नक्सल उन्मूलन के नाम पर आदिवासी हो रहे हैं पुलिसिया हिंसा का शिकार

झारखंड के गिरिडीह जिले का मराङ बुरू या पारसनाथ पहाड़ की तराई में पिछले 14 जनवरी 2023 को सुबह पीरटाड़ प्रखंड के आदिवासी गांव चतरो में सीआरपीएफ के जवान और पुलिस बल ने तीन लोगों के साथ मारपीट की, जिसमें एक 14 साल की बहामुनी बास्के, 35 साल की एक महिला सुनीता मुर्मू और वृद्ध भीम सोरेन उम्र 52 साल शामिल थे।

पिछले 13 जनवरी को कथित नक्सली कृष्णा हांसदा को गिरिडीह जिले के डुमरी थाना क्षेत्र के फतेहपुर से गिरफ्तार किया गया था, जब वह नाले के पास घूम रहा था। उसके पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ था। कृष्णा हांसदा की गिरफ्तारी के बाद सीआरपीएफ व जिला पुलिस के जवानों ने सर्च अभियान के नाम पर पारसनाथ के चतरो गांव पहुंचे और गांव के भीम सोरेन, सुनीता मुर्मू व बहामुनी बास्के के साथ पूछताछ करने लगे, उनके द्वारा पूछे गए सवालों पर किसी भी तरह की जानकारी से इंकार करने के बाद एक जवान ने उन लोगों के साथ मारपीट कर दी।

पुलिस द्वारा की गई इस कार्रवाई के विरोध में ग्रामीण भड़क गए और देखते ही देखते पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ बड़ी संख्या में ग्रामीण गोलबंद होकर छापेमारी करने निकले पुलिस दल को चतरो गांव में प्रवेश करने से रोक दिया।

पुलिस पर ज्यादती का आरोप लगाते हुए स्थानीय ग्रामीणों ने विधायक सुदिव्य कुमार सोनू को सूचना दी। इसके बाद मौके पर विधायक पहुंचे और ग्रामीणों की बातों पर अमल करते हुए पुलिस पदाधिकारी से संबंधित जवान को चिह्नित करने को कहा, जिसने भीम सोरेन, सुनीता मुर्मू व बहामुनी बास्के के साथ मारपीट की थी। साथ ही घटना की जांच कर उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग एसपी से की।
पुलिस की ओर से अपील की गयी कि नक्सलियों के खिलाफ हो रही कार्रवाई में ग्रामीण आड़े नहीं आएं, पुलिस को अपना काम करने दें। जिस पर ग्रामीणों ने कहा कि पुलिस नक्सलियों के खिलाफ अपना कार्रवाई करे, उससे उन्हें कोई मतलब नहीं है। लेकिन पुलिस नक्सलियों के बहाने ग्रामीणों को परेशान नहीं करे और निर्दोष ग्रामीणों को नक्सली में नाम घसीट कर झूठी कार्रवाई नहीं करे, आगे इस तरह की कार्रवाई हुई तो ग्रामीण भी चुप नहीं बैठेंगे।

यह कोई पहला मामला नहीं है कि आदिवासी नक्सल उन्मूलन अभियान के नाम पर पुलिसिया हिंसा का शिकार हुए हैं। इसकी एक लंबी फेहरिश्त है।

गिरिडीह (मधुबन) के पारसनाथ पहाड़ की तराई में बसा आदिवासी गांव ढोलकट्टा का मोतीलाल बास्के की 4 जून 2017 को सीआरपीएफ द्वारा की गई हत्या का मामला हो या लातेहार के पिरी में 12 जून 2021 को सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासी ब्रम्हदेव सिंह की हत्या का मामला, उनके परिजनों को आजतक इंसाफ नहीं मिला। जबकि मोतीलाल बास्के की हत्या के खिलाफ हुए कार्यक्रमों में तब की रघुवर सरकार में विपक्ष में रहे हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी एक मंच पर शामिल रहे और मोतीलाल की हत्या पर उनके परिजनों के लिए इंसाफ की मांग भी की थी। आज वही हेमंत सोरेन राज्य के मुखिया हैं और बाबूलाल मरांडी विपक्ष में, बावजूद मोतीलाल के परिजनों को अभी तक कोई इंसाफ नहीं मिला है।

आदिवासियों के साथ पुलिसिया हिंसा व मानवाधिकार उल्लंघन के फेहरिश्त पर हम बात करें तो 11 नवम्बर 2022 को पश्चिमी सिंहभूम के बिरियाबेड़ा में सुरक्षा बलों द्वारा अभियान के दौरान गांव की कई महिलाओं समेत निर्दोष आदिवासियों की पिटाई की गयी, एक नाबालिक लड़की के साथ बलात्कार के उद्देश्य से छेड़खानी की गयी और घरों में रखे समान व खलियान में रखे धान को तहस नहस किया गया। जून 2020 में भी सुरक्षा बल के जवानों ने सर्च अभियान के दौरान इसी गांव के आदिवासियों को डंडों, बैटन, राइफल के बट और बूटों से बेरहमी से पीटा था। लेकिन आज तक न दोषी सुरक्षा बलों के विरुद्ध कार्रवाई हुई और न ही पीड़ितों को मुआवज़ा मिला। न्यायालय में भी पीड़ितों का बयान दर्ज करवाने में जांच पदाधिकारी का रवैया नकारात्मक और उदासीन रहा है।

बता दें कि पिछले साल 2022 में लातेहार में टाना भगत आदिवासियों द्वारा पांचवी अनुसूचि प्रावधानों को सही रूप से लागू करने के लिए शान्तिपूर्ण आन्दोलन किया जा रहा था। इसी क्रम में वे 10 अक्टूबर 2022 को पुलिस द्वारा की गयी व्यापक हिंसा को लेकर स्थानीय न्यायालय के न्यायाधीश से मिलने के लिए शांतिपूर्ण रूप से मांग कर रहे थे। इसके बाद अनेक टाना भगतों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए एवं अनेकों को गिरफ्तार किया गया। साथ ही कई महीनों से जिला के तुबेद समेत अन्य गावों में डीवीसी द्वारा प्रस्तावित कोयला खनन के विरुद्ध चल रहे आन्दोलन से जुड़े कई आदिवासियों को भी इन मामलों में जोड़ा गया जबकि वे 10 अक्टूबर को घटना स्थल पर थे भी नहीं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि टाना भगतों के विरुद्ध कथित हिंसा के आरोप लगाकर एवं उन पर फ़र्ज़ी मामले दर्ज कर आदिवासियों की ज़मीन का जबरन अधिग्रहण करना मकसद है।

मामले की चर्चा करें तो 23 फ़रवरी 2022 की रात करीब एक बजे लातेहार का ही गारू थाना के थाना प्रभारी रंजीत कुमार यादव पुलिस बल के साथ कुकू गांव (बरवाडीह प्रखंड, लातेहार) से अनिल कुमार सिंह, पिता स्व चमन सिंह और उनके दो मेहमानों, अजय भगत व राम किशुन भगत को गारू थाना ले गए। गारू थाना में अनिल सिंह को नक्सलियों को मदद करने के आरोप पर थाना प्रभारी ने अपने कक्ष में दो अन्य पुलिस कर्मियों के साथ मिलकर लाठियों से बुरी तरह पीटा। उनके शरीर के पिछले भाग, छाती और पैर में सैंकड़ों बार लाठी से मारा गया। मार खाते-खाते उनके शारीर के कई भाग से चमड़ी निकल गयी। पिटाई के बाद प्रभारी ने उनके पीछे से कपड़े के ऊपर से उनके पैखाने के रास्ते पेट्रोल डाल दिया। उन्हें 25 फ़रवरी तक गैर-क़ानूनी रूप से थाना में रखा गया। इस दौरान दबाव देकर अनिल का खून से लथपथ अंडरवियर और पैंट खुलवा के रख लिया गया। ऐसी दर्दनाक घटना के बावजूद भी अभी तक दोषी पुलिस अधिकारी के विरुद्ध न उचित कार्रवाई हुई है और न पीड़ित को मुआवज़ा मिला है।

एक अन्य मामले में बोकारो जिला का गोमिया प्रखंड अंतर्गत लालगढ़ गांव के 50 वर्षीय आदिवासी संजय मांझी, पिता- स्व. बबुआ माझी, जो अशिक्षित हैं एवं पेशे से राज मिस्त्री हैं, को 27 दिसम्बर 2021 को जोगेश्वर बिहार थाना प्रभारी द्वारा थाना में बुलाकर कहा गया कि उनके विरुद्ध कुर्की जब्ती का नोटिस निर्गत हुआ है। उन्हें कहा गया कि 2014 के एक माओवादी घटना (रेल पटरी उड़ाने में) में वे आरोपित हैं और फ़रार रहने के कारण कुर्की जब्ती की कार्रवाई की जाएगी। जबकि न वे फ़रार थे और न ही उनका माओवादी पार्टी या 2014 की किसी ऐसी घटना से कोई सम्बन्ध है।


वहीं चोरपनिया गांव के अत्यंत गरीब बिरसा मांझी, पिता रामेश्वर मांझी को भी 2022 में स्थानीय थाना में बुलाकर कहा गया कि वे एक लाख रु इनामी नक्सल हैं एवं उन्हें सरेंडर करने के लिए कहा गया। लेकिन न बिरसा मांझी का माओवादी पार्टी से जुड़ाव है और न ही उनके किसी घटना से। वे गांव के एक गरीब मज़दूर हैं जो रोज़गार के लिए अक्सर अपने बेटे के साथ ईंट भट्टा में काम करने के लिए पलायन करते रहे हैं। गोमिया में ऐसी परिस्थिति के शिकार अनेक निर्दोष आदिवासी-मूलवासी होते रहे हैं। गोमिया व नवाडीह प्रखंडों के कई निर्दोष आदिवासी- मूलवासी वंचितों पर माओवाद के फ़र्जी आरोप व यूएपीए मामला दर्ज किया गया है। वे पिछले कई सालों से बेल के लिए एवं अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

वहीं 12 जून 2021 को सरहुल पर्व के पहले जंगल में पारंपरिक शिकार करने निकले पिरी गांव (गारू) के आदिवासी युवकों पर नक्सल अभियान पर निकले सुरक्षा बलों द्वारा फायरिंग की गई जिसमें 24 वर्षीय ब्रम्हदेव सिंह की गोली लगने से मौत हो गयी, ग्रामीणों ने पुलिस को देखते ही हाथ उठा दिए थे और चिल्लाए थे कि वे आम जनता हैं। उन्होंने चिल्लाकर गोली न चलाने का अनुरोध भी किया था। वहीं पीड़ितों द्वारा उनके भरटुआ बंदूक (जो छोटे जानवरों के पारंपरिक शिकार व फसल को जानवरों से बचाने के लिए इस्तेमाल होती है) से कोई फायरिंग भी नहीं की गयी थी। सुरक्षा बल व पुलिस द्वारा इस मामले को एक मुठभेड़ का जामा पहनाने की कोशिश की गयी। पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में भी तथ्यों से विपरीत बाते दर्ज है। साथ ही मृत ब्रम्हदेव समेत छः पीड़ित आदिवासियों पर आर्म्स एक्ट समेत कई धाराओं अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी है। बता दें कि मृतक ब्रम्हदेव सिंह की पत्नी द्वारा 29 जून 2021 को पति के हत्या के लिए दोषी सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी, लेकिन स्थानीय कोर्ट के आदेश के बाद ही एक साल बाद मामला दर्ज हुआ। बावजूद आज तक न जीरामनी की गवाही दर्ज हुई, न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला और न ही दोषियों पर कार्रवाई हुई।

एक और मामले मे 29 अप्रैल 2021 को राज्य के चौपारण में छक्कन भुइयां को, जो बाईक से अपने एक रिश्तेदार की शादी में जा रहा था, पुलिस ने लॉकडाउन तोड़ने के नाम पर उसे पीटा, जिससे उसकी मौत हो गयी। छक्कन एक अत्यंत गरीब दलित परिवार का सदस्य था। आज तक परिवार को न मुआवज़ा मिला और न ही हिंसा के लिए दोषी पुलिस पर कार्रवाई हुई है।

पिछले कई वर्षों में राज्य के अनेक ज़िलों में सरकारी विद्यालयों में सुरक्षा बलों / पुलिस कैंप की स्थापना की गयी है। जिसके कारण अनेक विद्यालयों को बंद कर दिया गया है। कई विद्यालयों में तो कैंप के साए में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। जबकि गांवों में कैंप की स्थापना के लिए ग्रामसभा की सहमति नहीं ली गई है। पुलिस के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में पूरे राज्य में 44 कैम्पों की स्थापना की गयी है, जिसमें 22 कैंप तो 2022 में स्थापित किए गए हैं।

जहां पिछली सरकार द्वारा व्यापक पैमाने पर राज्य में आदिवासियों, गरीबों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध फ़र्ज़ी आरोपों पर यूएपीए कानून व राजद्रोह धारा का इस्तेमाल किया गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2015-19 के बीच यूएपीए के मामलों में 138% की वृद्धि हुई, जबकि वास्तविक आंकड़े और अधिक होंगे। वहीं दुःख की बात है कि 2020 व 2021 में यानी वर्तमान सरकार में भी राज्य में यूएपीए के 80 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। अभी भी निर्दोष ग्रामीण ऐसे मामलों से जूझ रहे हैं। स्थिति आज भी यथावत है।

राज्य में हाल की घटनाओं की बात करें तो पिछले साल यानी 2022 में राज्य के कई जिलों (लोहरदगा, कोडरमा आदि) में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा और धार्मिक उन्माद की घटनाएं हुई थी। अल्पसंख्यक इलाकों में भड़काऊ गाने बजाए गये और बयानबाजी की गयी, जिससे कई जगहों पर हिंसा भड़की और अल्पसंख्यकों की दुकानों और घरों में तोड़फोड़ की गयी, कई दुकानें जलाई गयीं। इस दौरान लोहरदगा में अमन अंसारी की भीड़ द्वारा हत्या हुई। अधिकांश घटना स्थलों पर पुलिस इस बहुसंख्यक हिंसा के विरुद्ध मूकदर्शक बनी रही और न्याय व कानून के पालन के प्रति प्रतिबद्ध नहीं दिखी। साथ ही, भीड़ द्वारा की हिंसा के मामलों में सरकारी वकील पीड़ित के पक्ष में अपनी जिम्मेवारी नहीं निभा रहे हैं। उदाहरण के लिए, गुमला के आदिवासी प्रकाश लकड़ा की लिंचिंग मामले (डुमरी थाना कांड संख्या 09/2019) में आप सही से केस को कन्डक्ट नहीं कर रहें है। पीड़ित पक्ष के गवाहों का कहना है कि उनसे कहा गया कि गवाही में कोर्ट में कह दें कि घटना के बारे मैं कुछ नहीं जानते। इस केस में ही जब अभियुक्तों द्वारा हाई कोर्ट में बेल फाइल किया गया, जिसमें हाई कोर्ट ने सरकारी वकील को काउंटर एफिडेविट फाइल करने का आदेश दिया, मगर सरकारी वकील ने फाइल नहीं किया, जिस कारण अभियुक्तों को बेल मिल गयी।

सच तो यह है कि चाहे मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हों, सामाजिक कार्यकर्त्ता हों या पत्रकार हो जिसने भी इन जनमुद्दों पर आवाज उठाई है वे सत्ता का कोपभाजन हुए हैं।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

More From Author

मुख्यमंत्री मान ने की जीरा शराब फैक्ट्री बंद, किसान आंदोलन की बड़ी जीत                                                                                                    

जोशीमठ के विनाश की कहानी में हिमाचल देख रहा अपना दर्दनाक भविष्य!

One thought on “नक्सल उन्मूलन के नाम पर आदिवासी हो रहे हैं पुलिसिया हिंसा का शिकार

  1. पत्रकार भाई साहब आपको महा सलाम वर्तमान मे सच्चाई को सामने लाने के लिए हृदय से धन्यवाद के पात्र है 👏👏❤❤

Leave a Reply