पतंजलि के ‘भ्रामक’ विज्ञापनों पर बाबा रामदेव को जबरदस्त फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाबा रामदेव को जबरदस्त फटकार लगाई। अदालत ने कथित भ्रामक विज्ञापनों के मामले में शीर्ष अदालत को दिए गए कंपनी के वादे का घोर उल्लंघन बताया। अदालत ने साफ़ कहा कि भ्रामक विज्ञापनों पर इसके आदेश का उल्लंघन पूरी तरह अवमानना है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि केंद्र सरकार ने यह दावा करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की कि उसके उत्पाद कोविड-19 महामारी का इलाज कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यद्यपि पतंजलि द्वारा दावे उस समय किए गए जब कोविड-19 अपने चरम पर था, संघ ने कोई कार्रवाई नहीं की। हालांकि उसकी अपनी समिति ने कहा कि पतंजलि के उत्पादों का उपयोग केवल अन्य उत्पादों के पूरक के रूप में किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण और रामदेव को मौजूद रहने के लिए कहा था। अदालत में मौजूद रामदेव ने अदालत से उनकी बिना शर्त माफी पर ध्यान देने को कहा। दोनों कारण बताओ नोटिस के सिलसिले में अदालत में पेश हुए। नोटिस में उनसे पूछा गया था कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए।

पिछले साल 21 नवंबर को अदालत ने कंपनी से कहा था कि वह मीडिया में कथित तौर पर कोई भ्रामक विज्ञापन जारी न करे या औषधीय प्रभावकारिता का दावा करने वाले या चिकित्सा की किसी भी प्रणाली के खिलाफ बयान न दे। इस साल 27 फरवरी को अदालत ने कंपनी और बालकृष्ण को कथित तौर पर एक विज्ञापन जारी करने और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने पर पिछले आदेश का उल्लंघन माना और इसके लिए नोटिस जारी किया था। 19 मार्च को पीठ ने कहा कि 27 फरवरी के नोटिस का कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है और साथ ही रामदेव को नोटिस जारी करने का फैसला किया।

इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बेहद सख्त टिप्पणी की और कार्रवाई की चेतावनी दी। अदालत ने कहा, ‘आपको अदालत को दिए गए वचन का पालन करना होगा, आपने हर सीमा तोड़ दी है।’

पीठ ने केंद्र की भी खिंचाई करते हुए पूछा कि आयुष मंत्रालय ने तब अपनी आंखें बंद क्यों रखीं जब पतंजलि यह कहते हुए शहर दर शहर जा रही थी कि एलोपैथी में कोविड का कोई इलाज नहीं है।

पीठ पतंजलि के विज्ञापनों में एलोपैथी पर हमला करने और कुछ बीमारियों के इलाज के दावे करने के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। 2020 में पतंजलि ने विज्ञापन दिया कि उसने ऐसे उत्पाद विकसित किए, जो कोविड-19 को 100% ठीक कर सकते हैं।

पिछले अवसर पर (27 फरवरी को) न्यायालय ने संघ से इस संबंध में उठाए गए कदमों के बारे में बताते हुए विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा। इसके बाद (19 मार्च को) यह देखने के बाद कि दायर किया गया हलफनामा रिकॉर्ड पर नहीं था, न्यायालय ने भारत संघ को यह सुनिश्चित करने का अंतिम अवसर दिया कि दायर किया गया जवाबी हलफनामा रिकॉर्ड पर है।

इसके बाद आयुष मंत्रालय ने 42 पेज का हलफनामा दायर किया, जिस पर कोर्ट ने गौर किया। न्यायालय ने भारत संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कई प्रश्न पूछे। इसे पतंजलि के उत्पादों के केवल मुख्य दवा के पूरक होने के बारे में जनता के बीच जानकारी के प्रसार के संबंध में न्यायालय की टिप्पणियों के साथ जोड़ा गया। न्यायालय ने पतंजलि के ऐसे दावों पर भी चिंता व्यक्त की, यह देखते हुए कि ये दावे कोविड महामारी की गंभीर अवधि के दौरान थे।

सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को इस मामले में एक हफ्ते में अपना हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका दिया है। मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को तय करते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि ये दोनों अगली तारीख पर उसके समक्ष उपस्थित रहेंगे।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने पिछली सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत की फटकार के बाद पिछले महीने पतंजलि द्वारा मांगी गई माफ़ी को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, ‘हम आपकी माफी से खुश नहीं हैं।’ कोर्ट ने कहा कि आपकी माफी इस अदालत को राजी नहीं कर रही है, यह सिर्फ़ दिखावटी बयानबाज़ी है।

इसके बाद रामदेव के वकील ने कहा कि रामदेव और बालकृष्ण दोनों व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में माफी मांगने को तैयार हैं। वरिष्ठ वकील बलबीर सिंह ने हाथ जोड़कर अदालत से कहा, ‘हम माफी मांगना चाहते हैं और अदालत जो भी कहेगी उसके लिए तैयार हैं।’

राज्य को उनके द्वारा की गई कार्रवाई का विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिए 10 अप्रैल तक का समय दिया गया है। बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण दोनों को सुनवाई की अगली तारीख पर भी अदालत में उपस्थित रहने के लिए कहा गया है।

(जनचौक की रिपोर्ट)

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