रायपुर। स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बीत जाने के बाद यदि आज हम स्वतंत्रता के आन्दोलन में फली-बढ़ी हमारी मिली-जुली साझी सांस्कृतिक विरासत को राजनीति की भेंट चढ़ जाने देंगे तो किस तरह देश में सामाजिक एकता को बचाए रख पायेंगे?
देश की शिक्षा व्यवस्था में विशेषकर इतिहास में किये जा रहे परिवर्तनों पर बोलते हुए देश के जानेमाने शिक्षाविद् लेखक-वक्ता तथा सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसाईटी एंड सेक्युलरिज्म की कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर राम पुनियानी ने कहा कि इतिहास तोड़-मोड़ कर देश की भावी पीढ़ी के सामने परोसने के परिणाम भारत की अगली पीढ़ियों के मानसिक विकास में अवरोध के रूप में सामने आयेंगे।
राम पुनियानी यहां गुरुवार 26 दिसम्बर को नगर के वृन्दावन हाल में रायपुर के शान्ति, साहित्य, कला, मजदूर, कर्मचारी और वकीलों के जनसंगठनों के द्वारा उनके सम्मान समारोह में आयोजित सभा में साम्प्रदायिक सद्भाव की विरासत और देश की वर्तमान परिस्थिति पर बोल रहे थे।
उनका कहना था कि राजाओं की आपसी लड़ाई को आज हिंदू-मुस्लिम के रंग में रंग कर सांप्रदायिकता का वैमनष्य फैलाया जा रहा है। जबकि हिंदू राजा हो या मुस्लिम राजा दोनों की सेनाओं में हिंदू-मुसलमान दोनों थे। यह राजाओं व राज्य को लेकर लड़ाई थी। कोई अच्छा या बुरा प्रशासक हो सकता है, लेकिन यह कतई हिंदू-मुस्लिम की लड़ाई नहीं थी।
उन्होंने कहा कि आवश्यकता इसकी है कि आज इतिहास का भी अध्ययन वैज्ञानिक चेतना के साथ किया जाए और उसी चेतना के साथ भावी पीढ़ी को भी उससे परिचित कराया जाए। उन्होंने कहा कि आप जैसे जनसंगठनों का यह दायित्व है कि वे अपने अपने क्षेत्र में निर्धारित कार्य को करते हुए समाज में वैज्ञानिक चेतना को जगाने के काम को भी हाथ में लें।
यह काम इस तरह की सभाओं को छात्रों और युवाओं के बीच में आयोजित करके और उन्हें इसी तरह के साहित्य के अध्ययन के लिए प्रेरित करके ही किया जा सकता है।
आज राजनीति में सत्ता को प्राप्त करने और बनाये रखने के लिये भाई को भाई से लड़ाने का उपक्रम चल रहा है। सही इतिहास की जगह झूठा इतिहास रचा जा रहा है और प्रसारित किया जा रहा है। धर्म को सत्ता का हथियार बनाने वाले जानते हैं कि भ्रम जितना ज्यादा फैलेगा उतना ज्यादा उनको फायदा है।
लोग असली मुद्दों को छोड़कर मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि सामाजिक संगठनों को नियमित रूप से समाज में जनचेतना जगाने का काम करना चाहिए।
इतिहास को इतिहास के वास्तविक नजरिए से रखना चाहिए। जनता के बीच जाकर काम करने की जरूरत है। वोट की लड़ाई से ज्यादा महत्वपूर्ण सामाजिक लड़ाई है। समाज पर काम किये बिना सांप्रदायिक ताकतों से पार नहीं पाया जा सकता, जो कि इस देश के लिए बेहद खतरनाक है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में अपनी बात रखते हुए भूतपूर्व मंत्री सत्य नारायण शर्मा ने कहा कि आज जिस तरह से समाज को बांटा जा रहा है, ऐसा पहले नहीं हुआ। इनसे सावधान रहने की जरूरत है। मौजूदा सत्ता देश को रसातल में ले जा रही है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन के राज्य महासचिव अरुण कान्त शुक्ला ने की। मंच संचालन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता व डॉ. अशोक शिरोडे ने किया। प्रारम्भ में तुहिन देव ने आधार वक्तव्य दिया। एडवोकेट लखन सिंह ने स्वागत भाषण दिया।
कार्यक्रम के आखिर में श्रोताओं की ओर से आये सवालों का जबाब देते हुए उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इसे अपनाने पर जोर दिया कि बिना वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखे कोई समाज जागरुक नहीं हो सकता।
जनसंगठनों के संयुक्त मंच की तरफ से एडवोकेट ओपी सिंह ने राम पुनियानी को उनके सतत सामाजिक कार्यों का उल्लेख करते हुए प्रशस्ति पत्र भेंटकर उनका सम्मान किया। प्रशस्ति पत्र का वाचन सुरेखा जांगड़े ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत इप्टा के कलाकार निसार अली व उनके साथियों द्वारा प्रस्तुत जनगीतों के साथ हुई।
संयुक्त मंच में एप्सो, इप्टा, प्रलेस, जसम, जलेस, सीटू, एटक, कसम, मुस्लिम इंटलेक्चुअल फोरम, इंडियन लॉयर्स एसोसिएशन, प्रगतिशील महिला संघर्ष समिति, बैंक एसोसिएशन, बी.एस. एन. एल. कर्मचारी एसोसिएशन, क्रिस्चियन व मुस्लिम तथा सिख समुदाय के प्रतिनिधि शामिल थे।
(अरुण कांत शुक्ला की रिपोर्ट)
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