Wednesday, April 24, 2024

‘दातून’ बेचकर पेट पालने वाले परिवारों को कड़ी मशक्कत के बाद मिलती है रोटी

मिर्जापुर। विख्यात देवी धाम विंध्याचल में सोमवार, 26 मार्च 2023 को मौसम के थपेड़ों के बाद भी भक्तों के आने का सिलसिला जारी था। रात्रि के तकरीबन 12:15 बजे थे। माला-फूल, चुनरी-नारियल और प्रसाद इत्यादि की सजी हुई दुकानों पर खरीदारों की भीड़ थी और होटलों में भोजन करने वाले लोगों की कतार लगी थी। वहीं समय-समय पर ध्वनि विस्तारक यंत्रों से प्रशासन द्वारा जारी किए जा रहे संदेश लोगों को सुरक्षा और सुगमता के लिए सचेत कर रहे थे।

लेकिन इन सबसे बेखबर ‘दो वक्त की रोटी’ के लिए अर्ध रात्रि में आंख में गहरी नींद होने के बाद भी सड़क की पटरी पर नीम की दातून बेचने वाले बैठे हैं। वो छोटी-छोटी पोटली बनाकर आशातीत नजरों से ग्राहक का इंतजार कर रहे हैं। दातून बेचने वाले गरीब परिवार कभी अपने भाग्य को तो कभी आने वाले ग्राहकों को निहारते हुए नजर आते हैं।

दरअसल दातून बेचना इनका रोजमर्रा का कार्य है। कभी ट्रेनों में तो कभी रोडवेज बस अड्डे के समीप सुबह-शाम दातून की पोटली लेकर घूमने वाले परिवार इसी से अपनी जीविका चलाते हैं। अगर किसी दिन दातून की बिक्री नहीं होती तो इनके परिवार को रोटी बड़ी मुश्किल से मिल पाती है।

मिर्जापुर के ही मड़िहान तहसील क्षेत्र के दरबान गांव से दातून बेचने विंध्याचल नवरात्रि मेले में आए सुदामा बताते हैं- “मेले व अन्य स्थानों पर हम घूम-घूम कर दातुन बेचते हैं। दोना-पत्तल का कारोबार ठप हो जाने के बाद दातून ही हमारी जीविका का सहारा है। लेकिन अब दातून को बहुत कम ही लोग पसंद करते हैं।” टूथपेस्ट और बाबा रामदेव के दंत क्रांति ने उनके कारोबार पर ग्रहण लगा दिया है।

कुछ ऐसा ही कहना होता है विनोद का। निषाद समाज के विनोद बताते है कि- “पहले गुजरात में रहकर एक फैक्ट्री में बतौर श्रमिक का काम करता था, लेकिन कोरोना काल के दौरान रोजी-रोटी छिन गई। जिसके बाद अपने गांव लौटना पड़ा। अब परिवार चलाने के लिए दातून बेचने के लिए विवश होना पड़ा है।”

पटरी पर दातून बेचता युवा

दातून बेचकर कितना कमा लेते हैं? के सवाल पर वह तपाक से बोलते हैं “कभी सौ भी मिल जाता है तो कभी 50 रुपये से ही तसल्ली करनी पड़ती है, वह भी बड़ी किच-किच के बाद।”

मिर्जापुर जनपद के वरिष्ठ पत्रकार अंजान मित्र कहते हैं- “यह जनपद अति पिछड़ा और पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण कई दुर्गम राहों के साथ-साथ दुर्गम समस्याओं से भी जूझता आ रहा है। इसमें एक प्रमुख समस्या गरीबों के जीवन यापन का भी है। समाज के शोषित, वंचित, मुसहर समाज के लोग कल तक जंगलों, पेड़-पौधों की रखवाली कर अपनी जीविका को संचालित किया करते थे, लेकिन बदलते परिवेश के साथ ही इनके पुश्तैनी कारोबार पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। जिसका सीधा असर कहीं ना कहीं से इनकी जीविकोपार्जन पर भी दिखलाई देता है।”

आधुनिकता ने दातून पर लगाया ग्रहण

किसी जमाने में दांतों और स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम रहा नीम का दातून वर्तमान में आधुनिकता की भेंट चढ़ चुका है। सफर इत्यादि के दौरान दातून के स्थान पर लोगों के साथ टूथपेस्ट-ब्रश ने अपना स्थान बना लिया है।

विदेशों में भले ही नीम के दातून माल शॉप में बिकते हों, लेकिन अपने भारत देश में इसकी उपयोगिता भी आधुनिकता की भेंट चढ़ चुकी है। जिसका सीधा असर नींम की दातून बेचकर अपने और अपने परिवार का जीविकोपार्जन करने वाले गरीब परिवारों पर पड़ा है।

दातून बेचने वालों का दर्द है कि वह ट्रेन में भी घूम घूम कर दातून बेचते हैं इसके एवज में उन्हें कुछ पैसे भी देने पड़ते हैं। ले-देकर किसी तरह वह परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं।

ग्राहक का इंतजार और नींद

आंकड़ों की बाजीगरी में उलझे गरीब

सरकारें कहती हैं कि देश से गरीबी खत्म करने के लिए कई तरह की जनकल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। बेशक सरकारें कई जन कल्याणकारी योजनाओं का संचालन करती हैं। बावजूद इसके सच यही है कि देश से गरीबी का अंत नहीं हुआ है। सड़क की पटरियों से लेकर रेलवे स्टेशन पर दातून बेचकर परिवार का पेट पालने वाले लोग इसकी गवाही देते हैं।

आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में 27 करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं। आजादी के समय देश की 80 फ़ीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। 22 फीसदी लोग गरीबी रेखा में आज भी जीवन-यापन कर रहे हैं, लेकिन संख्या के तौर पर देखा जाए तो इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है।

(मिर्जापुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।

Related Articles

AICCTU ने ऐप कर्मियों की मांगों को लेकर चलाया हस्ताक्षर अभियान, श्रमायुक्त को दिया ज्ञापन।

दिल्ली के लाखों ऐप कर्मचारी विषम परिस्थितियों और मनमानी छटनी से जूझ रहे हैं। उन्होंने कम प्रति ऑर्डर रेट, अपर्याप्त इंसेंटिव्स, और लंबे कार्य समय के खिलाफ दिल्ली भर में हस्ताक्षर अभियान चलाया। ऐप कर्मचारी एकता यूनियन ने बेहतर शर्तों और सुरक्षा की मांग करते हुए श्रमायुक्त कार्यालय में ज्ञापन दिया।

ग्राउंड रिपोर्ट: पुंछ में केसर उत्पादन की संभावनाएं बढ़ीं

जम्मू के पुंछ जिले में किसान एजाज़ अहमद पांच वर्षों से केसर की सफल खेती कर रहे हैं, जिसे जम्मू विश्वविद्यालय ने समर्थन दिया है। सरकार से फसल सुरक्षा की मांग करते हुए, अहमद पुंछ को प्रमुख केसर उत्पादन केंद्र बनाना चाहते हैं, जबकि महिला किसानों ने भी केसर उत्पादन में रुचि दिखाई है।

ग्राउंड रिपोर्ट: बढ़ने लगी है सरकारी योजनाओं तक वंचित समुदाय की पहुंच

राजस्थान के लोयरा गांव में शिक्षा के प्रसार से सामाजिक, शैक्षिक जागरूकता बढ़ी है। अधिक नागरिक अब सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अनुसूचित जनजाति के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह प्रगति ग्रामीण आर्थिक कमजोरी के बावजूद हुई है, कुछ परिवार अभी भी सहायता से वंचित हैं।