मिर्ज़ापुर। अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने से लेकर जंगे आजादी की लड़ाई में मिर्ज़ापुर जिले के उपरौध (लालगंज) क्षेत्र का खासा योगदान रहा है। योगदान ऐसा की ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलने लगी थीं। उस दौर के बचे हुए लोगों की जुबानी कहानी सुनने मात्र से ही देशभक्ति की भावना हिलोरें मारने लगती हैं।
लोग बताते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का न केवल उपरौध क्षेत्र गवाह रहा है, बल्कि लालगंज थाने का घेराव कर अंग्रेज सैनिकों के पसीने बहा दिए थे।
देश में सन 1942 में जब अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो के नारे के साथ आंदोलन शुरू हो चुका था। तब पूरे देश में नौजवान अंग्रेजों के विरोध में संगठित हो रहे थे। उसी दौरान उपरौध की पावन धरा लालगंज के पतुलखी गांव निवासी शिवमूर्ति दुबे व कठवार गांव निवासी रविनंदन दुबे ने हजारों (ज्यादातर आदिवासी) लोगों के साथ लालगंज थाने को घेर लिया था।
इनके साथ में राजमणि दुबे, केदारनाथ तिवारी, केदारनाथ मालवीय एवं सैठोले कोल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। इनके जेल जाने के बाद क्रांति की यह चिंगारी शोला बन गई थी।
युवा पत्रकार अमित तिवारी अपने पूर्वजों और उपरौध क्षेत्र से जुड़ी देश की आजादी गौरव गाथा का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि “उपरौध क्षेत्र के पथरीली चट्टान, राहों से होते हुए अमर सपूतों का कारवां गुजरा है। जाति मजहब, ऊंच-नीच की सारी सरहदों को पार करते हुए देश की आजादी का जोश-जुनून सभी में समाया हुआ था।”
वे अपने नाना पंडित राजमणि दुबे की चर्चा करते हुए वह बताते हैं कि “वह दौर कुछ और ही था जब देश के लिए लोग मर मिटने को तैयार रहा करते थे। जिनके जोश के आगे ब्रिटिश हुकूमत की सारी यातनाएं, तरह-तरह के प्रलोभन भी औंधे मुंह गिर पड़े थे।”
आदिवासी नवयुवकों से खौफ खाती थी ब्रिटिश हुकूमत
उपरौध की धरा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिवमूर्ति दुबे, रविनंदन दुबे जमींदार परिवार से थे, लेकिन वतन की आजादी के लिए उन्होंने सभी सुखों का त्याग दिया और जेल में यातनाएं सही। इन्हें अंग्रेजों की दासता कदापि नहीं स्वीकार रही। यही कारण रहा कि इन्हें जेल भेज दिया गया था। लालगंज थाने के मुख्य द्वार के पास अशोक स्तंभ लाट है।
उस शिलालेख पर राजमणि दुबे, शिवमूर्ति दुबे, रविनंदन दुबे, केदारनाथ तिवारी, केदारनाथ मालवीय, सैठोले कोल का नाम अंकित है। यह सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सच्चे गांधीवादी थे।
आदिवासी समाज के अमर सपूत सैठोले कोल ने महुलरिया गांव के पास के जंगल में हजारों की संख्या में इकठ्ठा कर कोल समुदाय के लोगों की सभा की थी और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का आह्वान किया था। उन्होंने आदिवासी नवयुवकों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने का संकल्प दिलाया था।
इसकी जानकारी पाकर बौखलाई अंग्रेजी पुलिस ने सैठोले कोल की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी थी। सैठोले उस समय पूर्वांचल में इकलौते आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। जिनकी अंग्रेजों में दहशत रहती थी। लोग बताते हैं कि उस दौर में आदिवासी नवयुवकों का ऐसा खौफ था कि ब्रिटिश हुकूमत के लोग गांव में पैर रखने से पहले सौ बार सोचते थे, तब कहीं जाकर कदम बढ़ाते थे।
उपरौध क्षेत्र का प्रसिद्ध मिलिट्री ग्राउंड, लालगंज में जब अंग्रेजी पुलिस से तीन उपाध्याय बंधुओं से टकराव हुआ था। लालगंज के तत्कालीन सरपंच अमृतलाल उपाध्याय के दो भाईयों रघुनाथ व श्याम सुंदर उपाध्याय की अंग्रेजी सत्ता की पुलिस से लालगंज मिलिट्री ग्राउंड में झड़प हो गई थी।
खबर मिलते ही सरपंच अमृतलाल उपाध्याय भाइयों के साथ लालगंज में स्थापित अंग्रेजी थाना में घुसकर पुलिस की पिटाई किए थे। जिले भर में यह खबर इस तरफ फैली की लालगंज में आजादी की क्रांति का बिगुल बज चुका है। पुलिस और उपाध्याय बंधुओं की लड़ाई थाने में पंजीकृत कर दिया गया।
उस समय न्यायालय मिर्जापुर में होता था सो, मुकदमा पंजीकृत होने के बाद लालगंज थाने की पुलिस धर पकड़ में जुट गई। सरपंच होने के कारण अमृतलाल और उनके भाई श्याम सुंदर उपाध्याय और रघुनाथ उपाध्याय के विरोध में जांच टीम गठित कर दिया गया।
पुलिस टीम गिरफ्तारी के लिए जगह-जगह छापेमारी करने लगी। न्यायालय ने गवाह पेश करने के लिए अवसर दिया। विवाद से संबंधित प्रकरण को देखते हुए उपाध्याय बंधुओ ने आधा दर्जन गवाह में नाम दिए थे। समय आने पर पुलिस के विरुद्ध गवाही के लिए केवल दो व्यक्ति ही मिर्जापुर न्यायालय पहुंचे।
हक की लड़ाई लड़ने वाले उपाध्याय बंधुओं की कहानी उपरौध और मिर्जापुर जिले में चारों तरफ गूंजने लगी थी।
अंग्रेजी पुलिस का दहशत इस तरह था कि कोई भी गवाह अंग्रेजों के विरोध में गवाही देने के लिए खड़ा होने को तैयार नहीं था। उसमें दो गवाह लालगंज के प्रतिष्ठित व्यापारी अडंगा साव और पाल बस्ती के नचकू पाल, अंग्रेजी शासन के मजिस्ट्रेट के सामने अपनी गवाही में बताया कि पुलिस की गलती थी।
वह मिलिट्री ग्राउंड में दहशत पैदा कर रही थी। ग्रामीणों को परेशान कर रही थी। जिसके कारण सरपंच अमृत लाल उपाध्याय उनके भाई रघुनाथ उपाध्याय और श्याम सुंदर उपाध्याय से टकराव हुआ था। क्षेत्र में यह कहानी आज भी लोगों की जुबान पर मिलिट्री ग्राउंड की लड़ाई के तौर पर चर्चा के केंद्र में बनी हुई है।
इस संबंध में नाशक गोपाल के नाती इंद्रपाल कहते हैं कि “दादा साहसी थे और उपाध्याय बंधुओं के साथ खड़े थे।” बल्हिया कला निवासी प्रभाशंकर तिवारी कहते कि “जो लड़ाई उपाध्याय बंधुओं ने अंग्रेजी पुलिस से लड़ी वह शानदार थी, क्योंकि उसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट ने फैसला इनके पक्ष में दिया था।
देश की आजादी के बाद उनके परिवार के लोग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पदवी लेने से इनकार किया था। तत्कालीन सरपंच के नाती लालगंज के प्रधान कृष्ण प्रसाद उपाध्याय उर्फ नचकऊ ने कहा कि देश सेवा के बदले कुछ नहीं चाहिए। देश और समाज से बड़ा कोई नहीं होता, फिर देश और समाज की सेवा का ‘मोल’ कैसा।
विदित हो कि मिर्ज़ापुर जिले का उपरौध क्षेत्र जिसे लालगंज तहसील के रूप में जाना एवं पहचाना जाता है। इसकी सरहदें पड़ोसी जिले प्रयागराज (तब के इलाहाबाद) से लेकर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश से लगी हुई हैं।
यह क्षेत्र आजादी की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ अपने प्राकृतिक सौंदर्य, पहाड़ों-झरनों, पहाड़ी नदियों, जंगलों-पहाड़ों से लेकर, दुर्लभ वन्य जीव अभ्यारण्य क्षेत्र के रूप में भी विख्यात है।
(मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट )