Friday, April 19, 2024

सरकारी कृपा से गुरमीत राम रहीम फिर पैरोल पर रिहा

डेरा सच्चा सौदा का मुखिया गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर 40 दिन की पैरोल पर बाहर आ गया है। शुक्रवार को हरियाणा के रोहतक मंडल के आयुक्त संजीव वर्मा ने पुष्टि की कि गुरमीत राम रहीम को 40 दिन की पैरोल दी गई है और यह नियमानुसार है। राज्य के जेल मंत्री रंजीत सिंह ने भी इशारा किया था कि गुरमीत को पैरोल पर 40 दिन के लिए रिहा किया जा सकता है।

पैरोल पर बाहर आने के बाद वह 40 दिन वह उत्तर प्रदेश के बरनावा डेरे में रहेगा। पिछली बार भी वहीं रहा था। हत्या और बलात्कार के मामलों में आजीवन उम्र कैद काट रहा डेरेदार रोहतक जिले के सुनारिया जेल का कैदी है। उस पर दो हत्याओं और दो साध्वियों के साथ बलात्कार के गंभीर आरोप हैं, जो साबित हो चुके हैं और जिनके तहत वह बकायदा सजायाफ्ता है।

उसे सिरसा के पत्रकार छत्रपति और डेरा सच्चा सौदा के पूर्व प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्या की साजिश रचने के आरोपों में उम्र कैद की सजा मिली हुई है। दोनों सजाएं अलग-अलग हैं। यानी एक सजा पूरी होने के बाद दूसरी शुरू होगी। खुद को बेकसूर बताते हुए उसने सुप्रीम कोर्ट में भी अर्जी दाखिल की हुई है। डेरेदार के खिलाफ पंजाब में बेअदबी का गंभीर मामला भी दर्ज है। वह सिर से लेकर पांव तक दागदार है!

20 जनवरी को उसे पैरोल दिए जाने के फैसले ने लोगों को जबरदस्त हैरानी में डाल दिया है। इसलिए भी कि वह बीते साल 14 अक्टूबर को पेरोल पर 40 दिन के लिए बाहर आया था और 25 नवंबर को उसकी जेल वापसी हुई थी। दो महीने की अल्प अवधि में ही उसे दूसरी पैरोल बड़ी आसानी से मिल गई है। वह भी पूरे 40 दिन के लिए। पिछले साल वह तीन बार पैरोल पर बाहर आ चुका है। 2022 में गुरमीत राम रहीम सिंह पूरे 91 दिन पैरोल पर बाहर रहा। एक बार को छोड़कर, उसे यूपी के बरनावा डेरे में ही रहने की शर्त के साथ पैरोल और फरलो दी गईं।

चौतरफा पूछा जा रहा है कि आखिर हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी सरकार संगीन मामलों में सजायाफ्ता हुए डेरेदार गुरमीत राम रहीम सिंह पर आखिर क्यों इतनी ‘मेहरबान’ है? देश में यह संभवतः पहला मामला है कि संगीन मामलों के दोषी तथा सख्त सजा काट रहे किसी शख्स को इतनी ज्यादा बार और इतनी कम अवधि में पैरोल पर  (तदर्थ ही सही) रिहाई-दर-रिहाई मिल रही है। जबकि आम आदमी को हफ्ते की पैरोल पर बाहर आने की कवायद में महीनों लग जाते हैं और पैरोल की अवधि भी बहुत सीमित होती है।

तथाकथित ‘संत’ बापू आसाराम को एक बार भी पैरोल नहीं दी गई जबकि वह अपेक्षाकृत नरम धाराओं में जेल की सलाखों के पीछे है। ऐसे और भी बेशुमार मामले लंबित हैं। लेकिन गुरमीत राम रहीम सिंह पर बार-बार मेहरबानी के पीछे के रहस्य को आम लोग नहीं समझ पा रहे। जबकि उसकी हर पैरोल के खिलाफ छत्रपति और रणजीत का परिवार प्रशासन के खिलाफ अदालत तक भी जाता है।

पिछले साल की आखिरी पैरोल वाला मामला अभी अदालत में लंबित ही है की डेरेदार फिर से सलाखों से बाहर है। प्रत्येक पैरोल पर रिहाई के बाद गुरमीत राम रहीम सिंह अपनी प्रत्यक्ष गतिविधियां पहले की तरह जारी रखता है।वर्चुअल सिस्टम के जरिए वह बाकायदा सत्संग करता है और गाने रिकॉर्ड करवाता है। हरियाणा में डेरा मुख्यालय के साथ-साथ, अन्य तमाम उप-डेरों में उसके लंबे लाइव सत्संग होते हैं।                 

पैरोल के लिए अपने वकीलों के जरिए वजह बताना अपरिहार्य है और इसके लिए अनिवार्य तौर पर जेल अधीक्षक की संस्तुति चाहिए होती है और उसके बाद डिप्टी कमिश्नर या कमिश्नर अपने तौर पर पैरोल पर फैसला लेते हैं। उसके लिए कुछ शर्ते रखी जाती हैं। पैरोल के नियम काफी सख्त हैं। पिछली बार गुरमीत को जब पैरोल दी गई थी तो उसका आधार बेहद हास्यास्पद था। इस बार पैरोल के लिए क्या कारण बताया गया, इस पर इन पंक्तियों को लिखे जाने तक प्रशासन और सरकार पूरी तरह खामोश हैं।

हरियाणा के जेल मंत्री रंजीत सिंह चौटाला यह कहकर किनारे हो जाते हैं कि इस बाबत रोहतक के संभागीय आयुक्त बेहतर जानते हैं कि किस वजह से और किस आधार पर पैरोल दी गई है। यह मानना बहुत मुश्किल है कि आयुक्त या उपायुक्त (खासतौर से गुरमीत राम रहीम के मामले में) सरकार से पूछे बगैर इतना बड़ा फैसला ले लें! बेशक हरियाणा और पंजाब में भी महाराष्ट्र प्रिजन मैनुअल के तहत साल भर में किसी कैदी को 90 दिन की पैरोल पर रिहा किया जा सकता है और कानूनन यह भी जरूरी है कि कैदी इससे पहले तीन साल की सजा पूरी कर चुका हो और जेल में उसका व्यवहार अच्छा हो।

मैनुअल के अनुसार जिला या मंडल प्रशासन को संवैधानिक अधिकार होता है कि वह जेल सुपरिंटेंडेंट की सिफारिश पर कैदी को पैरोल या फरलो (जेल से छुट्टी) दे सकता है। लेकिन गुरमीत राम रहीम सिंह पिछले साल 90 दिन से ज्यादा ‘विशेष लाभ’ ले चुका है। यह सरकार की अलिखित सहमति के बगैर कतई संभव नहीं। तो क्या उसे भाजपा सरकार अपने किसी खास ‘मिशन’ के लिए बार-बार इस मानिंद रिहाई देती है?

इस सवाल का जवाब ‘हां’ में इसलिए हो सकता है कि उसके वर्चुअल सत्संग में शिरकत करने वालों में वरिष्ठ भाजपा नेता अथवा पदाधिकारी भी होते हैं। इस सत्संग को हरियाणा के उन इलाकों में बार-बार दिखाया जाता है, जहां डेरे के अनुयायियों की तादाद ज्यादा है। पिछली बार जब उसे रिहा किया गया तो पंचायत और जिला परिषद के चुनाव होने थे और अब आगे जाकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा ‘मिशन-2024’ के लिए कमर कस चुकी है।

उसके केंद्रीय स्तर के नेता तक बलात्कारी तथा हत्यारे (सीबीआई अदालत के मुताबिक) गुरमीत राम रहीम सिंह को एक सजायाफ्ता होने के बाद भी अध्यात्मिक शख्सियत बता रहे हैं। इसके अलावा वह तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता, अभिनेता, गायक और निर्माता-निर्देशक तो है ही! शासन व्यवस्था के पैरोकार भूल जाते हैं कि इसी राम रहीम सिंह को जब पंचकूला में विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी तब उस खूबसूरत शहर का एक बड़ा हिस्सा तहस-नहस कर दिया गया था और वहां हुई हिंसा में कई लोग मारे गए थे। 

गौरतलब है कि गुरमीत राम रहीम सिंह की मां नसीब कौर के अलावा तमाम परिवारिक सदस्य विदेश जाकर बस गए हैं। हनीप्रीत उसकी मुंहबोली बेटी है और आज की तारीख में वही उसकी निकट की ‘रिश्तेदार’। भरोसेमंद सूत्र बताते हैं और यह बात आमफहम भी है कि हनीप्रीत की वजह से गुरमीत राम रहीम के रिश्तेदार उससे सदा के लिए अलहदा हो गए।

अब सिरसा स्थित डेरा मुख्यालय को वही संभालती है। हालांकि उस पर भी आरोप तय हैं। वह जमानत पर रिहा है। हनीप्रीत डेरेदार की सबसे ज्यादा राज़दार है और उसकी घोषित वारिस भी। 19 जनवरी को यानी पैरोल के आदेश जारी होने से ऐन पहले हनीप्रीत ने सुनारिया जेल जाकर गुरमीत राम रहीम सिंह से मुलाकात की थी।

भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि कतिपय सियासतदान हनीप्रीत के जरिए गुरमीत राम रहीम सिंह तक अपनी बात पहुंचाते रहते हैं और इसीलिए कई बार नियमों की अनदेखी करके उसे जेल के भीतर गुरमीत से मिलने दिया जाता है।  25 जनवरी को गुरमीत राम रहीम सिंह से पहले के डेरेदार शाह सतनाम सिंह का जन्मदिन है जो तगड़े और आलीशान तामझाम के साथ मनाया जाता है।

सूत्रों के मुताबिक़ गुरमीत ने अपने गुरु के जन्मदिवस के मौके पर होने वाले आयोजन के लिए सिरसा जाने की इजाजत सरकार से मांगी है लेकिन उस पर क्या फैसला लिया गया, यह सोमवार को स्पष्ट होने की संभावना है। जेल मंत्री रंजीत सिंह का कहना है कि अभी तक उनके पास ऐसा कोई आवेदन डेरेदार की तरफ से नहीं आया। वैसे, इस बात की संभावना थोड़ी कम ही है कि गुरमीत राम रहीम सिंह को सिरसा डेरा मुख्यालय जाने देने की गलती सरकार करेगी। 

जिस अच्छे व्यवहार की बदौलत गुरमीत राम रहीम सिंह को लगातार पैरोल दी जा रही है, उस ‘अच्छे व्यवहार’ की असलियत की बाबत सिरसा में बहुत सारे लोग जानते हैं। पत्रकार छत्रपति, जिनकी हत्या से गुरमीत के हाथ खून से सने हुए हैं, वह सिरसा के ही थे। इसलिए वहां मीडिया का अधिकांश हिस्सा खुलकर कुछ नहीं कहता। एक स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर इस संवाददाता को बताया कि सभी जानते हैं कि गुरमीत राम रहीम सिंह के खालिस्तानी आतंकवादियों से संपर्क रहे हैं।

श्रीगंगानगर का रहने वाला आतंकी गुरजंट सिंह राजस्थानी उसका रिश्तेदार था और जब गुरमीत ने मुख्यालय में, शाह सतनाम सिंह के वक्त डेरा डाला तो पनाह के लिए गुरजंट सिंह राजस्थानी अक्सर वहां जाया करता था और उसके बाद एक दिन बाकायदा एक साजिश के तहत गुरमीत और गुरजंट ने बारूदी हथियारों की नोंक पर शाह सतनाम सिंह को मजबूर कर दिया कि वह गुरमीत को अपने जिंदा रहते डेरे की गद्दी सौंप दें। ऐसा ही हुआ। गुरमीत अपने गुरु शाह सतनाम सिंह के जिंदा रहते ही गद्दीनशीन हो गया था और तब डेरे में कई आतंकी पनाह लेते थे। प्रसंगवश, गुरमीत राम रहीम सिंह खुद भी राजस्थान के गंगानगर जिले के एक गांव का मूल निवासी है। 

सीबीआई से वास्ता रखने वाले एक कनिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य या केंद्र सरकार ने इस पहलू से कभी जांच ही नहीं की। उसी अधिकारी के मुताबिक पंजाब सरकार के खुफिया विंग को भी बखूबी जानकारी थी कि गुरमीत राम रहीम सिंह आतंकवादियों को पनाह देता है और उनसे नाजायज हथियार लेता है। लेकिन किसी सरकार ने कभी उस पर हाथ नहीं डाला। हाल ही में पंजाब पुलिस बेअदबी मामले में उसका प्रोटेक्शन वारंट लेना चाहती थी और पंजाब लाकर उससे पूछताछ करना चाहती थी। इसके लिए जरूरी अदालती आदेश भी पंजाब की पुलिस को मिल गए थे लेकिन हरियाणा सरकार के इशारे पर, सुरक्षा का हवाला देकर जेल प्रशासन ने उसे पंजाब पुलिस के हवाले करने से इंकार कर दिया।

अलबत्ता पंजाब पुलिस के अधिकारियों ने सुनारिया जेल जाकर उससे पूछताछ की। जांच दल में शामिल एक अधिकारी के अनुसार गुरमीत राम रहीम सिंह ने किसी भी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दिया और टालने के लहजे में यही दौहराता रहा कि अब उसे कुछ याद नहीं आ रहा। यही अधिकारी बताते हैं कि सुनारिया (रोहतक) जेल प्रशासन मानों उसके दबाव में है। वहां वह बड़े आराम से रहता है। नियमों को दरकिनार करके उसे बेशुमार सुविधाएं दी गईं हैं। कहीं से भी वह सजायाफ्ता कैदी नहीं लगता।       

उम्र के जिस दौर से डेरेदार गुरमीत राम रहीम सिंह गुजर रहा है, उसमें दाढ़ी और बालों का रंग सफेद हो जाता है लेकिन वह पूरी तरह तैयार होकर और दाढ़ी- बाल काले करके जेल से बाहर निकलता है। अगर मीडिया के सामने से निकालना हो तो सरकारी जेल बस का इस्तेमाल किया जाता है वरना डेरे की आलीशान गाड़ी उसे लेने आती है।

पिछली बार की पैरोल पर उसने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपने अनुयायियों से कहा था कि “हम गुरु थे, हैं और रहेंगे”! तो क्या गुरमीत राम रहीम सिंह सरकार की भी ‘गुरु’ है? यह यक्ष प्रश्न है। डेरेदार और सरकार का रवैया तो यही बताता है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं पंजाब में रहते हैं।)

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