पश्चिम के एक विद्वान हुए हैं चार्ल्स केटरिंग, उनकी स्थापना है कि "दुनिया परिवर्तन से नफरत करती है, लेकिन यही एकमात्र कारक है, जिससे प्रगति का जन्म होता है। इस दृष्टि से देखें तो प्रकृति का भी सार्वभौमिक नियम...
आधुनिक भारत के निर्माण में पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका निर्विवाद रूप से सबसे अहम थी, इससे भला कौन इंकार कर सकता है। समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की स्थापना से लेकर एक शक्तिशाली संसद और स्वतंत्र न्यायपालिका उन्हीं की कोशिशों से...
भारत में जेल साहित्य दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है, यह अच्छी बात भी है और बुरी भी। बुरी इसलिए क्योंकि इनकी अधिकता से यह पता चलता है कि जेलें न सिर्फ भर रहीं हैं, बल्कि यह लेखकों, साहित्यकारों और...
‘मेरी आवाज़ सुनो’ तरक़्क़ीपसंद तहरीक से वाबस्ता रहे शायर-नग़मा निगार कैफ़ी आज़मी की जीवनी है। जिसमें इस अज़ीम शख़्सियत की ज़िंदगानी और उनके अदब को मर्कज में रखा गया है। यह किताब मूल रूप में मराठी में लिखी गई...
अपनी बात शुरू करने से पहले एक बात मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि कविता की समीक्षा/आलोचना करने का इरादा/सामर्थ्य मुझ में नहीं है। वैसे कविताएं सुनना-पढ़ना मुझे अच्छा लगता है। यह लत मुझे होश संभालते ही लग गई...
यह किताब हिमालय में निवास करने वाली राजी जनजाति की परंपरागत जीवन शैली की अंतिम सांसें गिनने और उनकी पहचान के मिटने की कहानी कहती है।
तीसरे खण्ड में इसकी कहानी बहुत तेज़ी के साथ आगे बढ़ती है, जिसे पढ़ते...
दो दिन पहले ही ममता कालिया जी की किताब ‘जीते जी इलाहाबाद’ प्राप्त हुई, और पूरी किताब लगभग एक साँस में पढ़ गया ।
इलाहाबाद का 370, रानी मंडी का मकान। नीचे प्रेस और ऊपर रवीन्द्र कालिया-ममता कालिया का घर;...
यह आत्मकथा एक ऐसे दलित व्यक्ति के जीवन-संघर्षों की गाथा है जिसने उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित देवरिया जिले के एक छोटे से गांव चरियांव खास (जगदीशपुर मौजा मठबालागिर) में जन्म लिया था। जहां ग्रामीण जाति-व्यवस्था के साये...
लपूझन्ना एक उस्ताद के लिए उसके शागिर्द की तरफ़ से लिखी गई खूबसूरत कहानी है। लेखक अपने बचपन की याद अब तक नही भुला सके हैं और उन यादों में लेखक का ख़ास दोस्त भी है। ये वो ख़ास...
हिंदी के युवा कवियों में शुमार होने वाले अंशु मालवीय ने एक कविता लिखी थीः आजकल क्या कर रहे हैं मनमोहन सिंह/ क्या करता है जहर/ खून में घुलने के बाद। यह कविता उस समय में लिखी गई थी...