बिहार में जब राजद और जदयू की सरकार थी, तब भाजपा नीतीश सरकार पर सबसे ज्यादा आरोप के के पाठक की वजह से लगाती थी। आज जब भाजपा जदयू के साथ है, तब भीतरी राजनीति में भाजपा को के के पाठक को लेकर शिकायत बनी हुई है। दरअसल मामला यह है कि बिहार के सरकारी टीचर और उनके परिवार, जिनकी संख्या लाखों में है वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराज नहीं हैं बल्कि वे आईएएस अधिकारी के के पाठक से इतने नाराज हैं कि काफी टीचर सरकार के विरोध में मतदान कर रहे हैं या नोटा का बटन दबा रहे हैं।
जहां पूरे देश में चुनाव सुर्ख़ियों में है वहीं बिहार का एक क्षेत्रिय चैनल शिक्षा विभाग की खबर को लगातार प्रसारित कर रहा है। के के पाठक के द्वारा हाल ही में एक निर्णय लिया गया है कि बच्चों और शिक्षकों को मॉर्निंग स्कूल में आने का समय 6 बजे रखा है। जिसका कई लोग विरोध कर रहे हैं, शिक्षक संघ से जुड़े दिलीप कुमार बताते हैं कि “सुबह 6 बजे स्कूल आने के लिए आपको कम से कम 4 बजे उठना पड़ेगा। बताइए कई शिक्षक स्कूल से एक घंटा की दूरी पर रहते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिला शिक्षकों को कितनी दिक्कत होगी आप सोच भी नहीं सकते हैं।”

बिहार में शिक्षा पर काम कर रहे अंशु अनुराग बताते हैं कि “बिहार के सुदूर क्षेत्र में अन्य राज्य की महिलाएं स्कूल से लगभग आधा घंटे दूर छोटे शहर में रहती है। आज भी जहां अपराध का दर काफी ज्यादा है वहां की शिक्षिकाओं के लिए यह फैसला काफी डरावना होगा। बिहार में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश छात्रों के माता-पिता मजदूर, कामगार और छोटे व्यवसायी हैं। अधिकांश लोग 6 या 7 बजे उठते हैं। ऐसे में उनके जिंदगी पर भी प्रभाव पड़ेगा।”
बिहार के सरकारी स्कूलों के शिक्षक स्कूलों के लिये लागू नये टाइम-टेबल से काफी नाराज़ हैं। टाइम-टेबल बदलने की मांग को लेकर वे 16 मई से ही आवाज़ उठा रहे हैं, लेकिन, शिक्षकों के अनुसार उनकी बातों पर विभाग ध्यान नहीं दे रहा है। शिक्षकों का कहना है कि उनके प्रति किसी भी सरकार का रवैया सही नहीं है।
सुपौल शहर में किराए पर घर लेकर रहने वाली एक शिक्षिका नाम ना बताने की शर्त पर कहती है कि “हमारे घर से स्कूल की दूरी लगभग आधे घंटे पर है। यानी स्कूल जाने के लिए कम से कम 4 बजे उठाना पड़ेगा। मॉर्निंग स्कूल आने वाले छात्रों की छुट्टी 12.30 बजे होगी। यह समय सबसे गर्मी वाला होता है और बच्चों को लू लगने की संभावना प्रबल होती है। समय कितना प्रतिकूल चल रहा है देख ही रहे हैं। ऐसे में छात्रों को भी बहुत समस्या हो रही है।”
स्वाभाविक बात है कि अचानक इस निर्णय का असर छात्र और शिक्षक दोनों के जिंदगी पर पड़ेगा। ऐसे में अनुपस्थिति की संख्या में वृद्धि हो सकती है। इसके बीच यह परेशानी वाला ऐसा निर्णय ऐसा है कि शिक्षा अधिकारी और शिक्षक मिलकर सुबह छह बजे तक 90 प्रतिशत बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं करेंगे तो उन पर भी कार्रवाई होगी।

वहीं भोजपुर शिक्षक संघ के विनोद कुमार कहते हैं कि “6 बजे स्कूल जाने के लिए 4 बजे ही जागना होता है, भोर में न गाड़ी मिलती है और न लंच बॉक्स ले पाते हैं, मेकअप वगैरह की बात छोड़िए, आखिर इस भीषण गर्मी में दोपहर तक भूखे प्यासे कैसे स्कूल में रहेंगे, माननीय नीतीश कुमार कुछ तो करिए। इस डिक्टेटरशिप का नुक़सान अंतत: जो लोग पठन-पाठन में लगे हुए हैं उनको हो रहा है।”
वहीं राज्य के कई विद्यालयों से गर्मी की वजह से छात्रों के बेहोश होने की खबर सामने आ रही है। सिर्फ राज्य के सुपौल जिले का जिक्र करें तो स्थानीय पत्रकार के मुताबिक उर्दू कन्या मध्य विद्यालय परसा, हरिजन उच्च विद्यालय सिंहे और मुरली मनोहर उच्च माध्यमिक विद्यालय बरेल से छात्रों के बेहोश होने की घटना सामने आई है।
कन्या प्राथमिक विद्यालय सुखपुर के प्रधानाध्यापक मो हैदर अली ने बताया कि “करीब साढ़े 9:30 बजे पांचवीं के कक्ष में बच्चा डेस्क पर सर रखकर सोया था, कुछ देर नहीं उठने पर पता चला कि वह बेहोश है। तुरंत शिक्षकों द्वारा छात्र को पानी का छींटा दिया गया। इसकी जानकारी परिजन को दी गयी और परिजन विद्यालय आकर बच्चे को घर ले गये।
सोशल मीडिया X पर भी कई शिक्षक संघ और छात्रों के द्वारा #ReviseSchoolTime से ट्रेंड कराया गया था। X पर केके पाठक के अलावा नीतीश कुमार पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं। X पर लिखा जा रहा है कि नीतीश कुमार जी जब आप न्याय के साथ विकास की बात करते है तो आप करोड़ों स्कूली बच्चों और लाखों शिक्षकों को कहां न्याय दे पा रहे हैं। इस भीषण गर्मी, लू में सब अपनी जान जोखिम में डाल कर स्कूल जा रहे हैं। स्कूल की टाइमिंग में जल्द बदलाव किया जाए।
कांग्रेस विधायक दल के नेता डॉ. शकील अहमद ख़ान ने भी वीडियो जारी कर शिक्षा विभाग के फैसले की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि शिक्षा विभाग शिक्षा नहीं देना चाहता है, बल्कि डिक्टेटरशिप चलाना चाहता है।
(बिहार से राहुल की रिपोर्ट)
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