गांव की लड़कियों को भी खेलने के अवसर मिलने चाहिए

Estimated read time 1 min read

करणीसर, राजस्थान। हाल ही में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व स्पिनर नीतू डेविड को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने अपने हॉल ऑफ़ फेम में शामिल किया है।

यह सम्मान प्राप्त करने वाली वह दूसरी भारतीय महिला क्रिकेटर हैं। नीतू दुनिया की अकेली ऐसी महिला क्रिकेटर हैं, जिनकी सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी का रिकॉर्ड अभी तक कोई महिला क्रिकेटर तोड़ नहीं सकी है।

सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, बल्कि खेल की ऐसी कोई प्रतियोगिता नहीं है, जिसमें महिलाओं ने अपनी कामयाबी के झंडे नहीं गाड़े हैं। जिला स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की सभी प्रतिस्पर्धाओं में महिलाओं ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर यह साबित किया है कि यदि उन्हें भी सुविधाएं और प्रैक्टिस के अवसर मिले तो वह हर प्रतियोगिता जीत सकती हैं।

लेकिन अभी भी देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां लड़कियों को न तो खेल की सुविधाएं मिलती हैं और न ही प्रैक्टिस के लिए मैदान उपलब्ध हो पाते हैं। जिससे उनकी प्रतिभा प्रभावित होती है और वह खेलने के अवसरों से वंचित हो जाती हैं।

ऐसा ही एक गांव करणीसर भी है, जो राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक से करीब 50 किमी दूर स्थित है। इस गांव की लड़कियों में खेल की काफी प्रतिभाएं हैं, लेकिन उसे निखारने के लिए प्रैक्टिस की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।

इस संबंध में गांव की 22 वर्षीय ममता कहती है कि उसे खेलने का बहुत शौक था। वह स्कूल स्तर पर खो-खो खेला करती थी। उसने जिला स्तर पर स्कूली खेल प्रतियोगिताएं में भाग भी लिया था और स्कूल के लिए सिल्वर मेडल जीता था।

लेकिन कॉलेज स्तर पर उसे अवसर नहीं मिला क्योंकि प्रैक्टिस की सुविधा नहीं थी। वह कहती है कि गांव में खेलने के लिए कोई मैदान नहीं है। जिससे प्रैक्टिस नहीं कर पाती हैं। वहीं एक अन्य किशोरी संगीता कहती है कि खेल में अच्छे प्रदर्शन के लिए लगातार प्रैक्टिस की ज़रूरत होती है।

गांव के लड़के तो कहीं भी जाकर खेल की प्रैक्टिस कर लेते हैं लेकिन लड़कियों को ऐसे अवसर नहीं मिलते हैं। जिससे वह अभ्यास से वंचित रह जाती है।

खेल सामाजिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इससे शारीरिक और मानसिक विकास के साथ अनुशासन और टीम भावना का विकास होता है। लेकिन जब इसमें लड़कियों की भागीदारी और उन्हें मिलने वाले अवसरों की बात आती है तो वह बहुत सीमित हो जाती है।

उन्हें कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि पिछले कुछ दशकों में खेल प्रतियोगिताओं में लड़कियों के भाग लेने की संख्या में वृद्धि अवश्य हुई है, इसके बावजूद उनके सामने अभी भी कई अड़चनें हैं, जो उन्हें इस क्षेत्र में पूरी तरह से शामिल होने से रोकती है।

सबसे बड़ी अड़चन लड़कियों के खेलने के प्रति समाज की संकुचित सोच है। पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक समाज खेल को पुरुष-प्रधान गतिविधियां मानता है और लड़कियों को शारीरिक रूप से कमजोर मानकर उन्हें इससे दूर रखने का प्रयास करना चाहता है।

प्रोत्साहित करने की जगह उनका मनोबल तोड़ा जाता है। वहीं करणीसर जैसे गांव में सुविधाओं की कमी किशोरियों के इस राह में एक और रुकावट बन जाती है।

इस संबंध में गांव की 23 वर्षीय जया विश्नोई कहती हैं कि “बचपन से ही मेरा सपना था कि मैं एक सफल क्रिकेटर बनूं और भारतीय टीम का हिस्सा बनूं। मैं मिताली राज से बहुत प्रभावित थी।

स्कूल में खेलने के अवसर मिल जाते थे। लेकिन अब गांव में प्रैक्टिस की ऐसी कोई जगह नहीं है जहां हम लड़कियां क्रिकेट का अभ्यास कर सकें। जिससे राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट खेलने का मेरा सपना पूरा नहीं हो सका। मेरी दिली इच्छा है कि जो मेरे साथ हुआ वह मेरे बाद की किशोरियों के साथ न हो।

उन्हें अपनी मर्ज़ी के खेल खेलने और प्रैक्टिस के भरपूर अवसर मिले। इसके लिए गांव में ऐसी जगह होनी चाहिए जहां लड़कियां अपने-अपने खेल का पूरा अभ्यास कर सकें। जया कहती है कि इसके लिए गांव के लोगों और पूरे समाज को गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है ताकि लड़कियां भी खेल में आगे बढ़ कर करणीसर गांव का नाम रौशन कर सकें।

वह कहती है कि हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर लड़कियों को घरेलू कार्यों तक सीमित रखा है। उन्हें शिक्षा तक से भी वंचित करने का प्रयास किया जाता है।

ऐसे में खेल गतिविधियों में भाग लेने के लिए उनके पास बहुत कम विकल्प रहते हैं। लड़कियां खेलने के अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाती हैं। लेकिन अगर उन्हें अवसर और सुविधाएं मिले तो परिदृश्य बदल सकता है।

23 वर्षीय एक अन्य किशोरी शारदा पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती है कि पहले की तुलना में अब खेलों में लड़कियों की भागीदारी बढ़ने लगी है। सरकार भी खेलो इंडिया के माध्यम से इस क्षेत्र में किशोरियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।

जिससे कई किशोरियों ने अपनी पहचान बनाई है। इसकी वजह से ओलंपिक और राष्ट्रमंडल जैसे अंतरराष्ट्रीय खेलों में भारतीय महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। इसके अतिरिक्त विभिन्न खेलों में महिला लीग की शुरुआत कर किशोरियों को खेल के मंच भी उपलब्ध कराये जा रहे हैं।

हाल के अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं में कई महिला खिलाड़ियों ने पदक जीतकर इस धारणा को मज़बूत किया है कि यदि लड़कियों को भी अवसर उपलब्ध कराये जाएं तो वह भी देश के नाम मैडल जीत सकती है।

वह कहती है कि अब कई परिवार अपनी बेटियों को खेलों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। लेकिन इसके लिए अभ्यास महत्वपूर्ण है जिसके लिए मैदान की ज़रूरत होती है। जिसका करणीसर गांव में अभाव है।

इसी वर्ष तमिलनाडु में आयोजित छठे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में राजस्थान के खिलाड़ियों ने भी विभिन्न प्रतिस्पर्धा में बेहतरीन प्रदर्शन कर राज्य को टॉप 5 में स्थान दिलाया है। इसमें लड़कों के साथ-साथ लड़कियों ने भी बेहतरीन प्रदर्शन किया और राज्य की झोली में स्वर्ण पदक डाला।

अपने प्रदर्शन से इन्होंने यह साबित किया कि यदि लड़कियों को भी अवसर उपलब्ध कराए जाएं तो वह भी अपने गांव, जिला और राज्य का नाम रौशन कर सकती है। इतना ही नहीं, वर्ष 2009 में, निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ-साथ, बच्चों को विभिन्न खेलों और मनोरंजन में शामिल करने के लिए खेल के मैदानों को अनिवार्य बनाया गया।

क्योंकि इससे उन्हें आवश्यक जीवन कौशल, आदतें और दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलती है। इस अधिनियम के लागू होने के बाद कई बच्चों को इसका लाभ हुआ है, लेकिन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद भी जमीनी स्थिति पर नजर डालें तो आज भी हजारों बच्चे विशेषकर लड़कियां खेल की सुविधा से वंचित हैं। 

वास्तव में, खेल का मैदान सिर्फ मैदान नहीं होता है बल्कि यह एक ऐसा मंच होता है, जहां प्रतिभाएं हकीकत का रूप लेती हैं। लेकिन इसकी कमी ने करणीसर गांव की किशोरियों की क्षमता को सीमित कर दिया है। जिस पर सभी को ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि उन्हें भी खेलने का भरपूर अवसर मिले और वह भी एक उज्ज्वल भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकें।

(लूणकरणसर से सरिता नायक की रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author