उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने कहा कि खेल के क्षेत्र में लैंगिक दुर्व्यवहार से निपटने के लिए एक मजबूत तंत्र की स्थापना आवश्यक है, क्योंकि माहौल को समावेशी बनाने से ही यह संदेश जाएगा कि खेल के क्षेत्र में महिलाएं किसी भी प्रकार के भेदभाव और प्रताड़ना से सुरक्षा और सम्मान की हकदार हैं। जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि एक समावेशी वातावरण का निर्माण यह संदेश देता है कि खेल में महिलाएं सम्मान और भेदभाव और उत्पीड़न से सुरक्षा की हकदार हैं। खेल के क्षेत्र में यौन शोषण की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं।
जस्टिस कोहली ने यह विचार ऐसे समय पर व्यक्त किया है जब कुश्ती संघ के अध्यक्ष भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों द्वारा लगाये गये उत्पीड़न के आरोपों से सामने आया कि खेलों में लिंग भेदभाव और यौन उत्पीड़न महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करते हैं, समानता, निष्पक्षता और समावेशिता के सिद्धांतों को कमजोर करते हैं। भारत ने कानून और दिशानिर्देशों के माध्यम से लैंगिक भेदभाव और यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है। यह समस्या विश्वव्यापी है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की हालिया रिपोर्ट ने खेल क्षेत्र के भीतर तेजी से बढ़ते ‘सेक्सटॉर्शन’ के मामले को चिंताजनक समस्या के तौर पर उजागर किया है। भ्रष्टाचार के मामलों की निगरानी करने वाली यह संस्था रोमानिया मेक्सिको जिम्बाब्वे और जर्मनी पर नजर बनाए हुए है। जर्मनी के एथलीटों के बीच किए गए सर्वेक्षण में तीन में से एक रिपोर्ट में संस्था ने संगठित खेल में यौन हिंसा की कम से कम एक स्थिति का अनुभव किया है।
जस्टिस कोहली ने शुक्रवार को ‘खेल के माध्यम से महिला सशक्तिकरण’ विषय पर एक राष्ट्रीय सेमिनार में यह बात कही। उन्होंने खेलों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधारों का आह्वान किया और कहा कि ऐसी नीतियों में खेल के क्षेत्र में लिंग आधारित हिंसा, भेदभाव और उत्पीड़न को संबोधित करने के लिए तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘कैंपस लॉ सेंटर’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि हालांकि न्यायिक घोषणाएं मार्गदर्शक के रूप में काम करती हैं, खेल के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी नीति सुधार भी उतने ही आवश्यक हैं।
उन्होंने खेलों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधार की बात करते हुए कहा कि खेल के क्षेत्र में लैंगिक हिंसा, भेदभाव और प्रताड़ना से निपटने के लिए तंत्र स्थापित करने के लक्ष्य से नीतियां बनायी जानी चाहिए। जस्टिस कोहली ने कहा कि न्यायिक फैसले दिशा-निर्देशों की भांति काम करते हैं, लेकिन खेलों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के लिए प्रभावी नीतिगत सुधार भी आवश्यक है।
जस्टिस कोहली ने कहा कि इन नीतियों को विभिन्न पहलुओं जैसे समान अवसर सुनिश्चित करना, वित्तीय सहायता मुहैया कराना और खेल के क्षेत्र में किसी भी प्रकार की लैंगिक हिंसा, भेदभाव और प्रताड़ना की सूचना देने और उसके समाधान के लिए तंत्र स्थापित करना आदि की समीक्षा करनी चाहिए। जस्टिस कोहली ने कहा कि इन नीतियों में विभिन्न पहलुओं की जांच की जानी चाहिए, जिसमें समान अवसर सुनिश्चित करना, वित्तीय बैकअप प्रदान करना और खेल के क्षेत्र में किसी भी लिंग आधारित हिंसा, भेदभाव और उत्पीड़न की रिपोर्टिंग और निवारण के लिए तंत्र स्थापित करना शामिल है।
इस तरह के कदाचार के मामलों की रिपोर्टिंग और समयबद्ध निवारण के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करना जरूरी है। इसमें हेल्पलाइन स्थापित करना, शिकायतों की जांच के लिए स्वतंत्र वैधानिक समितियों की स्थापना करना और अपराधियों पर सख्त दंड लगाना शामिल है। उन्होंने कहा कि एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण बनाने से पूरे समाज को एक शक्तिशाली संदेश जाएगा कि खेल में महिलाएं सभी प्रकार के भेदभाव और उत्पीड़न से सम्मान और सुरक्षा की हकदार हैं।
जस्टिस कोहली ने कहा कि महिलाओं की आकांक्षाओं को सीमित करने वाली प्रतिगामी मानसिकता और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती दी जानी चाहिए, उन्होंने कहा कि मजबूत प्रणाली विकसित करना महत्वपूर्ण है जो महिला एथलीटों का समर्थन करती है, समान वेतन सुनिश्चित करती है और उन्हें वित्तीय बाधाओं के बिना अपने करियर को आगे बढ़ाने के अवसर प्रदान करती है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि खेल महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का साधन हो सकता है क्योंकि यह समर्थन और पेशेवर अनुबंधों के लिए रास्ते खोलता है और खेलों में सफल महिलाओं की कहानियां अन्य लड़कियों को टीम वर्क, आत्मनिर्भरता, लचीलापन और आत्मविश्वास का महत्व सिखाती हैं।
जस्टिस कोहली ने समान आर्थिक अवसरों के साथ-साथ महिलाओं की समान भागीदारी और मीडिया में पूर्वाग्रह मुक्त प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने की भी वकालत की उन्होंने कहा कि हमें ऐसे माहौल को बढ़ावा देना चाहिए जहां महिलाओं को अपने खेल के सपनों को आगे बढ़ाने और अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
न्यायाधीश ने कहा कि खेल महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का साधन हो सकता है। यह न केवल वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है बल्कि महिलाओं के समग्र आर्थिक सशक्तिकरण में भी योगदान देता है। उन्होंने कहा कि हमें प्रतिभा को पोषित करने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए मजबूत बुनियादी ढांचे और विशेषज्ञों में निवेश करना चाहिए। सबसे ऊपर, हमें प्रतिगामी मानसिकता और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देनी चाहिए जो हमारी महिलाओं और लड़कियों की आकांक्षाओं को सीमित करते हैं।
जस्टिस कोहली ने कहा कि भारतीय महिलाओं ने क्रिकेट से लेकर एथलेटिक्स तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अदम्य उपस्थिति दर्ज की है और हमें उन चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए जिनका उन्होंने सामना किया और उनसे पार पाया। उन्होंने कहा कि किसी भी अन्य खेल क्षेत्र की तरह, भारतीय खेल क्षेत्र भी हमारे समाज में मौजूद गहरी जड़ें जमा चुके पूर्वाग्रहों और लैंगिक असमानताओं से अछूता नहीं है। ऐसी कई बाधाएं हैं जो महिलाओं को उनकी क्षमता का पूरी तरह से एहसास करने से रोक रही हैं।
न्यायाधीश ने कहा कि अब यह सरकारों, खेल निकायों और सभी हितधारकों पर है कि वे प्रभावी नीतियों और कार्यों” को तैयार करें और “समानता के एक नए युग की शुरूआत करें जहां खेलों में महिलाओं को सम्मानित, समर्थित और प्रशंसित किया जाए। जस्टिस कोहली ने कहा कि हमें सक्रिय रूप से एक सक्षम वातावरण बनाना चाहिए जो प्रतिभा के विकास को बढ़ावा दे और महत्वाकांक्षी महिला एथलीटों को पोषित करे। एक समान अवसर उन्हें जोश और दृढ़ संकल्प के साथ अपने खेल के सपनों को आगे बढ़ाने के लिए सशक्त बनाएगा।
खेल के क्षेत्र में यौन शोषण यानी ‘सेक्सटॉर्शन’ के कई हाई-प्रोफाइल मामलों ने इस समस्या के प्रति लोगों का ध्यान खींचा है हालांकि बाहर से देखने पर यह समस्या जितनी दिखती है, उससे कहीं ज्यादा बड़ी है।
‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ की हालिया रिपोर्ट ने खेल क्षेत्र के भीतर तेजी से बढ़ते ‘सेक्सटॉर्शन’ के मामले को चिंताजनक समस्या के तौर पर उजागर किया है। जिमनास्टिक और फुटबॉल जैसे खेलों में भी हाल के कई हाई-प्रोफाइल मामलों ने यौन शोषण की बढ़ती समस्या को रेखांकित किया है, जबकि खेल के क्षेत्र के भीतर इस समस्या से जुड़े काफी सारे मामलों की रिपोर्ट ही नहीं की जाती है।
सामान्य तौर पर अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल कर किसी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करना ‘सेक्सटॉर्शन’ कहलाता है। यह यौन शोषण और भ्रष्टाचार दोनों का मिलाजुला रूप है। हालांकि इस परिभाषा को अभी तक पूरी तरह मान्यता नहीं मिली है।
अलग-अलग अध्ययनों से यह पता चला कि दुर्व्यवहार करने वाले पुरुषों का अनुपात 96 से 100 फीसदी के बीच था। ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ ने इसकी आलोचना करते हुए इसे मर्दाना संस्कृति कहा। इस समस्या के बढ़ने के पीछे कई वजहें हैं जैसे संगठन के शीर्ष स्तर पर महिलाओं की संख्या कम होना महिला एथलीटों को कम वेतन मिलना लैंगिक असमानता वगैरह।
खेल के क्षेत्र में इस समस्या को खत्म करने और बदलाव लाने को लेकर जर्मन ‘ओलंपिक स्पोर्ट्स कॉन्फेडरेशन’ (डीओएसबी) ने 2010 में खेल में यौन हिंसा से सुरक्षा के लिए म्यूनिख में जारी घोषणापत्र को अपनाने का वादा किया था हालांकि डीओएसबी ऐसा करने में सफल नहीं हो सका।
घोषणापत्र में 15 उपायों पर ध्यान देने की बात कही गई है। उनमें से एक खेल योग्यता में अनिवार्य विषय के रूप में यौन हिंसा की रोकथाम और आचार संहिता को अपनाना शामिल है। इसके नौ साल बाद एक अध्ययन से पता चला कि देश के आधे से भी कम राष्ट्रीय खेल संघों के कानून में यौन शोषण की रोकथाम विषय शामिल है।
(जे. पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)
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