सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर बार-बार उठते सवाल

क्या न्याय इतना व्यक्तिनिष्ठ और इतना असहाय हो सकता है कि उसकी समीक्षा और आलोचना करना अनिवार्य बन जाए?  कोई…