Thursday, April 25, 2024

पीएम के संसदीय क्षेत्र के बुनकर भुखमरी की कगार पर, केंद्र और यूपी सरकार ने नहीं लिया हाल

हमके साड़ी लियाय दा मदनपुरी पिया,
रंग रहे कपूरी पिया ना

ये कजरी लगभग हर उस व्यक्ति ने सुनी होगी, जिसकी संगिनी ने उससे हठ किया होगा बनारसी साड़ी लाने के लिए। बच तो अपने कवि काका हाथरसी साहब भी नहीं बच पाए थे तभी तो उन्होंने ‘बनारसी साड़ी’ पर पूरी की पूरी कविता ही लिख डाली… 

कवि-सम्मेलन के लए बन्यौ अचानक प्लान।
काकी के बिछुआ बजे, खड़े है गए कान॥

खड़े है गए कान, ‘रहस्य छुपाय रहे हो।
सब जानूँ मैं, आज बनारस जाय रहे हो॥

‘काका’ बनिके व्यर्थ थुकायो जग में तुमने।
कबहु बनारस की साड़ी नहिं बांधी हमने॥

एक वक़्त था जब नई नवेली दुल्हन ससुराल पहली बार बनारसी साड़ी में ही उतरती थी। तभी तो उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान की स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों में बनारसी साड़ी का जिक़्र बार-बार आता है।

पिया शहर बनारस जाइयो
अच्छी सी साड़ी लाइयो
पहराइयो अपने हाथ…..

आज के समय में भी अपनी साड़ियों के संग्रह में एक अदद बनारसी साड़ी रखना हर स्त्री चाहती है, लेकिन इस कोरोना काल में बनारसी साड़ी के बुनकरों की स्थिति बदहाल है। पिछले पांच महीने से कामबंदी के चलते कई बुनकर भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के हैंडलूम कामगारों का हाल बेहाल
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वाराणसी की आबादी के 60 फ़ीसद लोगों की आजीविका हैंडलूम उद्योग पर ही निर्भर है। जो सिल्क, कॉटन, बूटीदार, जंगला, जामदानी, जामावार, कटवर्क, सिफान, तनछुई, कोरांगजा, मसलिन, नीलांबरी, पीतांबरी, श्वेतांबरी और रक्तांबरी पैटर्न की बनारसी साड़ियां बनाने का काम करते हैं।

बनारस के सरैया, जलालीपुरा, अमरपुर बटलोहिया, कोनिया, शक्कर तालाब, नक्की घाट, जैतपुरा, अलईपुरा, बड़ी बाजार, पीलीकोठी, छितनपुरा, काजीसादुल्लापुरा, जमालुद्दीनपुरा, कटेहर, खोजापुरा, कमलगड़हा, पुरानापुल, बलुआबीर, नाटीईमली रामनगर, मदनपुरा, बजरडीहा, रेवड़ीतालाब, सोनारपुरा, शिवाला, बड़ी बाजार, लोहता।

कोविड-19 वैश्विक महामारी की वजह से लॉकडाउन से बनारसी साड़ी की अस्सी हजार से ज्यादा इकाइयों के शटर डाउन हैं। 375 बड़ी फैक्ट्रियों के अलावा बुनकरी की पचास हजार पंजीकृत और तीस हजार से ज्यादा गैर पंजीकृत इकाइयां प्रभावित हुई हैं। 23 हजार से ज्यादा निर्यातक, थोक और फुटकर विक्रेताओं का धंधा भी चौपट हो गया है। कोरोना के चलते साड़ी उद्योग से जुड़े पांच लाख लोगों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में साड़ी उद्योग सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। कोरोना के कारण यह उद्योग बंद है। इससे पांच लाख से ज्यादा लोग मुश्किलों से जूझ रहे हैं। बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े लोगों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि चीन से रेशम का आयात बंद है। लगातार आर्डर कैंसिल होने से निर्यातकों से लेकर बुनकर तक निराश हैं। हथकरघा कारखाने भी बंद पड़े हैं। प्रतिदिन लगभग 24 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।

उन्होंने बताया कि पांच अरब रुपये से ज्यादा का सालाना साड़ी का कारोबार है। इससे करीब छह हजार करोड़ रुपये सालाना आय होती है। साल में 250 दिन बिक्री होती है, जबकि 100 दिन धंधा बंद रहता है।

अब अक्तूबर तक ही उठ पाएगा उद्योग
जनवरी से ही चीनी रेशम का आयात बंद है। जनवरी से अब तक हुए नुकसान और आने वाले वक्त को देखकर लगता है कि अक्टूबर से पहले साड़ी उद्योग फिर से खड़ा नहीं हो पाएगा। साड़ी उद्योग के लिए यह सबसे मुश्किल भरा दौर है।

इन देशों में होता है व्यापार
साड़ियों का व्यापार श्रीलंका, स्विटजरलैंड, कनाडा, मारीशस, अमरीका, आस्ट्रेलिया, नेपाल समेत अन्य देशों में भी फैला है।

बुनकर नेता अब्दुल कादिर अंसारी बताते हैं कि इसकी वजह है कि सूत व्यापारियों एवं साड़ी निर्माताओं के लिए 16 से 18 घंटे हथकरघा चलाने वाले बुनकर बिचौलियों के शिकार हो गए हैं। शोषण और तंगहाली ने बुनकरों को इतना बेरहम बना दिया है कि वे अपने छोटे–छोटे बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय काम में लगा देते हैं ताकि वे भी चार पैसे कमा कर परिवार का सहयोग करें और रवायती हुनर भी सीखते रहें।

संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से एसआईआरडी और मीडिया लैब एशिया ने 2013-14 में जब लल्लापुरा में प्रोजेक्ट शुरू किया था तो वहां के बुने उत्पादों का कुल बाजार सिर्फ 70 करोड़ रुपये था और हर बुनकर के घर औसतन तीन हजार रुपये से भी कम प्रति माह की आय पर गुजरा कर रहे थे। बुनकर आपूर्ति करने वाले बाजार, रिटेल और उपभोक्ताओ के बीच सूचना के तालमेल की कमी से सभी परेशान थे। आपूर्ति करने वाले और मास्टर बुनकर बाजार को अपने इशारों पर चलाते थे।

साड़ी व्यवसायी मोहम्मद आमिर ने बताया कि व्यापार पर बहुत ज़्यादा असर पड़ा है। एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट पर रोक से काफी दिक्कतें पैदा हो गई हैं। इसके अलावा चाइना से आने वाले रेशम के बंद होने से बेंगलुरू से रेशम आता था अब वो भी बंद हो गया है। इससे जो लोग परेशान थे वो और परेशान हो गए हैं।

मोहम्मद आमिर ने बताया कि 12 देश के सैलानियों के वाराणसी में आने पर प्रतिबन्ध लगने के बाद से व्यापार में कोई दिक्कत नहीं आई थी। भारतीय पर्यटक भी अब नहीं आ रहे हैं जिस कारण व्यापार पूरी तरह बैठता जा रहा है।

प्रियंका गांधी ने किया जिक्र
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने मशहूर बनारसी साड़ी के बुनकरों की आर्थिक तंगी को लेकर राज्‍य की योगी आदित्‍यनाथ सरकार पर निशाना साधा है। प्रियंका ने अपने फेसबुक पोस्‍ट में एक अखबार की खबर का जिक्र किया है। इसमें बताया गया है कि कोरोना वायरस की महामारी के बीच बनारस के साड़ी बुनकर अपनी गुजर-बसर के लिए घर और गहने गिरवी रखने को मजबूर हैं।

प्रियंका गांधी ने अपनी पोस्‍ट में लिखा, ‘यूपी सीएम ने पीएम साहब को बुलाकर एक आयोजन कर बताया कि छोटे और मझोले उद्योगों में लाखों रोजगार मिल रहे हैं, लेकिन हकीकत देखिए। पीएम के संसदीय क्षेत्र के बुनकर जो वाराणसी की शान हैं, आज गहने और घर गिरवी रखकर गुजारा करने को मजबूर हैं। लॉकडाउन के दौरान उनका पूरा काम ठप हो गया। छोटे व्यवसायियों और कारीगरों की हालत बहुत खराब है।

उन्‍होंने आगे लिखा- हवाई प्रचार नहीं, आर्थिक मदद का ठोस पैकेज ही इन्हें इस तंगहाली से निकाल सकता है। गौरतलब है कि बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है।

चीनी रेशम के कारण विदेशी बायर्स में भय है कि कहीं रेशम से तैयार वस्त्र संक्रमित तो नहीं। ग्राहक नहीं आ रहे हैं। हालात जल्दी नहीं सुधरे तो स्थिति और भयावह हो जाएगी। बनारसी साड़ी उद्योग में रेशम की खपत में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी चीन की होती है। बाकी माल बंगलुरू, मालदा, उड़ीसा और अन्य शहरों से आता है। सिर्फ वाराणसी में ही हैंडलूम, सेमी हैंडलूम और पावर लूम को मिलाकर 80 हजार से अधिक इकाइयां हैं जो प्रभावित हुई हैं।
-राजन जायसवाल, साड़ी निर्यातक

अधिकतर मैटीरियल चीन से आयात किया जाता है। अब चाइनीज रेशम का अभाव होने लगा है। बनारस में रोजाना नौ से दस टन रेशम की खपत होती है। चाइनीज रेशम पर लगी रोक नहीं हटती है तो आगे व्यापार और प्रभावित होगा। चीनी रेशम की क्वॉलिटी अच्छी होती है, इसलिए साड़ी के ताने में इसका प्रयोग होता है। बाना देश के विभिन्न शहरों से आने वाले रेशम से तैयार होता है। चाइनीज रेशम की कमी का असर बनारसी साड़ी उद्योग पर पड़ रहा है।
-शैलेंद्र रस्तोगी, साड़ी निर्माता

चीन में जनवरी मध्य में कोरोना वायरस के संक्रमण से समूचा बाजार सहमा हुआ है। इस बीच वियतनाम के रास्ते रेशम आया, जिसे दक्षिण भारत के कुछ कारोबारियों ने चीन का रेशम बताकर वाराणसी के उद्यमियों को थमा दिया। वियतनाम से आने वाले घटिया स्तर के रेशम के चलते आर्डर कैंसिल होने लगे और कारोबारियों और लूम संचालकों पर दोहरी मार पड़ी। यदि सरकार ने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो बनारसी साड़ी उद्योग पर छाया संकट और गहरा जाएगा।
-राहुल मेहता, साड़ी निर्माता और निर्यातक

बनारसी साड़ी उद्योग से बनारस में एक लाख परिवार जुड़े हुए हैं। उनकी आजीविका इसी पर आधारित है। इसीलिए यदि साड़ी कारोबार पर कोई प्रभाव पड़ता है तो उसका असर अन्य चीजों पर भी दिखता है। चाइनीज रेशम के आयात पर लगी रोक का असर साड़ी उद्योग पर दिखने लगा है। ज्यादातर बनारसी साड़ी और ड्रेस मैटीरियल में इस्तेमाल होने वाला रेशम चीन से ही आता है। साड़ी उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है।
-अशोक धवन, बनारसी वस्त्र उद्योग एसोसिएशन के संरक्षक

चाइनीज रेशम पर लगी रोक नहीं हटती है तो साड़ी कारोबार कम हो जाएगा। काम करने वालों को काम नहीं मिलेगा। इस बारे में सरकार को कदम उठाने चाहिए। नहीं तो बुनकर बेरोजगार हो जाएंगे। बुनकर भूखे सो रहे हैं, लेकिन सरकार की तरफ से कोई पूछने वाला नहीं है। पांच लाख से अधिक बुनकर बनारसी बिनकारी का काम हैंडलूम और पावरलूम पर करते हैं। मगर, लॉकडाउन में सभी लूम लॉक हो चुके हैं।
-सैयद मेराज अली, बुनकर, लोहता

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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