापक तबाही मचाई। कई लोग मारे गए तथा लाखों एकड़ धान की फसल एकदम तबाह हो गई। हजारों पशु और पोल्ट्री परिंदे बेमौत मारे गए। बुनियादी ढांचा तहस-नहस हो गया है। अनगिनत सड़कें और पुल पानी में बह गए। राज्य सरकार देर से हरकत में आई। विभिन्न स्तरों पर सरकारी मशीनरी के सक्रिय होने से पहले हजारों लोग अपने-अपने घर छोड़कर स्वयंसेवी संगठनों द्वारा लगाए गए राहत शिविरों में चले गए। जीवन बचाने और भूख से मरने से अच्छा तो यही विकल्प था।
समाजसेवी संस्थाओं, किसान संगठनों और ग्रामीणों ने अपने-अपने तईं बाढ़ का बहादुरी से सामना किया। दरियाओं के रुख मोड़ दिए लेकिन तब तक बाढ़ पंजाब का बहुत कुछ निगल चुकी थी। हालांकि कई जिलों में प्रशासन की ओर से अपने-अपने स्तर पर राहत व बचाव कार्य करते हुए स्थानीय लोगों की मदद से गांव में फंसे हुए लोगों को बाहर निकाला गया। लोग जिस तरह की सरकारी मदद और घोषणाओं की उम्मीद करते थे, उस बाबत उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
नगदी मुआवजा अभी बाढ़ ग्रस्त लोगों से दूर है और मुख्यमंत्री भगवंत मान के वे वादे हवा हो गए, जिन में दोहराया जाता था कि एक हफ्ते के भीतर मरी मुर्गी तक का मुआवजा किसानों को मिलेगा। समाजसेवी संगठनों, किसान संगठनों और बेशुमार गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों ने बाढ़ पीड़ितों को खाने-पीने की दिक्कत नहीं आने दी। पशुओं के लिए हरा चारा मुफ्त बांटा जाता रहा। पीड़ितों को उम्मीद थी कि राज्य सरकार इससे कहीं ज्यादा सहायता करेगी।
भगवंत मान सरकार नगद मुआवजा आवंटन की बाबत अभी खामोश है और यह खामोशी लोगों की मुसीबत का सबब बन रही है। बाढ़ के कहर को एक हफ्ते से ज्यादा समय बीत चुका है लेकिन किसी को कुछ नहीं मिला। सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के किसी भी मंत्री या विधायक से बात कीजिए तो जवाब यही मिलेगा कि यह सब कुछ मुख्यमंत्री तय करेंगे। इसका जवाब भी उनके पास नहीं है कि आखिर कब तय करेंगे?
जालंधर जिले के मंङ गांव के कुलदीप सिंह पूछते हैं कि बाढ़ पीड़ितों के लिए आधिकारिक रूप से कोई घोषणा क्यों नहीं की जा रही? चुनाव से पहले भगवंत मान कहा करते थे कि प्राकृतिक आपदा की स्थिति में 24 घंटे में गिरदावरी होगी और साथ ही पीड़ितों को 20 हजार की मुआवजा राशि दी जाएगी। गिरदावरी कछुआ चाल से शुरू हुई है और पूरा सरकारी अमला स्वतंत्रता दिवस समारोहों में व्यस्त है। इसलिए इससे पहले कोई भी उम्मीद रखना खुद को झांसा देना है।
ज्यादातर लोगों को यही नहीं मालूम कि नगद मुआवजा आजकल में मिलेगा भी या नहीं। आसार कम हैं। बेउम्मीदी और मायूसी ज्यादा है। बाढ़ की वजह से खेतों में कई-कई फुट गार व मिट्टी चढ़ गई है, पानी उतरने के बाद किसान उसे हटा रहे हैं और इसमें काफी पैसा लग रहा है। इधर सरकार है कि किसानों की कोई सुध नहीं ले रही।
पंजाब के 19 जिलों जालंधर, कपूरथला, नवां शहर, होशियारपुर, रोपड़, लुधियाना, पटियाला, संगरूर, मानसा, फिरोजपुर, तरनतारन, फतेहगढ़ साहिब, फरीदकोट, मोहाली, फाजिल्का, गुरदासपुर, फाजिल्का, बठिंडा, मोगा व पठानकोट में जो जबरदस्त कहर ढहाया है, वैसा मंजर सूबे के बाशिंदों ने पहले कभी नहीं देखा। 1950 के आसपास जरूर ऐसी भयानक बाढ़ आई थी।
खैर, पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी बाढ़ से काफी तबाही हुई लेकिन वहां की सरकार ने फौरी तौर पर नुकसान का सर्वेक्षण करवाया और फसलों के नुकसान के लिए 15-15 हजार रुपये की राशि भी किसानों को राहत के तौर पर दी। भगवंत मान सरकार के मंत्रियों और विधायकों से लेकर खुद मुख्यमंत्री तक बाढ़ ग्रस्त इलाकों के दौरों के फोटोशूट तक सीमित रहे। सभी ‘बयान-वीर’ बनने की होड़ में रहे। पीड़ितों की दिक्कतें दरअसल उनकी चिंता का विषय नहीं रहा। मुख्यमंत्री बाढ़ पीड़ितों को उनके हालात पर छोड़कर राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहे।
भगवंत मान ने यह कहकर चौंकाया कि पंजाब के खाते में बहुत पैसा है और वह सहायता के नाम पर किसी से भीख नहीं लेंगे। जाहिर है कि इशारा केंद्र की नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार की ओर था। वित्त मंत्रालय संभाल रहे मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने उसी दिन कहा कि वह राज्य के बाढ़ पीड़ितों के नुकसान की रिपोर्ट बनाकर केंद्र सरकार को भेज रहे हैं। उन्होंने इस बाबत जो बातें कहीं, उनका सार था कि पंजाब अपने दम पर पीड़ितों की पूरी मदद नहीं कर सकता और केंद्र के सहयोग की बेहद जरूरत है।
पंजाब की आर्थिक स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। मुख्यमंत्री कुछ कहते हैं तो उनके वित्त मंत्री कुछ और। राज्य के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित भी खुलेआम कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री भगवंत मान बाढ़ की रोकथाम के लिए अग्रिम प्रबंध करने में नाकाम रहे हैं।
बाढ़ पीड़ितों को इंतजार है व्यवाहारिक तौर पर सरकारी वित्तीय मदद का, लेकिन वह शायद फाइलों में फंसी हुई है। पंजाब के अभी भी कई गांव बाढ़ की चपेट में हैं। उन गांवों के रहवासियों का सब कुछ बर्बाद हो गया है। कुल मिलाकर बयानबाजी के मरहम से रत्ती भर भी फायदा नहीं होने वाला। लोगों को इंतजार आर्थिक सहायता की है।
(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)