संताली राइटर्स एसोसिएशन सम्मेलन: राष्ट्रपति मुर्मू के भाषण पर आदिवासी सेंगेल अभियान ने जताई चिंता

पूर्व सांसद एवं आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने लायंस क्लब हॉल, बारीपदा, मयूरभंज, ओडिशा में 30 नवंबर को एक प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि-“भारत के हिंदू समाज में कभी परंपरा के नाम पर भयानक सती प्रथा थी। जिसे राजाराम मोहन राय के अथक प्रयासों और अंग्रेजी हुकूमत के सहयोग से 1829 में कानून बनाकर रोका गया।

उसी तरह आज भी आदिवासी गांव- समाज में डंडोम (जुर्माना लगाना), बरोंन (सामाजिक बहिष्कार), डान पनते (डायन की खोज) आदि जारी है। जो संविधान, कानून, मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन है और सती प्रथा से कम भयानक नहीं है। इसको संचालित करने वाली आदिवासी स्वशासन व्यवस्था अर्थात मांझी परगना व्यवस्था राजतांत्रिक है एवं वंशानुगत नियुक्त इसके प्रमुख अपनी सोच और व्यवहार में बिल्कुल संविधान विरोधी हैं। अंततः हर आदिवासी गांव-समाज में नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या-द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, रुमुग- बुलुग, वोट की खरीद बिक्री, राजनीतिक कुपोषण, धर्मांतरण और राजतांत्रिक सामाजिक व्यवस्था आदि जारी है।”

सालखन मुर्मू ने उक्त प्रेस कांफ्रेंस विगत 20 नवंबर 2023 को ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन द्वारा ओडिशा के मयूरभंज जिला मुख्यालय बारीपदा में आयोजित एक सम्मेलन में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा आदिवासी समाज को किए गए संबोधन में समाज के सामाजिक सुधारों के लिए कोई ठोस संदेश नहीं होने के बावत किया था।

सालखन मुर्मू ने कहा कि “साहित्य समाज का दर्पण होता है। परंतु आदिवासी समाज का दुर्भाग्य है 20 नवंबर, 2023 को आयोजित ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन के बारीपदा सम्मेलन में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की उपस्थिति के बावजूद आदिवासी समाज सुधार, एकता और प्रगति पर कोई ठोस संदेश नहीं दिया गया। उल्टा कई तरह का भ्रम पैदा हुआ। संदेशविहीन सम्मेलन से निश्चित ओडिशा, बंगाल, झारखंड, बिहार, असम, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश आदि में निवास कर रहे आदिवासी और खासकर संताल आदिवासियों को घोर निराशा ही मिली है। आदिवासी सेंगेल अभियान उपरोक्त क्षेत्रों में आदिवासी सशक्तिकरण के लिए संघर्षरत है। बारीपदा सम्मेलन पर संविधान दिवस, 26 नवंबर 23 को सेंगेल के बारीपदा जोनल हेड नारन मुर्मू और उनके सहयोगियों द्वारा व्यक्त पहली चिंतापूर्ण प्रतिक्रिया का सेंगेल पूर्णता समर्थन करता है।”

सालखन मीडिया को संबोधित कर कहा कि “आशा है मीडिया जनतंत्र, संविधान और आदिवासी समाज हित में हमारी भावनाओं का सम्मान करते हुए सहयोग करेगा।”

वहीं अब तक संताली लेखक संघ आदि उपरोक्त गैर- कानूनी कार्रवाइयों का विरोध कर समाज सुधार का काम नहीं कर सके हैं। अब तक इनका समाज सुधार पर कोई साहित्यिक कृति भी सामने नहीं दिखती है। तब महामहिम राष्ट्रपति द्वारा मांझी परगना व्यवस्था और संताली लेखक संघ की तारीफ करना आश्चर्यजनक और दुखद प्रतीत होता है।

संताली लेखक संघ के बारीपदा सम्मेलन में उपस्थित महानुभावों ने आदिवासी समाज को घोर निराश किया है। उक्त कार्यक्रम में कहा गया कि बारीपदा सम्मेलन में उभरे निम्न सवालों पर सेंगेल आदिवासी समाज हित में अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए बाध्य है, जो इस प्रकार है:

1.बारीपदा सम्मेलन में महामहिम राष्ट्रपति ने अपने भाषण में कहा कि संताली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जाता है। जो सही नहीं है। क्योंकि अटल सरकार की तरफ से गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने बोडो उग्रवादियों के साथ शांति समझौते (10.02.2003) के आलोक में 7 दिसंबर 2003 को कोकराझाड़, असम जाकर बोडो टेरिटोरियल काउंसिल को स्थापित करते हुए बोडो उग्रवादियों की दूसरी मांग बोडो भाषा को 2003 के शीतकालीन सत्र में आठवीं अनुसूची में शामिल करने का वायदा कर दिया था।

अटल सरकार ने 18 अगस्त 2003 को केवल बोडो भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का लोकसभा में प्रस्ताव लाया था। उसके पूर्व तब सांसद रहे और संताली भाषा आंदोलन के मुख्य नेता सालखन मुर्मू ने 9 अगस्त 2003 को लिखित प्रश्न संख्या- 1107 के मार्फत तत्कालीन गृह मंत्री से पूछा था कि क्या बोडो के साथ संताली को मान्यता दी जायेगी? तो लिखित उत्तर मिला था- नहीं।

उसके पूर्व भारत के तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आई डी स्वामी ने भी 2 जून 2003 को नकारात्मक लिखित उत्तर सालखन मुर्मू को दिया था। अपने पत्र संख्या- एच 11018 /1/ 2003-एनआईडी द्वारा कि सरकार जल्द उच्च स्तरीय समिति बनाकर भाषा मान्यता का हल निकालने पर संकल्पित है। अंतत: डॉक्टर सीताकांत महापात्र की अध्यक्षता में 9 सदस्यों वाली हाई पावर कमेटी का गठन 2 जुलाई 2003 को जरूर कर दिया गया था। मगर वह बेकार साबित हुआ। जिसने आज तक कोई रिपोर्ट नहीं दी है।

अटल सरकार के पास तब बोडो भाषा को भी अकेले दम पर आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए दो तिहाई सांसदों का बहुमत उपलब्ध नहीं था। इस टेक्निकल पेंच को समझते हुए सालखन मुर्मू ने तब लोकसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप रहे प्रियरंजन दासमुंशी का सहयोग लिया। सोनिया गांधी से मुलाकात कर सहयोग मांगा। उन्होंने भाषा, शिक्षा, विकास के महत्व को समझते हुए सहयोग का वचन दिया।

फिर 8 दिसंबर 2003 को संताली भाषा मोर्चा के पांच प्रदेशों के लगभग 2000 प्रतिनिधि सालखन मुर्मू के नेतृत्व में 10, जनपथ, दिल्ली में संध्या 4:00 बजे सोनिया गांधी से मुलाकात की। तय हुआ कि कांग्रेस पार्टी बोडो के साथ संताली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का संशोधन प्रस्ताव लोकसभा में प्रस्तुत करेगी, अन्यथा केवल बोडो के लिए वोट नहीं करेगी। संताली भाषा विजय का टर्निंग प्वाइंट यही है। बाकि इतिहास है। आखिर कांग्रेस के सहयोग से 22 दिसम्बर 2003 को बोडो के साथ संताली भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया। तब केवल अटल जी को श्रेय देना और सोनिया गांधी जी और सालखन मुर्मू को नजरअंदाज कर देना कहां तक जायज है?

2.राष्ट्रपति ने भाषण में आदिवासी समाज में जारी भिन्न-भिन्न पूजा सामग्री को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एक तरफ निर्मल जल दूसरी तरफ लड्डू और अन्य। उन्होंने पारंपरिक रूप से बहु प्रचलित हंडिया-चोडोर का नाम नहीं लिया। तब समाज सुधार के लिए नशापान को छोड़ना सही होगा या गलत? आखिर बोलना तो पड़ेगा। कौन बोलेगा?

3.प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग पर क्यों टालमटोल बात की गई? जबकि 2011 की जनगणना में रिकार्डेड सरना धर्म के नाम पर लगभग 50 लाख प्रकृति पूजक आदिवासियों की स्वीकृति को नजरअंदाज क्यों किया गया? जबकि तब मान्यता प्राप्त जैन धर्म लिखने वालों की संख्या केवल 44 लाख थी। यह भारत के प्रकृति पूजक आदिवासियों को भड़काने और दिग्भ्रमित करने की कोशिश तो नहीं थी?

4.महामहिम राष्ट्रपति ने कहा कि पहाड़ हमारे नहीं हैं बल्कि हम पहाड़ों के हैं। यह अटपटा वक्तव्य हमें मरांग बुरु, लुगु बुरु, अयोध्या बुरु से दूर तो नहीं कर देता है? क्योंकि इन पहाड़ों में हमारे ईश्वर हैं, देवी देवता हैं। इन्हीं की हम पूजा करते हैं। इसलिए इन पहाड़ों पर हम भारत के प्रकृति पूजक आदिवासियों का बिल्कुल दावा बनता है।

5.संताली भाषा के आठवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद ही संताली लेखकों को साहित्य अकादमी अवार्ड आदि मिलने लगा है। परंतु अवार्ड जीतने वालों ने अभी तक संताली भाषा के आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिए किसी को भी श्रेय क्यों नहीं दिया है? या इनको लगता है कि यह भाषा अपने आप आठवीं अनुसूची में शामिल हो गया है? या संताली लेखक संघ ईर्ष्या द्वेष से ग्रसित होकर सच्चाई को छुपाना चाहते हैं?

6.साहित्य समाज का दर्पण होता है। परंतु आदिवासी समाज में जारी अनेक कुरीतियों, रूढ़ियों और दुर्दशा को दूर करने जैसा कोई भी संताली साहित्यिक कृति अब तक दिखाई नहीं देता है। तब संताली लेखकों को किस चीज के लिए अवार्ड मिल रहा है? इसकी जानकारी संताली लेखकों को प्रस्तुत करना चाहिए।

7.कोई भी लिपि से भाषा और साहित्य महान होता है। अंग्रेजी भाषा की अपनी लिपि नहीं है। मगर भाषा और साहित्य समृद्ध है। तो संताली लेखक सम्मेलन में केवल लिपि की बात क्यों हुई?

8.संताली भाषा जब तक किसी एक प्रदेश अर्थात झारखंड प्रदेश की राजभाषा नहीं बनेगी तब तक अपने से इसको समृद्ध नहीं किया जा सकता है। अतएव संताली लेखक संघ इसको झारखंड की राजभाषा बनाने का पक्षधर है या नहीं? जवाब दो।

9.संताली लेखक संघ सरना धर्म कोड मान्यता का पक्षधर है या नहीं? जवाब दो।

10.संताली लेखक संघ प्रगतिशील सोच रखता है या रूढ़िवादी सोच का कठपुतली है? संताली लेखक संघ का आदिवासी एजेंडा क्या है? बृहद एकजुटता का प्रारूप क्या है? समाज सुधार की सेन्स ऑफ अरजेंसी और क्षेत्र क्या है? जवाब दो।

11. महामहिम राष्ट्रपति को बारीपदा सम्मेलन मंच में पाकर संताली लेखक संघ ने देश के आदिवासियों को क्या संदेश दिया? या दोनों ने मिलकर टाइम पास किया? ऐतिहासिक अवसर को बर्बाद किया? आदिवासी सेंगेल अभियान इसके लिए दुख और गहरी निराशा व्यक्त करता है।

बताते चलें कि 20 नवंबर 2023 को उक्त आयोजित सम्मेलन को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने पूरे संबोधन को संताली भाषा में ही संबोधित किया।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments