जातिगत जनगणना से उठा तूफान

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विगत दिवस संसद में बजट सत्र के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वित्त मंत्रालय की उस टीम का हलवा खाते फोटो प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी ने क्या दिखा दिया, जातिगत जनगणना ना चाहने वालों को चींटा चिपक गया। क्योंकि उस फोटो में एक भी सदस्य पिछड़े वर्ग से नहीं था। जो यह दर्शाता है कि देश के सबसे बड़े समुदाय की, बजट बनाने में कितनी भागीदारी है। इस एक तस्वीर ने तहलका मचा दिया। ये पहली बार राहुल ने नहीं कहा है, वे तो लंबे अर्से से ये मसला उठाते रहे हैं। और इसकी सच्चाई जानने के लिए जाति-गणना की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में इसे रखा गया था तथा उन्होंने सदन में इस चक्रव्यूह को तोड़ने की बात भी कही। जिससे चुनाव काल से लेकर अब तक, पिछड़ा वर्ग राहुल गांधी के साथ डटकर खड़ा हो चुका है। उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव ने यह साबित भी कर दिखाया है। इसलिए भाजपा की जान आफत में है।

इसलिए इसकी काट के लिए भाजपा के एक युवा तुर्क केन्द्रीय मंत्री अनुराग को आगे कर यह सवाल उठाया गया कि राहुल बताएं, वे किस जाति के हैं। जिसे अमूमन सारा देश भली-भांति जानता है। इस पर पूरे लगभग दस साल भाजपा आईटी सेल लगा रहा है। गांधी सरनेम पर भी रिसर्च जैसा आलम रहा है। वे अग्नि पूजक पारसी समुदाय से आते हैं। बहरहाल अनुराग ठाकुर को अब लोगों ने उनको ही जाति के जाल में ऐसा उलझा दिया है कि अकल ठिकाने आ गई। उनसे पूछा जा रहा है कि उनके पिता धूमिल हैं, तो वे ठाकुर क्यों लिखते हैं, जवाब दो। किस जाति के हो, उनके बाप दादाओं का इतिहास भी सामने आ रहा है। इन्हें आप भूले नहीं होंगे जिन्होंने दिल्ली दंगे के दौरान कहा था गोली मारो …को। इसका पुरस्कार भारत सरकार ने उन्हें मंत्री बनाकर दिया था।

आजकल भाजपा के सभी पैंतरों पर पानी फिरता जा रहा है क्योंकि जनता जाग गई है और वह बिना कांग्रेस के आईटी सेल की प्रतीक्षा किए। सीधे हर मामले में सवाल-जवाब करने लगी है। यह लोकतांत्रिक देश का शुभ लक्षण है। सोचिए कि जिस दिन, जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी भागीदारी की बारी आएगी, उस दिन सदियों से जमे कुछ खास वर्गों के आधिपत्य पर विराम लगेगा। इसी तरह आरक्षण भी इनके गले की हड्डी बना हुआ है। संघ से पीएम तक आरक्षण के ख़िलाफ़ खुलकर बोल चुके हैं। मज़बूरी में फिलहाल इसे ढो रहे हैं। इसलिए जातिगत जनगणना का नाम सुनते ही इन्हें सांप सूंघ जाता है।

उत्तर प्रदेश की दलित नेत्री मायावती का जिस तरह से सफाया किया गया यह सामने है। उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के कल्याण सिंह से बाबरी तुड़वाकर उन्हें दूध की मक्खी की तरह फेंक दिया गया। यही हाल पिछड़े वर्ग की मुखर नेत्री उमा भारती का हुआ। मध्यप्रदेश से उभरते कद्दावर नेता प्रह्लाद पटेल और शिवराज सिंह के साथ हुए व्यवहार को भी स्मरण करना चाहिए। मोदी जी ना भूलें उनका हाल भी आगे चलकर यही होना है।

राहुल गांधी ने तो लगातार सामाजिक भागीदारी के असंतुलन पर कहा है कि अगर भारत की शीर्ष 200 कंपनियों और उनके मालिकों को देखा जाए, तो एक भी आदिवासी, दलित या ओबीसी नहीं मिलेगा और यही स्थिति न्यायपालिका से लेकर मीडिया तक सभी क्षेत्रों में देखी जाती है, जिसमें 90 प्रतिशत भारतीय लोग बाहर रह जाते हैं। वे साफ़ तौर पर कहते रहे हैं कि “मैं यह नहीं कह रहा हूं कि बड़े भारतीय कारोबारियों की मदद नहीं की जानी चाहिए। उनकी भी मदद की जानी चाहिए। मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि अगर आप उन्हें 100 रुपये की मदद कर रहे हैं, तो 90 फीसदी आबादी की भी उसी 100 रुपये से मदद कीजिए। मोदी सरकार ने इन 200 कंपनियों में से 25 को 16 लाख करोड़ रुपये दिए हैं। यह वह रकम है जिससे 25 बार किसानों की कर्जमाफी की जा सकती है”

जब देश में जातिवाद को बढ़ावा देने का राहुल गांधी पर आरोप लगा था तो राहुल ने कहा था-“मेरी दिलचस्पी जाति में नहीं है। मेरी दिलचस्पी ‘न्याय’ में है। मैं कह रहा हूं कि भारत में 90 प्रतिशत लोगों के साथ घोर अन्याय हो रहा है। मैंने यह भी नहीं कहा कि हम कोई कार्रवाई करेंगे। मैंने केवल इतना कहा है कि आइए पता लगाएं कि कितना अन्याय हो रहा है…इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।”

कुल मिलाकर जातिगत जनगणना की मांग के ज़रिए देश के आर्थिक और सामाजिक भागीदारी के असंतुलन का मुद्दा अब जन मुद्दा बन चुका है और इसे राहुल गांधी की जाति पूछने वाली ओछी हरकतों से दबाया नहीं जा सकता। ये तूफान भारत के राजनीतिक और आर्थिक इतिहास में क्रांतिकारी इबारत लिखेगा।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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